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आर्थिक मंदी का पंजाब में दिख रहा साफ असर
जम्मू-कश्मीर को लेकर केंद्र सरकार द्वारा लिए फैसले से तो पंजाब का कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो गया है। पंजाब में निवेश की संभावनाएं पूरी तरह समाप्त हो गई हैं। पोलट्री से लेकर कपड़ा तक जो वस्तुएं जम्मू-कश्मीर जाती थी वह पूरी तरह बंद हो गई हैं।
शिव इंदर सिंह
26 Sep 2019
Economic slowdown in India

केंद्र सरकार की गलत आर्थिक नीतियों, नोटबंदी और जीएसटी के कारण देश में छाई मंदी का असर पंजाब पर भी दिखने लगा है। पंजाब के खेती मशीनरी उद्योग व कपड़ा उद्योग काफी प्रभावित हुए हैं। कई क्षेत्रों के उद्योग बंद हो गए हैं और कई बंद होने की कगार पर हैं। ट्रैक्टरों की बिक्री में 19 प्रतिशत की कमी आई है। कई कारखाने बंद होने के कारण लोग बेरोजगार हो गए हैं। शहरों में उन मजदूरों की गिनती बढ़ी है जिन्हें महीने में महज 15 दिन ही काम मिलता है।

पंजाब में 72311.85 करोड़ रुपये की भू-राजस्व वसूली के लक्ष्य के मुकाबले 60832.28 करोड़ रुपये की वसूली हुई। जीएसटी में गिरावट लगातार जारी है। अप्रैल से जून तक 10 प्रतिशत टैक्स वसूली का लक्ष्य था लेकिन वसूली की दर 7 प्रतिशत ही रही। जुलाई और अगस्त महीनों में यह घटकर 5 प्रतिशत रह गई। साल 2018-19 की पहली तिमाही का भू-राजस्व 3617 करोड़ था जो 2019-20 में घटकर 3252 करोड़ रुपये रह गया। जीएसटी का यह घाटा 10 प्रतिशत है।

आर्थिक मामलों के जानकारों का कहना है कि नोटबंदी के साथ शुरु हुई मंदी और उसके बाद जीएसटी लागू होने से हालत और बिगड़ी है, इस कारण छोटे कारोबारी कारोबार से बाहर हो रहे हैं। अर्थशास्त्री रणजीत सिंह घुम्मन कहते हैं, '2022 तक तो जीएसटी की भरपाई केंद्र सरकार को करनी है लेकिन सवाल यह उठता है कि यदि हालत यही रही तो 2022 के बाद पंजाब का क्या बनेगा। निवेश के लिए माहौल पैदा करना होता है जो कि नहीं बन रहा है। कारोबार में आई स्थिरता के कारण लोगों की जेबों में पैसा घट गया है और उनकी खरीद शक्ति भी घट गई है।'

किसी कारोबारी से पूछने पर यही जवाब मिलता है, 'बड़ी मुश्किल से गुजारा हो रहा है।' कैप्टन सरकार के आने के बाद स्टील सिटी मंडी गोबिंदगढ़ (जिला फतेहगढ़ साहिब) की चिमनियों से धुंआ निकलना शुरू हुआ था पर निर्माण कार्य और आधारभूत ढांचे के कार्यों की धीमी गति के कारण स्टील उद्योगों में 25 फीसदी मांग घट गई है।

स्टील की कीमतें पिछले साल के मुकाबले 30 प्रतिशत घट गई हैं लेकिन फिर भी मांग नहीं बढ़ रही है। स्टील फरनैंस एसोसिएशन के प्रधान महिन्द्र गुप्ता ने कहा कि इस साल अप्रैल माह से स्टील की मांग 25 प्रतिशत घटी है।
 
अर्थशास्त्री सुच्चा सिंह गिल कहते हैं, 'केंद्र सरकार की गलत नीतियों के कारण बेरोजगारी में बढ़ोतरी हुई है। पिछले तीन-चार महीनों में स्टील और ऑटोमोबाइल के साथ जुड़े कई यूनिट बंद होने के कारण 4 लाख लोगों के रोजगार छिन गए हैं पर सरकार मंदी के हालातों पर काबू पाने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही।8

पंजाब में मंदी के प्रभाव के बारे में उन्होंने कहा कि लुधियाना व मंडी गोबिंदगढ़ के कपड़ा व स्टील उद्योग पर बुरा असर पड़ा है। खेती सेक्टर में मंदी के कारण किसान खेती करना छोड़ते जा रहे हैं और इसी कारण आत्महत्याएं नहीं रुक रहीं।

पंजाब सरकार बजट में किए गए वादों पर खामोशी साधे हुए है। वित्त मंत्री मनप्रीत बादल ने फरवरी 2019 के बजट भाषण में माना था कि पंजाब कर्जे के जाल में फंस चुका है क्योंकि 2019-20 के दौरान कर्जा बढ़ कर 229612 करोड़ रुपये होने की संभावना है।

