NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
आर्थिक सर्वे: जो कहा है उसकी तो चर्चा ही नहीं है
आर्थिक सर्वे को सिर्फ उसी नज़र से मत पढ़िए जैसा अख़बारों की हेडलाइन ने पेश किया है। इसमें आप नागरिकों के लिए पढ़ने और समझने के लिए बहुत कुछ है।
रवीश कुमार
30 Jan 2018
अरुण जेटली
Image Courtesy : News Nation

आर्थिक सर्वे को सिर्फ उसी नज़र से मत पढ़िए जैसा अख़बारों की हेडलाइन ने पेश किया है। इसमें आप नागरिकों के लिए पढ़ने और समझने के लिए बहुत कुछ है। दुख होता है कि भारत जैसे देश में आंकड़ों की दयनीय हालत है। यह इसलिए है ताकि नेता को झूठ बोलने में सुविधा रहे। कहीं आंकड़ें सोलह साल के औसत से पेश किए गए हैं तो कहीं आगे पीछ का कुछ पता ही नहीं है। आप नहीं जान पाते कि कब से कब तक का है। मुख्य आर्थिक सलाहकार ने माना कि भारत में रोज़गार को लेकर कोई विश्वसनीय आंकड़ा नहीं है। फिर भी झूठ बोलने वाले नेता कभी पांच करोड़, कभी सात करोड़ रोज़गार देने का दावा कर देते हैं।

अरविंद सुब्रमण्यन ने पिछले आर्थिक सर्वे में कहा था कि जीडीपी की दर 6.75 से 7 प्रतिशत रहेगा। उनका कहना है कि मौजूदा वित्त वर्ष के अंत अंत तक 6.75 हो जाएगी, जबकि मुख्य सांख्यिकी अधिकारी ने 6.5 प्रतिशत रहने का दावा किया है। अब नया दावा है कि जी डी पी रेट 7 से 7.75 प्रतिशत रहेगी। इसका आधार है कि अर्थव्यवस्था में वापसी हो रही है। जब पटरी से उतरने के बाद पटरी पर आते हैं तो उसी को वापसी कहते हैं।

मैंने इस सर्वे को पढ़ते हुए खोजना शुरू किया कि मेक इन इंडिया का प्रदर्शन कैसा है। सड़क निर्माण क्षेत्र, लघु एवं मध्यम उद्योग सेक्टर, टेक्सटाइल सेक्टर, चमड़ा एवं जूता, टेलिकाम सेक्टर, खेती इन सबका क्या हाल है। क्यों यही वो सेक्टर हैं जो रोज़गार पैदा करते हैं।

सड़क निर्माण का हाल बुरा लगता है....

पहले सड़क निर्माण क्षेत्र की बात करते हैं। इसके केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी हैं। इनकी बहुत तारीफ होती है कि काफी पेशेवर मंत्री हैं। लगते भी हैं। मगर अफसोस कि इनके मंत्रालय का प्रदर्शन का अच्छा डेटा इस सर्वे में नहीं है। शायद लिया नहीं गया होगा या दिया नहीं गया है। मैं क्यों ऐसा कह रहा हूं क्योंकि दो चैप्टर में सड़क निर्माण क्षेत्र का ज़िक्र आया है। दोनों ही जगह इनके दौर में बनी सड़कों के आंकड़े नहीं मिलते हैं। आर्थिक सर्वे नहीं बता सका है कि सड़क निर्माण क्षेत्र में प्रति किलोमीटर कितने लोगों को रोज़गार मिलता है। मैंने यह सवाल मुख्य आर्थिक सलाहकार से किया और कोई जवाब नहीं मिला।

2001 से 2016 के बीच सड़कों की लंबाई बताने का क्या मतलब। क्या 2014 से 2016 के बीच सड़कों की लंबाई का आंकड़ा बताने लायक नहीं है? 2001 में 34 लाख किमी से ज़्यादा लंबी सड़कें बन गईं थीं। 2016 तक इनकी लंबाई 56 लाख किलोमीटर से ज़्यादा हो गई है। आर्थिक सर्वे बार बार नेशनल हाईवे, स्टेट हाईवे की लंबाई ही बता रहा है। मगर चार साल की प्रगति का अंदाज़ा नहीं दे रहा है। जब यही नहीं बताना था तो आर्थिक सर्वे में सड़क का ज़िक्र ही क्यों किया।

