NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
आधे कार्यकाल की समाप्ति पर कहां खड़ी है मोदी सरकार?
शक्तियों के केन्द्रीयकरण के साथ शुरू हुआ भाजपा और उसके साथी संघ परिवार के नेताओं के नफरत फैलाने वाले भाषणों का दौर।
राम पुनियानी
03 Feb 2017
आधे कार्यकाल की समाप्ति पर कहां खड़ी है मोदी सरकार?

नवंबर 2016 में मोदी सरकार का आधा कार्यकाल पूरा हो गया। इस सरकार का आंकलन हम किस प्रकार करें? कुछ टिप्पणीकार यह मानते हैं कि मोदी एक ऐसे नेता हैं जिन्हें देश आशाभरी निगाहों से देख रहा है और जो साहसिक कदम उठाने की क्षमता और इच्छा रखते हैं। उन्हें देश को बदल डालने का जनादेश मिला है और वे उसे पूरा करेंगे। जहां कुछ लोगों की यह सोच है, वहीं देश की आबादी का एक बड़ा हिस्सा, मोदी और उनकी सरकार को इस रूप में नहीं देखता। यह सरकार अच्छे दिन लाने और देश के सभी नागरिकों के बैंक खातों में 15-15 लाख रूपए जमा करने के वायदे पर सत्ता में आई थी। न तो अच्छे दिन आए और ना ही 15 लाख रूपए। उलटे, मंहगाई बेलगाम हो गई और ऊपर से सरकार ने नोटबंदी के जिन्न को बोतल से निकाल आमजनों को भारी मुसीबत में फंसा दिया। ऐसा बताया जाता है कि देश भर में कम से कम 100 लोग बैंकों के बाहर लाइनों में खड़े रहने के दौरान इस दुनिया से विदा हो गए। रोज़ खाने-कमाने वालों का भारी नुकसान हुआ। लाखों प्रवासी श्रमिक अपना रोज़गार खो जाने के कारण अपने-अपने घरों को वापस लौटने पर मजबूर हो गए।

इस सरकार की एक विशेषता है हर प्रकार की शक्तियों का एक व्यक्ति के हाथों में केन्द्रीयकरण। और वह व्यक्ति कौन है, इसका अंदाज़ा लगाना बहुत मुश्किल नहीं है। प्रधानमंत्री मोदी के आसपास एक आभामंडल का निर्माण कर दिया गया है। कैबीनेट मात्र एक समिति बनकर रह गई है जो श्री मोदी के निर्णयों पर ठप्पा लगाती है। इसका एक उदाहरण है विमुद्रीकरण के निर्णय को कैबिनेट की स्वीकृति। देश की विदेश नीति में भारी बदलाव किए जाने का ज़ोरशोर से ढिंढोरा पीटा गया।  पाकिस्तान की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया गया और श्री मोदी, दर्जनों विदेश यात्राओं पर गए। आज ढाई साल बाद भारत के पाकिस्तान और नेपाल से रिश्ते पहले की तुलना में खराब हैं और दुनिया में भारत के सम्मान में कोई बढ़ोत्तरी नहीं हुई है।

शक्तियों के केन्द्रीयकरण के साथ शुरू हुआ भाजपा और उसके साथी संघ परिवार के नेताओं के नफरत फैलाने वाले भाषणों का दौर। उन्होंने धार्मिक अल्पसंख्यकों को खौफज़दा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। एक कैबीनेट मंत्री ने उन लोगों को हरामज़ादा बताया जो सरकार के साथ नहीं हैं। सरकार, विश्वविद्यालयों के कामकाज में हस्तक्षेप करने लगी। अयोग्य व्यक्तियों को राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों का मुखिया नियुक्त किया जाने लगा। इसका एक उदाहरण था गजेन्द्र चैहान की भारतीय फिल्म एवं टेलीविजन संस्थान के अध्यक्ष पद पर नियुक्ति। विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपति पदों पर ऐसे व्यक्तियों की नियुक्ति की गई जिनकी एकमात्र योग्यता संघ की विचारधारा के प्रति उनकी प्रतिबद्धता थी। विश्वविद्यालयों में अभाविप की सक्रियता अचानक बढ़ गई और उसने सभी विश्वविद्यालयों, विशेषकर जेएनयू और हैदराबाद केन्द्रीय विश्वविद्यालय, में प्रजातांत्रिक ढंग से चुने गए छात्रसंघों और अन्य संगठनों को दबाने का प्रयास शुरू कर दिया। जेएनयू में एक नकली सीडी के आधार पर कन्हैया कुमार और उनके साथियों पर देशद्रोह का मुकदमा लाद दिया गया और रोहित वेम्युला को आत्महत्या करने पर मजबूर कर दिया गया।

