NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
नए भारत की विधा : आस्था क़ानून कैसे बनती है?
सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने अयोध्या में आस्था की सवारी कर दर्दनाक टकराव को सुलझा तो लिया है, लेकिन यह संयत असर के साथ हुआ है।
सुबोध वर्मा
11 Nov 2019
Translated by महेश कुमार
how faith become law

मध्य युग में अलकेमी एक लोकप्रिय प्रथा थी जिसमें लोग प्राथमिक धातु जैसे तांबे को सोने या चांदी में बदलने की कोशिश करते थे। यह एक प्रकार की प्रोटो-केमिस्ट्री थी, जो विज्ञान की अग्रदूत विधा थी। एक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार जिस "नए भारत" का निर्माण करने का दावा कर रही है, उसमें  इस प्रथा को संशोधित किया गया है जिसके तहत विभिन्न तौर तरीक़ों का इस्तेमाल करते हुए क़ानून सहित यथार्थ को भी बदला जा रहा है। अयोध्या में विवादित स्थल के संबंध में अपील पर सर्वोच्च न्यायालय का फ़ैसला जिस पर हिन्दू और मुस्लिम दोनों का दावा था, वह इसी प्रवृत्ति के अनुरूप दिखाई दे रहा है।

क्या निर्णय ने विवाद को ‘सुलझा’ दिया है क्योंकि दोनों पक्षों ने क़सम खाई थी कि वे न्यायिक फ़ैसले को स्वीकार करेंगे। विवादित क्षेत्र जो कुछ 2.77 एकड़ का है, उसको मंदिर बनाने के लिए एक ट्रस्ट को सौंप दिया गया है। सरकार से यह भी कहा गया है कि मुस्लिम पक्ष को वह मस्जिद बनाने के लिए अलग से 5 एकड़ ज़मीन दी जाए, जिसे 1992 में हिंदू कट्टरपंथियों ने नष्ट कर दिया था। वह मस्जिद विवादित स्थल पर थी।

इस फ़ैसले से तो यही ज़ाहिर होता है कि इसके अलावा कुछ और नहीं किया जा सकता था। दोनों पक्ष थक चुके थे। ‘नए भारत’ में मुस्लिम समुदाय ने आस छोड़ दी है क्योंकि उन्हें लगातार हिंदू कट्टरपंथी आतंकित कर रहे हैं, समुदाय के ख़िलाफ़ लगातार आतंकी हरकतों से सरकार ने मुँह मौड़ लिया है और लिंचिंग और हिंसा पर अपनी आँखें पूरी तरह से मूँद ली हैं।

नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने एकमात्र मुस्लिम बहुल राज्य जम्मू और कश्मीर का इस साल के अगस्त में विशेष दर्जा ख़त्म कर उसे नज़रबंद कर दिया था। अल्पसंख्यक समुदाय को हाशिए पर फेंकने या हिंदू राष्ट्रवाद की दादागिरी या बढ़ोतरी के बारे में वामपंथियों के विरोध को छोड़ दें तो अधिकांश राजनीतिक दल कमोबेश उनके साथ सहमत हैं या फिर मौन हैं।

लेकिन, शीर्ष अदालत के फ़ैसले को बारीक़ी से पढ़ने से पता चलता है कि इसने पिछले दरवाज़े से विषम संभावनाओं को खोल दिया है। इसका मुख्य ख़तरा यह है: कि एक बार, अगर एक व्यापक आस्था या विश्वास को विवाद के मामलों पर निर्णय लेने के लिए एक न्यायिक सिद्धांत के रूप में स्वीकार कर लिया जाता है, तो उससे सभी प्रकार की संभावनाएं खुल जाती हैं।

आस्था किस तरह से मुक़दमे में तब्दील होती है

सुप्रीम कोर्ट अपने आदेश में बार-बार कहता है कि वह विवाद को टाइटल सूट के रूप में संबोधित कर रहा है। इसका मतलब है कि यह इस विवाद के तहत भूमि का मालिक कौन है उसको देख रहा है? वह  दावा करता है कि लोगों की आस्था क्या कहती है वह उससे प्रभावित होने वाला नहीं है। यहाँ तक तो सब ठीक है।

