NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
भारत
आख़िर क्यों खुले में नहाने को मजबूर है आधी आबादी!
विकास अन्वेष फाउंडेशन द्वारा तैयार और टाटा ट्रस्ट्स द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में पांच राज्यों- ओडिशा, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान के 44 गांवों में महिलाओं का इंटरव्यू लिया गया। इस इंटरव्यू में पाया गया कि उनमें से लगभग सभी महिलाएं आज भी खुले में ही नहाती हैं। वह हमेशा कपड़ों में और महिलाओं के झुंड के साथ ही तालाबों में नहाने जाती हैं।
सोनिया यादव
04 Sep 2019
आख़िर क्यों खुले में नहाने को मज़बूर है आधी आबादी!
Image Credit : Prem Kumar Marni

'यह विडंबना है कि समाज महिलाओं के लिए ड्रेस कोड और व्यवहार आचरण को निर्धारित करता है लेकिन निजी स्नान के लिए सुविधाएं प्रदान करने के बारे में नहीं सोचता है।'
ये शब्द हैं शोधकर्ता वैष्णवी पवार के, जिन्होंने अपने शोध में पाया कि ग्रामीण भारत के सिर्फ 25.4% घरों में स्नान घर यानी बाथरूम की सुविधा उपलब्ध है।
विकास अन्वेष फाउंडेशन द्वारा तैयार और टाटा ट्रस्ट्स द्वारा जारी की गई एक रिपोर्ट में पांच राज्यों- ओडिशा, झारखंड, बिहार, मध्य प्रदेश और राजस्थान के 44 गांवों में महिलाओं का इंटरव्यू लिया गया। इस इंटरव्यू में पाया गया कि उनमें से लगभग सभी महिलाएं आज भी खुले में ही नहाती हैं। वह हमेशा कपड़ों में और महिलाओं के झुंड के साथ ही तालाबों में नहाने जाती हैं।
इस समस्या की गंभीरता को जानने के लिए न्यूज़क्लिक ने कुछ गांव की महिलाओं से बातचीत की। महिलाओं का साफ तौर पर कहना है कि वे सालों से घर में या बाहर खुले में नहाने को मजबूर हैं। क्योंकि गांव में स्नान घर की बात होती ही नहीं है। ये तो शहरों में होते हैं, यहां इन पर कौन पैसे लगाएगा। मर्दों को कोई दिक्कत नहीं होती, तो वो इस पर बात भी नहीं करते।

बिहार के गोपालगंज की रजावती बताती हैं, 'हम तो भोर में उठकर ही नहा लेते हैं। क्योंकि दिन में मर्दों का आना-जाना लगा रहता है। हमारी मजबूरी है, अब क्या कर सकते है।'
उनसे ये पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने घर पर इस पर कभी बात नहीं की.. वे कहती हैं, हम गरीब आदमी हैं, घर में खाने को पैसा ठीक से नहीं हो पाता नहाने का कौन सोचे।

मौजूदा दौर की यह कटु सच्चाई है कि शौचालय, स्वच्छ भारत के लिए बड़ा मुद्दा बन गया है लेकिन घरों में बाथरूम की सुविधा नहीं है। शायद यह इसलिए है कि यह लोगों के लिए कोई मुद्दा नहीं है। जनगणना के आंकड़े बताते हैं कि ग्रामीण भारत में 55 फीसदी से अधिक घरों में आज भी ढंके हुए स्नानगृह नहीं हैं।

राजस्थान के गांव सूरतगढ़ की लीला देवी ने न्यू़ज़क्लिक को बताया कि जब वे ससुराल में नई ब्याह कर आईं थी, तब उन्हें बाहर नलके के नीचे नहाने में बहुत शर्म आती थी। कई दिन वे नहाती ही नहीं थी।

लीला आगे कहती हैं, ‘महावारी के दिनों में मुझे बहुत समस्या होती थी। उन दिनों अंधेरे में पूरे कपड़े पहनकर नहाना आसान नहीं होता और आप बिना नहाए रह भी नहीं सकते।

