NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
आदिवासी समुदाय पर कोयला खदान और हिंदू धर्म थोप रहा है अडानी समूह
हसदेव अरण्य में आदिवासियों की एक पुरातन जीवनशैली कोयला खदान को थोपे जाने से खतरे में आ गई है। लेकिन लोग वापस संघर्ष कर रहे हैं और स्थानीय सरकार का नियंत्रण वापस अपने हाथ में ले रहे हैं।
अबीर दासगुप्ता
08 Jul 2020
आदिवासी समुदाय पर कोयला खदान और हिंदू धर्म थोप रहा है अडानी समूह
हसदेव जंगल के स्थानीय (आदिवासी) लोग। फोटो: ब्रॉयन कैसी

एक संसाधन संपन्न राज्य होने के चलते छत्तीसगढ़ में स्थानीय लोगों और खनन उद्मियों के बीच खूब टकराव होते हैं। हसदेव अरण्य जंगल में स्थानीय गोंड लोगों की जिंदगी में अडानी ने अडंगा डाल दिया है। अडानी समूह इलाके में नई कोयला खदान के लिए दबाव बना रहा है। इस ‘’बड़े खुले खनन (ओपन कास्ट माइनिंग)’’ से स्वाभाविक तौर पर जंगल, नदियों और इन आदिवासियों के पुरखों की ज़मीन को ख़तरा है। सबसे ज़्यादा बुरी बात है कि इस कॉरपोरेट एजेंडे से स्थानीय लोगों की संस्कृति और धार्मिक जीवन खतरे में आ रहा है। स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके अनूठे धार्मिक विश्वासों पर हिंदू धर्म थोपा जा रहा है।

राज्य में कांग्रेस की सरकार के आने से लोगों को आस थी कि अब यह तौर-तरीके बंद होंगे। कांग्रेस जब विपक्ष में थी, तब वह बीजेपी सरकार पर अनियमितताओं के आरोप अक्सर लगाया करती थी। कांग्रेस बीजेपी पर उद्योपतियों के हित के लिए आमजनता को ताक पर रखने का आरोप लगाती थी। अब कांग्रेस की सरकार को डेढ़ साल हो चुके हैं। सत्ता हासिल करने के पहले कांग्रेस जिन मुद्दों को उठाती थी, आज वह उन पर कितनी फिक्रमंद है? क्या अडानी समूह के दबदबे ने कांग्रेस को इन मुद्दों से पीछे हटने पर विवश कर दिया है? उन समुदायों की प्रतिक्रिया क्या होगी, जो अपनी आजीविका और संस्कृति बचाने के लिए लड़ रहे हैं?

मैं 2020 के फरवरी महीने में हसदेव अरण्य जंगल पहुंचा ताकि AdaniWatch और न्यूज़क्लिक के लिए रिपोर्टिंग कर सकूं।

आदिवासियों का संघर्ष

जब मैं हसदेव जंगल को बचाने के लिए संघर्ष कर रही समिति के मदनपुर ऑफ़िस पहुंचा, तो वहां मुझे चारों तरफ दीवारों पर स्थानीय चुनावों के पर्चे दिखाई दिए। संघर्ष समिति के सदस्य चुनाव लड़ चुके हैं। हसदेव अरण्य (जंगल) के आसपास घूमने वाले हाईवे से जुड़े एक गांव के दूसरे ही घर में यह ऑफिस था। यह एक छोटा घर था। मदनपुर से कुछ किलोमीटर पहले और बाद तक यह हाईवे जंगल में से ही गुजरता है। यह वह इलाका है, जिसे स्थानीय लोग सुरक्षित करने के लिए दृढ़संकल्पित हैं।

