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    न्यूज़क्लिक डेस्क
    मैं हिन्दुस्तान की बेटी हूं... हर रंग में मैं मिलती हूं
    08 Mar 2020
    महिला दिवस की मुबारकबाद के साथ ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं उम्मे कुलसुम की नज़्म जो उन्होंने लखनऊ के घंटाघर में सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलन के दौरान सुनाई।
  • violence
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    उसने गोली चलाई और कहा, 'सर जी! हालात कंट्रोल में हैं'…
    01 Mar 2020
    दिल्ली में हुई दर्द और नफ़रत से भरी हिंसा और दिल्ली पुलिस की भूमिका पर लगे सवालिया निशान के बीच, हम आपके बीच साझा कर रहे हैं शाहबाज़ रिज़वी की एक ग़ज़ल, और इदरीस बाबर की एक नज़्म।
  • sunday Poem
    रघवीर सहाय
    हँसो तुम पर निगाह रखी जा रही जा रही है
    23 Feb 2020
    हँसते हँसते किसी को जानने मत दो किस पर हँसते हो...’ इतवार की कविता में आज पढ़ते हैं प्रसिद्ध कवि और पत्रकार रघुवीर सहाय की कविता ‘हँसो हँसो जल्दी हँसो’।
  • shaheen bagh
    अशोक रावत
    “बाहर निकलो डरना छोड़ो...ज़िंदा हो तो मरना छोड़ो”
    16 Feb 2020
    ‘इतवार की कविता’ में आज पढ़ते हैं हमारे दौर के अहम शायर अशोक रावत की दो ग़ज़लें।
  • Modi bhakt
    ओम प्रकाश नदीम
    भक्त है ये इसकी चाबी भर गई तो भर गई…
    09 Feb 2020
    'इतवार की कविता' में आज पढ़ते हैं शायर ओमप्रकाश नदीम की एक ग़ज़ल
  • shaheen bagh
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : आप अंधे, गूंगे, बहरे हैं...
    02 Feb 2020
    नागरिकता क़ानून का विरोध कर रहे नागरिकों को धर्म के आधार पर बाँटने की राजनीति हो रही है। इस नफ़रत के दौर में हम आपके बीच साझा कर रहे हैं शहबाज़ रिज़वी की नज़्म "हम मिट्टी से बने हैं साथी..."
  • republic day
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : साहिर लुधियानवी की नज़्म 26 जनवरी
    26 Jan 2020
    भारत के 71वें गणतंत्र दिवस पर हम आपके साथ साझा कर रहे हैं साहिर लुधियानवी की नज़्म '26 जनवरी'।
  • shaheen bagh
    सौम्य मालवीय
    कोई तो काग़ज़ होगा…!
    19 Jan 2020
    इतवार की कविता : ना कोई साया/ ना छावज होगा/ पर कोई तो काग़ज़ होगा!
  • shaheen bagh
    शोभा सिंह
    धड़कती आज़ादी शाहीन बाग़ में...
    12 Jan 2020
    "करोड़ों लोगों के निर्वासन का दुख/ इस ठंडी रात से बड़ा है क्या?” , 'इतवार की कविता' में पढ़ते हैं शोभा सिंह की एक नई कविता।
  • Faiz Ahamad faiz
    फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
    चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहीं आई...
    05 Jan 2020
    फ़ैज़ ने एक नहीं ऐसी तमाम नज़्में-ग़ज़लें कहीं हैं जो हमारे हुक्मरां, हमारे शासक को परेशान करती हैं, चुनौती देती हैं, सवाल पूछती हैं। ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं उन्हीं की ऐसी ही एक नज़्म ‘सुब्ह-ए…
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CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License