NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
भारत
स्वर्ण उद्योग की चमक पड़ी फीकी; कारीगर अब बेच रहे सब्ज़ी, बने फेरी वाले
महामारी के दौरान एमएसएमई क्षेत्र की आभूषण ईकाइयां, जो अनुमानतः देश में मौजूद पांच लाख आभूषण इकाईयों के लगभग 60% हिस्से का प्रतिनिधित्व करती हैं, सबसे बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं।
रबीन्द्र नाथ सिन्हा
18 Aug 2021
Jewellery makers

महामारी ने अचानक से कई प्रवासी आभूषण कारीगरों की पेशेवर पहचान को बदलकर रख दिया है। छोटे और मझौले (एमएसएमई) क्षेत्र के स्वर्ण आभूषण व्यवसाय पर कोविड की मार को झेल पाने में असमर्थता को देखते हुए, ऐसे असंख्य कारीगर मुंबई और महाराष्ट्र के अन्य शहरों से पश्चिम बंगाल के अपने मूल स्थानों के लिए पलायन कर गये हैं। यहाँ उनकी नई पहचान सब्जी विक्रेताओं, रिक्शा चालकों, और टोटो ड्राइवरों एवं फेरी वालों की बन चुकी है। ये कारीगर मुख्य तौर पर पीस-रेट पर काम करके अपनी आजीविका कमा रहे थे। 

लघु एवं मध्यम-आकार की आभूषण इकाइयों, जो देश में मौजूद अनुमानतः पांच लांख आभूषण इकाइयों के लगभग 60% हिस्से का प्रतिनिधित्व करती हैं, को इस दो-चरण वाली महामारी ने सर्वाधिक प्रभावित किया है।

भारतीय स्वर्णकार महासंघ (आईजीएफ) के मुंबई स्थित अध्यक्ष, कालीदास सिन्हा रॉय ने न्यूज़क्लिक को बताया कि तकरीबन 1.5 लाख कारीगरों में से लगभग 45 प्रतिशत लोगों को मुंबई और यहाँ तक कि महाराष्ट्र के द्वितीय दर्जे के शहरों में जीवन-यापन के लिए उच्च लागत को देखते हुए यहाँ से विदा होने के लिए मजबूर होना पड़ा है। कारीगरों के पास अपने मूल स्थानों हुगली, हावड़ा, पुरबा और पश्चिम मेदिनीपुर सहित पश्चिम बंगाल के कुछ अन्य जिलों में नए सिरे से शुरूआत करने के सिवाय कोई और चारा नहीं बचा था।

सिन्हा रॉय का कहना था “इस बात की कोई गारंटी नहीं है कि निकट भविष्य में इस व्यवसाय में कोई तेजी देखने को मिले। कोविड-19 के पहले चरण के खत्म होने के बाद कई कारीगर वापस लौट आये थे। किंतु विनाशकारी दूसरे चरण और तीसरी लहर के आसन्न भय के चलते उनकी हिम्मत टूट चुकी है।”

गुजरात में भी, बांग्ला-भाषी कारीगरों ने अहमदाबाद सहित भुज, आनंद, नडियाड, बड़ौदा, राजकोट और सूरत जैसे आभूषण व्यवसाय के अन्य केन्द्रों से पलायन कर लिया है।

अहमदाबाद स्थित समस्त बंगाली समाज एसोसिएशन के अध्यक्ष रऊफ शेख़ के मुताबिक, अहमदाबाद में बड़े आभूषण व्यवसायों ने छोटी ईकाइयों को खरीदना शुरू कर दिया है। बड़े और संपन्न संस्थानों ने उन इकाइयों को भी अपने निशाने पर ले रखा है जो नियमित और बेहतर आय के आश्वासन के साथ काम को आउटसोर्स किया करते थे। गुजरात में बंगाली भाषी कारीगरों की संख्या तकरीबन एक लाख हुआ करती थी, लेकिन पिछले डेढ़ वर्षों के दौरान उनमें से कई लोग पश्चिम बंगाल वापस जा चुके हैं।