आखिर इस जंगल को बचाने की जरूरत क्यों है? यह मध्यभारत में स्थित घने जंगलों की सबसे लंबी दूरी तक फैले जंगलों में से एक है। इस जंगल का इलाका करीब़ 1,70,000 हेक्टेयर्स है और यह उस एलीफेंट कॉरिडोर का हिस्सा है, जो पूरे मध्य भारत से होकर गुजरता है। यह आदिवासी समुदाय के लोगों का पारंपरिक घर है। यह लोग भारत के देशज लोग हैं। यह हसदेव नदी का जलग्रहण क्षेत्र भी है। यह नदी महानदी की एक बड़ी सहायक नदी है। महानदी मध्यपूर्वी भारत की एक अहम नदी है। लेकिन जंगल में अनुमानित तौर पर पांच अरब टन का कोयला भंडार भी है।

Forest-Grazing2_Cassey.jpg

(आदिवासी लोग अरबों टन कोयले के भंडारों पर हसदेव जंगल में अपने मवेशियों को चराते हैं। फोटो: ब्रॉयन कैसी)

भारत सरकार ने हसदेव जंगल में तीस कोयला भंडारों को चिह्नित किया है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि कोयला क्षेत्र में भारत का सबसे बड़ा निजी खिलाड़ी- अडानी समूह, इसका शोषण करने में दिलचस्पी ले रहा है। परसा पूर्व कांता बसन (PEKB) कोयला क्षेत्र में अडानी समूह की कंपनी खनन शुरू भी कर चुकी है। अडानी के लिए खनन बहुत बड़ा व्यापार बन गया है। इसकी वेबसाइट पर छत्तीसगढ़ में सात कोयला खदानों और दो लौह खदानों की लिस्ट है, जिनमें अडानी समूह खदान विकासकर्ता और संचालनकर्ता (MDO) है। अडानी ने PEKB खदान के पास ही दो खदानों में खनन का ठेका भी ले लिया है। इनके नाम परसा और केंते विस्तार क्षेत्र हैं। मतलब हसदेव जंगल में दांव बढ़ चुका है।

PEKB कोयला खदानों में 2013 में काम शुरू होने के बाद आदिवासियों ने अपना विरोध कार्यक्रम शुरू किया था। इन खदानों के आसपास रहने वाले आदिवासियों ने खुद को हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति (HABSS) के बैनर तले इकट्ठा किया था, ताकि उनके जंगलों का और ज़्यादा क्षेत्र खदानों के लिए साफ़ न किया जा सके।

आदिवासियों के लिए यह जीवन और मरण का संघर्ष है। जितने कोयला खंडों का आवंटन हुआ है, अगर उन्हें खनन के लिए खोल दिया जाता है, तो सैकड़ों घरों के लोगों को विस्थापित होना पड़ेगा। लोगों को उनके जंगलों से हटाने के चलते उनकी आजीविका चली जाएगी। भारत के संविधान के मुताबिक़ आदिवासी बहुल इलाकों को देशज अधिकारों को पहचान देने वालों प्रावधानों के ज़रिए सुरक्षित करना होता है।

पिछले कुछ सालों में कांग्रेस पार्टी की तरफ से कुछ उम्मीद की किरण दिखाई दी थी। 2015 में कांग्रेस प्रेसिडेंट राहुल गांधी ने मदनपुर की यात्रा की थी और आदिवासियों से कहा था, ''कांग्रेस पार्टी और मैं आपके साथ हूं।'' लेकिन अब चीजें बदल चुकी हैं।

dg.PNG

(हसदेव जंगल को बचाने के लिए बनाई गई संघर्ष समिति के सह-संयोजक जयनंदन सिंह पोर्ते फोटो: अबीर दासगुप्ता)

वन अधिकार कानून, जिसमें लोग जंगल की ज़मीन और संसाधनों पर दावा पेश कर सकते हैं, वह हसदेव जंगल के लिए लागू होना चाहिए। इन दावों की सत्यता सरकार द्वारा जांची जाती है, जैसे ही इन्हें मान्यता मिलती है, तो वो औद्योगिक वजहों से भू अधिकारों के अधिग्रहण के खिलाफ़ सुरक्षा हो जाती है। पिछली सरकार में एक ऐसे ही दावे को मान्यता मिल गई थी, लेकिन उसे बाद में खारिज़ कर दिया गया। 2018 के चुनावों के वक़्त कांग्रेस ने कहा था कि वह दावों को ज़मा करेगी, लेकिन सत्ता में आने के बाद से ऐसा कुछ नहीं हुआ। बघेल ने न्यूज़क्लिक से कहा, ''हमें यह देखना होगा कि वहां वन अधिकार कानून लागू होता है या कोयला क्षेत्र से संबंधित कानून (कोल बियरिंग एरियाज़ एक्ट)। दोनों आपस में विरोधाभासी हैं।''