एक पैमाना मिल ही गया जिससे पता चलता है कि सड़क निर्माण क्षेत्र में उतना अच्छा प्रदर्शन नहीं है। स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे में बदलने के लिए राज्यों ने केंद्र के पास 64000 किमी के प्रस्ताव भेजे हैं। केंद्र सरकार ने 10,000 किमी ही बदलने का प्रस्ताव स्वीकार किया है। इसमें से भी 3180 किमी सड़क को ही राजकीय राजमार्ग से राष्ट्रीय राजमार्ग में बदला जा चुका है।

मध्य प्रदेश में मात्र 9 किमी स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे में बदला जा सका है। असम में मात्र 6 किमी स्टेट हाईवे को नेशनल हाईवे में बदला गया है। कर्नाटक में मात्र 70 किमी, पश्चिम बंगाल में मात्र 46 किमी और बिहार में मात्र 160 किमी। बिहार में रक्सौल मोतिहारी हाईवे का आज तक बुरा हाल है। मौजूदा सरकार का चार साल बीत चुका है। ये है शानदार माने जाने वाले नितिन गडकरी जी का शानदार रिकार्ड।

अब ये आंकड़ा देखिए तो होश उड़ जाएंगे कि विज्ञापन, धारणा से अलग सच्चाई कहां कहां होती है। आर्थिक सर्वे लिखता है कि 2012-13 में रोड सेक्टर में जितना लोन दिया गया था उसका मात्र 1.9 प्रतिशत ही एन पी ए हुआ यानी बर्बाद हुई। 2017-18 में रोड सेक्टर में एन पी ए 20.3 प्रतिशत हो गया है। यह सामान्य से ज़्यादा है। दलील दी जाती है कि पहले से चला आ रहा था। इस बात में गेम ज़्यादा लगता है, सच्चाई कम।

वैसे भी अगर आप देखेंगे कि रोड सेक्टर में कितना नया कर्ज़ आया तो पता चल जाएगा कि सड़कें हवा में बन रही हैं। 2012-13 में रोड सेक्टर को लोन मिला 1 लाख 27,430 करोड़ का। 2017-18 तक मात्र 60,000 करोड़ अतिरिक्त लोन मिला है। यानी बैंक इस सेक्टर को लोन नहीं दे रहे हैं। लोन नहीं मिल रहा है तो ज़ाहिर है काम हवा में हो ही रहा होगा। इस बात के बाद भी मैं रोज़ देखता हूं कि दिल्ली सीमा पर स्थित गाज़िपुर से सरायकाले खां तक हाईवे का निर्माण शानदार तरीके से हो रहा है।

एक और आंकड़ा है। सड़कों की लंबाई बढ़ी तो वाहनों की संख्या भी कई गुना बढ़ी। इसमें कार, बाइक और स्कूटर ही ज़्यादा हैं। ट्रकों की संख्या कम बढ़ी है। सर्वे के एक और चैप्टर में इसी से जुड़े लाजिस्टिक सेक्टर का ज़िक्र है जिसमें संभावना तो है मगर चार साल में भावना ही भावना हासिल की जा सकी है।

अब आते हैं लघु एवं मध्यम उद्योग सेक्टर पर...

इस सेक्टर को बहुत कम लोन मिला है जबकि इसके लिए मुद्रा योजना बनाई गई है। आर्थिक सर्वे बताता है कि 2017 तक 260.41 अरब रुपये का कर्ज़ बंटा है। इसका 82.6 प्रतिशत हिस्सा बड़े उद्योगों को मिला है। मात्र 17.4 हिस्सा लघु एवं मध्यम उद्योग को मिला है। तो मुद्रा की पोल खुल जाती है।

आर्थिक सर्वे बताता है कि 2016-17 में मुद्रा के तहत 10.1 करोड़ लोगों को 1 लाख 80 हज़ार कर्ज़ दिया गया। इसका प्रति व्यक्ति औसत होता है 17,822 रुपये। इतने कम के लोन से रोज़गार उन लोगों की समझ में पैदा होता है जो किसी भी नेता से यह बकवास सुन लेते हैं कि मुद्रा से 8 करोड़ रोज़गार पैदा हुआ है। आप 17,822 रुपये से कितने लोगों को काम पर रख सकते हैं।
अभी तक आपने दो सेक्टर का हाल देखा, अब मेक इन इंडिया का हाल देखते हैं।

मेक इन इंडिया में कुछ भी नहीं मिला बताने लायक....

