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अधमरी अर्थव्यवस्था : मंदी की मार झेल रहे श्रमिकों में आक्रोश!
बिगड़ती अर्थव्यवस्था और केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर विभिन्न सेक्टरों के तमाम श्रमिक संगठन प्रदर्शन की चेतावनी दे चुके हैं। हम आपको बता रहे हैं कि आने वाले समय में कौन सा संगठन कब और क्यों प्रदर्शन करने वाला है।
मुकुंद झा
19 Sep 2019
economic crises

देश में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की पूर्ण बहुमत के साथ दोबारा सरकार बनने के बाद देश भर में एक उम्मीद की लहर थी। लोग आस लगाए थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में पिछले कई वर्षों से लगातार बढ़ती बेरोज़गारी और दयनीय आर्थिक स्थिति को ठीक करने के लिए ठोस क़दम उठाएंगे। हतोत्साहित भारत के औद्योगिक विकास में तेज़ी आएगी। लेकिन अब लगातार गिरती अर्थव्यवस्था और बदहाल बाज़ार को देखकर चारों ओर से चिंता जताई जा रही है। महिंद्रा, टाटा और मारुति जैसी कई ऑटोमोबाइल कंपनियों में काम कुछ दिनों के लिए बंद किया जा रहा है। वहीं बाज़ारों में भी भयंकर सुस्ती दिखाई पड़ रही है।

कई आर्थिक जानकारों ने इस मंदी को सबसे बड़ी मंदी में से एक कहा है। उद्योग जगत से जुड़े तमाम लोगों ने भी  भी सामने आकर इसको लेकर चिंता ज़ाहिर की है। लेकिन सरकार मंदी की बात को सिरे से नकार रही है।

इस दौर में नया बयान हीरो साइकिल के मैनेजिंग डायरेक्टर पंकज मुंजाल का है; उन्होंने कहा, "मैंने अपने जीवन में विकास दर (ग्रोथ रेट) का गिरना देखा है लेकिन ग्रोथ रेट में इतनी गिरावट 55 साल में पहली बार हुई है।"

इस सब के बाद भी सरकार और उसके मंत्री किसी भी तरह की आर्थिक मंदी को नकार रहे हैं। इस मंदी का असर सबसे अधिक अगर किसी पर हो रहा है तो वह हैं श्रमिक। लगातार बढ़ती इस मंदी के कारण कंपनियों ने छंटनी करनी शुरू कर दी है। इससे परेशान श्रमिकों ने सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया है। आने वाले समय में अलग-अलग श्रमिक संगठनों ने अपनी नौकरी की सुरक्षा को लेकर संघर्ष करने का ऐलान किया, इस सिलसिले में कई श्रमिक संगठन पहले से भी आंदोलन कर रहे हैं।

आपको बता दें कि बिगड़ती अर्थव्यवस्था और केंद्र सरकार की नीतियों को लेकर तमाम संगठन प्रदर्शन की चेतावनी भी दे चुके हैं।

कौन सा संगठन कब और क्यों प्रदर्शन कर रहा है; इसकी सूचि निम्नलिखित है:

20 सितंबर को बैंक कर्मचारियों का बैंकों के विलय के ख़िलाफ़ एक दिन का विरोध प्रदर्शन है।

इसके बाद बैंक ऑफ़िसर्स एसोशिएसन ने भी बैंकों के विलय के ख़िलाफ़ 25-26 सिंतबर को दो दिनों की हड़ताल का आह्वान किया है।

तो दूसरी ओर कोयला खनन क्षेत्र में 100 फ़ीसदी एफ़डीआई के विरोध मे 24 सिंतबर को देशभर के कोयला खनन के कर्मचारी हड़ताल पर रहेंगे।

नए मोटर व्हीकल एक्ट के विरोध में डीटीसी कर्मचारी 25-26 सितंबर को भूख हड़ताल करने जा रहे हैं।

यूनाइटेड फ्रंट ऑफ़ ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के बैनर तले क़रीब 40 संगठनों ने 19 सितंबर को दिल्ली में चक्का जाम करने की चेतावनी दी है।