गुवाहाटी स्थित निखिल असम स्वर्ण शिल्पी समिति के जैनल आबेदीन के अनुसार, कोलकाता-स्थित थोक विक्रेताओं एवं स्थापित आभूषण घरानों ने अपनी पैठ बनाकर स्थानीय स्तर पर निर्मित किये जाने वाले आभूषण व्यवसायों के कामकाज को प्रभावित किया है। “हालाँकि, स्वर्ण आभूषणों के प्रति अभी भी लोगों में दीवानगी बनी हुई है, लेकिन कोलकाता के बने हार, चैन, चूड़ियों और अंगूठियों के लिए प्राथमिकता में लगातार इजाफा हो रहा है।”

असम में 1990 के दशक के मध्य तक, तकरीबन 2.5 लाख कारीगर इस मिश्रित एवं जटिल काम के विभिन्न पहलुओं में कार्यरत थे, जिसमें आभूषणों की डिजाइनिंग, मोल्डिंग, कास्टिंग, पॉलिशिंग और अलंकृत करने का काम शामिल है। कारोबार के आकार के सिकुड़ते जाने के बाद यह संख्या घटकर अब एक लाख रह गई है। आबेदीन का आगे कहना था कि अन्य 1.5 लाख कारीगरों में से अधिकाँश ने कृषि और उससे संबंधित गतिविधियों को अपना लिया है।

दक्षिण भारत में स्वर्ण आभूषणों के प्रति पारंपरिक दीवानगी के चलते वहां पर स्थिति उतनी खराब नहीं है। बेंगलुरु आधारित बंगाली स्वर्णशिल्पी एसोसिएशन के अध्यक्ष, सुशील मंडल का इस बारे में कहना था कि “कोविड के कारण कारोबार की मात्रा में गिरावट के बावजूद कुल-मिलाकर हम अपने काम-काज को जारी रख पाने में कामयाब रहे हैं।” उन्होंने आगे कहा कि “कुछ कारीगर अपने मूल स्थानों के लिए यहाँ से जा चुके हैं, लेकिन इस सबसे हमारे कारोबार पर कोई व्यवधान नहीं पड़ा है।”

वहीं हैदराबाद आधारित बंगाली स्वर्णकार संघ के महासचिव, महितोष जाना तो मंडल की तुलना में कुछ अधिक ही आशावादी लग रहे थे। न्यूज़क्लिक के साथ अपनी बातचीत में उन्होंने बताया “ग्राहकों की भीड़ और लेनदेन दिख रहा है। सोने की ऊँची कीमतें भले ही कुछ हद तक बाध्यकारी कारक बने हुये हैं, लेकिन सोने के आभूषणों के प्रति अभी भी यहाँ पर काफी आकर्षण बना हुआ है। हम आगामी गणेश पूजा की प्रतीक्षा कर रहे हैं।”

गिरते कारोबार और तीसरी कोविड लहर की आशंकाओं के बीच, 16 जून से अनिवार्य तौर पर हॉलमार्किंग को लागू कर दिए जाने से आभूषण विक्रेताओं के लिए एक चिंता का विषय बना हुआ है। आभूषण विक्रेताओं ने औपचारिक रूप से इस फैसले का स्वागत किया है- क्योंकि यह “ग्राहकों के लिए सोने की शुद्धता और बेहतरीन क्वालिटी का आश्वासन देता है”- लेकिन वे भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के दिशानिर्देशों बेहद सख्त महसूस कर रहे हैं।

आर्थिक मंदी और बीआईएस दिशानिर्देशों ने आईजीएफ जैसे एमएसएमई क्षेत्र के आभूषण विक्रेता संघों को एकजुट कर दिया है, जिसका गठन लगभग दो साल पहले किया गया था और इसके तहत करीब 70 क्षेत्रीय संघ शामिल हैं। उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच के समक्ष अनिवार्य रूप से हॉलमार्किंग लागू करने के संबंध में एक रिट याचिका दायर की है। 

बीआईएस ने आभूषण विक्रेताओं को नए नियमों के साथ तालमेल बिठाने के लिए 31 अगस्त तक का समय दिया है। यदि कोई आभूषण विक्रेता बिना बीआईएस हॉलमार्क के सोने के आभूषण बेचता हुआ पाया जाता है तो मालिक को उत्पाद की कीमत का पांच गुना जुर्माना लगाया जा सकता है या उसे एक साल तक कैद भी हो सकती है।

