NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कला
आर्ट गैलरी: समकालीन कलाकारों की कृतियों में नागर जीवन
हर समय परिस्थितियों से ग्रसित झुंझलाया आदमी, इनके बीच शांतिप्रिय कलाकार, चित्रकार। सभी कुछ झेलता है। इससे मुक्ति पाने का रास्ता है सृजन चाहे वो सुरुचिपूर्ण हो या विरूपित।
डॉ. मंजु प्रसाद
19 Sep 2021
painting

रोजमर्रा जीवन की गहमा-गहमी, उससे प्रभावित आम आदमी, मकानों का बेतरतीब सपाट अनाकर्षक ढांचा, कोलाहल भरी दुनिया, शोरशराबा, चिखचिख-झिकझिक, हर समय परिस्थितियों से ग्रसित झुंझलाया आदमी, इनके बीच शांतिप्रिय कलाकार, चित्रकार। सभी कुछ झेलता है। इससे मुक्ति पाने का रास्ता है सृजन चाहे वो सुरुचिपूर्ण हो या विरूपित। बहुतेरे कलाकारों ने शहरी जीवन को अपना कला विषय बनाया है।

प्रसिद्ध चित्रकार रामकुमार ( जन्म शिमला में  1924 - मृत्यु 2000) के शुरुआत के चित्रों में उदासी और विषादपूर्ण भाव वाली मानव आकृतियां,दृश्य चित्र और नगर चित्रण प्रमुख है। बाद के चित्रों को देखें तो पायेंगे अमूर्त या प्रतीकात्मक रूप में नगर या स्थापत्य तो है, पेड़ है लेकिन मनुष्य गायब है। बनारस जैसे विविधतापूर्ण रंगीन शहर को भी वो रंगों के सपाट धब्बों ( पैच ) में चित्रित करते हैं। वे रंग कभी उदासी वाले, दुख वाले या कभी शोख उल्लसित से  प्रतीत होते हैं।

 

चित्रकार : रामकुमार, शीर्षक- लद्दाख मिनिस्ट्री, माध्यम: ऐक्रेलिक, साभार : भारत की समकालीन कला

नगर के जीवन में वास्तव में लोग हैं, भीड़ है लेकिन मानव है कहाँ? मानवीय संवेदनशीलता नहीं रही, सहिष्णुता नहीं रही, भाईचारा नहीं रहा। सभी रोजाना के पेट पालने के जद्दोजहद में  रोबोट के समान मशीनी  रूप में तब्दील हो गये हैं।

तब रामकुमार जैसा संवेदनशील चित्रकार क्या करे?

अतः अपने चित्रों में उन्होंने मानव आकृतियों को गायब कर दिया।

वास्तव में रामकुमार हमारे देश के बेहतरीन कलाकारों में थे, जिन्होंने मौन रहकर अकथ्य को रंगों में भावप्रवणता से सजीव ढंग से दृश्यमान कर दिया।

उनके चित्रों में मार्मिक आत्म साक्षात्कार है।  रामकुमार वैचारिक रूप  से ईमानदार और समृद्ध थे। वे कला समीक्षक और कथाकार भी थे। डॉ. बीके राव तथा डॉ. जाकिर हुसैन जैसे शिक्षक ने एमए में, सेण्ट स्टीफेन कॉलेज में  उन्हें पढ़ाया था । रामकुमार ने कला अध्ययन शारदा उकिल स्कूल ऑफ आर्ट में लिया था। 1949 - 50 में पेरिस में रहे, जहां वे फ्रांसीसी कवियों, लेखकों जिनमें पॉल एलुआर जैसे विशिष्ट कवि आदि के संपर्क में आये।  वहीं वे साम्यवादी विचारकों के भी करीब आये। दिल्ली 'शिल्पीचक्र' के कलाकारों से उनका संबंध स्थापित हुआ।   

