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भारत
राजनीति
अलिबाबा भारतीय खुदरा बाज़ार में एकाधिकार हासिल करने में जुटी
रिपोर्ट के मुताबिक़ चीन की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी अलिबाबा भारत में सबसे बड़ा खुदरा उपक्रम स्थापित करने के लिए रिलायंस रीटेल से बात कर रही है। वहीं अमेज़न आदित्य बिड़ला की सुपरमार्केट श्रृंखला में 49 प्रतिशत हिस्सेदारी ख़रीदने की कोशिश में है।
प्रणेता झा
23 Aug 2018
E commerce

घरेलू खुदरा व्यापार ख़ास तौर पर छोटे व्यापारियों और निर्माताओं का कारोबार समाप्त हो जाएगा इसको लेकर भारतीय व्यापारियों द्वारा वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट सौदे के ख़िलाफ़ विरोध करने के बावजूद अब ये बात सामने आई है कि चीन की ई-कॉमर्स कंपनी अलिबाबा मुकेश अंबानी की कंपनी रिलायंस रिटेल लिमिटेड के साथ "एक बड़ा भारतीय खुदरा संयुक्त उद्यम" बनाने के लिए बातचीत कर रही है।
 
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मिंट के अनुसार, अलिबाबा अपने अमेरिकी प्रतिद्वंद्वियों अमेज़न और वॉलमार्ट का मुकाबला करने और "डिजिटल बाजार में विशाल कंपनी" स्थापित करने के साथ-साथ भारत में अलिबाबा के खुदरा कारोबार "अधिमानतः 50%" का विस्तार करने के लिए कम से कम 5 बिलियन डॉलर निवेश करना चाहता है।

अलिबाबा की योजना एक विशाल ओमनी-चैनल खुदरा इकाई बनाने की है। ओमनी-चैनल खुदरा कारोबार का मतलब बिक्री के लिए दुकानदारों को प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के माध्यम से ऑनलाइन और ऑफलाइन चैनलों में एक एकीकृत अनुभव प्रदान करना है। उदाहरण के लिए इसे पूरक बनाने के लिए भौतिक खुदरा आधारभूत संरचना के साथ ऑनलाइन मंच को जोड़ना है। अलिबाबा अपने 'ऑनलाइन-से-ऑफ़लाइन' मॉडल के माध्यम से पहले से ही चीन में इस कार्य में सफल रहा है।

मिंट ने यह भी रिपोर्ट किया कि अलिबाबा समूह के सह-संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष जैक मा ने जुलाई के अंत में रिलायंस इंडस्ट्रीज लिमिटेड (आरआईएल) के चेयरमैन मुकेश अंबानी से मुलाकात की थी। आरआईएल प्रवक्ता द्वारा इस बैठक से इनकार करने के साथ-साथ ऐसी किसी भी योजना के मामले में एक स्पष्टीकरण को इस रिपोर्ट में शामिल किया गया है।

हालांकि द टाइम्स ऑफ इंडिया में एक अन्य रिपोर्ट ने अलिबाबा और आरआईएल के वरिष्ठ अधिकारियों के बीच ऐसी चर्चा की बात की। लेकिन रिपोर्ट में कहा गया है कि अलीबाबा न सिर्फ रिलायंस के साथ बातचीत की बल्कि टाटा समूह और किशोर बियानी के फ्यूचर रिटेल के साथ भी इसी उद्देश्य के लिए बातचीत की।

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अलिबाबा पहले से ही कई भारतीय कंपनियों में भारी निवेश कर रखा है विशेष रूप से पीटीएम (इसमें 49%), ज़ोमैटो, बिगबास्केट, टिकटन्यू इनमें शामिल है।

दरअसल भारत में इसका सबसे नया प्रयास अमेज़न और वॉलमार्ट का मुकाबला करना है। संयुक्त राज्य अमेरिका की विश्व की सबसे बड़ी (ऑफ़लाइन) खुदरा विक्रेता वॉलमार्ट ने हाल ही में भारत की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी फ्लिपकार्ट में 77% हिस्सेदारी हासिल की है। हालांकि बड़ी संख्या में विदेशी हिस्सेदारी पहले से ही है।

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इस बीच रिपोर्ट सामने आई है कि आदित्य बिड़ला रिटेल लिमिटेड की सुपरमार्केट श्रृंखला में 42-49% हासिल करने के लिए अमेज़न बातचीत कर रहा है क्योंकि वह अपने ऑनलाइन किराने का खुदरा व्यापार का विस्तार करना चाहता है।

भारत में विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (एफडीआई) नियम मल्टी ब्रांड रिटेल में 51% विदेशी निवेश की अनुमति देता है, जबकि सिंगल ब्रांड रिटेल में 100% एफडीआई की अनुमति देता है।

यदि अलिबाबा रिलायंस के साथ क़रार करती है तो यह अलिबाबा को अमेज़न और वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट पर एडवांटेज देगा क्योंकि एफडीआई नियम ई-कॉमर्स में काम करने वाली विदेशी कंपनियों को विस्तृत सूची रखने के लिए अनुमति नहीं देता है। लेकिन ई-कॉमर्स के 'बाजार' मॉडल में 100% विदेशी निवेश की अनुमति है जिससे कोई कंपनी केवल ख़रीदारों और विक्रेताओं को जोड़ने के लिए एक इलेक्ट्रॉनिक मंच प्रदान कर रही है। इसलिए कोई ई-कॉमर्स कंपनी बाज़ारों के प्लेटफॉर्म पर उपभोक्ताओं को सामानों की अपनी सूची नहीं रख सकती है और न ही बेच सकती है।