उपभोक्ता मामलों के विभाग के साथ जौहरी एसोसिएशन की मुख्य शिकायतों में से एक यह है कि बीआईएस ने यह निर्णय (क्या करें और क्या न करें) सिर्फ बड़े आभूषण घरानों के संघों के साथ मिलकर लिया है।

कोलकाता स्थित बंगीय स्वर्णशिल्पी समिति के महासचिव और नई दिल्ली आधारित अखिल भारतीय स्वर्णकार संघ के तगर पोद्दार ने कहा कि बीआईएस आभूषणों को कम संख्या, जैसे कि तीन, चार या पांच पीस में स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। न्यूज़क्लिक  के साथ अपनी बातचीत में पोद्दार का कहना था “एमएसएमई क्षेत्र के आभूषण विक्रेताओं से एक बार में ही बड़ी संख्या में गहनों को जांच के लिए जमा करने की उम्मीद करना बेहद हास्यास्पद है। यदि वे ऐसा करते हैं, तो वे अपने एमएसएमई के दर्जे को खो देंगे।”

इसके अलावा, हॉलमार्किंग केन्द्रों की कमी को देखते हुए स्टॉक-इन-ट्रेड हॉलमार्किंग हासिल कर पाना संभव नहीं है। रिट याचिका में कहा गया है कि हॉलमार्किंग केन्द्रों की संख्या कुल जरूरत के मात्र 34 प्रतिशत के बराबर है, और कम से कम 488 जिले ऐसे हैं जहाँ पर ये केंद्र नहीं हैं। याचिका में कहा गया है कि “लगभग 6,000 करोड़ आभूषण हैं, जिन पर हॉलमार्क का निशान लगाये जाने की जरूरत है।

artisan unemployemnt
gold karigar
gold impurity

Related Stories


बाकी खबरें

  • भाषा
    महाराष्ट्र : एएसआई ने औरंगज़ेब के मक़बरे को पांच दिन के लिए बंद किया
    19 May 2022
    महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रवक्ता गजानन काले ने मंगलवार को कहा था कि औरंगजेब के मकबरे की कोई जरूरत नहीं है और उसे ज़मींदोज़ कर दिया जाना चाहिए, ताकि लोग वहां न जाएं। इसके बाद, औरंगाबाद के…
  • मो. इमरान खान
    बिहार पीयूसीएल: ‘मस्जिद के ऊपर भगवा झंडा फहराने के लिए हिंदुत्व की ताकतें ज़िम्मेदार’
    19 May 2022
    रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदुत्ववादी भीड़ की हरकतों से पता चलता है कि उन्होंने मुसलमानों को निस्सहाय महसूस कराने, उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुँचाने और उन्हें हिंसक होकर बदला लेने के लिए उकसाने की…
  • वी. श्रीधर
    भारत का गेहूं संकट
    19 May 2022
    गेहूं निर्यात पर मोदी सरकार के ढुलमुल रवैये से सरकार के भीतर संवादहीनता का पता चलता है। किसानों के लिए बेहतर मूल्य सुनिश्चित करने की ज़िद के कारण गेहूं की सार्वजनिक ख़रीद विफल हो गई है।
  • एम. के. भद्रकुमार
    खाड़ी में पुरानी रणनीतियों की ओर लौट रहा बाइडन प्रशासन
    19 May 2022
    संयुक्त अरब अमीरात में प्रोटोकॉल की ज़रूरत से परे जाकर हैरिस के प्रतिनिधिमंडल में ऑस्टिन और बर्न्स की मौजूदगी पर मास्को की नज़र होगी। ये लोग रूस को "नापसंद" किये जाने और विश्व मंच पर इसे कमज़ोर किये…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में आज फिर कोरोना के मामलों में क़रीब 30 फ़ीसदी की बढ़ोतरी 
    19 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटो में कोरोना के 2,364 नए मामले सामने आए हैं, और कुल संक्रमित लोगों की संख्या बढ़कर 4 करोड़ 31 लाख 29 हज़ार 563 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License