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भारत
राजनीति
अनुच्छेद 370 पर उभरे मतभेद कांग्रेस को किस दिशा में लेकर जा रहे हैं?
जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के सवाल पर कांग्रेस जिस तरह असमंजस का शिकार हुई है वह एक और इशारा है कि आज पार्टी की दशा क्या है। 
अमित सिंह
09 Aug 2019
congress
फोटो साभार : NDTV

कांग्रेस आजकल गहरे असमंजस में है। उसकी सबसे बड़ी दुविधा पार्टी अध्यक्ष को लेकर है। इसके अलावा उसे नहीं पता है कि अनुच्छेद 370 हटाने के फैसले पर उसका मत क्या होना चाहिए और उसे कैसे व्यक्त करना चाहिए? उसे नहीं पता है कि किसी मुद्दे पर पार्टी के नेताओं की सोच क्या है? उसे यह भी नहीं पता कि उनके छोटे नेता और कार्यकर्ता क्या सोच रहे हैं? हालिया सत्र में मोदी सरकार लगातार संसद से विधेयक पारित करा रही थी और कांग्रेस के नेताओं को यह भी समझ नहीं आ रहा था कि उन विधेयकों पर पार्टी का स्टैंड क्या है? यहां तक कि आरटीआई जैसे मसले पर भी कांग्रेस के नेता सड़कों पर नहीं दिखे।

और ये सारी बातें किसी एक ने नहीं बल्कि पूरे देश ने देखी हैं। अब हालिया अनुच्छेद 370 को लेकर ही पार्टी के जितने बयान सामने आए वो सिर्फ पार्टी के दुगर्ति की कहानी को आगे बढ़ा रहे हैं। 

राज्यसभा में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद ने सदन में इसका जमकर विरोध किया और भाजपा पर खुलकर बरसे। गुलाम नबी आजाद ने कहा कि बीजेपी वालों ने वोट के चक्कर में कश्मीर के टुकड़े कर दिए, ये दिन देश के लिए काला दिन है। पूर्व वित्त मंत्री पी चिंदबरम ने इसे भारत के संवैधानिक इतिहास का सबसे बुरा दिन बताया। 

लोकसभा में कांग्रेस के सदन नेता अधीर रंजन चौधरी ने बिल के पेश किए जाने का विरोध किया और भाजपा सरकार पर निशाना साधा। हालांकि, इसी दौरान वह एक सेल्फ गोल कर बैठे। अधीर रंजन ने कहा कि 1948 से लेकर अभी तक जम्मू-कश्मीर के मसले पर संयुक्त राष्ट्र निगरानी कर रहा है, ऐसे में ये आंतरिक मामला कैसे हो सकता है। 

यानी कांग्रेस के नेताओं का होमवर्क भी सही नहीं हो पा रहा है। बाद में अधीर रंजन ने इस बयान पर लीपापोती की थी लेकिन तब तक विरोधियों को इसका फायदा मिल चुका था। 

कांग्रेस के पूर्व मुखिया राहुल गांधी ने हालांकि अनुच्छेद 370 को लेकर बयान तो नहीं दिया लेकिन उन्होंने ट्वीट जरूर किया। राहुल गांधी ने ट्वीट में लिखा, 'जम्मू-कश्मीर को दो हिस्सों में बांटकर, चुने हुए प्रतिनिधियों को जेल में डालकर और संविधान का उल्लंघन करके देश का एकीकरण नहीं किया जा सकता। देश उसकी जनता से बनता है न कि जमीन के टुकड़ों से। सरकार द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए घातक साबित होगा।'

दूसरी ओर बड़ी संख्या में कांग्रेस के नेताओं ने इससे इतर बयान दिया। इसमें पुरानी और नई पीढ़ी दोनों के नेता शामिल रहे। हालांकि ज्यादातर नई पीढ़ी के नेता थे और राहुल गांधी के करीबी भी माने जाते रहे हैं। 

सबसे पहले राज्यसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप भुवनेश्वर कलिता ने अनुच्छेद 370 पर पार्टी के स्टैंड पर इस्तीफा दे दिया। अपने इस्तीफे में उनका कहना था, ‘आज कांग्रेस ने मुझे कश्मीर मुद्दे के बारे में व्हिप जारी करने को कहा है, जबकि सच्चाई ये है कि देश का मिजाज पूरी तरह से बदल चुका है और ये व्हिप देश की जन भावना के खिलाफ है।’ 

वरिष्ठ नेता जनार्दन द्विवेदी बोले, 'एक भूल जो आजादी के समय हुई थी, उस भूल को देर से ही सही सुधारा गया और ये स्वागत योग्य है।'

वरिष्ठ कांग्रेसी नेता कर्ण सिंह ने भी कहा कि सरकार का फैसला कुछ हद तक अच्छा भी है।

उन्होंने कहा,'370 हटाने की इतनी निंदा ठीक नहीं है। कर्ण सिंह ने लद्दाख को संघ शासित प्रदेश बनाने का समर्थन किया और कहा कि 35A हटाने का फैसला बिल्कुल ठीक है। 35A के नाम पर कश्मीरी बेटियों के साथ भेदभाव होता था।'

कश्मीर के आखिरी महाराजा हरि सिंह के बेटे कर्ण सिंह ने कहा, ‘मुझे यह स्वीकार करना होगा कि संसद में तेजी से लिए गए निर्णयों से हम सभी हैरान रह गए। ऐसा लगता है कि इस बहुत बड़े कदम को जम्मू और लद्दाख सहित पूरे देश में भरपूर समर्थन मिला है। मैंने इस हालात को लेकर बहुत सोच-विचार किया है।’ 

