NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
भारत
आख़िर भारतीय संस्कृति क्या है?
चंचल चौहान और उनके विद्यार्थी के बीच साहित्य और संस्कृति पर हुई बातचीत हम आप तक ले कर आए हैं। हमने इस बातचीत को तीन हिस्सों में बाँट दिया है। आपके बीच हम दूसरा हिस्सा साझा कर रहे हैं।
चंचल चौहान
17 Aug 2019
Tree
प्रतीकात्मक तस्वीर Image coutesy: NativePlanet

लेखक चंचल चौहान का एक विद्यार्थी ग़रीब दास, दलित समाज से आता है। वे बताते हैं कि गरीब दास अपनी कक्षा के प्रतिभावान छात्रों में से एक रहा है और अब साहित्य और संस्कृति के रिश्ते को ले कर शोध कर रहा है। वह अपने शोध के विषय में ही नहीं, बल्कि उससे जुड़े विविध पहलुओं की जानकारी भी हासिल करना चाहता है। वह अक्सर चंचल चौहान के पास आता है और बहुत से सवाल करके अपनी जानकारियां बढ़ाने की कोशिश करता है। ऐसी ही एक बात-चीत चंचल चौहान नेन्यूज़क्लिक के साथ साझा की। हमने इस बातचीत को तीन हिस्सों में बाँट दिया है। आपके बीच हमदूसरा हिस्सा साझा कर रहे हैं। आप पहला हिस्सा यहाँ पढ़ सकते हैं।

ग़रीब दास : अगर आरएसएस संस्कृति के नाम पर लोगों को ठग रहा है तो असली भारतीय संस्कृति क्या है, सर, यह भी तो बताइए?

चंचल चौहान : भारतीय संस्कृति कोई बना बनाया बंद संदूक नहीं है, वह हज़ारों साल के मानव विकास के उन तमाम बहुविध विचारों का पिटारा है जिन में से अपने सांस्कृतिक विकास को आगे ले जाने के लिए मानव समाज कुछ चुनता रहता है कुछ को कूड़ेदान में फेंकता रहता है, भारतीय संस्कृति में भी यही सिलसिला जारी रहा और आज भी जारी है। यह एक अकाट्य सत्य है कि भारतीय संस्कृति की आत्मा उसकी विविधता है और उसी विविधता में एकता का नाम ही भारतीय संस्कृति है। भारतीय संस्कृति सभ्यता के आदिकाल से ही साझा संस्कृति रही है। यह बात हमारे देश के वैदिक काल से लेकर आज तक के संतों, मुनियों, सूफ़ियों और सभी धर्मों के ज्ञानवान इंसानों तथा वैज्ञानिक नज़र से समाज को देखने वाले समाज वैज्ञानिकों ने कही है। भारतीय संस्कृति की इस विशेषता को सबसे पहले अथर्ववेद में गाया गया, उसमें से दो श्लोक मैं तुम्हें सुनाता हूं। जिसको यक़ीन न हो, वह इंटरनेट पर मौजूद इस पुस्तक की पीडीएफ़ फाइल को पढ़ करख़ुद देख सकता है।

यस्यामन्नं व्रीहियवौ यस्या इमा: पंच कृष्टय: ।

भूम्यै पर्जन्यपत्न्यै नमोsस्तु वर्षमेदसे।।

(मंडल 12 सूक्त-1, 42)

(जिस भूमि में अन्न प्रचुर मात्रा में होते हैं जिस में पांच प्रकार के लोग आनंदपूर्वक रहते हैं, जहां भूमि पर बादल बरसते हैं उससे उसका पोषण होता है, उस पृथ्वी को नमन है।)

जनं बिभ्रती बहुधा विवाचसं नानाधर्माणं पृथिवी यथौकसम् |

सहस्रं धारा द्रविणस्य मे दुहां ध्रुवेव धेनुर् अनपस्फुरन्ती

(वही, 45)

