NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कला
आर्ट गैलरी: कलाकार और कला प्रवीणता की कसौटी?
इन ऑनलाइन कला प्रदर्शनियों ने सबकी पोल खोल कर रख दी है। इस समय देश के कला संकायों में शैक्षिक स्तर चिंताजनक है। कला प्रवीण गुरूओं की कमी होती जा रही है।
डॉ. मंजु प्रसाद
29 Aug 2021
art
लाॅस्ट इन वेब ऑफ मेमोरीस, अम्लांकन छापा माध्यम, 66× 50 सें॰ मी ॰, चित्रकार: सावित्री पाल

किसी कलाकृति का सृजन एक गहरी सोच, आत्मअनुभूति और नवीन कल्पना के तहत होता है। जिससे एक बढ़िया कलाकृति सबके सामने प्रस्तुत होती है। इस समय कलाकारों और कलाकृतियों की बाढ़ आ गई है। परंतु इन ऑनलाइन कला प्रदर्शनियों ने सबकी पोल खोल कर रख दी है। इस समय  देश के कला संकायों  में शैक्षिक स्तर चिंताजनक है। कला प्रवीण गुरूओं की कमी होती जा रही है। एक विख्यात कला संकाय में मेरी एक मित्र की सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त की गई थी। वहां आए दिन कला व्याख्यान होते रहते थे। छात्र औपचारिक रूप से मात्र अपनी उपस्थिति दर्शाने के लिए उपस्थित रहते थे। उस कला महाविद्यालय  के पास ले दे कर एकाध ही वरिष्ठ कला विशेषज्ञ होते हैं,   कला पर व्याख्यान देने वाले। मुझे लगता है कला प्रवीणता है तो बोलना भी आ जायेगा। नये विचारों, नये अनुभवों को सामने आने देने की जरूरत है।

कला-प्रवीण होना, कला सिद्धांत में प्रवीणता सम्पन्न होना अब महत्वपूर्ण नहीं रह गया। महत्वपूर्ण है अगर आप आत्मविश्वास से भरपूर हैं और फ्रीलांसर हैं। फिर भी अगर कोई युवा कलाकार चाहे कि कलाशिक्षा में सर्वोत्कृष्ट अंक हासिल कर ढेरों पुरस्कार प्राप्त कर  कला प्रवीण हो जाए तो गारंटी नहीं है कि वह कला शिक्षा देने योग्य हो। एक नवनिर्मित और शोहरत हासिल करते हुए कला संकाय में शामिल हुई मेरी आत्मीय मित्र ने साक्षात्कार का स्व अनुभव बताया ''वहां बहुत कम पद घोषित किये गये थे इसके बावजूद पूरे देश से चयनित कलाकार बंधु आमंत्रित थे। वहां सबको पता चल गया कि पात्र ( कैंडिडेट ) पहले से ही तय है । इसलिए साक्षात्कार लेने वाले दिग्गज आत्म मनोरंजन के मूड में थे, इसलिए सभी कलाकारों से बेतुके प्रश्न करते हुए विहंसित हो रहे थे, आह्लादित हो रहे थे। बेचारे अभ्यर्थी निराश थे। मेरी उस मित्र ने बताया कि एक प्रतिभासम्पन्न मूर्तिकार अभ्यर्थी एक बड़े ट्रक में भर के अपनी मूर्तियां लाया था लेकिन साक्षात्कार लेने वाले महानुभाव लोग उसकी कृतियों का जाकर अवलोकन भी नहीं किया। मजाक बनके रह गये अभ्यर्थी। पहले से तय कैंडिडेट चयनित हो गये।"

इससे ज्यादा मार्मिक और दुखद बयान किया, मेरे एक और मित्र ने अपने साक्षात्कार के बारे में। दरअसल एक विख्यात कला संकाय में असिस्टेंट प्राध्यापक हेतु कई पद निकले। जिसको विज्ञापन द्वारा जोर शोर से प्रचारित किया  गया । बड़े जोशो खरोश से योग्य वरिष्ठ कलाकारों से लेकर अत्यंत नवकलाकारों ने आवेदन किया। पूरे देश से सभी अभ्यर्थियों को आमंत्रण मिला और लगभग सभी खुशी खुशी उपस्थित थे। कड़ी सुरक्षा में लिखित परीक्षा हुई। लिखित परीक्षा का परिणाम घोषित हुए बगैर दूसरे दिन से संगीनों के साये में साक्षात्कार होने लगा । वहां भी बड़ी हास्यापद स्थिति थी, वहां भी सभी साक्षात्कार लेने वाले आदरणीय वरिष्ठ कलाकार प्राध्यापक पूरे मनोरंजन का लुत्फ़ लेने की मुद्रा में थे, उन्होंने खूब आनंद उठाया, अपने उटपटांग प्रश्नों से अभ्यर्थियों को खूब चिढ़ाया। अभ्यर्थी निश्चिन्त थे की इतने ज्यादा सुरक्षित माहौल में वास्तव उनके साथ न्याय होगा। पर नहीं, पता चलता है कि लिखित इम्तिहान के दूसरे दिन ही गुप्त ढंग से कुछ खास अभ्यर्थियों के अलग से इम्तिहान लिए जाते हैं और रातों रात उनकी नियुक्ति भी हो जाती है।' 

