NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
पाकिस्तान
‘आक्रामक राष्ट्र’ बनकर निर्गुट नेतृत्व खो रहा है भारत
आखिर भारत ने हमेशा युद्ध से अधिक शांति को तरजीह दी, क्यों? क्या ऐसा करना भूल थी? या अपने स्वभाव को बदलकर अब भारत भूल कर रहा है?
प्रेम कुमार
17 Mar 2019
सांकेतिक तस्वीर
Image Courtesy : ndtv.com

1948 में युद्ध विराम न करके हम पाक अधिकृत कश्मीर बनने से रोक सकते थे, मगर हमने अंतरराष्ट्रीय मर्यादा को अधिक तरजीह दी, 1965 में भी हम लाहौर तक पहुंच सकते थे मगर हमने जीतकर भी ऐसा नहीं किया, 1971 में जीत के बावजूद हमने 90 हज़ार से अधिक युद्धबंदियों को पाकिस्तान लौटा दिया, करगिल में बड़ी कुर्बानी के बाद मिली जीत के बावजूद भारत ने कोई बदला नहीं लिया, 2001 में संसद पर हमला और उसके बाद भी उन हमलों के जवाब में भारत ने कभी कोई एक्शन नहीं लिया जिसकी ज़िम्मेदारी लश्कर-ए-तैयबा ने ली, चाहे वह 2008 में मुम्बई पर हमला ही क्यों न हो। आखिर भारत ने हमेशा युद्ध से अधिक शांति को तरजीह दी, क्यों? क्या ऐसा करना भूल थी? या अपने स्वभाव को बदलकर अब भारत भूल कर रहा है?

भारत ने तीसरी दुनिया को नेतृत्व दिया

भारत ने गुटनिरपेक्ष देशों का नेतृत्व किया। पंचशील के सिद्धांत का प्रतिपादन करने वाला देश रहा है भारत। इस नेतृत्वकारी भूमिका की वजह से ही भारत को चीन ने भी पीठ में छुरा घोंपा और पाकिस्तान भी हमले दर हमले करता रहा। चीन से हारकर भी भारत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत रहा और पाकिस्तान से जीतकर भी कभी विजेता की तरह भारत ने व्यवहार नहीं किया। वीटो पावर वाले देश सोवियत संघ की मदद के कारण भारत उन मुश्किलों का सामना कर सका, जो शांति की राह पर चलते हुए उसके समक्ष पेश हुए।

युद्धप्रेमी राष्ट्र की नहीं रही कभी भारत की छवि

संयुक्त राष्ट्र में भारत के ख़िलाफ़ प्रस्ताव 1948 में भी पारित हुए और 1971 में भी। फिर भी, भारत की छवि कभी युद्ध प्रेमी राष्ट्र की नहीं बनी। क्यों? क्योंकि भारत साम्राज्यवादी देशों के ख़िलाफ़ खड़ा था। गुटनिरपेक्ष देशों का नेतृत्व कर रहा था। यही कारण है कि अमेरिकी प्रभुत्व वाले संयुक्त राष्ट्र संघ के भारत विरोधी प्रस्तावों को भारतीय संघर्ष के तौर पर देखा गया। तीसरी दुनिया के नवोदित शोषित-पीड़ित राष्ट्र भारत के साथ रहे। यहां तक कि इस्लामिक राष्ट्रों ने भी हमेशा भारत का साथ दिया, पाकिस्तान का नहीं। अमेरिका, फ्रांस, इंग्लैंड के विरोध की भारत ने कभी परवाह नहीं की।

पठानकोट हमले तक नहीं बदला था भारत

2016 में पठानकोट हमले तक भारत की नीति सहिष्णु बनी रही। भारत ने पाकिस्तान को पठानकोट की घटना की जांच के लिए न्योता देने का ऐतिहासिक काम किया। भारतीय जांच एजेंसियों ने पठानकोट हमले के लिए लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराने के बजाय पाकिस्तान में सक्रिय नॉन स्टेट एक्टर्स को ज़िम्मेदार ठहराया। इस कार्रवाई से आतंकवाद से पीड़ित देश होकर भी ज़िम्मेदार देश के तौर पर भारत की साख बढ़ी। नरेंद्र मोदी सरकार का यह व्यवहार मनमोहन सिंह सरकार के उस व्यवहार जैसा ही था जब 2008 में मुम्बई पर आतंकी हमले के बाद देखा गया था। सीमा पर तनाव और युद्ध की स्थिति के बावजूद भारत ने संयम नहीं खोया।

2016 में भारत ने छोड़ी बुद्धिमत्तापूर्ण नीति

आर्थिक विकास की राह पर चलते हुए मनमोहन सरकार ने 2008 में जो बुद्धिमत्तापूर्ण फैसले किए या फिर 2016 में मोदी सरकार ने जो बुद्धिमानी दिखलायी, उसी का नतीजा है कि भारत युद्ध से बचते हुए आज आर्थिक तौर पर मजबूत राष्ट्र है। नोटबंदी और जीएसटी लागू हो सका, तो इसकी वजह भी युद्ध से बचने और शांति के प्रति प्रतिबद्ध रहने की भारत की नीति रही थी। प्रधानमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की अंतरराष्ट्रीय लोकप्रियता में इस चरित्र की बड़ी भूमिका रही है।

‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के साथ बदली मोदी सरकार

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत के चरित्र में बदलाव तब दिखा जब 2016 में लगातार आतंकवादी हमलों के बाद मोदी सरकार ने पहली बार सर्जिकल स्ट्राइक की। इस तरह मोदी के शासनकाल को दो भागों में बांटकर देखा जा सकता है और इसके लिए विभाजनकारी घटना है पठानकोट जब भारतीय व्यवहार बिल्कुल उलट व्यवहार पाकिस्तान ने दिखाया था। तब पाकिस्तान ने पठानकोट को ‘भारत का ड्रामा’ करार दिया था। भारत ने पाकिस्तान को ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ के रूप में इसका जवाब उरी पर आतंकी हमले का बदला लेते हुए दिया। पुलवामा हमला और उसके बाद बालाकोट एअर स्ट्राइक उसकी अगली कड़ी मात्र है। किसी बड़े देश ने भारत की ओर से बालाकोट में एअर स्ट्राइक का विरोध नहीं किया। इसके अलावा इस्लामिक सहयोग संगठन में भारत को न्योता और पाकिस्तान का बहिष्कार भी अहम घटना रही। मगर, ओआईसी ने बालाकोट एअर स्ट्राइक की निन्दा कर भारत को बड़ा झटका दे दिया।   

मसूद अजहर के बहाने चीन साध रहा है बड़ा मकसद

इस बीच मसूद अजहर को वैश्विक आतंकी घोषित करने की चौथी कोशिश हुई। पठानकोट की घटना के बाद यह दूसरी कोशिश थी, जो विफल रही। आतंकवाद पीड़ित देश के रूप में भारत से सहानुभूति जताते हुए अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस के नेतृत्व वाले इस प्रस्ताव को इस बार जर्मनी समेत 15 और देशों का समर्थन था। मसूद अजहर के मामले में चीन की भूमिका को अकेले चीन की प्रतिक्रिया के रूप में देखना सही नहीं होगा। दरअसल चीन ने लगातार यह कोशिश की है कि वह गुटनिरपेक्ष देशों के परम्परागत भारतीय समर्थन के आधार को कमजोर करे। मसूद अजहर पर वीटो को इसी रूप में देखा जाना चाहिए।

अमेरिका की छवि असत्य के साथ रहने की

आज भी यह सत्य बदला नहीं है कि जहां असत्य खड़ा होता है वहीं अमेरिका-इंग्लैंड खड़ा दिखता है। कुछ समय पहले तक अमेरिका-इंग्लैंड पाकिस्तान के साथ भारत के ख़िलाफ़ खड़ा दिखते थे। फिर भी, भारत का वे कुछ बिगाड़ नहीं पाते थे क्योंकि भारत के साथ सच्चाई होती थी, युद्धविरोधी भारतीय पृष्ठभूमि रहती थी। रूस का खुला समर्थन और चीन का मौन भी भारत के पक्ष में होता था। मगर, अब स्थिति बदल गयी है। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अमेरिका-इंग्लैंड भारत के साथ है। रूस मौन है और चीन पाकिस्तान के साथ खड़ा है।

अपनी छवि बदल रहा है पाकिस्तान

अभिनन्दन को लौटाकर पाकिस्तान अंतरराष्ट्रीय जगत में तालियां बटोर रहा है। भारत के समक्ष शांति के प्रस्ताव रखकर वह अपनी नयी छवि गढ़ रहा है। वहीं, करतारपुरा कॉरिडोर में एक ऐसे समय पर पाकिस्तान भारत के साथ वार्ता कर रहा है जब भारत का सरकारी नज़रिया यही है कि जब तक आतंकवाद को शह देना बंद नहीं करता है पाकिस्तान तब तक उसके साथ कोई बातचीत नहीं होगी। क्या मजबूरी में करतारपुरा कॉरिडोर पर बात कर रहा है भारत? अगर हां, तो पाकिस्तान के लिए यह मुस्कुराने का मौका है।

भारत को अंतरराष्ट्रीय समर्थन का मतलब ‘पाक पर हमला’ नहीं

पुलवामा हमले के जवाब में बालाकोट एअर स्ट्राइक का मतलब ये नहीं है कि पुलवामा हमले के लिए पाकिस्तान जिम्मेदार है। इसका मतलब ये है कि पाकिस्तान अपने यहां आतंकवाद के लिए जिम्मेदार नॉन स्टेट एक्टर्स पर एक्शन नहीं ले पा रहा है। इसलिए भारत को जरूरत और मजबूरीवश ऐसा करने को विवश है। जो अंतरराष्ट्रीय समर्थन भारत को मिला है वह इसी रूप में मिला है।

युद्ध की राह नहीं है समृद्धि का मार्ग

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रूस की जगह चीन ने ले ली है। अमेरिका और चीन में खुली तकरार है। पाकिस्तान अमेरिका के बजाय अब चीन की गोद में जा बैठा है और अमेरिका ने भारत के सिर पर अपना हाथ रख दिया है। मगर, ये दोनों ही देश भारत और पाकिस्तान का इस्तेमाल कर रहे हैं। अमेरिका-इंग्लैंड जैसे राष्ट्रों का समर्थन पाकर भी भारत की छवि आज शांति समर्थक देश की नहीं रह गयी है। ‘घर में घुसकर मारेंगे’ जैसा बयान देकर भारतीय प्रधानमंत्री ने देश का बड़ा नुकसान किया है। युद्ध की राह पर चलने के बजाए शांति खोजने का प्रयास ही समृद्धि का मार्ग है। भारत यह बात दुनिया को सिखाता रहा है।

(ये लेखक के निजी विचार हैं।)

india-pakistan
air strike
balakot
Narendra modi
BJP
Jingoism
SAY TO NO WAR
China
USA

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?

ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा में नंबर दो की लड़ाई से लेकर दिल्ली के सरकारी बंगलों की राजनीति

बहस: क्यों यादवों को मुसलमानों के पक्ष में डटा रहना चाहिए!

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License