संघ और उसके साथी संगठनों ने लव जिहाद और घर वापसी के नाम पर धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरूद्ध अभियान छेड़ दिया। समाज को और विभाजित करने के लिए उन्होंने गोमांस और गाय को मुद्दा बनाया, जिसके नतीजे में उत्तरप्रदेश के दादरी में मोहम्मद अखलाक की पीट-पीटकर हत्या कर दी गई और गुजरात के ऊना में दलितों के साथ अमानवीय मारपीट की गई। अंधश्रद्धा के पैरोकार, केन्द्र में अपनी सरकार होने के कारण आश्वस्त थे कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा। दाभोलकर की हत्या के बाद गोविंद पंसारे और एमएम कलबुर्गी की दिन-दहाड़े हत्या कर दी गई। इन सब घटनाओं और देश में बढ़ती असहिष्णुता के विरोध में कई प्रतिष्ठित कलाकारों, वैज्ञानिकों और अन्यों ने अपने पुरस्कार लौटा दिए। शीर्ष स्तर पर एकाधिकारवादी व्यवहार और सामाजिक स्तर पर संघ परिवार के साथियों की कारगुज़ारियों के कारण स्थिति यहां तक बिगड़ गई कि एक समय भाजपा के साथी रहे अरूण शौरी ने वर्तमान स्थिति को ‘विकेन्द्रीकृत आपातकाल’ और ‘माफिया राज्य’ बताया।

सरकार ने किसानों से उनकी ज़मीनें छीनने का प्रयास भी किया परंतु लोगो के कड़े विरोध के कारण यह सफल न हो सका। श्रम कानूनों में सुधार के नाम पर श्रमिकों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया और कुटीर व लघु उद्योगों के संरक्षण के लिए बनाए गए प्रावधान हटा दिए गए। बड़े उद्योगपतियों की संपत्ति और उनकी ताकत में आशातीत वृद्धि हुई। बैंकों ने उद्योगपतियों के हज़ारों करोड़ रूपए के ऋण माफ कर दिए और विजय माल्या जैसे कुछ उद्योगपति, जिन पर सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों का हज़ारों करोड़ रूपयों का ऋण था, विदेश भाग गए। कई लोकलुभावन योजनाओं की घोषणा की गई परंतु ऐसा नहीं लगता कि इनसे आम लोगों, गरीब किसानों या श्रमिकों का सशक्तिकरण हुआ हो। विरोध और असहमति को कुचलने की अपनी नीति के अनुरूप, उन एनजीओ को सरकार ने परेशान करना शुरू कर दिया जो अल्पसंख्यक अधिकारों और पर्यावरण की रक्षा के लिए काम कर रहे थे। उनके विदेशों से धन प्राप्त करने के अधिकार पर रोक लगा दी गई।

अभिव्यक्ति की आज़ादी हमारे प्रजातंत्र का एक प्रमुख हिस्सा रही है। परंतु आज हालात यह बन गए हैं कि जो भी सरकार के विरूद्ध कुछ कहता है, उसे देशद्रोही बता दिया जाता है। भारत माता की जय के नारों और सिनेमाघरों में जनगणमन बजाकर छद्म देशभक्ति को बढ़ाया दिया जा रहा है।

मोदी की हिन्दुत्ववादी राजनीति के चलते, देश भर में अल्पसंख्यकों और दलितों के खिलाफ छुटपुट हिंसा में वृद्धि हुई है। भ्रष्टाचार मिटाने के लंबेचौड़े वायदे तो किए गए परंतु नोटबंदी ने भ्रष्टाचार के नए तरीकों का विकास करने में मदद की। देश का ज्यादातर काला धन या तो विदेशी बैंकों में जमा है या अचल संपत्ति व कीमती धातुओं के गहनों के रूप में है। जो थोड़ा-बहुत नगदी काला धन था, भी वह भी नोटबंदी से बाहर नहीं आ सका।

