NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
पाकिस्तान
अर्थव्यवस्था
अशुद्ध सोने की बढ़ती सप्लाई से कारीगर को सबसे ज्यादा नुकसान!
अतिरिक्त काम के बोझ के अलावा कारीगरों को अक्सर धातु की अशुद्धता दूर करने के लिए अपने स्वयं के सोने का इस्तेमाल करना पड़ता है। इसके लिए उन्हें अपने मालिकों से कोई क्षतिपूर्ति भी नहीं मिलती है।

रबींद्र नाथ सिन्हा
14 Aug 2019
gold

कोलकाता: वर्तमान में उत्तम घोराई और रामप्रसाद हैत जैसे कारीगरों के लिए सोने की गुणवत्ता को लेकर चिंता एक अन्य कारण है। उन्होंने मुंबई के भीड़भाड़ वाले लेकिन प्रसिद्ध आभूषण बनाने वाले इलाक़े में कई वर्षों तक अपना पसीना बहाया है।

अस्तित्व के लिए उनका संघर्ष जारी है,कुछ हद तक परिस्थितियों में सुधार हो सकता है लेकिन वह कार्यस्थल जहां वे सोने की गुणवत्ता को लेकर सोचते हैं कि उन्हें आगे इसका समाधान करना है वह अब शोषण करने वाले स्थान में बदल रहा है।

देश के अन्य स्थानों पर कई कारीगरों द्वारा साझा किए गए कारीगरों की चिंता की तरह घोराई और हैत की चिंता बेईमान सोना-चांदी डीलरों और ज्वेलर्स द्वारा 24 कैरेट शुद्ध धातु के नाम पर अशुद्ध सोने की बढ़ती आपूर्ति से उपजी है। इस घटना की जानकारी सबसे पहले उत्तर भारत में आभूषण व्यापार के संगठित क्षेत्र हुई जो अब खासकर पिछले एक साल में अन्य क्षेत्रों में फैल गई है।

न्यूज़क्लिक द्वारा पूछे गए सवालों के लिखित जवाब में बुलियन एंड ज्वेलर्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय सचिव सुरेंद्र मेहता ने कहा कि ये स्थिति कारीगरों पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है क्योंकि उनके पास दुकानदार (सेठ) द्वारा दिए गए आभूषण की मांग के ऑर्डर को पूरा करने के अलावा कोई विकल्प नहीं है। दुकानदार गुणवत्ता और डिजाइन पर उपभोक्ता विशिष्टताओं को पूरा करने का काम करते हैं। कारीगरों का कहना है कि वे इस सच्चाई के बावजूद बुरा महसूस करते हैं कि उन्हें दिए गए धातु की गुणवत्ता 99.5 ही है इसके अलावा उन्हें मिश्र धातु मिलाने के लिए कहा जाता है। वे कहते हैं कि उन्हें जो कहा जाता है उसके अनुसार मिश्र धातु जोड़ने के लिए कहा जाता है।

वे कहते हैं कि सोने की जांच करने पर अक्सर वे 99.45की अशुद्धता पाते हैं। खुद को संतुष्ट करने के लिए वे दुबारा जांच करते हैं और यहां तक कि इसकी तीसरी पार्टी द्वारा जांच की जाती है लेकिन उन्हें सेठ के पास जाने की हिम्मत नहीं होती और कहते हैं कि जो धातु उन्हें दी गई थी उसमें ज़्यादा अशुद्धता है। इस प्रक्रिया के दौरान जांच में सामान्य से अधिक समय लगता है। इसके अलावा कारीगरों का काम अब अतिरिक्त अशुद्धता को दूर करना हो गया है। जो इसे और कठिन बनाता है वह ये कि यह सब तय समय में करना है क्योंकि दुकानदार ने संबंधित उपभोक्ता को पहले ही डिलीवरी की तारीख़ दे दी है।

कई बार चीजें ऐसे होती हैं कि ऑर्डर दिए गए धातु को बेहतर करने के लिए कारीगरों को उनके पास बुरे वक्त के लिए मौजूद इस क़ीमती धातु के इस्तेमाल करना पड़ता है। उन्हें कोई प्रतिपूरक (कंपेन्सेट्री) भुगतान भी नहीं मिलता है। उन्हें जो भुगतान किया जाता है वह ऑर्डर का काम पूरा करने के तय धनराशि दी जाती है।

कोलकाता स्थित ज्वेलर निर्यात करने वाले दुकान के मालिक पंकज पारेख ने कारीगरों पर अतिरिक्त काम का बोझ और धातु की अशुद्धता को दूर करने के लिए उनके अपने सोने का इस्तेमाल करने को लेकर न्यूज़क्लिक से पुष्टि की। पारेख इंडो-इटैलियन चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री,पूर्वी क्षेत्र समिति के प्रमुख भी हैं।

