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आर्टिकल 15 : एक आधी-अधूरी कोशिश!
‘कहब त लाग जाइ धक से...’ जी हां, धक से तो लगा लेकिन धड़ाक से नहीं। ‘आर्टिकल 15’ एक अच्छी फ़िल्म है, और अच्छी हो सकती थी। सभी आलोचनाओं का स्वागत किया जाना चाहिए ताकि बात आगे बढ़ सके क्योंकि बात सिर्फ़ एक फ़िल्म तक सीमित नहीं है, बल्कि बात हमारे समाज की है। प्रतिरोध और बदलाव की है।
न्यूज़क्लिक प्रोडक्शन
05 Jul 2019

‘कहब त लाग जाइ धक से...’ जी हां, धक से तो लगा लेकिन धड़ाक से नहीं। ‘आर्टिकल 15’ एक अच्छी फ़िल्म है, और अच्छी हो सकती थी। ख़ैर गुंजाइश सबके लिए है। फिलहाल फ़िल्म के निर्देशक अनुभव सिन्हा और सहलेखक गौरव सोलंकी की इस बात के लिए तारीफ़ होनी ही चाहिए कि उन्होंने एक ऐसे विषय पर फ़िल्म बनाई जिसपर लोग बात करना कम पसंद करते हैं। अब फ़िल्म का एक सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य है तो इससे उम्मीद और अपेक्षाएं भी ज़्यादा होंगी और आलोचना भी ख़ूब होगी। सभी आलोचनाओं का स्वागत किया जाना चाहिए ताकि बात आगे बढ़ सके क्योंकि बात सिर्फ़ एक फ़िल्म तक सीमित नहीं है, बल्कि बात हमारे समाज की है। प्रतिरोध और बदलाव की है।

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Ayushmann Khurana
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CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License