NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
अंतरराष्ट्रीय
अफ़्रीका का विद्रोह, उम्मीद से भरे अपने विलाप के साथ जम चुका है!
अफ़्रीकी राजधानियों को डर है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और फ़्रांस टोटल और एक्सॉनमोबिल की संपत्ति की रक्षा करने के लिए उत्तरी मोज़ाम्बिक पर हमला करेंगे।
ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
08 Sep 2021
africa

अफ़्रीका का विद्रोह, उम्मीद से भरे अपने विलाप के साथ जम चुका है

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

26 अगस्त को काबुल के अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे के बाहर हुए दो घातक हमलों में एक दर्जन अमेरिकी सैनिकों सहित सौ से अधिक लोग मारे गए। ये वे लोग थे जो किसी भी तरह हवाईअड्डे में प्रवेश कर अफ़ग़ानिस्तान से भागने के लिए बेताब थे। विस्फोट के कुछ ही समय बाद, इस्लामिक स्टेट ऑफ़ खुरासान (आईएस-के) ने हमले की ज़िम्मेदारी ली। इस हमले से दस दिन पहले, तालिबानी लड़ाकों ने काबुल की पुल-ए-चरखी जेल में घुस कर आईएस-के के नेता अबू उमर खोरासानी उर्फ़ ज़िया उल हक़ को मार डाला था। मारे जाने से दो दिन पहले, जब तालिबानी लड़ाके काबुल की ओर बढ़ रहे थे, अबू उमर ने वॉल स्ट्रीट जर्नल से कहा था कि, 'अगर वे अच्छे मुसलमान हैं तो वे मुझे आज़ाद कर देंगे'। लेकिन, तालिबान ने ज़िया उल हक़ और आईएस-के के आठ अन्य नेताओं को मार डाला।

आईएस-के, जो कि अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान में सक्रिय है, अक्टूबर 2014 में अपने गठन के बाद से, इन देशों में अफ़ग़ान, पाकिस्तानी और अमेरिकी लक्ष्यों के ख़िलाफ़ 350 से अधिक हमले कर चुका है। पाकिस्तान के तहरीक-ए-तालिबान (टीटीपी) के हाफ़िज़ सईद ख़ान और शेख़ मक़बूल तथा तालिबान के एक पूर्व कमांडर अब्दुल रऊफ़ ख़ादिम ने अफ़ग़ानिस्तान के पूर्वी प्रांत नंगरहार में आईएस-के की शुरुआत की थी। 2018 में, संयुक्त राष्ट्र संघ की एक रिपोर्ट ने उजागर किया कि इराक़ और सीरिया के आईएसआईएस नेतृत्व ने 'अपने कुछ प्रमुख गुर्गों का अफ़ग़ानिस्तान में स्थानांतरण' करवाया है; जिसमें इराक़ से अबू कुतैबा के साथ अल्जीरिया, फ़्रांस, रूस, ट्यूनीशिया और पाँच मध्य एशियाई देशों के कई अन्य लड़ाके शामिल हैं। 2016 में, अमेरिकी सरकार ने आईएस-के को एक आतंकवादी संगठन बताया; और इसके तीन साल बाद, अमेरिका ने नंगरहार में आईएस-के ठिकानों पर बमबारी की। 27 अगस्त को, काबुल में की गई बमबारी के प्रतिशोध में अमेरिका ने नंगरहार के ठिकानों पर बमबारी की। यूएस सेंट्रल कमांड ने विश्वास के साथ घोषणा की, 'हमारे पास किसी नागरिक के हताहत होने की ख़बर नहीं है'। लेकिन इसके कुछ दिनों बाद पता चाला कि कथित तौर पर आईएस-के के ठिकानों के ख़िलाफ़ हुए अमेरिकी ड्रोन हमले में छोटे बच्चों सहित दस अफ़ग़ानी नागरिक मारे  गए।


2014 के बाद से, तालिबान अफ़ग़ानिस्तान के अलग-अलग हिस्सों पर लगातार क़ब्ज़ा कर रहा था। इस दौरान, आईएस-के और तालिबान के बीच मुठभेड़ जारी रही, जहाँ आईएस-के ने तालिबान के राजनीतिक इस्लाम के दावे के ख़िलाफ़ अफ़ग़ानिस्तान के अल्पसंख्यकों पर सांप्रदायिक हमले तेज़ किए। अबू उमर खोरासानी की मृत्यु और तालिबान की जीत ने निश्चित रूप से आईएस-के को काबुल हवाई अड्डे पर घातक हमले के लिए उकसाया होगा। 1990 के दशक के गृहयुद्ध की वापसी की आशंका जताई जा रही है, हालाँकि आईएस-के के पास अपने सैकड़ों लड़ाकों के साथ तालिबान के ख़िलाफ़ सत्ता हासिल करने के लिए लड़ने की ताक़त तो नहीं है; पर युद्ध और भ्रष्टाचार से पहले से ही बुरी तरह से टूट चुके देश को नुक़सान पहुँचाने का उत्साह बेशक है।