लेकिन फिर, 1528 में मस्जिद के निर्माण के बाद सदियों से जमा हुए अपार दस्तावेज़ों के माध्यम से वह एक अजीब से निष्कर्ष पर पहुँच जाता है। इसे आस्था की महत्वपूर्ण छलांग कहा जाएगा।

पैरा 788.XVII में, अदालत सभी सबूतों और उसके विश्लेषण का सारांश प्रस्तुत करते हुए निष्कर्ष निकालता है कि मुस्लिम पक्ष विवादित भूमि का इस्तेमाल "मस्जिद का समर्पित उपयोग" न करने और न ही उसके "प्रतिकूल क़ब्ज़े" को साबित कर सके हैं। बाद वाले वाक्यांश का अर्थ है कि किसी और ने क़ब्ज़ा कर लिया था, जबकि भूमि का मूल टाइटल उनका था। कोर्ट यह भी कहता है कि बाहरी आंगन को हिंदुओं ने पूजा के लिए "बेपनाह" इस्तेमाल किया है, जबकि "आंतरिक प्रांगण" [या गर्भगृह] का उपयोग करने का दावा दोनों पक्षों ने किया है।

फिर, पैरा 798 में, अदालत कहती है: 

जहां तक आंतरिक प्रांगण या गर्भगृह का संबंध है, इस बात की प्रमुख संभावना और सबूत है कि 1857 में अंग्रेज़ों के अवध को जीतने से पहले वहाँ हिंदुओं द्वारा पूजा की जाती थी। मुसलमानों के पास इस बात का कोई सबूत नहीं है कि आंतरिक संरचना (गर्भगृह) सोलहवीं शताब्दी में निर्माण की तारीख़ के बाद और 1857 से पहले उनके क़ब्ज़े में था।

न्यायालय कैसे इस नतीजे पर पहुंचा कि 1857 से पहले विवादित स्थल पर हिंदुओं द्वारा पूजा की जाती थी? इसने इसका नतीजा "होशियारी" से निकाला है जो गज़ेटर्स और यात्रा-वृत्तांतों से सबूतों की शिफ्टिंग, करता है जैसा कि पैरा 798 के उप-पैरा IV में संक्षेप में दिया गया है। दूसरी तरफ़, अदालत ने पाया कि मुस्लिम पक्ष कोई सबूत पेश नहीं कर सका जिससे कि यह पाया जाता कि मस्जिद को 1856-57 से पहले नमाज़ अदा करने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।

यही वह आधार है जिस पर कोर्ट ने पूरे सुपर-स्ट्रक्चर का निर्माण किया है। इसे सावधानी पूर्ण भाषा में लिखा गया है। वास्तव में, इस तरह की सावधानी बरती गई है कि वह अंततः मुस्लिम पक्ष को भूमि का प्रतिपूरक भूखंड देने का भी फ़ैसला कर लेता है।

ज़ाहिर है, तर्क त्रुटिहीन नहीं है और न ही यह पूरी तरह से पक्का है। यह आस्था की एक बड़ी छलांग है जिसमें माना गया है कि हिंदुओं का यह स्थल श्री राम का जन्मस्थान है और यहाँ लगातार प्रार्थना की जाती रही है जबकि मुसलमानों ने केवल पिछले 160-वर्षों में यहाँ इबादत की है। यह हिंदू आस्था की ताक़त की ओर इशारा करती है क्योंकि बावजूद वहाँ इस्लामिक संरचना खड़ी होने के, हिंदू सदियों से प्रार्थना करते रहे हैं।

इसके साथ, सुप्रीम कोर्ट ने पूरे मामले को घुमा दिया और विवादित भूमि हिंदू पार्टियों को सौंप दी, हालांकि इसे मोदी सरकार द्वारा स्थापित किए जाने वाले एक ट्रस्ट के माध्यम से सौंपा गया है।

