NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
नज़रिया
शिक्षा
भारत
राजनीति
आपको मालूम है, मतगणना के वक़्त एग्ज़ाम रूम में बैठा युवा क्या सोच रहा था?
जिस वक़्त सारा देश, टेलीविज़न पर लोकसभा चुनाव के परिणामों पर ध्यान लगाए बैठा था उस वक़्त मैं, जो 22 साल का युवा हूँ एक कॉलेज के एग्ज़ाम हाल में बैठ कर पेपर दे रहा था।
सत्यम् तिवारी
24 May 2019
Youth Exam

देश में लोकतंत्र की सबसे बड़ी लड़ाई का कल अंत हो गया। पाँच साल तक राज करने वाली सरकार बीजेपी ने इस बार और ज़्यादा मतों से जीत हासिल कर के आने वाले पाँच सालों तक देश पर राज करने की तैयारी आकर ली है। हालांकि जब हम "राज" करने की बात करते हैं तो हमें अपने द्वारा चुने गए इस शब्द पर ध्यान देना चाहिए और अब्राहम लिंकन के कथन को याद करना चाहिए जब उन्होंने कहा था कि "लोकतंत्र जनता के लिए, जनता के द्वारा और जनता की तरफ़ से होता है", ये और बात है कि गाहे-ब-गाहे लोकतंत्र की ये परिभाषा बदलती रहती है। 

जनादेश का सम्मान करना चाहिए, और जनादेश का सम्मान किया भी गया है। जनादेश का सम्मान तो तब भी किया गया था जब कांग्रेस को 84 के दंगों के फ़ौरन बाद हुए चुनावों में राजीव गांधी को प्रधानमंत्री के रूप पे चुन लिया गया था, और सम्मान आज भी किया गया है जब सांप्रदायिक हिंसा की आरोपी प्रज्ञा सिंह को चुन कर संसद तक पहुँचाया गया है।

बहरहाल, बात आज की करते हैं। आज भारत दुनिया का सबसे युवा देश है जहाँ आधी से ज़्यादा आबादी युवाओं की है। 2019 के ये लोकसभा चुनाव, जिसे देश का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव कहा गया है, उसको ध्यान में रखते हुए हमें ये देखने की ज़रूरत है, कि इन चुनाव के दौरान इस युवा देश के युवा कर क्या रहा था। 

मैं अगर गुरुवार, 23 मई की ही बात करूँ, तो जिस वक़्त सारा देश, टेलीविज़न पर लोकसभा चुनाव के परिणामों पर ध्यान लगाए बैठा था, और देश के बदलते भविष्य को देख रहा था, उस वक़्त मैं, जो 22 साल का युवा हूँ एक कॉलेज के एग्ज़ाम हाल में बैठ कर पेपर दे रहा था। ऐन उस समय मेरे दिमाग़ में लोकतंत्र के महापर्व की बात नहीं, बल्कि ये बात थी कि मुझे अपने इस पेपर में अच्छे नंबर लाने हैं। मेरी ही तरह देश के तमाम लड़के-लड़कियाँ 23 मई को परीक्षाओं में बैठे थे। दिल्ली की बात की जाए तो दिल्ली विश्वविद्यालय, इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में 23 मई को हज़ारों की संख्या में लड़के-लड़कियाँ बैठ कर पेपर दे रहे थे। उस वक़्त क्या कोई चुनी जाने वाली सरकार के बारे में सोच रहा था? शायद हाँ, लेकिन ज़्यादा ध्यान उस एक पेपर पर ही केन्द्रित था। 

दुनिया के सबसे युवा देश में जब एक पार्टी 542 में से 300 से ज़्यादा सीटें जीत आकर आती है, तो ये सवाल खड़ा करना जायज़ हो जाता है कि देश में सबसे ज़्यादा आबादी में रहने वाले युवाओं के लिए उसकी नीतियाँ क्या होंगी। और जब बात भाजपा की है, जो दोबारा चुनी हुई सरकार है और इस बार और ज़्यादा सीटें जीत कर सत्ता में आई है, तो ये ज़रूरी हो जाता है कि एक युवा होने के नाते पिछले पाँच साल के रिकॉर्ड पर भी एक नज़र रखी जाए। 