मेक इन इंडिया के कॉलम में बताने लायक कुछ भी नहीं दिखा, इसलिए आर्थिक सर्वे ने सिर्फ ज़िक्र कर् छोड़ दिया है। 25 सितंबर 2014 में मेक इन इंडिया लांच हुई थी। इसके लिए दस चैंपियन सेक्टर का चुनाव हुआ था और लक्ष्य रखा गया था कि इनमें ग्रोथ को डबल डिजिट में रखा जाएगा। किसी सेक्टर में आज तक हासिल नहीं हुआ और न ही सेक्टर के हिसाब से आंकड़े दिए गए हैं। मेक इन इंडिया पर आर्थिक सर्वे की चुप्पी बहुत कुछ कह देती है।

बहरहाल आप दस चैंपियन सेक्टर जान लें और खुद भी गूगल कर लें। टेक्सटाइल एंड अपेरल, इलेक्ट्रानिक सिस्टम, केमिकल्स, बायोटेक्नालजी, डिफेंस एंड एयरोस्पेस, फार्मा सेक्टर, लेदर एंड फुटवियर।

टेक्सटाइल और टेलिकाम सेक्टर का अलग से ज़िक्र है मगर समस्याओं का ही है। टेलिकाम सेक्टर में तूफान मचा है। नई नौकरियां बन रही हैं और पुरानी जा रही हैं। हज़ारों लोगों की नौकरियां गईं हैं। टेक्सटाइल में आर्थिक सर्वे में सुधार का दावा किया गया है मगर त्रिशुर और सूरत की कहानी से तो ऐसा नहीं लगता है। टेक्सटाइल पर पहले भी अपने फेसबुक पेज पर विस्तार से लिख चुका हूं।

अब आते हैं आठ कोर सेक्टर पर

इसमें से पांच में विकास दर 10.7 प्रतिशत है और 3 में निगेटिव। कुल मिलाकर आठों सेक्टर की प्रगति का रेट 3.9 है जो 2016-17 में 4.6 प्रतिशत था।

आपने देखा कि रोज़गार देने के जितने भी महत्वपूर्ण सेक्टर हैं उनसे बहुत जल्दी कोई उम्मीद नहीं है। आर्थिक सर्वे बताता है कि आम हिन्दुस्तानियों की बचत में काफी कमी आई है। 2011-12 में 23.6 प्रतिशत था, 2015-16 के बीच 19.2 प्रतिशथ हो गया। हाउसहोल्ड सेविंग 2011-12 में 68 फीसदी थी, 2015-16 में 59 फीसदी हो गई है। बचत में क्यों कमी आई है? रोज़गार और मज़दूरी नहीं बढ़ रही है? सर्वे में क्यों का जवाब नहीं है।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश का खूब ढिंढोरा पीटा जा रहा है। 2015-16 की तुलना में 2017-18 में मात्र 5 बिलियन डालर बढ़ा है। इस वक्त कुल प्रत्यक्ष विदेशी निवेश 60 अरब डालर के करीब है। मारीशस, सिंगापुर और जापान से पैसा आ रहा है। मारीशस का नाम सुनकर ही कान खड़े हो जाते हैं।

आर्थिक सर्वे ने बताया है कि विदेशी निवेश का सबसे अधिक 19.97 प्रतिशत पैसा टेलिकाम सेक्टर में जा रहा है मगर वहां तो रोज़गार पैदा नहीं हो रहा है। इसका मतलब है कि इस सेक्टर में फिर से कुछ गेम हो रहा है। 2 जी की तरह इस बार भी सब इस गेम में बच निकलेंगे। ये मेरा शक है।

खेती का हाल बताने की ज़रूरत नहीं है। भारत के किसानों की औसत आमदनी महीने की दो हज़ार रुपये भी नहीं हैं। 2022 तक अगर इनकी आमदनी दुगनी हो गई तो भारत के किसान मर जाएंगे। उन्हें 2022 में 4000 प्रति माह कमाने के सपने दिखाए जा रहे हैं। किसानों का क्या होगा, राम जाने। वैसे किसानों के लिए मंदिर निर्माण का मुद्दा ठीक रहेगा। उसकी बहस में कई साल की खेती निकल जाएगी। पता भी नहीं चलेगा।

एक और आंकड़ा है। भारत से जो भी निर्यात होता है उसका 70 फीसदी हिस्सा पांच राज्यों से जाता है। तमिलनाडू, कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और तेलंगाना। इसका मतलब है कि निर्यात में ग्रोथ रेट के बढ़ने का लाभ यूपी, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, बंगाल जैसे राज्यों को नहीं मिलता है। सोलह राज्यों का निर्यात में मात्र 3 फीसदी हिस्सा है। लेकिन निर्यात बढ़ने की सबसे अधिक खुशी बिहार यूपी में ही मनाई जा सकती है। नहीं जानने के कितने सुखद परिणाम होते हैं।