मलांगटना नगवेन्या (मोज़ाम्बिक), ख़ून का फ़व्वारा, 1961

नंगरहार के दक्षिण-पश्चिम में, अरब सागर के पार, मोज़ाम्बिक के उत्तरी प्रांत हैं। यहाँ, 2017 में सशस्त्र लड़ाके मोकिम्बो दा प्रिया शहर पर हमला करते हुए काबो डेलगाडो प्रांत में घुस गए थे। ये लड़ाके ख़ुद को अल-शबाब ('नौजवान') कहते हैं, हालाँकि इस नाम के सोमालियाई आतंकवादी संगठन से इनका कोई संबंध नहीं है। जल्द ही ये लड़ाके मोज़ाम्बिक के छ: प्रमुख उत्तरी ज़िलों में घुस गए और छ: में से पाँच राजधानियाँ क़ब्ज़ा ली। राजधानी पाल्मा, जिसे अपनी शुरुआती कार्रवाई में ये लड़ाके नहीं क़ब्ज़ा पाए थे, वह फ़्रांसीसी ऊर्जा कंपनी टोटल और अमेरिकी ऊर्जा कंपनी एक्सॉनमोबिल की एक बड़ी परियोजना का केंद्र है। अफ़्रीका के सबसे बड़े प्राकृतिक गैस भंडारों में से एक पाल्मा है, जहाँ इन कंपनियों के 120 बिलियन डॉलर से अधिक दाँव पर लगे हैं। लड़ाके पाल्मा की ओर बढ़े और मार्च 2021 में उसे क़ब्ज़ा लिया; दोनों कंपनियों ने अपना काम बंद कर दिया।

एडवर्ड सैद टिंगटिंगा (तंज़ानिया), शीर्षकहीन, 1960

ऑब्जर्वेटोरियो डो मेयो रूरल (ओएमआर) और काबो लिगाडो के शोधकर्ताओं ने स्पष्ट किया है कि ये लड़ाके इसी क्षेत्र के हैं और किसी भी अंतर्राष्ट्रीय इस्लामी परियोजना से संबद्ध नहीं हैं। ओएमआर के जोआओ फीजो ने पाया कि अल-शबाब के नेता मुख्य रूप से मोज़ाम्बिक से हैं, लेकिन कुछ तंज़ानिया से भी हैं। अल-शबाब का मुख्य नेता बोनोमादे मकुदे उमर है, जो पाल्मा में पैदा हुआ था, जिसकी मोकिम्बो दा प्रिया के सरकारी और इस्लामी स्कूलों में पढ़ाई हुई थी, और जिसने मोज़ाम्बिक सेना से प्रशिक्षण लेने के बाद मोज़ाम्बिक के उत्तरी प्रांतों की अत्यधिक ग़रीबी के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए युवाओं को इकट्ठा करना शुरू किया। इन युवाओं ने मिलकर अल-शबाब का गठन किया।

अल-शबाब के तेज़ी से हुए विस्तार के बाद, बोनोमादे मकुदे उमर कई बार इस्लामिक स्टेट से अपने संबंध के बारे में बात कर चुका है, हालाँकि पश्चिमी एशिया और दक्षिणी अफ़्रीका  के समूहों के बीच किसी भी संगठनात्मक संबंध का कोई सबूत नहीं है। बहरहाल, 6 अगस्त को, अमेरिकी विदेश विभाग ने अल-शबाब -या आईएसआईएस-मोज़ाम्बिक, जैसा कि संयुक्त राज्य अमेरिका कहता है- को एक आतंकवादी संगठन और बोनोमादे मकुदे उमर को एक विशेष रूप से नामित वैश्विक आतंकवादी के रूप से नामज़द कर दिया है। एक बार अल-शबाब का उल्लेख आईएसआईएस-मोज़ाम्बिक के रूप में किए जाने के बाद, अब उत्तरी मोज़ाम्बिक में कभी भी पूर्ण सैन्य बल तैनात किया जा सकता है।