2014 में जब भाजपा की सरकार, या कहें मोदी जी की सरकार सत्ता में आई थी, उस वक़्त देश भर में 10 साल से सत्ता में रही कांग्रेस नेतृत्व की यूपीए सरकार के ख़िलाफ़ ग़ुस्सा था। भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोज़गारी, किसानों की समस्या, घोटाले, इन सब से जनता ऊब चुकी थी। जिसके बाद भाजपा ने अपने चेहरा के रूप में नरेंद्र मोदी को देश के सामने खड़ा किया। नरेंद्र मोदी ने अपनी एक इमेज स्थापित की, देश की जनता से भ्रष्टाचार मिटाने, रोज़गार दिलवाने, ग़रीबी हटाने के वादे किए, जिसकी जनता को ज़रूरत भी थी। और जनता ने मोदीजी को पूर्ण बहुमत दिया और उनसे तमाम उम्मीदें लगा कर बैठ गई। मैं इस बात का पूरा एतराफ़ करता हूँ कि 2014 में जब मैं बारहवीं में पढ़ता था, नरेंद्र मोदी की जीत पर मुझे बेहद ख़ुशी हुई थी, हालांकि उस वक़्त मेरी राजनीतिक समझ उतनी ही थी जितनी अभी मेरी समझ टेनिस के खेल को ले कर है, मुझे टेनिस के बारे में कुछ नहीं पता। मोदीजी सत्ता में आए। पाँच साल तक बेरोज़गारी को ले कर नरेंद्र मोदी ने कोई बात नहीं की। शिक्षा को ले कर भी ख़ामोशी ही तारी रही थी। 

इन पाँच सालों में छात्रों ने अलग-अलग मौक़ों पर अपने अधिकारों के लिए धरने दिये, संघर्ष किए, भूख हड़तालें कीं। रोहित वेमुला की सिस्टम से तंग आ कर की गई आत्महत्या और सरकार का चुप्पी साधे रहना, कोई भूल नहीं सकता है। सरकार ने इस सब पर कुछ नहीं बोला। एसएससी परीक्षा का घोटाला, बिहार में कॉलेजों में परीक्षा ना होना, छात्रों की मांगों को कॉलेज-यूनिवर्सिटी में अनसुना किया जाना, पाँच साल तक लगातार चलता रहा। लेकिन सरकार की तरफ़ से ना इस पर कोई बात हुई, ना ही कोई क़दम उठाए गए। दस्तावेज़ों को उठा कर देख लिया जाए तो ये सब मुद्दे आज भी अहम मुद्दे बने ही हुए हैं। 

छात्रों-युवाओं की बात करने की जगह राष्ट्रीय नरेटिव में विभिन्न तरह की भाषा को लाया गया। फ़रवरी 2016 में जेएनयू प्रकरण के बाद छात्रों को "एंटी-नेशनल" कहने का दौर ऐसा चल निकला कि आज सरकार से सवाल पूछने वाले को भी सरकार-विरोधी नहीं, देश-विरोधी कहा जाता है, टुकड़े-टुकड़े गैंग कहा जाता है, पाकिस्तान भेजने की सलाह दी जाती है। मैं आज 22

साल का हूँ। छात्रों के विरोध में, शिक्षा के विरोध में नेताओं के लगातार आते रहे बयानों का असर ये हुआ है, कि सरकार की किसी नीति की आलोचना करने पर मेरे हम-उम्रों को अपने घर में देशद्रोही कहा गया है। मैं ये सोचने पर मजबूर हो जाता हूँ, कि हमसे बड़ी उम्र के लोग, हमसे ज़्यादा अनुभव वाले लोग, एक ज़रा सा फ़र्क़ करने में कैसे चूक जाते हैं? 
जब हम ये कहते हैं कि पिछले पाँच सालों में इस सरकार ने कुछ किया ही नहीं है, तो हम ख़ुद से और इस देश से झूठ बोल रहे हैं जिसने इस बार पिछली बार से भी ज़्यादा सीटें दे कर एक पार्टी को विजयी बनाया है। 