शासक दल और उसके साथी संगठन जो भी कहें, आज आमजन दुःखी और परेशान हैं। कन्हैया कुमार जैसे युवा नेता विश्वविद्यालयों के छात्रों के विरोध का नेतृत्व कर रहे हैं तो जिग्नेश मेवानी, दलितों के गुस्से को स्वर दे रहे हैं। ये प्रजातांत्रिक विरोध ही अब आशा की एकमात्र किरण हैं। यह भी संतोष का विषय है कि विभिन्न राजनैतिक दल, प्रजातंत्र को बचाने के लिए एक होने की कवायद कर रहे हैं। हम ऐसी उम्मीद कर सकते हैं कि भविष्य में धर्मनिरपेक्ष ताकतों का एक व्यापक गठबंधन आकार लेगा। (मूल अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

भाजपा
नरेंद्र मोदी
आरएसएस

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

बढ़ते हुए वैश्विक संप्रदायवाद का मुकाबला ज़रुरी

यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा भी बोगस निकला, आप फिर उल्लू बने

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

रोज़गार में तेज़ गिरावट जारी है

अविश्वास प्रस्ताव: विपक्षी दलों ने उजागर कीं बीजेपी की असफलताएँ

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

यूपी-बिहार: 2019 की तैयारी, भाजपा और विपक्ष

चुनाव से पहले उद्घाटनों की होड़

अमेरिकी सरकार हर रोज़ 121 बम गिराती हैः रिपोर्ट


बाकी खबरें

  • श्याम मीरा सिंह
    यूक्रेन में फंसे बच्चों के नाम पर PM कर रहे चुनावी प्रचार, वरुण गांधी बोले- हर आपदा में ‘अवसर’ नहीं खोजना चाहिए
    28 Feb 2022
    एक तरफ़ प्रधानमंत्री चुनावी रैलियों में यूक्रेन में फंसे कुछ सौ बच्चों को रेस्क्यू करने के नाम पर वोट मांग रहे हैं। दूसरी तरफ़ यूक्रेन में अभी हज़ारों बच्चे फंसे हैं और सरकार से मदद की गुहार लगा रहे…
  • karnataka
    शुभम शर्मा
    हिजाब को गलत क्यों मानते हैं हिंदुत्व और पितृसत्ता? 
    28 Feb 2022
    यह विडम्बना ही है कि हिजाब का विरोध हिंदुत्ववादी ताकतों की ओर से होता है, जो खुद हर तरह की सामाजिक रूढ़ियों और संकीर्णता से चिपकी रहती हैं।
  • Chiraigaon
    विजय विनीत
    बनारस की जंग—चिरईगांव का रंज : चुनाव में कहां गुम हो गया किसानों-बाग़बानों की आय दोगुना करने का भाजपाई एजेंडा!
    28 Feb 2022
    उत्तर प्रदेश के बनारस में चिरईगांव के बाग़बानों का जो रंज पांच दशक पहले था, वही आज भी है। सिर्फ चुनाव के समय ही इनका हाल-चाल लेने नेता आते हैं या फिर आम-अमरूद से लकदक बगीचों में फल खाने। आमदनी दोगुना…
  • pop and putin
    एम. के. भद्रकुमार
    पोप, पुतिन और संकटग्रस्त यूक्रेन
    28 Feb 2022
    भू-राजनीति को लेकर फ़्रांसिस की दिलचस्पी, रूसी विदेश नीति के प्रति उनकी सहानुभूति और पश्चिम की उनकी आलोचना को देखते हुए रूसी दूतावास का उनका यह दौरा एक ग़ैरमामूली प्रतीक बन जाता है।
  • MANIPUR
    शशि शेखर
    मुद्दा: महिला सशक्तिकरण मॉडल की पोल खोलता मणिपुर विधानसभा चुनाव
    28 Feb 2022
    मणिपुर की महिलाएं अपने परिवार के सामाजिक-आर्थिक शक्ति की धुरी रही हैं। खेती-किसानी से ले कर अन्य आर्थिक गतिविधियों तक में वे अपने परिवार के पुरुष सदस्य से कहीं आगे नज़र आती हैं, लेकिन राजनीति में…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License