वित्त मंत्री ने इसी सेशन में किसान, मजदूरों व खेत मजदूरों के खुदकुशी पीड़ित परिवारों के कर्जे माफ करने का वादा करते हुए बजट में 3000 करोड़ रुपये रखे थे लेकिन अब इस बारे कोई बात नहीं हो रही। बैंक किसान परिवारों को पैसा भरने के लिए मजबूर कर रहे हैं। सरकार का कहना है कि लगभग 26979 करोड़ रुपये तनख्वाह और भत्तों, 10875 करोड़ रुपये पेंशनरों पर खर्च हो जाते हैं।

खेती क्षेत्र से जुड़े उद्योगों को भी मंदी ने अपनी लपेट में ले लिया है। पंजाब में खेती-बाड़ी के औजार बनाने वाले छोटे कारखानेदारों की एसोसिएशन के प्रधान बलदेव सिंह अनुसार, 'खेती के धंधे से जुड़े छोटे उद्योगों को हांलाकि पिछले कई सालों से वित्तीय संकट का सामना करना पड़ रहा है पर जब से ताजा मंदहाली का दौर शुरू हुआ है तब से स्थिति और गंभीर हो गई है। ट्रैक्टरों की बिक्री जिस तरह 19 प्रतिशत तक घटी है उसी हिसाब से कंबाईनों और अन्य मशीनों की बिक्री में भी गिरावट आई है।'

भारत में ट्रैक्टरों व खेती मशीनरी का कुल कारोबार 40 हजार करोड़ रुपये का है और इस में से 25 हजार करोड़ रुपये के ट्रैक्टर बिकते है और 15 हजार करोड़ रुपये की मशीनरी बिकती है।

पंजाब के मामले में देखा जाए तो ट्रैक्टरों व मशीनरी का कुल कारोबार 5 हजार करोड़ रुपये के करीब है। इस तरह खेती मशीनरी एक बड़ा उद्योग है। वर्तमान वित्तीय वर्ष के शुरुआती महीनों में बिक्री 19 प्रतिशत थी। ट्रैक्टर उद्योग से जुड़े व्यक्तियों का बताना है कि अगस्त महीने के दौरान ट्रैक्टरों की बिक्री में और ज्यादा गिरावट आई है।

खेती मशीनरी के छोटे उद्योगों से जुड़े व्यक्तियों का कहना है इस धंधे में आई स्थिरता का सीधा असर ग्रामीण अर्थव्यवस्था पर पड़ता है क्योंकि खेती-बाड़ी के छोटे उद्योगों के साथ 70 प्रतिशत से अधिक व्यक्ति ग्रामीण क्षेत्र से संबंधित हैं।

औद्योगिक शहर लुधियाना भी आर्थिक मंदी की मार से बच नहीं सका है। कारखानेदारों के अनुसार यदि जल्दी ही हालात ठीक नहीं हुए तो आने वाले समय में कई उद्योग बंद होने की कगार पर पहुंच जाएंगे।

चैम्बर ऑफ इंडस्ट्रीयल एण्ड कमर्शिअल अंडरटेकिंग (सीआईसीयू) के प्रधान उपकार सिंह आहूजा बताते हैं कि देश इस समय आर्थिक मंदी की मार झेल रहा है। इसका सबसे अधिक प्रभाव ऑटो सेक्टर पर पड़ा है।

फैडरेशन ऑफ पंजाब स्मॉल इंडस्ट्री एसोसिऐशन के प्रधान बदीश जिंदल ने कहा कि सरकार ने नोटबंदी करके अर्थव्यवस्था को कैशलैस करना था पर असल में उद्योगों को ही कैशलैस कर दिया। उन्होंने कहा कि मंदी का असर इतना है कि मैनुफैक्चरिंग इंडैक्स जो किसी समय 14 प्रतिशत होता था वह मौजूदा समय सिर्फ 0.6 प्रतिशत रह गया है।

हर क्षेत्र में उद्योग गिरावट में जा रहा है। ऑटो इंडस्ट्री में 40 प्रतिशत, साईकिल उद्योग में 30 प्रतिशत, हौज़री में भी 25 से 30 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है। इस बार त्यौहारों का सीज़न भी अच्छा गुजरता नज़र नहीं आ रहा।

जम्मू-कश्मीर के बारे में केन्द्र सरकार द्वारा लिए फैसले से तो पंजाब का कारोबार बुरी तरह प्रभावित हो गया है। पंजाब में निवेश की संभावनाएं पूरी तरह समाप्त हो गई हैं। पोलट्री से संबंधित जो वस्तुएं जम्मू-कश्मीर जाती थी वह पूरी तरह बंद हो गई हैं। पाकिस्तान के साथ व्यापार बंद हो गया है, सरहद पर स्थिति तनावपूर्ण हो गई है जिस कारण कोई भी पंजाब में निवेश करने के लिए तैयार नहीं होगा।