उनके साथ और फ्रांसीसी कलाकारों के साथ उन्होंने समूह प्रदर्शनियां कीं। तकनीकी पर उनकी बहुत अच्छी पकड़ थी। रामकुमार ने ढेरों रेखाचित्र बनाया। वे देश के महत्वपूर्ण कलाकारों में से थे।

विकास भट्टाचार्या (जन्म कोलकता में 21 जून 1940 – मृत्यु 18 दिसम्बर 2006) भी ऐसे चित्रकारों में से रहे  हैं जिन्होंने बंगाल के आम मध्यम वर्ग को अपना चित्र  विषय बनाया है। मैंने छात्र जीवन से ही उनके द्वारा सृजित  ढेर सारे चित्र  देखे हैं। उनकी शैली में यथार्थवादी और अयथार्थवादी कला शैली का मौलिक अंकन है। उनकी प्रसिद्ध चित्र श्रृंखला 'डॉल  सीरीज (1960 ) बहुत ही प्रभावशाली हैं। एक चित्र में  यांत्रिक होते माँ-पिता खिलौने के रूप में निष्क्रिय से पड़े हैं। एक पेंटिंग में  क्रूर निष्ठुरता से सड़कों पर फेंकी हुई बच्चियाँ खिलौने के रूप में चित्रित हैं।

चित्रकार: विकास भट्टाचार्य, शीर्षक: आनलुकर, कोलाज माध्यम, साभार: भारत की समकालीन कला एक परिपेक्ष्य

विकास भट्टाचार्या ने आधुनिक और अमानवीय होते हुए अंध-विश्वासी समाज को भी चित्रित किया है। वह समाज जो निर्बल महिलाओं को डायन घोषित कर देता है, जो जबरिया औरतों को देवी के रूप में स्थापित कर सामान्य जीवन से वंचित कर देता है। दरअसल इन चित्रकारों के चित्रों को समझने के लिए  संजीदगी और विचारवान होना आवश्यक है। आप सतही रूप से चलते चलते इन्हें नहीं  समझ  पायेंगे।

विकास भट्टाचार्या  के  चित्र  यथार्थवादी होते हैं मानो चित्र में वास्तविक आम लोग मौजूद हैं,फोटोग्राफी के समान,जैसे फोटो लिया गया हो लेकिन औरतें, पुरूष, बच्चे निर्जीव से नजर आते हैं। ये पेंटिंग संवेदना को झकझोर देती है ।

गुलाम मोहम्मद शेख (जन्म 1937 सुरेन्द्र नगर, सौराष्ट्र) भारत  के महत्वपूर्ण चित्रकार रहे हैं। 'बड़ौदा में एमए की शिक्षा प्राप्त करने के बाद वे वहीं के कला इतिहास के प्रोफेसर हो गये। 1963 में जब 'ग्रुप 1890 ' की स्थापना तब वे काफी सक्रिय रहे।' - ( साभार: भारतीय चित्रकला का विकास )। 

गुलाम मोहम्मद शेख के कुछ चित्र बहुत महत्वपूर्ण हैं। लम्बी अनुपस्थिति के बाद घर वापसी ( रिटर्निंग होम आफ्टर लांग एब्सेंस), बोलती सड़क ( स्पीकिंग स्ट्रीट) तथा 'सड़क बिकाऊ' है । ' मनुष्य' शीर्षक चित्र में मनुष्य द्वारा मनुष्य को गुलाम बनाकर उसका शोषण करने पर करारा व्यंग है।'