तो ये आलम है हिन्दी भाषी क्षेत्रों में कला शिक्षण संस्थाओं में कला प्रवीण गुरूओं का, कि वो किस माध्यम से आते हैं। तब वो छात्रों को क्या सिखाते होंगे इस पर प्रश्नचिह्न लग जाता है। इससे किसी भी कला मर्मज्ञ को तकलीफ भी नहीं हुई।  इसका कोई विरोध भी नहीं होता। सब संतुष्ट हैं!! निज़ाम-ए- इंतजामिया का कहना है, ;- 'सब नजर  का फेरा है,सब दृष्टि भ्रम है, सर्वशक्तिमान की इच्छा प्रबल है, 'होई हैं वही जो राम रचि राखा'। अतः जजमान- "मुदौ आंख कतौ  कछु नाही" ।

सच माने तो वास्तविक कलाकार, कला सिद्धांतकार इन सभी बातों से परे होता है । ये माहौल उनकी कला साधना में बाधक ही हैं। इसके कई उदाहरण हैं कि कई महत्वपूर्ण कलाकारों ने इन स्थितियों से बचने के लिए अपनी स्थायी नौकरियों पर लात मारी है , और  गहन कला साधना में अपने को संलग्न कर उत्कृष्ट कला सृजन किया है।

बहुधा नौकरी कलासृजन को बाधित ही करती है, यदि आप अपने मूल्यों पर अध्यापन करते हैं। प्रख्यात चित्रकार और जयपुर आर्ट्स कालेज में प्रिंसिपल सुरेन्द्र जोशी जो अब हमारे बीच नहीं हैं; वे वैचारिक और नवीन सृजन तभी कर पाये जब वह अपने प्राचार्य पद को त्याग कर स्वतंत्र हुए। प्रो. सुरेन्द्र जोशी के शुरुआती दौर के कई प्रभावशाली रेखाचित्र मुझे देखने का सुअवसर मिला है। आज भी लखनऊ के कई युवा कलाकारों की रेखांकन शैली सुरेन्द्र जोशी के रेखांकन शैली से प्रेरित नजर आती हैं। उन्होंने 1980 में लखनऊ के आर्ट्स एण्ड क्राफ्ट कालेज में दाखिला लिया। 1988 में उन्होंने राजस्थान कॉलेज ऑफ आर्ट में जयपुर फाईन आर्ट्स फैकल्टी में अध्यापन शुरू किया। सुरेन्द्र जोशी प्रयोगात्मक कला सृजन करते थे। उन्हें म्यूरल बनाने में रुचि थी अतः उन्होंने खूब सारे म्यूरल बनाये जो देश के महत्वपूर्ण स्थलों पर स्थापित हुए। 1997 में उन्हें ब्रिटिश फैलोशिप मिली । फलस्वरूप ब्रिटेन में उन्होंने म्यूरल पर ही काम किया। नौकरी को स्वतंत्र कलासृजन में बाधा पाकर उन्होंने स्वैच्छिक सेवानिवृति ले लिया। प्रो. सुरेन्द्रपाल जोशी का प्रारम्भिक जीवन बड़ा संघर्षशील और अभावों वाला था। परंतु निरंतर मेहनत और लगन से उन्होंने उत्कृष्ट भारतीय कलाकारों में अपना स्थान बनाया। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी अपनी जन्मभूमि उत्तराखंड (देहरादून) में 2015 में 'उत्तराखंड समकालीन कला संग्रहालय की स्थापना'।

फ्रीलांसिंग में जोखिम बहुत है, लेकिन आप किसी के गुलाम नहीं होते हैं।  उदाहरणस्वरूप उत्तर प्रदेश की प्रसिद्ध छापा चित्रकार सावित्री पाल (दिवंगत) को ही लें बहुत ही कर्मठ संवेदनशील कलाकार थीं। अम्लांकन विधा पर उनकी पूरी पकड़ थी। उन्होंने कई वर्षों तक लखनऊ कला महाविद्यालय में अस्थायी प्राध्यापक के तौर पर अध्यापन किया। छात्रों में लोकप्रिय थीं। लेकिन उत्तर प्रदेश का कला जगत पुरूष वर्चस्ववादी रहा है। यहाँ प्रतिभासम्पन्न होने के बावजूद महिला कलाकार स्वतंत्र रूप से पनप नहीं पाई। अतः संघर्षों और तमाम प्रयत्नों के बावजूद सावित्री पाल को लखनऊ कला महाविद्यालय में जगह नहीं मिल पायी। सावित्री पाल का जीवन संघर्षशील था, यह उनकी कला कृतियों में सहज ही हम देख सकते हैं। उदाहरण स्वरूप उनकी ' लॉस्ट इन द वेब ऑव मेमोरीस'  अम्लांकन विधि, 66×50 सें.मी. कलाकृति बहुत महत्वपूर्ण मानी जा सकती है। दूसरी कलाकृति ' फेस  टू फेस' , अम्लांकन 120 × 100 सें.मी. भी महत्वपूर्ण है।