आईबीजेए के सचिव मेहता ने कहा कि ये एसोसिएशन ने पहले ही ख़रीदारों और विक्रेताओं को कई बार एडवाइजरी जारी की थी। अब इस स्थिति की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए यह अशुद्ध सोने की बार की ख़रीद और बिक्री के ख़िलाफ़ चेतावनी जारी की है और पुलिस में मामले को उठाने और आयकर विभाग को सूचित करने का निर्णय लिया है।

वर्तमान में सोने की उच्च क़ीमत की वजह से आभूषणों की मांग कम हो गई है। हालांकि मेहता को आने वाले त्योहार के मौसम में इसकी मांग बढ़ने की संभावना दिखाई देती है।

लेकिन इन्हें जैसी उम्मीद है उसे घोराई और हैत ने साझा नहीं किया। घोराई और हैत ने कहा कि सोने की उच्च क़ीमत ने आभूषण की मांग को बुरी तरह प्रभावित किया जिसने कारीगरों के लिए काम का अवसर कम कर दिया है। घोराई और हैत जैसे कारीगर आजीविका के अवसरों की तलाश में लगभग 30-40 साल पहले पश्चिम बंगाल के मिदनापुर, हावड़ा और हुगली जिलों से मुंबई चले गए।

पूरे देश में सोने के कारीगरों की संख्या लगभग 45लाख से ज़्यादा है। उनके कौशल को बेहतर करने और उनके जीवन की गुणवत्ता में सुधार के लिए समय-समय पर विभिन्न मंचों पर चर्चा की गई और कई समितियों द्वारा अध्ययन किया गया है लेकिन ये व्यर्थ रहा।

सोने के काम से जुड़े ज़्यादतर कारीगरों को सबसे ज़्यादा तनाव में काम करना पड़ता है। ये व्यापार सोने के आयात पर अर्थात 85% से अधिक और 89% तक निर्भर है। स्वास्थ्य और सुरक्षा चिंताओं के कारण अनुभव वाले कारीगरों को 40-45 वर्ष की आयु होने पर इसे छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। आकांक्षी युवा पीढ़ी जो अपने बड़ों से बेहतर शिक्षित हैं वे इस व्यापार में शामिल होने को स्वाभाविक तरीक़े से नहीं देखते हैं।

यह उल्लेख किया जा सकता है कि नीति आयोग द्वारा इसके प्रमुख सलाहकार रतन पी. वटाल की अध्यक्षता में गठित उच्च स्तरीय समिति ने2018की शुरुआत में सौंपे अपनी रिपोर्ट में भारत के एक गोल्ड बोर्ड की स्थापना करने की सिफारिश की थी जिसकी भूमिका शुरुआत में एक सलाहकार की होगी और बाद में केंद्रीय वित्त मंत्रालय के अधीन एक सांविधिक निकाय में परिवर्तित हो जाएगी। इसे कॉफी बोर्ड और टी बोर्ड की तर्ज पर बनाने का प्रस्ताव था।

वाटल समिति ने नीतिगत मुद्दों पर चर्चा के लिए सभी घरेलू स्वर्ण उद्योग के लोगों के संघ के रूप में केंद्रीय वाणिज्य विभाग के अधीन एक स्वर्ण घरेलू परिषद की स्थापना की भी सलाह दी थी। यह सुझाव दिया गया था कि इस परिषद को प्रस्तावित गोल्ड बोर्ड ऑफ इंडिया का प्रतिनिधित्व करना चाहिए। रिपोर्ट को पेश किए जाने के लगभग18 महीने बीत जाने के बाद भी इन सुझावों पर कार्रवाई करना अभी बाकी है।

gold trade
gold karigar
watal committee
gold impurity
gold import
NITI Aayog

Related Stories

क्यों आर्थिक विकास योजनाओं के बजट में कटौती कर रही है केंद्र सरकार, किस पर पड़ेगा असर? 

5,000 कस्बों और शहरों की समस्याओं का समाधान करने में केंद्रीय बजट फेल

कॉर्पोरेट के फ़ायदे के लिए पर्यावरण को बर्बाद कर रही है सरकार

मोदी सरकार और नेताजी को होलोग्राम में बदलना

यूपी की आर्थिक स्थिति: मोदी और योगी के दावे कितने सच्चे?

भारत के पास असमानता से निपटने का समय अभी भी है, जानें कैसे?

यूपी: आख़िर ''ग़रीबी' बड़ा चुनावी मुद्दा क्यों नहीं है? 

ग़रीबी के आंकड़ों में उत्तर भारतीय राज्यों का हाल बेहाल, केरल बना मॉडल प्रदेश

बिहार में सबसे ज़्यादा ग़रीबः नीति आयोग

नीति आयोग की रेटिंग ने नीतीश कुमार के दावों की खोली पोल: अरुण मिश्रा


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License