NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
आदिवासी कार्यकर्ताओं का आरोप है कि मप्र के वन विभाग द्वारा हिरासत में रखकर उन्हें बेरहमी से मारा गया था
गिरफ्तार होने वाले ये दोनों आदिवासी कार्यकर्त्ता इस क्षेत्र में वन भूमि की सफाई और पेड़ों की कटाई के खिलाफ सक्रिय तौर पर शामिल थे।
सुमेधा पाल
10 Sep 2020
आदिवासी
प्रतीकात्मक तस्वीर

दो आदिवासी कार्यकर्ताओं ने मध्य प्रदेश के बुरहानपुर क्षेत्र में दर्जनों वन विभाग के अधिकारियों पर उनके साथ लॉक अप के दौरान मारपीट करने के आरोप लगाए हैं, जिसका कि बरेला और भिलाला आदिवासियों के खिलाफ हिंसा का इतिहास रहा है।

29 अगस्त के दिन दो आदिवासियों- जबरसिंह केरिया और सोमला चामरसिंह को तब हिरासत में ले लिया गया जब वे सामान खरीदने के बाद अपने गाँव की ओर वापस जा रहे थे। उन्हें जमानत पर छुड़ाने के लिए रहमानपुर गाँव से साथी आदवासी कार्यकर्त्ता कैलाश जामरे और प्यारसिंह वासकाले बुरहानपुर जिला अदालत पहुँचे थे। इन दोनों को अदालत परिसर से ही अवैध तौर पर रोकर वन विभाग की हिरासत में ले लिया गया था।

बाकी के गाँव वालों को इन कार्यकर्ताओं की कोई भी खोज-खबर 29 अगस्त की देर रात से पहले तक नहीं दी गई थी। इन दोनों कार्यकर्ताओं को, जो भारी पैमाने पर घगराला क्षेत्र में जंगलों के साफ़ किये जाने का पुरजोर विरोध कर रहे थे, को खकनार रेंज ऑफिस के लॉकअप में बंद रखा गया था।

जामरे और वासकाले का आरोप है कि तकरीबन 20-25 की संख्या में कर्मचारियों और अधिकारियों द्वारा उन दोनों की बारी-बारी से बेरहमी से पिटाई की गई थी।

जामरे के अनुसार दो या तीन लोग “उनके हाथ-पाँव पकड़ लेते थे जबकि बाकी के लोग उन्हें डंडों से पीटते थे।” उसका कहना था कि इनमें से ज्यादातर अधिकारी नशे की हालत में होते थे और उन्हें “कानून का पाठ लगातार पढाने के लिए और संगठन के नेता होने के कारण” निरंतर अपशब्दों का इस्तेमाल करते रहते थे।

शिकायतकर्ताओं का आरोप है कि पुलिस ने उनकी शिकायत को दर्ज करने से इंकार कर दिया और उल्टा उन्हें गिरफ्तार कर लेने की धमकी दी थी। उधर वन विभाग ने भी अपनी तरफ से न तो कोई सुबूत पेश किये और न ही उन दोनों के खिलाफ किसी अपराध को लेकर कोई आरोप-पत्र ही पेश किया है। इसके बावजूद उनकी जमानत याचिका ख़ारिज कर दी गई।

उनकी गिरफ्तारी के एक दिन बाद इन दोनों कार्यकर्ताओं को अदालत में पेश किया गया। लेकिन जामरे के साथ हुई कथित क्रूरता की वजह से वह बेहोश हो गया था। उसे छह दिनों के लिए अस्पताल में भर्ती होना पड़ा था, लेकिन अभी भी वह ठीक से चल-फिर नहीं पा रहा है।

जामरे और वासकाले दोनों ही जंगल की अवैध कटाई के खिलाफ सक्रिय रहे हैं, जिसके बारे में उनका मानना है कि यह सब वन अधिकारियों की सक्रिय सहयोग के चलते ही संभव हो पा रहा है। रहमानपुर गाँव के अन्य आदिवासियों के साथ वे भी वन अधिकार अधिनियम, 2006 के तहत इन वनों के अधिकारों के दावेदार हैं।