(अनेक प्रकार की धार्मिक मान्यता वालों और विविध भाषा-भाषी जनसमुदाय को एक परिवार के रूप में आश्रय देने वाली,अविनाशी और स्थिर स्वभाव वाली पृथ्वी, गाय के दूध देने के समान ही असीम ऐश्वर्य हमें प्रदान करने वाली बने)

यही भारतीय संस्कृति का मूल है। अथर्ववेद को रचने वाले कवियों ने अपने समय के यथार्थ के मुताबिक़ यह ज्ञान हासिल कर लिया था कि भारत अकेला ऐसा देश है जहां की मिट्टी और जलवायु तक में विविधता है, साल भर सभी मौसम देश में कहीं न कहीं रहते हैं, हिमालय पर बर्फ़ तो कन्याकुमारी पर गर्मी, कहीं बसंत कहीं बारिश, यही विविधता यहां की मिट्टी,अन्न, फल-फूल, पेड़, पौधों और पशुधन व पक्षियों तक में देखी जा सकती है। खानपान, रीति-रिवाज, देवी-देवता, पूजा-पाठ और विचार व तरह-तरह के भगवानों में, काले गोरे देवी देवताओं में विश्वास या अक़ीदे में यह विविधता ही भारतीय संस्कृति की आत्मा है, यहां निर्गुण, सगुण, आस्तिक, नास्तिक सभी तरह के दर्शन लंबे समय से चले आ रहे हैं।

अगर ‘ईशावास्यम् इदम् सर्वम् यत्किंच जगत्याम् जगत’, की अवधारणा को ही संघी मान लें तो भी सांप्रदायिक नफ़रत भारत में फैलाने की गुंजाईश  ही नहीं बचती। ‘हरि व्यापक सर्वत्र समाना’ में इसी भावना का उदगार तुलसी ने किया है। यहां के सभी दर्शनों में आपस में वैचारिक संघर्ष भी होते रहे हैं क्योंकि भारतीय परंपरा यह मानती रही कि, ‘वाद से ही सत्य सामने आता है।’ यही वैचारिक विविधता भारतीय संस्कृति की मूल आत्मा है। संघी अज्ञानी इसे नकारते हैं, इसलिए वे अपनी सोच में भारतीय संस्कृति के विरोधी और एक ही काल्पनिक ‘नस्ल’ और उसकी संस्कृति की ‘शुद्धता’ के पागलपन के शिकार हिटलर की नक़ल पर बनायी गयी झूठी ‘भारतीय संस्कृति’ या ‘आर्य संस्कृति’ का जाप करते हैं।

‘आर्य संस्कृति’ के झूठ पर विश्वास करते ही हम अपने विशाल देश के अनेक क्षेत्रों, ख़ासकर दक्षिण भारत व पूर्वोत्तर व गोवा आदि के भारतीयों और उनकी अपनी सांस्कृतिक परंपराओं के विपरीत खड़े नज़र आते हैं। इस तरह आर एस एस के विचार विभाजनकारी व देशविरोधी भी हैं, भले ही वे ‘राष्ट्र’ ‘राष्ट्र’ चीखते रहें, उनका मक़सद तो देश-विदेश की कॉर्पोरेट पूंजी की सेवा करना ही है जो काम जर्मनी में हिटलर ने किया था, जो दुनिया के हर देश में घुसे फ़ासिस्टों या संघियों का गुरु है, जो नस्ल के आधार पर इंसान का बंटवारा करते हैं और शोषण की परंपरा की रक्षा के लिए खूनख़राबा करते हैं।