अर्नेस्टो शिखानी (मोज़ाम्बिक), शीर्षकहीन, 1979

सदर्न अफ़्रीकन डेवलपमेंट कम्युनिटी (एसएडीसी) के एक वरिष्ठ सलाहकार ने मुझे बताया कि अफ़्रीकी राजधानियों को डर है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और फ़्रांस टोटल और एक्सॉनमोबिल की संपत्ति की रक्षा करने के लिए उत्तरी मोज़ाम्बिक पर हमला करेंगे। 'शायद इसीलिए उन्होंने लड़ाकों को आईएसआईएस-मोज़ाम्बिक कहा', उन्होंने यह बात मुझे उस दिन बताई थी जिस दिन तालिबान ने काबुल में प्रवेश किया था। 28 अप्रैल को, मोज़ाम्बिक के राष्ट्रपति फ़िलिप न्यासी ने अल-शबाब पर चर्चा करने के लिए किगाली में रवांडा के राष्ट्रपति पॉल कागामे से मुलाक़ात की थी। इसके दस दिन बाद, रवांडा के अधिकारी एक सैनिक प्रशिक्षण मिशन के लिए काबो डेलगाडो पहुँचे, जिसके तुरंत बाद रवांडा के 1,000 सैनिक भी वहाँ पहुँच गए थे। वरिष्ठ सलाहकार का कहना है कि संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़राइल -जो कि कागामे के क़रीब है- ने इस मिशन को अधिकृत किया था। इसके कुछ ही समय बाद, एसएडीसी ने एसएडीसी देशों (बोत्सवाना, लेसोथो और दक्षिण अफ़्रीका) के सैनिकों व अंगोला और तंज़ानिया के सैनिकों के साथ मोज़ाम्बिक में एक मिशन (एसएएमआईएम) भेजा। उन्होंने उत्तरी मोज़ाम्बिक के शहरों पर अल-शबाब की पकड़ को कमज़ोर कर दिया है।

एसएडीसी के स्टरगोमेना टैक्स (कार्यकारी सचिव के रूप में जिनका कार्यकाल 31 अगस्त को समाप्त हो गया है) और दक्षिण अफ़्रीका के रक्षा मंत्री नोसिविवे मैपिसा-नकाकुला दोनों ने रवांडा के हस्तक्षेप के एकतरफ़ा फ़ैसले की शिकायत की। हालाँकि रवांडा और एसएएमआईएम दोनों अफ़्रीकी देशों द्वारा किया जाने वाला हस्तक्षेप है, फिर भी महाद्वीप की मुख्य संस्था -अफ़्रीकी संघ (एयू)- ने अपनी शांति और सुरक्षा परिषद में इस पर कोई बात नहीं की (हालाँकि, अफ़्रीकी संघ के प्रधान मौसा फकी महामत ने रवांडा के हस्तक्षेप का स्वागत किया)। न तो मोज़ाम्बिक,  न एसएडीसी, और न ही एयू ने उत्तरी मोज़ाम्बिक के संबंध में एक व्यापक योजना तैयार की है; इस देश की समस्याएँ इसकी असमानता, ग़रीबी और भ्रष्टाचार में निहित हैं, जो कि फ़्रांसीसी और अमेरिकी अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा फ़र्मों के प्रभाव से और बढ़े हैं।