निष्पक्षता के साथ कहा जाए तो न्यायालय ने क़ानून के उस "भयंकर" उल्लंघन पर भी कड़ी टिप्पणियां की हैं जब हिंदू कट्टरपंथियों ने मस्जिद को ध्वस्त कर दिया था। कोर्ट ने 1949 में सांप्रदायिक दंगों के दौरान हिंदू कार्यकर्ताओं द्वारा मस्जिद का “अपमान” करने और मूर्तियों को गुप्त रूप से रखने की भी आलोचना की है। इसने क़ानून की सर्वोच्चता का भी दावा किया कि जो किसी भी पूजा स्थल को किसी दूसरे धर्म में बदलने से रोकता है (यानी 15 अगस्त, 1947 के जो जैसा है वैसा ही रहेगा)। लेकिन हिंदुओं की आस्था के आधार पर विवाद को निपटाने के मामले में यह सबसे ऊपर है, जिसके कारण उन्हें इतने सालों तक इस स्थल पर पूजा करनी पड़ी।

यह कैसे एक 'आंदोलन' बना

यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि श्री राम की पूजा उत्तरी भारत में एक आम बात है और अयोध्या एक प्रमुख तीर्थ शहर है। लेकिन ऐसा आंदोलन कभी नहीं रहा कि मंदिर को उसी स्थान पर स्थापित किया जाए जहां मस्जिद खड़ी थी। यह केवल एक आस्था थी जो आम लोगों के लिए वास्तव में मायने नहीं रखती थी। उनकी पवित्रता या आस्था विवादित 2.77 एकड़ भूमि से बड़ी थी। यह संघ परिवार और  विशेष रूप से विश्व हिंदू परिषद और भाजपा थी जिसने 1980 के दशक में इसे राजनीतिक हथियार के रूप में बदल दिया।

याद रखें कि 1989 में पालमपुर में अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में विवादित जगह पर मंदिर बनाने की मांग को पारित करने के बाद, भाजपा ने 1989 में राम शिला पूजन का एक सांकेतिक आंदोलन चलाया, और उसके बाद 1990 में एल.के. आडवाणी की लीडरशिप में अत्यधिक उत्तेजक रथ यात्रा निकाली गई जिसके बाद कई राज्यों में सांप्रदायिक दंगे हुए। फिर 1992 में मस्जिद के विनाश के बाद भयावह सांप्रदायिक हिंसा हुई, रिपोर्टों के अनुसार, दिसंबर के इन दंगों में कम से कम 227 लोग मारे गए और जनवरी माह में 557 लोग मारे गए थे, और फिर मार्च महीने में बॉम्बे बम विस्फ़ोट हुआ जिसमें 317 लोगों की जान चली गई थी।

निश्चित रूप से भाजपा ने चुनावी रूप से तरक़्क़ी की और 1989 में अपने वोट शेयर को 11.9 प्रतिशत से बढ़ाकर 1991 में 19 प्रतिशत कर दिया था, भले ही राजीव गांधी की हत्या के बाद कांग्रेस ने चुनाव जीत लिया था। तब से लेकर अब तक बीजेपी ने इस मुद्दे पर लगातार अभियान चलाया, ख़ासकर चुनावों के दौरान ऐसा किया गया।

संक्षेप में कहें तो आस्था के प्रचलन को पैदा किया गया वह भी उसके आक्रामक अंदाज़ में। इसे चुनावी लाभ के लिए हथियार तो बनाया गया, साथ ही एक बड़े वैचारिक प्रभुत्व के लिए भी इसे इस्तेमाल किया गया। आने वाले दिनों में, आस्था-आधारित वास्तविकताएं आमतौर पर अवतरित होती रहेंगी या होने के लिए बाध्य होंगी। शीर्ष अदालत ने अब इस विवाद के लिए दरवाज़ा खोल दिया है। अब यह लोगों पर निर्भर है कि वे अपनी एकता और धर्मनिरपेक्षता की रक्षा करें।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आपने नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Alchemy in ‘New India’: How Faith Becomes Law

Supreme Court
Ayodhya verdict
Faith & Law
new india
babri masjid
Mosque Demolition
Communalism
Communal riots

Related Stories

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License