हालांकि अमेज़ॅन और फ्लिपकार्ट जैसी ई-कॉमर्स कंपनियां इन नियमों की बेशर्मी से उल्लंघन कर रही हैं, आम तौर पर प्रॉक्सी 'नियंत्रित विक्रेताओं' के माध्यम से बहुत सस्ती दरों पर उत्पादों को बेच कर और कई कंपनियों का निर्माण कर जिसके ज़रिए वे निर्माताओं से थोक (छूट पर) में ब्रांडेड सामान खरीदते हैं। वास्तव में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 30 जुलाई को ग़ैर सरकारी संगठन टेलीकॉम वॉचडॉग की याचिका पर सुनवाई करते हुए ई-कॉमर्स के लिए एफडीआई मानदंडों के इन उल्लंघनों पर अमेज़न, फ्लिपकार्ट और केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया था।

इस बीच भारत में व्यापारी वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट सौदे के ख़िलाफ़ विरोध करते रहे हैं क्योंकि वे इसे जानते हैं कि जिस तरह वॉलमार्ट को भारत के मल्टी ब्रांड रिटेल में पिछले दरवाजा से प्रवेश है ठीक इसी तरह अमेज़न और फ्लिपकार्ट अब तक करते रहे थे। सिवाय इसके कि वॉलमार्ट दुनिया की सबसे बड़ी खुदरा कंपनी है, यह वैश्विक स्तर पर सबसे सस्ती सामग्री के स्रोत तैयार कर सकती है और फ्लिपकार्ट के मंच पर अपनी खुद की सूची से बेच सकती है।

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2 जुलाई को कन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रैडर्स (सीएआईटी) के बैनर तले लगभग 10 लाख दुकानदारों और व्यापारियों ने देश भर के सैकड़ों स्थानों पर विरोध प्रदर्शन किया था। उनकी मांग थी कि मोदी सरकार 9 मई को घोषित 16 बिलियन डॉलर के वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट सौदे को रद्द करे।

अब सीएआईटी ने फिर से 'भारत बंद' का ऐलान किया है। ये बंद 28 सितंबर को वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट सौदे के विरोध में करने के ऐलान किया गया है।

आरआईएल की सहायक कंपनी रिलायंस रिटेल राजस्व के मामले में देश की सबसे बड़ी खुदरा विक्रेता है। और अलिबाबा तुलनात्मक रूप से दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी है जो बाजार मूल्य के मामले में अमेरिकी विशालकाय अमेज़न से दूसरे स्थान पर है।

अलिबाबा अमेज़न के साथ निर्विवाद वैश्विक ई-कॉमर्स अग्रणी बनने के लिए निरंतर प्रतिस्पर्धा कर रहा है। हालांकि इसकी ऑनलाइन बिक्री और मुनाफे ने अमेज़न और यहां तक कि वॉलमार्ट को भी पार कर लिया है।

भारतीय रिटेल पर क़ब्ज़ा करने और लाखों छोटे खुदरा विक्रेताओं, व्यापारियों और निर्माताओं की आजीविका के ख़तरे को लेकर इन विदेशी कंपनियों के ख़िलाफ़ भारतीय व्यापारी विरोध प्रदर्शन करते रहे हैं।

विक्रेताओं का चयन करने के लिए ज़्यादा छूट, मूल्य निर्धारण और श्रेष्ठ व्यवहार जैसे प्रतिस्पर्धा में फ्लिपकार्ट के शामिल होने को लेकर व्यापारियों के संगठनों द्वारा किए गए विरोध और शिकायतों के बावजूद भारत के प्रतिस्पर्धा आयोग (सीसीआई) ने 8 अगस्त के आदेश में वॉलमार्ट-फ्लिपकार्ट सौदे को मंज़ूरी दे दी।

ई-कॉमर्स और प्रौद्योगिकी में भारतीय स्टार्ट-अप कंपनियों पर विदेशी पूंजी का प्रभुत्व हैे। और अब यह स्पष्ट है कि दुनिया की सबसे बड़ी ई-कॉमर्स और खुदरा कंपनियां अमेज़ॅन, अलिबाबा और वॉलमार्ट न केवल भारत के खुदरा क्षेत्र पर हावी होने के लिए लड़ाई लड़ रही है बल्कि इस लड़ाई में वे भारत में बड़ी कंपनियों के साथ गठबंधन कर रहे हैं। रिलायंस रिटेल देश का सबसे बड़ा खुदरा विक्रेता है जबकि फ्लिपकार्ट सबसे बड़ी ई-कॉमर्स कंपनी है।

इस तरह हम देख सकते हैं कि कैसे विदेशी पूंजी और भारतीय पूंजी भारत में खुदरा क्षेत्र में एकाधिकार के लिए मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं। इसके अलावा कुछ निश्चित एफडीआई नियमों का उल्लंघन किया जा रहा है। इसका सामना करने के लिए भारतीय घरेलू खुदरा विक्रेता पूरी तरह से असुरक्षित हैं साथ ही तैयार भी नहीं हैं। और इसी बीच, सीसीआई जिसे 'निष्पक्ष व्यापार' के लिए नियामक माना जाता है एफडीआई नियमों में उल्लंघन से इनकार करती है।

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