एड्डी कमुआंगा इलुंगा (मोज़ाम्बिक), नाज़ुक 8, 2018


ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के द्वारा अफ़्रीकी महाद्वीप पर यूएस-फ़्रांसीसी सैन्य हस्तक्षेप पर जारी किया गया डोजियर यूएस-फ़्रांसीसी वाणिज्यिक हितों की भूमिका को समझने की एक रूपरेखा प्रस्तुत करता है। जून में, फ़्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रॉन ने कहा कि वह माली में चल रहे ऑपरेशन बरखाने से आधे फ़्रांसीसी सैनिकों को वापस बुला लेंगे; ये 'वापसी' की क़वायद 2022 का चुनाव जीतने के लिए मैक्रॉन के अभियान का हिस्सा है, न कि असल वापसी। जबकि, फ़्रांस का वास्तविक हस्तक्षेप जी-5 साहेल (एक फ़्रांसीसी नेतृत्व वाली सैन्य परियोजना जिसमें माली, नाइजर, मॉरिटानिया, चाड और बुर्किना फासो शामिल हैं) जैसे प्लेटफ़ॉर्मों के निर्माण में रहा है; जो कि अफ़्रीकी संघ की उन्नति और अफ़्रीकी संप्रभुता को कमज़ोर करता है। जी-5 साहेल जैसे समूह यह कहकर अपने अस्तित्व को सही ठहराते हैं कि वे इस्लामिक स्टेट जैसे समूहों से लड़ रहे हैं। वे ईमानदारी से अपने उद्देश्यों को सामने नहीं रखते हैं। उनके असल उद्देश्य हैं, महाद्वीप के प्रमुख क्षेत्रों और देशों पर नियंत्रण बनाए रखना और ऐसा करते हुए उनके खनिज और प्राकृतिक संसाधनों तक विशेष पहुँच बनाए रखना।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने अपनी जुलाई की रिपोर्ट में सही कहा है कि अफ़्रीका में इस्लामिक स्टेट का विस्तार एक 'विचित्र विकास' है। लेकिन इससे भी अधिक विचित्र इसकी अंतर्निहित समस्याएँ हैं: संसाधनों का नियंत्रण और चोरी, और इस चोरी से उत्पन्न होने वाली सामाजिक समस्याएँ, यानी अफ़्रीका के लोगों द्वारा अनुभव की जाने वाली निरंकुश आशाहीनता। उदाहरण के लिए, मध्य अफ़्रीकी गणराज्य (सीएआर) की आधी आबादी भुखमरी से जूझ रही है; और 2019 में देश में आए रवांडा के सैनिक शायद ही इस संकट का समाधान कर सकें। अफ़ग़ानिस्तान में, सीएआर की तरह, आधी आबादी ग़रीबी में रहती है और एक तिहाई खाद्य असुरक्षा का सामना कर रही है, जबकि दो तिहाई के पास बिजली की सुविधा नहीं है।

अनुमान लगाया गया है कि मोज़ाम्बिक में 80% आबादी पर्याप्त आहार का ख़र्च नहीं उठा सकती है, जबकि 29 लाख लोग अत्यधिक खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं। वास्तविक सुरक्षा समस्याएँ खाद्य असुरक्षा और ग़रीबी हैं, जिनसे हर प्रकार की अशांति जन्म लेती है,  अल-शबाब भी इसी का परिणाम है।

टीबीटी: मलंगटाना नगवेन्या (1936-2011)

1975 में मोज़ाम्बिक की मुक्ति काबो डेलगाडो में शुरू हुई थी, जो कि अब वर्तमान संकट से घिर हुआ है। वह मुक्ति संग्राम 1962 में शुरू हुआ था, जिसका नेतृत्व मोज़ाम्बिक लिबरेशन फ़्रंट (एफ़आरईएलआईएमओ) ने किया था। मुक्ति संग्राम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा था संस्कृति को उपनिवेशवाद से मुक्त का संघर्ष, जिससे नयी क्रांति की संवेदनशीलता, मोकाम्बिकनिडेड जन्मी। नोएमिया डी सूसा मोकाम्बिकनिडेड के महान कवियों में से एक थीं, जिनकी कविताएँ ओ ब्रैडो अफ़्रीकानो ('अफ़्रीका की दहाड़') में छपी थीं। 1958 की उनकी कविता हम इस न्यूज़लेटर में शामिल कर रहे हैं:

अगर तुम मुझे समझना चाहते हो
तो आओ, मेरी अफ़्रीकी आत्मा पर झुको,
बंदरगाहों पर काम करने वालों की पीड़ाएँ,
त्शोपियों के तांडव नाच,
अफ़्रीकी गीत से रात में बह जाने वाली
अजीब उदासी में 
शंगनाओं का विद्रोह।

और मुझसे और कुछ मत पूछो
अगर तुम मुझे जानना चाहते हो...
क्योंकि मैं मांस के खोल से ज़्यादा कुछ नहीं हूँ
जहाँ अफ़्रीका का विद्रोह
उम्मीद से भरे अपने विलाप के साथ जम चुका है।

स्नेह-सहित,

विजय।

kabul
Afghanistan
isis k
taiban
africa
America

Related Stories

क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति

और फिर अचानक कोई साम्राज्य नहीं बचा था

उथल-पुथल: राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता से जूझता विश्व  

भोजन की भारी क़िल्लत का सामना कर रहे दो करोड़ अफ़ग़ानी : आईपीसी

क्या दुनिया डॉलर की ग़ुलाम है?

पाकिस्तान ने फिर छेड़ा पश्तून का मसला

तालिबान को सत्ता संभाले 200 से ज़्यादा दिन लेकिन लड़कियों को नहीं मिल पा रही शिक्षा

अफ़ग़ानिस्तान की राजधानी काबुल में स्कूल के निकट सीरियल ब्लास्ट, छात्रों समेत 6 की मौत

यूक्रेन में छिड़े युद्ध और रूस पर लगे प्रतिबंध का मूल्यांकन

रूस पर बाइडेन के युद्ध की एशियाई दोष रेखाएं


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License