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भारत
राजनीति
आम आदमी के हक़ के लिए थाणे और पालघर में आंदोलन शुरू
सीपीएम का यह विरोध प्रदर्शन मुख्य तौर पर बुलेट ट्रेन परियोजना, मुंबई से वड़ोदरा हाईवे, नदी जोड़ने की योजना के खिलाफ है। इन मुद्दों के आलावा पार्टी इलाके में वन अधिकार अधिनियम के लागू किये जाने की माँग कर रही है I
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
11 Oct 2018
cpim protest

10 अक्टूबर से कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया (मार्क्सवादी) ने महाराष्ट्र के थाणे और पालघर ज़िले के 7 तहसीलों पर धरना प्रदर्शन शुरू किया। पार्टी का यह विरोध प्रदर्शन मुख्य तौर पर बुलेट ट्रेन परियोजना, मुंबई - वड़ोदरा हाईवे और नदी जोड़ने की योजना के खिलाफ है। इन मुद्दों के आलावा पार्टी इलाके में वन अधिकार अधिनियम के लागू किये जाने की माँग कर रही है। साथ ही स्वास्थ्य ,शिक्षा, रोज़गार के बाकी स्थानीय मुद्दों को भी पार्टी उठा रही है। दहानू , तलसारी, जवहार, विक्रमगढ़, पालघर और सहापुर से रैलियाँ निकलीं और इलाके की सात तहसीलों का घेराव किया। 

 इस आंदोलन में अखिल भारतीय किसान सभा, सेंटर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन, भारत की जनवादी नौजवान सभा, स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ़ इंडिया और अखिल भारतीय जनवादी महिला संघ भी शामिल है। बताया जा रहा है कि इस पूरे आंदोलन में करीब 30000 लोग शामिल हैं। सीपीएम का कहना है कि यह धरना प्रदर्शन तब तक जारी रहेगा जब तक स्थानीय लोगों की माँगे नहीं मानी जाती। 

 इस विरोध प्रदर्शन पर न्यूज़क्लिक ने सीपीएम के केंद्रीय कमेटी के सदस्य और अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अशोक धावले ने बात की। अशोक धावले ने बताया कि 10 अक्टूबर की तारीख इसीलिए चुनी गयी क्योंकि इसे शहीद दिवस की तरह मनाया जाता है। 10 अक्टूबर 1945 में पहले किसान शहीद हुए थे और यह महान किसान नेता गोदावरी परुलेकर की भी पुण्यतिथि होती है। अशोक धावले ने बताया कि तब से अब जब तक इस इलाके में पुलिस दमन में 61 किसानों की मौत हुई है। यही वजह है कि इस दिन को शहीद दिवस की तरह से मनाया जाता है। 

 मुद्दे को समझाते हुए उन्होंने कहा कि हाईवे और बुलेट ट्रेन के लिए सरकार किसानों की हज़ारों एकड़ ज़मीन ज़बरदस्ती हड़पने के प्रयास में है। इस इलाके की तीन तहसीलों से ज़मीने लेने की कोशिशें जारी है। इसी वजह से किसान विरोध कर रहे हैं और गुजरात के किसान तो बुलेट ट्रेन के खिलाफ कोर्ट में भी गए हैं। यही वजह है कि जापान की कंपनी जिसके साथ बुलेट ट्रेन की डील की गयी थी अब अपने हाथ पीछे खींच रही है। 

दूसरा मुद्दा है वन अधिकार अधिनियम को लागू किये जाने का। किसान नेताओं ने बताया कि इस साल मार्च में जब किसानों ने नासिक से मुंबई का लॉन्ग मार्च किया था तब वन अधिनियम को लागू करने की माँग को सरकार ने माना था। लेकिन अब तक लागू नहीं किया गया। दरअसल सालों से जंगल की ज़मीन पर आदिवासी खेती कर रहे हैं। वन अधिनियम 2006 के हिसाब से उन्हें इस ज़मीन के आधिकारिक पट्टे मिलने चाहिए लेकिन यह ज़मीन अब भी वन विभाग की है। इस वजह से आदिवासी शोषण झेलते हैं। माँग है कि उन्हें इस ज़मीन के पट्टे मिलें। 

तीसरा मुद्दा है कि इलाके में नदी को जोड़ने की स्कीम की वजह से 20 से 25 गाँव डूबने के आसार हैं। यह सभी अधिवासी गाँव हैं और यहाँ करीब 500000 लोग रहते हैं। इस वजह से घर, ज़मीन और सारी संपत्ति खत्म हो जायेगा। जिस तरह पुर्नवास पर सरकार का रवैया रहा है उसे देखते हुए गाँववालों में अविश्वास है। इसी वजह से आदिवासी इसका विरोध कर रहे हैं। इसके साथ ही इलाके में सप्तम्बर में बारिश नहीं हुई है और इलाके में आकाल है। इससे धान की फसल पूरी तरह बर्बाद हो गयी है। पार्टी माँग कर रही है कि इसका मुआवज़ा किसानों को मिले।  

इन मुद्दों के आलावा शिक्षा, नरेगा में रोज़गार का न मिलना , स्वस्थ्य सेवाओं की कमी, बिजली, सड़क राशन कार्ड के स्थानीय मुद्दे भी उठाये जा रहे हैं। अशोक धावले का कहना है कि 7 तहसीलों से यह 30000 लोग तब तक नहीं हटेंगे जब तक स्थानीय माँगे नहीं मानी जाती। किसानों की दृढ़ता देखते हुए यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले दिनों में क्या होता है।  

 

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