अथर्ववेद के बाद भारतीय संस्कृति की इस बहुलता का सबसे अच्छा नमूना हमें देश भर के भक्त व सूफ़ी कवियों की रचनाओं में दिखायी देता है। तमिलनाडु के साहित्य के आदिकाल में जो ‘संगम कविता’ लिखी गयी, वह पंथनिरपेक्ष कविता और बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय कविता है, वह असली भारतीय संस्कृति का हिस्सा है। उत्तर भारत में पंजाब के सिख गुरुओं ने अकबर के शासनकाल में अपने शिष्यों के लिए जिस ‘गुरु ग्रंथ साहब’ का संपादन व संकलन तैयार किया उसमें सभी जातियों और मज़हबों के संतों की वाणी शामिल की, यह भारतीय संस्कृति की बहुलतावादी आत्मा का सबसे बड़ा सबूत है। वह वाणी ज्ञानमार्गी उन संतों और सूफ़ियों की है जो ब्राह्मणवादी ग़ैरबराबरी के फ़लसफ़े के ख़िलाफ़ वैचारिक संघर्ष कर रहे थे और कह रहे थे कि ‘जातपात पूछे नहिं कोई, हरि को भजे सो हरि को होई।’ इन संतों में से ज़्यादातर दलित समुदाय से आये संत थे, डोम, रविदास, खत्री, सूफ़ी, सब ज्ञान की धारा को आगे बढ़ाने और हमारी संस्कृति के बहुरंगी रूप को और अधिक चमकाने का यह अनोखा प्रयास कर रहे थे, कबीर की ज़ोरदार वाणी भी गुरु ग्रंथ साहब का अहम हिस्सा है।

इस वैचारिक बहुलता का आदर सबसे बड़े रामभक्त बाबा तुलसीदास भी करते हैं, उनके महाकाव्य रामचरितमानस के मंगलाचरण में ही यह बहुलता का विचार अंकित है, ‘नानापुराणनिगमागमसम्मतं यद् / रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।’ शुरुआत ही ज्ञान की बहुलता और इस स्वीकारोक्ति से होती है कि ज्ञान अन्यत्र भी है। इस बहुलता का विचार उनकी रामकथा में बार बार रेखांकित होता है, बहुलता का पर्याय, ‘नाना’ शब्द का इतना दुहराव शायद ही किसी कवि के यहां हो।

ए के रामानुजन जैसे विद्वान ने ‘तीन सौ रामायणें’ नाम से एक लंबा लेख लिखा था जो दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कोर्स में पढ़ाया जाता था। आर एस एस के मूढ़ लोगों ने आंदोलन छेड़ कर उसे कोर्स से निकलवा दिया। संघियों का यह क़दम भारत की बहुलतावादी संस्कृति के विचार के ख़िलाफ़ तो था ही, उस सच्चाई के भी ख़िलाफ़ था जिसका हवाला हमें तुलसीदास के रामचरितमानस में भी मिलता है। बाबा तुलसीदास ने ‘तीन सौ’ से भी आगे जाकर कहा, ‘हरि अनंत हरिकथा अनंता / कहहिं वेद बुध गावहिं संता।‘ क्या भारतीय संस्कृति के इस सत्य को आर एस एस का कोई ज्ञानी चुनौती दे सकता है, हंगामा करके हिंसा भले भड़का ले: इस ज्ञान को नकारना संघ के बूते की बात नहीं। खुद तुलसीदास ने रामायणों की बहुलता के बारे साफ़ लिखा था :

रामकथा कै मिति जग नाहीं। असि प्रतीति तिन्ह के मन माहीं॥
नाना भाँति राम अवतारा। रामायन सत कोटि अपारा॥ 

इसका सीधा-सीधा अर्थ यह है कि दुनिया में रामकथा की गिनती नहीं की जा सकती, नाना तरह से कवियों ने राम अवतारों का वर्णन किया है, और अपार रामायणें लिखी गयीं। क्या आर एस एस के मूढ़ लोग तुलसीदास के रामचरितमानस को भी प्रतिबंधित कराने की हिम्मत दिखा सकते हैं जिन्होंने ए के रामानुजन के लेख,‘तीन सौ रामायणें’ से भी आगे जा कर कहा कि रामायणों की गिनती ही नहीं हो सकती। ‘रामायन सत कोटि अपारा’।