फेस टू फेस , छापा चित्र, अम्लांकन विधि, 120×100 सें ॰ मी ॰ , चित्रकार: सावित्री पाल

सावित्री पाल लखनऊ कला महाविद्यालय से ही स्नातक थीं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से उन्होंने छापा चित्रकला में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की  थी। उन्होंने अपने बहुत सुन्दर और बेहतरीन कलाकृतियों के बदौलत छात्रवृत्ति, पुरस्कार आदि प्राप्त किया था। उनके शुरुआती कलाकृतियों में आम भारतीयों के  संघर्षशील जीवन ही चित्रित हैं । बाद में  उन्होंने मुम्बई के एक मशहूर चित्रकार से शादी कर लीं। लेकिन वे अनवरत अपने कला सृजन में लगीं रहीं। बनारस में अध्ययन के दौरान सावित्री पाल मुझसे सीनियर थीं। मैं हास्टल में पहली बार गई थी, उनके साथ ने मुझे पहली बार अपने दम पर जीना सिखाया। मुम्बई जाने के बाद वे मुझे लखनऊ, राष्ट्रीय ललित कला अकादमी के रीजनल सेंटर में 2007 में  मिलीं थीं। उन्होंने वहां अम्लांकन विधा में कई छापाचित्र निकाले। उन चित्रों में स्त्री-पुरूष के भावनात्मक संबंधों का चित्रण है। स्त्री पुरूष आकृतियों के साथ फूलों और कलियों का अंकन है। सावित्री पाल से ये मेरी आखिरी मुलाकात थी ।

''फिंजा का रंग बदलेगा, बुलबुलें गातीं रहेंगी, वीराना चमन बनता रहेगा''। कलाकार रचते रहेंगे, सिरजते रहेंगे !! 

(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप हाल में ही लखनऊ से पटना शिफ्ट हुईं हैं। आप पेंटिंग के अलावा ‘हिन्दी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)


बाकी खबरें

  • भाषा
    ईडी ने फ़ारूक़ अब्दुल्ला को धनशोधन मामले में पूछताछ के लिए तलब किया
    27 May 2022
    माना जाता है कि फ़ारूक़ अब्दुल्ला से यह पूछताछ जम्मू-कश्मीर क्रिकेट एसोसिएशन (जेकेसीए) में कथित वित्तीय अनिमियतता के मामले में की जाएगी। संघीय एजेंसी इस मामले की जांच कर रही है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    एनसीबी ने क्रूज़ ड्रग्स मामले में आर्यन ख़ान को दी क्लीनचिट
    27 May 2022
    मेनस्ट्रीम मीडिया ने आर्यन और शाहरुख़ ख़ान को 'विलेन' बनाते हुए मीडिया ट्रायल किए थे। आर्यन को पूर्णतः दोषी दिखाने में मीडिया ने कोई क़सर नहीं छोड़ी थी।
  • जितेन्द्र कुमार
    कांग्रेस के चिंतन शिविर का क्या असर रहा? 3 मुख्य नेताओं ने छोड़ा पार्टी का साथ
    27 May 2022
    कांग्रेस नेतृत्व ख़ासकर राहुल गांधी और उनके सिपहसलारों को यह क़तई नहीं भूलना चाहिए कि सामाजिक न्याय और धर्मनिरपेक्षता की लड़ाई कई मजबूरियों के बावजूद सबसे मज़बूती से वामपंथी दलों के बाद क्षेत्रीय दलों…
  • भाषा
    वर्ष 1991 फ़र्ज़ी मुठभेड़ : उच्च न्यायालय का पीएसी के 34 पूर्व सिपाहियों को ज़मानत देने से इंकार
    27 May 2022
    यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बृजराज सिंह की पीठ ने देवेंद्र पांडेय व अन्य की ओर से दाखिल अपील के साथ अलग से दी गई जमानत अर्जी खारिज करते हुए पारित किया।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    “रेत समाधि/ Tomb of sand एक शोकगीत है, उस दुनिया का जिसमें हम रहते हैं”
    27 May 2022
    ‘रेत समाधि’ अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतने वाला पहला हिंदी उपन्यास है। इस पर गीतांजलि श्री ने कहा कि हिंदी भाषा के किसी उपन्यास को पहला अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार दिलाने का जरिया बनकर उन्हें बहुत…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License