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कविता

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  • समाज
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    ...कैसा समाज है जो अपनी ही देह की मैल से डरता है
    26 Jul 2020
    “और मैं बार-बार पूछता रहूंगा वही एक पुराना सवाल-यह दुनिया ऐसी क्यों है?”, वरिष्ठ कवि अरुण कमल को पढ़ना अपने समय-समाज की एक पूरी यात्रा करना है। एक मुठभेड़ भी। आज ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं उनकी…
  • Sunday Poem
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    क्या हुआ छिन गई अगर रोज़ी, वोट डाला था इस बिना पर क्या!
    12 Jul 2020
    “अक़्ल की बात और भक्तों से/ अक़्ल पे पड़ गए हैं पत्थर क्या!”, हिन्दी के प्रसिद्ध आलोचक, शिक्षक और संस्कृतिकर्मी आशुतोष कुमार ने अपनी रचना में बहुत ही शानदार ढंग से व्यंग्यात्मक लहज़े में समय-समाज का…
  • इतवार की कविता
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    ‘इतवार की कविता’: मेरी चाहना के शब्द बीज...
    05 Jul 2020
    “…जो चाहते हैं एक पक्के ग्लास का गमला/ थोड़ी सी मिट्टी/ और जीने के लिये पानी/ चाहते हैं फूल बनकर/ जीवन में सुगंध सौंदर्य का सुवास”। ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं कवि-संस्कृतिकर्मी श्याम कुलपत की…
  • poverty
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    मुफ़्त में राहत नहीं देगी हवा चालाक है...
    28 Jun 2020
    ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं मशहूर शायर ओम प्रकाश नदीम की कुछ शानदार ग़ज़लें।
  • shaukat azmi
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    उठ मेरी जान मेरे साथ ही चलना है तुझे
    24 Nov 2019
    बेहतरीन कलाकार, कैफ़ी आज़मी की हमसफ़र और शबाना आज़मी की मां शौक़त कैफ़ी आज़मी को याद करते हुए ‘इतवार की कविता’  में आज पढ़ते हैं कैफ़ी आज़मी की नज़्म ‘औरत ’।
  • वीरेनियत-3
    मुकुल सरल
    "ज़र्द पत्तों का बन, अब मेरा देस है…"
    29 Sep 2018
    ‘वीरेनियत-3’ की शाम एक उपलब्धि की तरह थी जब एक साथ एक से बढ़कर एक कवि-शायर गौहर रज़ा, असद ज़ैदी, देवी प्रसाद मिश्र, प्रभात, पंकज चतुर्वेदी, आर चेतन क्रांति, अनुराधा सिंह और फ़रीद खान फ़रीद सुनने को…
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CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License