आपने कई महत्वपूर्ण सेक्टर का हाल देखा। क्या आपको पता चला कि इनमें इतनी तेज़ी आ रही है कि नौकरियां बढ़ेंगी? आर्थिक सर्वे के आंकड़ों की खुशहाली आपको मुबारक। अगर सुधार होता है, तेज़ी आती है तो सबको लाभ होगा। हम तेज़ी से जा रहे थे मगर सुधार के नाम पर एक घोटाला हुआ। नोटबंदी। दुनिया का सबसे बड़ा आर्थिक अपराध।

गनीमत है कि लोकप्रियता इस आर्थिक अपराध से बचा ले गई और लोग भूल गए। हिम्मत भी नहीं जुटा पाए। रिज़र्व बैंक भी चुप रह गया। उम्मीद है कि आज के समय का कोई सरकारी अर्थशास्त्री कभी इस अपराध पर किताब लिखेगा लेकिन तब कोई फायदा नहीं होगा।

आर्थिक सर्वे आप खुद भी पढ़ें। इसकी वेबसाइट भी आसान है। कोच्ची के रहने वाले जार्ज जैकब ने आर्थिक सर्वे का कवर डिज़ाइन किया है। जैकब आर्किटेक्ट हैं और डिज़ाइनिंग का काम करते हैं। दुनिया में इनकी डिज़ाइन किए हुए स्पीकर की बड़ी धूम रहती है। जैकब ने कवर डिज़ाइन का काम निशुल्क किया है।

रवीश कुमार की facebook वॉल से साभार I

आर्थिक सर्वे 2018
अरुण जेटली
मोदी सरकार
रवीश कुमार

Related Stories

किसान आंदोलन के नौ महीने: भाजपा के दुष्प्रचार पर भारी पड़े नौजवान लड़के-लड़कियां

सत्ता का मन्त्र: बाँटो और नफ़रत फैलाओ!

जी.डी.पी. बढ़ोतरी दर: एक काँटों का ताज

5 सितम्बर मज़दूर-किसान रैली: सबको काम दो!

रोज़गार में तेज़ गिरावट जारी है

लातेहार लिंचिंगः राजनीतिक संबंध, पुलिसिया लापरवाही और तथ्य छिपाने की एक दुखद दास्तां

माब लिंचिंगः पूरे समाज को अमानवीय और बर्बर बनाती है

अविश्वास प्रस्ताव: दो बड़े सवालों पर फँसी सरकार!

क्यों बिफरी मोदी सरकार राफेल सौदे के नाम पर?

अविश्वास प्रस्ताव: विपक्षी दलों ने उजागर कीं बीजेपी की असफलताएँ


बाकी खबरें

  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के मामलों में क़रीब 25 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई
    04 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,205 नए मामले सामने आए हैं। जबकि कल 3 मई को कुल 2,568 मामले सामने आए थे।
  • mp
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    सिवनी : 2 आदिवासियों के हत्या में 9 गिरफ़्तार, विपक्ष ने कहा—राजनीतिक दबाव में मुख्य आरोपी अभी तक हैं बाहर
    04 May 2022
    माकपा और कांग्रेस ने इस घटना पर शोक और रोष जाहिर किया है। माकपा ने कहा है कि बजरंग दल के इस आतंक और हत्यारी मुहिम के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट होकर विरोध कर रहा है, मगर इसके बाद भी पुलिस मुख्य…
  • hasdev arnay
    सत्यम श्रीवास्तव
    कोर्पोरेट्स द्वारा अपहृत लोकतन्त्र में उम्मीद की किरण बनीं हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं
    04 May 2022
    हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं, लोहिया के शब्दों में ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य’ निभा रही हैं। इन्हें ज़रूरत है देशव्यापी समर्थन की और उन तमाम नागरिकों के साथ की जिनका भरोसा अभी भी संविधान और उसमें लिखी…
  • CPI(M) expresses concern over Jodhpur incident, demands strict action from Gehlot government
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जोधपुर की घटना पर माकपा ने जताई चिंता, गहलोत सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग
    04 May 2022
    माकपा के राज्य सचिव अमराराम ने इसे भाजपा-आरएसएस द्वारा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करार देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं अनायास नहीं होती बल्कि इनके पीछे धार्मिक कट्टरपंथी क्षुद्र शरारती तत्वों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल
    04 May 2022
    भारत का विवेक उतना ही स्पष्ट है जितना कि रूस की निंदा करने के प्रति जर्मनी का उत्साह।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License