सरकार ने ज़ाहिर तौर पर पिछले पाँच साल में काम किए हैं, लेकिन वो काम युवाओं के भविष्य के हित में नहीं, बल्कि अपने भविष्य के हित में किए हैं। युवाओं का इस्तेमाल करते हुए। जिस "मोदी-लहर" की बात 2014 में की गई थी, वो पूरे पाँच साल तक बरक़रार रही और इस लहर ने समय-समय पर युवाओं को अपनी विचारधारा की तरफ़ बहा कर ले जाने का काम किया। जो देशभक्ति, हिन्दुत्ववादी नरेटिव भाषणों से शुरू हुआ था, वो फैलते-फैलते हमारे टीवी, मोबाइल, और घरों तक पहुँच गया। और आज इस नरेटिव ने देश के एक बड़े तबक़े को रिझाने का काम किया है। यही वजह है कि हमें सांप्रदायिक हिंसा की इतनी ख़बरें सुनने को मिलीं जिनमें युवा शामिल थे, जिस "ट्रोल" आर्मी की बात की जाती है, उसमें ज़्यादातर युवा हैं, और बीजेपी के क़रीब 12 करोड़ सक्रिय में कार्यकर्ताओं में युवाओं की संख्या कहीं ज़्यादा है। 

युवाओं के लिए किए गए वादे पूरे हुए या नहीं, ये इस बात से पता चलता है कि आज देश में बेरोज़गारी की दर 45 साल में सबसे ज़्यादा है। बीजेपी द्वारा उठाए गए क़दम नोटबंदी के बाद से कई छोटी कंपनियाँ बंद हो गई थीं, जिसके सबब कई युवाओं को अपना रोज़गार छोड़ना पड़ा था। कुल मिला कर नौकरियाँ देने के बजाय, ख़त्म ही की गई हैं। 

इसी चुनाव में एक आंकड़ा ये भी सामने आया है कि कई मतदाता "मिसिंग" हैं। यानी चुनाव आयोग द्वारा बनाई गई वोटिंग लिस्ट में उनका नाम नहीं था और वो इस बार वोट नहीं कर पाए। 2018 में "मिसिंग वोटर्स" नाम से बने एक ऐप के मुताबिक़, इस लोकसभा चुनाव से क़रीब 12 करोड़ लोग, जो कि वोट करने के लिए समर्थ हैं, वोट करने में नाकाम रहे हैं। जिसमें से 7 करोड़ महिलाएँ और दलित हैं। इसी मैं भारी संख्या पहली बार वोट करने वाले युवाओं की भी है। 
इस सबके बाद आज जब देश में अगले पाँच साल के लिए बीजेपी की सरकार आ गई है। तो हमें ये बात करने की ज़रूरत है कि देश के युवा को इस दोबारा चुनी गई सरकार से क्या उम्मीदें हैं! वो क्या मुद्दे हैं जिन पर युवाओं को देश के प्रधानमंत्री से ये कहना है कि, "हम चाहते हैं आप इन चीज़ों को ले कर काम करें!" 

जैसा कि पहले बताया जा चुका है, देश में चुनाव उस समय पर हुए जिस समय पर देश भर में युवा किसी ना किसी तरह की परीक्षा की तैयारी में लगे थे। कोई कॉलेज के पेपर दे रहा था, कोई विभिन्न विश्वविद्यालयों की प्रवेश परीक्षा की तैयारी कर रहा था; और युवाओं का एक बड़ा हिस्सा नौकरियाँ पाने के लिए सरकारी पेपरों की तैयारी में लगा था। चुनावी कैम्पेन के दौरान जब सबका ध्यान देश में चुनी जाने वाली सरकार पर था, युवाओं का ध्यान अपने भविष्य पर था। 