पहले ही आर्थिक मंदी का सामना कर रहा कपड़ा उद्योग (टैक्सटाइल) अब कश्मीर बंद होने के कारण और भी बुरी तरह प्रभावित हो गया है। सर्दी के मौसम में शाल और गर्म कपड़ा ज्यादातर अमृतसर से ही कश्मीर भेजा जाता है। यहां बनने वाले कम्बल, ट्वीड और फिरन के कपड़ों की बड़ी मंडी कश्मीर है। अमृतसर से जाने वाला कपड़ा पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में भी सप्लाई किया जाता है।

अगस्त से नवम्बर के महीनों में यह व्यापार अपने शिखर पर होता है। इस दौरान माल तैयार करने की जल्दी होती है और तैयार माल की कश्मीर में निरंतर सप्लाई होती है जिसकी रकम का भुगतान भी साथ-साथ चलता है। इस व्यापार से लाखों लोगों को रोजगार मिला हुआ है पर अब कश्मीर के हालात बुरे होने के कारण टैक्सटाइल उद्योग पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है।

इस समय अमृतसर का कपड़ा उद्योग 50 प्रतिशत ही काम कर रहा है। पावरलूम उद्योग से जुड़े जोगिन्दर मौंगा ने बताया कि उनके पास 20-20 पावरलूम्स के दो यूनिट है। मंदी के कारण दोनों यूनिट्स में एक-एक शिफ्ट ही चल रही है। उन्होंने बताया कि कश्मीर बंद होने के कारण कारखानेदारों की कश्मीर के व्यापारियों से लेने वाली रकम भी रुक गई है।

बठिंडा में दर्जन के करीब बैटरी और इन्वर्टर उद्योगों को ताले लग गए हैं और इन उद्योगों में काम करने वाले तकनीकी वर्कर रेहड़ी लगाने को मजबूर है। नरमा पट्टी (अमेरिकन कॉटन) वाले क्षेत्र में भी मंदी का इतना असर हुआ है कि लेबर चौक पर मजदूरों की भीड़ बढ़ने लगी है।

नरमा पट्टी क्षेत्र में 12 वर्ष पहले 432 कपास मिलें थी, जिनमें करीब 45000 वर्कर्स थे। अब सिर्फ 56 कपास मिलें बाकी बची हैं, जिनमें सिर्फ 5000 मजदूर रह गए हैं। सीधे तौर पर 40,000 मजदूर बेरोजगार हुए हैं।

कपास मिल ऐसोसिएशन के प्रधान भगवान दास बंसल कहते हैं कि सरकारी नीतियों ने मिल मालिकों को पूरी तरह झिंझोड़ दिया है और मजदूरों से रोजगार छिन गया है। उन्होंने मांग की कि कपास मिलों की मार्केट फीस राजस्थान के बराबर की जाए।

बठिंडा की एसएम बैटरीज़ के मालिक धर्मेन्द्र सिंह का कहना है कि छोटे उद्योगों को उत्साहित करने की जरूरत है क्योंकि रोजगार का बड़ा मौका छोटे उद्योग देते हैं।

आंकड़ों के अनुसार मालवा क्षेत्र में इंडस्ट्री ग्रोथ सेन्टर अभी तक सफल नहीं हो सके हैं। नरमा पट्टी में मजदूर तबका काम की तलाश में है। बठिंडा, बरनाला, फिरोजपुर, फरीदकोट और अन्य बड़े शहरों से अब मजदूर खाली हाथ घरों को लौटते हैं। नरमे का क्षेत्र कम हुआ है जिस कारण गांवों में खेत-मजदूरों को काम नहीं मिलता।

बठिंडा के लेबर चौक में गांवों से आने वाले मजदूरों की संख्या बढ़ी है। इस चौक में अब मलोट, अबोहर और जैतो जैसे आस-पास के कस्बों के मजदूर भी खड़े होते हैं। बठिंडा चौक में करीब 2 हजार मज़दूर इकट्ठे होने लगे हैं। एक साल पहले कभी यह संख्या 1300 से अधिक नहीं हुई थी।

बीबीवाला गांव का मजदूर गुरदीप सिंह बताता है कि एक साल से इतनी मंदी आ गई है कि एक महीने में 10 से 12 दिन खाली लौटना पड़ता है। नत्था सिंह नाम का मजदूर बताता है कि महीने में 15 दिन काम नहीं मिलता जिस कारण उसे अपनी बेटी को स्कूल से हटाना पड़ा। असल में आर्थिक मंदी ने पंजाब को हर पक्ष से प्रभावित किया है।

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