ज्योतिरादित्य सिंधिया ने ट्विटर पर लिखा, 'जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को लेकर उठाए गए कदम और भारत देश में उनके पूर्ण रूप से एकीकरण का मैं समर्थन करता हूं। संवैधानिक प्रक्रिया का पूर्ण रूप से पालन किया जाता तो बेहतर होता, साथ ही कई प्रश्न खड़े नहीं होते। लेकिन ये फैसला राष्ट्रहित में लिया गया है और मैं इसका समर्थन करता हूं।'

हरियाणा से कांग्रेस के युवा नेता दीपेंदर सिंह हुड्डा ने भी ट्विटर पर लिखा, 'मेरा पहले से ये विचार रहा है कि 21वीं सदी में अनुच्छेद 370 का औचित्य नहीं है और इसको हटना चाहिए।ऐसा देश की अखण्डता व जम्मू-कश्मीर की जनता जो हमारे देश का अभिन्न अंग है के हित मे भी है। मगर पूर्णत: मौजूदा सरकार की ज़िम्मेदारी है की इस का क्रियान्वरण शांति व विश्वास के वातावरण मे हो'

मुंबई कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष मिलिंद देवड़ा ने कहा, 'यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अनुच्छेद 370 को उदार बनाम रुढ़िवादी बहस में बदल दिया गया। पार्टियों को अपनी विचारधारा को अलग रखकर इस पर बहस करनी चाहिए कि भारत की संप्रभुता और संघवाद, जम्मू-कश्मीर में शांति, कश्मीरी युवाओं को नौकरी और कश्मीरी पंडितों के न्याय के लिए बेहतर क्या है?'

इनके अलावा कांग्रेस एमएलए अदिति सिंह ने भी आर्टिकल 370 हटाए जाने का समर्थन किया है। वे पांच बार कांग्रेस विधायक रहे अखिलेश सिंह की बेटी हैं।

कांग्रेस के लिए गंभीर चिंता की बात केवल यही नहीं कि संसद में उसके नेता अपनी सोच-समझ को सही तरीके से नहीं प्रकट कर सके, बल्कि यह भी है कि एक के बाद एक कांग्रेसी नेता पार्टी लाइन के खिलाफ बयान देना जरूरी समझ रहे हैं।

हालांकि वरिष्ठ पत्रकार राशिद किदवई कहते हैं,'जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के सवाल पर कांग्रेस जिस तरह असमंजस से दो-चार हुई वह कोई नई बात नहीं, क्योंकि वह एक अरसे से दुविधा से ग्रस्त है। अभी उसकी सबसे बड़ी दुविधा पार्टी अध्यक्ष को लेकर है। देखना है कि यह दुविधा 10 अगस्त को होने वाली कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में दूर हो पाती है या नहीं?'

वो आगे कहते हैं,'पार्टी भविष्य में राहुल की भूमिका को लेकर असमंजस में ही है। पहले यह सोचा गया कि राहुल बिना किसी पद के वैचारिक धुरी की भूमिका में रहेंगे, मगर वह और उनकी टीम पदाधिकारियों की नियुक्ति, संसदीय रणनीति और सभी मुद्दों पर अहम भूमिका निभाना चाहती है। हाल में राहुल ने कर्नाटक संकट के लिए किसी भीतरी व्यक्ति को ही दोषी बताकर सबको सन्न कर दिया। राष्ट्रपति ट्रंप के बयान पर भी उनका रवैया शशि थरूर जैसे नेताओं की परिपक्व प्रतिक्रिया के उलट रहा। यही स्थिति कश्मीर मामले में भी दिखी। फिलहाल ऐसे कोई संकेत नहीं मिल रहे कि पार्टी की दशा-दिशा सुधारने के लिए राहुल कोई देशव्यापी कवायद करने जा रहे हों।'

राशिद किदवई आगे कहते हैं, 'फिल्मकार महेश भट्ट कहते हैं कि हर राह के अंत में भी एक पड़ाव होता है। कांग्रेस पार्टी उस अंत के पड़ाव पर पहुंच गई है, लेकिन हर एक अंत में नई शुरुआत भी होती है। अब सवाल यह है कि क्या कांग्रेस अपने पुराने खोल से बाहर निकलकर उसमें नए सुधार कर सकती है।'

वहीं वरिष्ठ पत्रकार प्रमोद जोशी कहते हैं, 'पहली बात जिस तरह से कांग्रेस के बड़े नेताओं ने आर्टिकल 370 को लेकर बयान दिए उससे लगता है कि कांग्रेस में इसे लेकर ठीक से होमवर्क नहीं किया गया। पार्टी के नेताओं को विश्वास में नहीं लिया गया। दूसरी बात उनका जो स्टैंड बना भी वह जनता से दूर था। कांग्रेस के नेताओं को ये भी पता नहीं है कि आर्टिकल 370 को लेकर जनता का मूड क्या है। इस कारण भी युवा छत्रप अपनी सीटें बचाना चाह रहे हैं और पार्टी से इतर बयान दे रहे हैं।'

वो आगे कहते हैं,'फिलहाल इस बहाने कांग्रेस को यह भी मौका मिल गया है कि वह पार्टी के भीतर बड़े मुद्दों पर बहस कर आपसी राय कायम करे। तीसरी बात जिस तरह से नेताओं के अलग अलग बयान सामने आए हैं वह नेतृत्व को लेकर अनिश्चितता को बयां करता है। इसे जल्द से जल्द सुलझाया जाय तो कांग्रेस की आगे की रणनीति तय हो पाएगी। हालांकि एक बात साफ है कि इस पूरे प्रकरण से सिर्फ कांग्रेस की फजीहत हुई है। इस अराजकता का नुकसान पार्टी को उठाना भी पड़ सकता है।'

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