हिंदुस्तान ऐरोनौटिक्स लिमिटेड(एचएएल) के कर्मचारियों ने 14 अक्टूबर से कर्मचारियों की तनख़्वाह और भत्तों में "भेदभाव" को लेकर अनिश्चितकालीन हड़ताल पर जाने का फ़ैसला किया है। हड़ताल का नोटिस 30 सितंबर को प्रबंधन को सौंपा जाना है।

26 अगस्त से ही तमिलनाडु की मदरसन ऑटोमोबाइल कंपनी  के कर्मचारी ग़ैर-क़ानूनी छंटनी के ख़िलाफ़ प्रदर्शन कर रहे हैं।

इसके अलावा बिहार, उत्तर प्रदेश के अस्थाई शिक्षक  भी अपनी नियुक्ति को लेकर लगातार प्रदर्शन कर रहे हैं।  

उत्तराखंड के पंतनगर में भगवती प्रोडक्ट्स (माइक्रोमैक्स) के 303 श्रमिकों की छँटनी और 47 श्रमिकों के ले-ऑफ़ के ख़िलाफ़ श्रमिक बीते आठ महीने से धरने पर हैं। संघर्षरत श्रमिकों की प्रमुख मांग है कि निकाले गए समस्त मज़दूरों की कार्य बहाली की जाए।

केरल में संविदा कर्मियों ने केंद्र सरकार और बीएसएनएल  प्रबंधन से बक़ाया वेतन देने की मांग को लेकर  सीटू-संबद्ध बीएसएनएल कैज़ुअल कॉन्ट्रैक्ट लेबर यूनियन (सीसीएलयू) के बैनर तले कर्मचारी पिछले 86 दिनों से बीएसएनएल के मुख्य महाप्रबंधक कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

इसी तरह के विरोध प्रदर्शन देश के अन्य राज्यों से भी किए गए हैं। पंजाब में, 11 सितंबर को बीएसएनएल अनुबंध के कर्मचारियों की भूख हड़ताल के 17 वें दिन को चिह्नित किया गया था, कोलकाता दूरसंचार सर्कल में पिछले महीने 10 दिनों की भूख हड़ताल की गई थी।

ये जो सभी विरोध प्रदर्शन या हड़तालें हो रही हैं, इन सब के अलावा 30 सिंतबर को दिल्ली में सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों  ने मज़दूरों का एक सम्मेलन करने का फ़ैसला लिया है। जिसमें सभी मज़दूर संगठन मिलकर आर्थिक मंदी की मार, मैनजमैंट के मज़दूर विरोधी फ़ैसलों और सरकार की ग़लत आर्थिक और श्रम विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ आगे के संघर्ष का रास्ता तय करेंगे।

इसके अलावा सभी वामपंथी दलों ने भी इस मुद्दे को लेकर जल्द ही सड़कों पर उतरने का फ़ैसला किया है।

मज़दूर संगठनों ने कहा है, "इस सरकार की जन-विरोधी, मज़दूर-विरोधी तथा राष्ट्र-विरोधी नीतियां न सिर्फ़ श्रमिकों पर मुसीबतों का बोझ डाल रही हैं, बल्कि अपने देश की उत्पादन क्षमता को भी ख़त्म कर रही हैं। हर क्षेत्र में जनहित की नीतियों को सामने लाने के लिए, इन जन-विरोधी और राष्ट्र-विरोधी नीतियों को चलाने वाली सरकार को हर कीमत पर शिकस्त देनी होगी और इसलिए अब ज़रूरी है कि मज़दूर वर्ग के इस एकताबद्ध मंच से अपने संघर्ष अधिक तीव्र किए जाएँ।"

इसके साथ मज़दूर नेताओं ने यह भी कहा है कि अगर स्थिति नहीं सुधरी तो सभी सेक्टरों के मज़दूरों को एकत्रित कर देशव्यापी हड़ताल की जाएगी।

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