लेकिन सोचने वाली बात ये है कि अगर कोई कॉलेज की परीक्षा दे, और उसका रिज़ल्ट आने में दो-दो साल का समय लगे तो? कोई प्रवेश परीक्षा दे कर किसी विश्वविद्यालय में पहुँचे, और उस विश्वविद्यालय को जबरन एक मज़हबी जामा पहनाए जाने की कवायद की जाई तो? या अगर कोई नौकरियों के लिए परीक्षा दे, लेकिन उस विभाग में घोटालों की वजह से पास होने वाले प्रत्याशियों के भविष्य पर दो साल, तीन साल की तीरगी (अंधेरा) छा जाए तो? 
ये बात सच है कि युवाओं का ज़्यादा ध्यान अपने ही भविष्य पर था, क्योंकि वो वही काम कर रहे हैं जो उन्हें करना है। इसीलिए एक युवा होने के नाते मैं ये भी बता सकता हूँ कि हम नेताओं से, सरकार से, प्रधानमंत्री से वही काम करने की उम्मीद करते हैं, जो उन्हें करना चाहिए। 

युवाओं पर इल्ज़ाम लगाया जाता है कि उनका काम पढ़ाई करना है, उन्हें सड़कों पर उतरने की ज़रूरत क्या है? लेकिन जब सत्ता में बैठे लोग अपना काम नहीं करेंगे तो देश का युवा अपना काम कैसे कर सकेगा? जिस चीज़ पर हमारा अधिकार है, शिक्षा का अधिकार जो हमें हमारे संविधान से मिला है, उसका हनन होगा तो हम क्या करेंगे? क्या हमें सड़कों पर उतरने की ज़रूरत पड़ेगी अगर सरकारें अपने काम ढंग से करें? और जो चीज़ हमारी है, उसे मांगने के लिए हम सड़क पर उतरेंगे तभी हमें मुहैया कारवाई जाएगी? ये किस क़दर बेरहम रवैया है! 

हमें पढ़ने की आज़ादी, अधिकार और सुविधा चाहिए। हमें नौकरी चाहिए। हमें मंदिर या मस्जिद से सरोकार नहीं है, हम किसी धर्म के नहीं हैं। हमारी नौकरियों को छीनने से पहले हमसे हमारे मज़हब पर सवाल नहीं पूछे जाते। हम उतने ही राष्ट्रवादी हैं जितना सरहद पर खड़ा जवान है, हमारा भी इस देश को आगे बढ़ाने में उतना ही योगदान है। हम इस देश की सरकार से सांप्रदायिक हिंसा नहीं, संवैधानिक सुविधाएँ चाहते हैं। हमारी उम्मीदें हैं कि निष्पक्ष भाव से वो काम किए जाएंगे जो करने के वादे 2014 में किए गए थे। 

देश का महापर्व ख़त्म हो चुका है। एक सरकार चुनी जा चुकी है। लेकिन युवाओं के मुद्दे तो अभी भी वहीं हैं। सरकारें कितनी भी बदलती रहें, हमारी उम्मीदें वहीं रहेंगी, कि कोई सरकार हो जो हमारे अधिकारों को हमें मुहैया करने के लिए कुछ काम करे।

General elections2019
entrance exam
exam paper
Delhi University
ip
youth in politics
youth issues
Indian Youth
youth
Narendra modi
Narendra Modi Government
BJP
exam papers

Related Stories

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक

ख़बरों के आगे-पीछे: केजरीवाल के ‘गुजरात प्लान’ से लेकर रिजर्व बैंक तक

यूपी में संघ-भाजपा की बदलती रणनीति : लोकतांत्रिक ताकतों की बढ़ती चुनौती

बात बोलेगी: मुंह को लगा नफ़रत का ख़ून

इस आग को किसी भी तरह बुझाना ही होगा - क्योंकि, यह सब की बात है दो चार दस की बात नहीं

ख़बरों के आगे-पीछे: क्या अब दोबारा आ गया है LIC बेचने का वक्त?

ख़बरों के आगे-पीछे: भाजपा में नंबर दो की लड़ाई से लेकर दिल्ली के सरकारी बंगलों की राजनीति

बहस: क्यों यादवों को मुसलमानों के पक्ष में डटा रहना चाहिए!

ख़बरों के आगे-पीछे: गुजरात में मोदी के चुनावी प्रचार से लेकर यूपी में मायावती-भाजपा की दोस्ती पर..


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License