पोर्ते कहते हैं, 'इसलिए हमने 2019 में एक विरोध कार्यक्रम शुरू किया।' जब मैंने HABSS के सदस्यों से नवंबर 2019 में बात की थी, तो वो कार्यक्रम में गहराई से डूबे हुए थे। तब तक कार्यक्रम एक महीना पुराना हो चुका था। विरोध प्रदर्शन की जगह फतेहपुर गांव में एक स्कूल का मैदान था। यह वही मैदान है, जिस पर अब मैं उनसे मिल रहा हूं। मैदान के एक कोने में अब भी विरोध प्रदर्शन कार्यक्रम के मंच और ढांचा बना हुआ है। उसी स्टेज के नीचे से फतेहपुर गांव के लोगों के साथ मेरे इंटरव्यू के लिए दरियां लाई गईं।

Meeting_with_group_of_Fatehpur_residents_Abir.jpg

(फतेहपुर गांव में जारी बैठक। फोटो: अबीर दासगुप्ता)

सौजन्य: Adani Watch, मूल प्रकाशित तिथि: 7 जुलाई 2020

इस लेख को मूल अंग्रेजी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Adani Foists Coal Mines and Hinduism on Communities

Adani
Coal Mine
Chhattisgarh
Hasdeo Aranya forests
indigenous communities
hinduism
Adivasi
Forests Rights Act

Related Stories

तिरछी नज़र : कोरोना काल में अवसरवादिता


बाकी खबरें

  • Modi
    अनिल जैन
    PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?
    01 Jun 2022
    प्रधानमंत्री ने तमाम विपक्षी दलों को अपने, अपनी पार्टी और देश के दुश्मन के तौर पर प्रचारित किया और उन्हें खत्म करने का खुला ऐलान किया है। वे हर जगह डबल इंजन की सरकार का ऐसा प्रचार करते हैं, जैसे…
  • covid
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में 2,745 नए मामले, 6 लोगों की मौत
    01 Jun 2022
    महाराष्ट्र में एक बार फिर कोरोना के मामलों में तेजी से वृद्धि देखी जा रही है। महाराष्ट्र में आज तीन महीने बाद कोरोना के 700 से ज्यादा 711 नए मामले दर्ज़ किए गए हैं।
  • संदीपन तालुकदार
    चीन अपने स्पेस स्टेशन में तीन अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने की योजना बना रहा है
    01 Jun 2022
    अप्रैल 2021 में पहला मिशन भेजे जाने के बाद, यह तीसरा मिशन होगा।
  • अब्दुल अलीम जाफ़री
    यूपी : मेरठ के 186 स्वास्थ्य कर्मचारियों की बिना नोटिस के छंटनी, दी व्यापक विरोध की चेतावनी
    01 Jun 2022
    प्रदर्शन कर रहे स्वास्थ्य कर्मचारियों ने बिना नोटिस के उन्हें निकाले जाने पर सरकार की निंदा की है।
  • EU
    पीपल्स डिस्पैच
    रूसी तेल आयात पर प्रतिबंध लगाने के समझौते पर पहुंचा यूरोपीय संघ
    01 Jun 2022
    ये प्रतिबंध जल्द ही उस दो-तिहाई रूसी कच्चे तेल के आयात को प्रभावित करेंगे, जो समुद्र के रास्ते ले जाये जाते हैं। हंगरी के विरोध के बाद, जो बाक़ी बचे एक तिहाई भाग ड्रुज़बा पाइपलाइन से आपूर्ति की जाती…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License