पिछले वर्ष इसी जिले में वन विभाग ने अवैध तरीके से आदिवासी दावेदारों के खेतों को नष्ट कर दिया था और सिवाल गाँव में पेलेट गन फायरिंग में पाँच आदिवासियों को घायल कर डाला था। वन अधिकार अधिनियम (एफआरए) दावेदारों के निष्कासन पर रोक लगाता है, जब तक कि अधिकारों के निपटान की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती है।

‘वन विभाग कानूनों की धज्जियाँ उड़ा रहा है’

इस क्षेत्र के आदिवासियों ने वन विभाग के कर्मचारियों के खिलाफ काफी लम्बे समय से संघर्ष का मोर्चा संभाल रखा है, जो फसलों की बुआई और कटाई के बदले में आदिवासियों से पैसे वसूलने के साथ-साथ उन्हें झूठे आरोपों में फँसाने की धमकी देते रहते हैं।

पिछले दो सालों से जामरे और वासकाले जाग्रत आदिवासी दलित संगठन (जेएडीएस) के झंडे तले वन अधिकारों और अन्य क़ानूनी अधिकारों और आदिवासियों के अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने में लगे हुए हैं।

इस मुद्दे पर न्यूज़क्लिक से बात करते हुए जेएडीएस की माधुरी कृष्णास्वामी कहती हैं “इस सम्बंध में हमने जिलाधिकारी से मुलाकात की थी। लेकिन वे अभी तक शिकायत के बारे में विचार ही कर रहे हैं, और इस बारे में अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हो सकी है। हम चाहते हैं कि वन विभाग के अधिकारियों पर अपहरण, गैर-क़ानूनी तरीके से हिरासत में लेने, मारपीट और अत्याचारों के आरोपों के तहत मामला दर्ज किया जाए। यहाँ पर पेड़ों की अंधाधुंध कटाई का काम हुआ है जिसमें वन विभाग ने राज्य के साथ मिलकर मुद्दों से ध्यान भटकाने और आदिवासी आवाजों को कुचलने का कम किया है।”

वन विभाग के पास किसी भी "आरोपी" को रोक कर रखने या किसी भी व्यक्ति को हिरासत में लेने का अधिकार नहीं है, सिवाय गंभीर अपराधों को नियंत्रित करने वाली धाराओं को छोड़कर, जोकि इस मामले में लागू नहीं होती हैं। अदालत से विशेष अनुमति प्राप्त करने के बाद ही किसी को हिरासत रखकर में पूछताछ करने की अनुमति है, जिसे कि नहीं लिया गया था।

रात में पूछताछ पर पूरी तरह से रोक है, जबकि शारीरिक हिंसा पूरी तरह से और स्पष्ट तौर पर गैर-क़ानूनी कृत्य है। यहां तक कि गिरफ्तारी के मामलों तक में, गिरफ्तार व्यक्ति के किसी रिश्तेदार या शुभचिंतक को आधिकारिक तौर पर इसके बारे में सूचित करना आवश्यक है। लेकिन इस मामले में न सिर्फ ऐसा कोई काम नहीं किया गया बल्कि ग्राम समुदाय का तो यहाँ तक कहना है कि उन सबको जानबूझकर गलत जानकारी दी जाती रही थी।

इस प्रक्रिया में बुरहानपुर वन प्रभाग, कानून का खुल्लम-खुल्ला उल्लंघन करता नजर आता है, जिसमें गंभीर वन्यजीव अपराधों के मामले में वन्यजीव अपराध नियंत्रण ब्यूरो द्वारा किसी अभियुक्त की गिरफ्तारी और इस मामले में दोषी की गिरफ्तारी पर सर्वोच्च न्यायालय के दिशानिर्देशों का उल्लंघन होता नजर आता है।

अपहरण और मारपीट के कथित कृत्यों के जरिये वन अधिकारियों ने आदिवासियों के जीवन और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन किया है, जो कि न केवल गैरकानूनी हैं, बल्कि एससी/ एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम के तहत भी अत्याचार के श्रेणी में आता है। इस सबके बावजूद दोषी अधिकारियों के खिलाफ अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।

जेएडीएस ने एफआरए के तहत जमीन के कानूनी दावेदारों के खिलाफ सभी "झूठे और निराधार" मामलों को वापस लिए जाने की मांग की है। इसके अनुसार “वन विभाग द्वारा आदिवासियों को आतंकित और डराने की कोशिशों पर तत्काल रोक लगाई जाए।” इसके अलावा संगठन ने माँग की है कि जबरसिंह केरिया और सुमला चामरसिंह को जिस प्रकार से गिरफ्तार किया गया था, ऐसे में उनके बयानों को दर्ज किया जाए और इन दोनों की "अवैध" गिरफ्तारी के प्रति जिम्मेदार अधिकारियों को दंडित किया जाए।