जब शोधकर्ता वैष्णवी पवार भारत के ग्रामीण इलाकों में फील्ड वर्क के लिए गईं तो वह अपने महाराष्ट्र के उस गांव में बिताए गए बचपन को याद करने लगीं। शर्म की बात थी कि वह बचपन में अन्य महिलाओं के साथ एक खुले तालाब में स्नान करने के लिए मजबूर हो जाती थीं। अपने पिता पर बाद में जोर देकर घर में बाथरूम बनवाया। लेकिन भारत भर में ज्यादातर महिलाओं के लिए सार्वजनिक जगह पर नहाना आज भी आम बात है।

07042018Untitled_1-2_0.jpg

वैष्णवी ने न्यूज़क्लिक को बताया कि उनके संस्थान ने महिलाओं की इस समस्या पर विस्तृत सर्वेक्षण किया है। कई सर्वे रिपोर्ट तैयार की हैं। क्योंकि उनके अनुसार ये एक बड़ा मुद्दा है, जिस पर किसी का ध्यान नहीं जाता।
झारखंड की फूलवती देवी ने न्यूज़क्लिक से कहा कि घरों में आदमियों की चलती है। वे खुद तो आराम से खुले में नहा लेते हैं। लेकिन हमारी परेशानी नहीं समझते। हम पहले पोखर में जाते थे, बाद में घर की छत के कोने में ही नहाने लगे।
वैष्णवी ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि इन महिलाओं को स्वास्थ्य और स्त्री रोग संबंधी समस्याएं होती हैं क्योंकि महिलाएं पूरे कपड़े पहनकर नहाती हैं और इस कारण ठीक से शरीर की सफाई नहीं कर पाती हैं। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत स्वच्छता बनाए रखने के लिए दिशा निर्देश हैं,लेकिन इसके लिए कोई बुनियादी ढांचा नहीं है। 

सर्वे में ये भी खुलासा हुआ कि सार्वजनिक तालाबों में नहाने वाली महिलाओं के अक्सर चिड़चिड़ाहट होती है। उन्हें भद्दी टिप्पणियों, यहां तक कि छेड़छाड़ का शिकार भी होना पड़ता है। नहाने से लेकर घर तक गीले कपड़ों में आने तक लोग उन्हें घूर-घूरकर देखते हैं। पहले, तालाब और नदियां बस्ती से सुरक्षित दूरी पर हुआ करती थीं लेकिन अब कुछ गांवों में राजमार्ग और सड़कें हैं जो जल श्रोतों से होकर गुजरती हैं।

ओडिशा के झटियापाड़ा गांव की एक महिला ने कहा कि हमारे लिए गरिमा बहुत महत्वपूर्ण चीज है। अगर हम उसे बनाए नहीं रख पा रहे हैं, तो फिर क्या फायदा? हमें अच्छा नहीं लगता जब दूसरे गांवों के अजनबी हम लोगों को खुले में नहाते हुए देखते हैं। जिन महिलाओं के घर या आसपास बाथरूम हैं, उन्हें पुरुषों के अनुसार अपने स्नान का समय निर्धारित करना होता है। यहां तक कि सर्दियों की कड़कड़ाती ठंड में भी उन्हें पुरुषों के उठने से पहले ही नहा लेना होता है।
सर्वे में जब महिलाओं से पूछा गया कि उनके यहां बाथरूम क्यों नहीं है, तो जवाब चौंकाने वाला था। महिलाओं ने कहा कि उनके यहां पानी का कनेक्शन नहीं है। इससे उस सवाल का जवाब भी मिला कि घर में शौचालय बने होने के बाद भी महिलाएं खुले में शौच क्यों जा रही है। अधिकांश महिलाओं ने कहा कि भोजन, कपड़े, आश्रय और शिक्षा की तुलना में बाथरूम का मुद्दे की कोई प्राथमिकता नहीं।

विकास अन्वेष के संजीव फनसालकर ने मीडिया से कहा कि इस विषय के साथ समस्या यह है कि कोई भी इसके बारे में बात नहीं करता है।

कुछ महिलाओं ने कहा कि अगर वे घर में बाथरूम बनवाने जैसे मुद्दे को उठाती हैं तो परिवार वाले उन्हें मुखर मानते हैं। वह अपना जीवन एडजस्ट कर रही हैं। एक महिला सरपंच ने कहा कि स्वच्छ भारत मिशन शौचालय के बारे में कहता है लेकिन कोई भी स्नान करने की जगह के बारे में बात नहीं करता है। 
आंकड़ों की माने तो 2011 की जनगणना के अनुसार, ग्रामीण भारत के 25.4 फीसदी घरों में बाथरूम हैं और 19.7 फीसदी में बिना छत के बाड़े हैं। इसलिए, भारत के 55 फीसदी घरों में कोई भी निजी नहाने का स्थान नहीं है। यह एक ऐसा आंकड़ा है जो भारत के स्वच्छ भारत होने के बावजूद नहीं बदला है। आज समाज में जरूरत है महिलाओं की इस समस्या की ओर ध्यान देने की, तभी स्वच्छ भारत, स्वस्थ भारत बन पाएगा।