चित्रकार: गुलाम मोहम्मद शेख, दि हिस्ट्री ऑफ लाइफ, (अंश) कैनवास पर तैलरंग , साभार: भारत की समकालीन कला एक परिपेक्ष्य 
'शहर बिकाऊ है' गुलाम शेख का एक अन्य प्रसिद्ध चित्र है। यह 1981 में आरंभ होकर 1984 में  पूर्ण हुआ। 259.5 गुणा 320.5 से. मी. आकार का यह चित्र विक्टोरिया तथा अल्बर्ट संग्रहालय लंदन ने क्रय कर लिया है। इस चित्र की प्रेरणा शेख को बड़ौदा के हिन्दू मुस्लिम दंगो से मिली । इसमें भारत के किसी भी
बड़े शहर के जीवन की समस्त जटिलताएं हैं और इसे किसी भी शहर से सम्बंधित माना जा सकता है। चित्र के केन्द्र में  'सिलसिला'  फिल्म भी प्रदर्शित होती दिखाई  गयी है क्योंकि चित्रकार ने आधुनिक शहरी  वास्तविकता, क्रूरता तथा चारित्रिक पतन के सिलसिले के पीछे बम्बई के फिल्मों को उत्तरदायी माना।'

गुलाम मोहम्मद शेख की चित्रण शैली भारतीय लघु चित्र शैली से प्रभावित है।

गुलाम मोहम्मद शेख चित्रकार, छापा  चित्रकार, कला समीक्षक, लेखक कवि भी हैं । वे कविताएं गुजराती में लिखते हैं और कला समीक्षा अंग्रेजी में।  'गुलाम मोहम्मद शेख के अनुसार 'भारतीय चित्रकला का चित्र' धुंधला है, दिशा साफ नहीं है। पिछले 20--25 सालों में हम कुछ जागृत हुए हैं,समस्याओं को समझने लगे हैं। कला एक कला है का रहस्य, पश्चिमी विचारधारा का प्रभाव हम पर खूब पड़ा। अब धीरे - धीरे घर की वापसी हो रही है। बदले हुए माहौल में यह सजगता सामने आयी है कि हमारे उद्देश्य पश्चिमी कला से अलग है',  (साभार ; भारतीय चित्रकला का विकास)

भारत में ऐसे ही कई कलाकार हुए हैं या हैं जिन्होंने मानव पीड़ा, त्रासदी को झेला है या उसका सामना किया है लेकिन मौन नहीं रहे हैं। वरन सजग होकर अपनी कलाकृतियों में उतारा है , बड़ी ही कुशलता से।

(लेखिका डॉ. मंजु प्रसाद एक चित्रकार हैं। आप इन दिनों पटना में रहकर पेंटिंग के अलावा ‘हिन्दी में कला लेखन’ क्षेत्र में सक्रिय हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Paintings

Related Stories

पर्यावरण, समाज और परिवार: रंग और आकार से रचती महिला कलाकार

विवान सुंदरम की कला : युद्ध और मानव त्रासदी की मुखर अभिव्यक्ति

स्मृति शेष : कलम और कूँची के ‘श्रमिक’ हरिपाल त्यागी


बाकी खबरें

  • मनोलो डी लॉस सैंटॉस
    क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति
    03 Jun 2022
    क्यूबा में ‘गुट-निरपेक्षता’ का अर्थ कभी भी तटस्थता का नहीं रहा है और हमेशा से इसका आशय मानवता को विभाजित करने की कुचेष्टाओं के विरोध में खड़े होने को माना गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
    03 Jun 2022
    जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्यसमाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं है।
  • सोनिया यादव
    भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल
    03 Jun 2022
    दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट भारत के संदर्भ में चिंताजनक है। इसमें देश में हाल के दिनों में त्रिपुरा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों के साथ हुई…
  • बी. सिवरामन
    भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति
    03 Jun 2022
    गेहूं और चीनी के निर्यात पर रोक ने अटकलों को जन्म दिया है कि चावल के निर्यात पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
  • अनीस ज़रगर
    कश्मीर: एक और लक्षित हत्या से बढ़ा पलायन, बदतर हुई स्थिति
    03 Jun 2022
    मई के बाद से कश्मीरी पंडितों को राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास के लिए  प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के तहत घाटी में काम करने वाले कम से कम 165 कर्मचारी अपने परिवारों के साथ जा चुके हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License