अकबर के समय के ज्ञानवान संत कवि रहे हों, या आज के शिक्षाविद् ज्ञानवान इतिहासकार और भारतविद् -- सभी भारतीय संस्कृति के मूल तत्व यानी विचारों की या ज्ञान की बहुलता और सांस्कृतिक विविधता को अपनी वैज्ञानिक समझ के आधार पर व्याख्यायित करते रहे हैं। जो इस बहुलता को नहीं जानता, वह भारतीय संस्कृति को नहीं जानता।

Indian culture
culture
RSS
Hindutva
dalit samaj
Atharvaveda
veda's
The Ramayana
Tulsi das

Related Stories

सोचिए, सब कुछ एक जैसा ही क्यों हो!

‘लव जिहाद’ और मुग़ल: इतिहास और दुष्प्रचार

रेलवे स्टेशन पर एजेंडा सेटिंग के लिए संस्कृत का इस्तेमाल?

हल्ला बोल! सफ़दर ज़िन्दा है।

मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में आदिवासियों पर सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएं थोपी जा रही हैं

अयोध्या केस को गलत तरीके से हिंदू-मुस्लिम विवाद के तौर पर पेश किया गया: हिलाल अहमद

49 हस्तियों पर एफआईआर का विरोध : अरुंधति समेत 1389 ने किए हस्ताक्षर

निक्करधारी आरएसएस और भारतीय संस्कृति

चावड़ी बाजार : सुलगाने के मंसूबे नाकाम, पर तपिश कायम

"न्यू इंडिया" गाँधी का होगा या गोडसे का?


बाकी खबरें

  • Ramdev
    न्यूज़क्लिक टीम
    पेट्रोल डीजल के दाम याद दिलाया तो धमकाने लगे रामदेव!
    31 Mar 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के आज के एपिसोड में अभिसार शर्मा बात कर रहे हैं पेट्रोल डीजल के दिन प्रतिदिन बढ़ते दामों की । उसके साथ ही उन्होनें रामदेव द्वारा पत्रकार के पेट्रोल के सवाल पर किये गए…
  • सबरंग इंडिया
    बाघ अभयारण्य की आड़ में आदिवासियों को उजाड़ने की साज़िश मंजूर नहीं: कैमूर मुक्ति मोर्चा
    31 Mar 2022
    ‘‘जल-जंगल-जमीन हमारा आपका, नहीं किसी के बाप का’’, ’‘ये धरती सारी हमारी, जंगल-पहाड़ हमारे’’, वन विभाग की जागीर नहीं’’, ‘‘लोकसभा न विधानसभा, सबसे बड़ी ग्रामसभा’’, ‘‘बाघ अभ्यारण्य हटाना है, जल-जंगल जमीन…
  • विक्रम सिंह
    किसान आंदोलन: मुस्तैदी से करनी होगी अपनी 'जीत' की रक्षा
    31 Mar 2022
    देश के किसानों की ज़मीन पर सरकार की मदद से कॉर्पोरेट चोरी की एक बड़ी कोशिश को, देश के किसानों ने एक साझे ऐतिहासिक आंदोलन से असफल कर दिया। परंतु मोदी सरकार अभी भी पूरा प्रयास कर रही है कि हेरा फेरी के…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिन दहाड़े सुरक्षा बलों के सामने केजरीवाल के घर पर हमला, सिसोदिया बोले - भाजपा के गुंडों ने किया हमला
    31 Mar 2022
    आम आदमी पार्टी ने आरोप लगाया कि यह हमला केजरीवाल की हत्या की साजिश थी। इसको लेकर सभी विपक्षी दलों ने भी बीजेपी की निंदा की है।  
  • एम. के. भद्रकुमार
    काबुल में आगे बढ़ने को लेकर चीन की कूटनीति
    31 Mar 2022
    इतना तो तय है कि बदले हुए हालात में अफ़ग़ानिस्तान में बीआरआई परियोजनाओं की राह में कोई रोड़ा नहीं अटकने जा रहा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License