 

 

Tata trusts
Vikas Anvesh Survey
Women Issues
Rural india
Female Bathe

Related Stories

बेसहारा गांवों में बहुत बड़ा क़हर बनकर टूटने वाला है कोरोना

कोरोना का प्रसार अब ग्रामीण इलाकों में, बुनियादी ढांचे के अभाव से हालात चिंताजनक!

ग्रामीण भारत में कोरोना-38: मज़दूरों की कमी और फ़सल की कटाई में हो रही देरी से हरियाणा के किसान तकलीफ़ में हैं

ग्रामीण भारत में करोना-31: ओडिशा के अमपोरा गांव में मनरेगा के तहत कोई काम नहीं

ग्रामीण भारत में कोरोना-26 : झारखंड के आदिवासी किसान सब्ज़ी की कम क़ीमतों की वजह से हैं परेशान

ग्रामीण भारत में करोना-25: इस बीच हरियाणा के मामेरन गाँव की दूध वितरण श्रृंखला बुरी तरह से प्रभावित हो चुकी है

ग्रामीण भारत में कोरोना-12 : कटाई ना कर पाने की वजह से लातूर के किसानों की फसलें सड़ रही हैं

ग्रामीण भारत में कोरोना-13 : थेरी गांव के किसान श्रमिकों की कमी को लेकर चिंतित


बाकी खबरें

  • श्रुति एमडी
    ‘तमिलनाडु सरकार मंदिर की ज़मीन पर रहने वाले लोगों पर हमले बंद करे’
    05 Apr 2022
    द्रमुक के दक्षिणपंथी हमले का प्रतिरोध करने और स्वयं को हिंदू की दोस्त पार्टी साबित करने की कोशिशों के बीच, मंदिरों की भूमि पर रहने वाले लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है। 
  • भाषा
    श्रीलंका में सत्ता पर राजपक्षे की पकड़ कमज़ोर हुई
    05 Apr 2022
    "सरकारी बजट पर मतदान के दौरान गठबंधन के पास 225 सांसदों में से 157 का समर्थन था, लेकिन अब 50 से 60 सदस्य इससे अलग होने वाले हैं। इसके परिणामस्वरूप सरकार न सिर्फ दो-तिहाई बहुमत खो देगी, बल्कि सामान्य…
  • विजय विनीत
    एमएलसी चुनाव: बनारस में बाहुबली बृजेश सिंह की पत्नी के आगे दीन-हीन क्यों बन गई है भाजपा?
    05 Apr 2022
    पीएम नरेंद्र मोदी का दुर्ग समझे जाने वाले बनारस में भाजपा के एमएलसी प्रत्याशी डॉ. सुदामा पटेल ऐलानिया तौर पर अपनी ही पार्टी के दिग्गज नेताओं, पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं पर आरोप जड़ रहे हैं कि वो…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: आज दूसरे दिन भी एक हज़ार से कम नए मामले 
    05 Apr 2022
    देश में कोरोना से पीड़ित 98.76 फ़ीसदी यानी 4 करोड़ 24 लाख 96 हज़ार 369 मरीज़ों को ठीक किया जा चुका है। और एक्टिव मामलों की संख्या घटकर 0.03 फ़ीसदी यानी 12 हज़ार 54 रह गयी है।
  • मुकुल सरल
    नफ़रत की क्रोनोलॉजी: वो धीरे-धीरे हमारी सांसों को बैन कर देंगे
    05 Apr 2022
    नज़रिया: अगर किसी को लगता है कि ये (अ)धर्म संसद, ये अज़ान विवाद, ये हिजाब का मुद्दा ये सब यूं ही आक्समिक हैं, आने-जाने वाले मुद्दे हैं तो वह बहुत बड़ा नादान है। या फिर मूर्ख या फिर धूर्त। यह सब यूं…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License