यदि इन मामलों पर कार्यवाही नहीं की जाती है तो संगठन की ओर राजनीतिक तौर पर इस महत्वपूर्ण इलाके में विरोध प्रदर्शन की शुरुआत तय है। मध्य प्रदेश में होने जा रहे उप-चुनावों के मद्देनजर यह मुद्दा बेहद अहम हो सकता है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Adivasi Activists Allege They Were Brutally Thrashed in Forest Department’s Custody in MP

Adivasi Forest Rights
Forest Rights Act
Activists beaten
Burhanpur
Madhya Pradesh
Illegal forest clearing
fra
Adivasi Activists Arrested

Related Stories

परिक्रमा वासियों की नज़र से नर्मदा

कड़ी मेहनत से तेंदूपत्ता तोड़ने के बावजूद नहीं मिलता वाजिब दाम!  

मनासा में "जागे हिन्दू" ने एक जैन हमेशा के लिए सुलाया

‘’तेरा नाम मोहम्मद है’’?... फिर पीट-पीटकर मार डाला!

कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी

एमपी ग़ज़ब है: अब दहेज ग़ैर क़ानूनी और वर्जित शब्द नहीं रह गया

मध्यप्रदेशः सागर की एग्रो प्रोडक्ट कंपनी से कई गांव प्रभावित, बीमारी और ज़मीन बंजर होने की शिकायत

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल

मध्यप्रदेश: गौकशी के नाम पर आदिवासियों की हत्या का विरोध, पूरी तरह बंद रहा सिवनी

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग


बाकी खबरें

  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    संतूर के शहंशाह पंडित शिवकुमार शर्मा का मुंबई में निधन
    10 May 2022
    पंडित शिवकुमार शर्मा 13 वर्ष की उम्र में ही संतूर बजाना शुरू कर दिया था। इन्होंने अपना पहला कार्यक्रम बंबई में 1955 में किया था। शिवकुमार शर्मा की माता जी श्रीमती उमा दत्त शर्मा स्वयं एक शास्त्रीय…
  • न्यूजक्लिक रिपोर्ट
    ग़ाज़ीपुर के ज़हूराबाद में सुभासपा के मुखिया ओमप्रकाश राजभर पर हमला!, शोक संतप्त परिवार से गए थे मिलने
    10 May 2022
    ओमप्रकाश राजभर ने तत्काल एडीजी लॉ एंड ऑर्डर के अलावा पुलिस कंट्रोल रूम, गाजीपुर के एसपी, एसओ को इस घटना की जानकारी दी है। हमले संबंध में उन्होंने एक वीडियो भी जारी किया। उन्होंने कहा है कि भाजपा के…
  • कामरान यूसुफ़, सुहैल भट्ट
    जम्मू में आप ने मचाई हलचल, लेकिन कश्मीर उसके लिए अब भी चुनौती
    10 May 2022
    आम आदमी पार्टी ने भगवा पार्टी के निराश समर्थकों तक अपनी पहुँच बनाने के लिए जम्मू में भाजपा की शासन संबंधी विफलताओं का इस्तेमाल किया है।
  • संदीप चक्रवर्ती
    मछली पालन करने वालों के सामने पश्चिम बंगाल में आजीविका छिनने का डर - AIFFWF
    10 May 2022
    AIFFWF ने अपनी संगठनात्मक रिपोर्ट में छोटे स्तर पर मछली आखेटन करने वाले 2250 परिवारों के 10,187 एकड़ की झील से विस्थापित होने की घटना का जिक्र भी किया है।
  • राज कुमार
    जनवादी साहित्य-संस्कृति सम्मेलन: वंचित तबकों की मुक्ति के लिए एक सांस्कृतिक हस्तक्षेप
    10 May 2022
    सम्मेलन में वक्ताओं ने उन तबकों की आज़ादी का दावा रखा जिन्हें इंसान तक नहीं माना जाता और जिन्हें बिल्कुल अनदेखा करके आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है। उन तबकों की स्थिति सामने रखी जिन तक आज़ादी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License