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शिक्षा
समाज
साक्षरता का झूठ: असर रिपोर्ट का दावा, बच्चों को सिखाने के मामले में फेल स्कूल का तंत्र
एएसईआर 2019 की रिपोर्ट के मुताबिक जिलों में कक्षा 1 में केवल 16 प्रतिशत बच्चे निर्धारित स्तर का टेक्स्ट पढ़ सकते हैं, जबकि लगभग 40 प्रतिशत अक्षर भी नहीं पहचान सकते हैं। यह रिपोर्ट देश के 24 राज्यों के 26 जिलों में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गई है जिसमें 4-8 वर्ष की आयु के 36,000 से अधिक बच्चों को शामिल किया गया है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
15 Jan 2020
फोटो साभार: हिंदुस्तान टाइम्स
फोटो साभार: हिंदुस्तान टाइम्स

नई दिल्ली: देश के 24 राज्यों के 26 जिलों के कक्षा 1 में पढ़ने वाले केवल 16 प्रतिशत बच्चे निर्धारित स्तर का टेक्स्ट पढ़ सकते हैं, जबकि लगभग 40 प्रतिशत अक्षर भी नहीं पहचान सकते हैं। यह जानकारी मंगलवार को जारी 14वीं शिक्षा वार्षिक स्थिति रिपोर्ट (एएसईआर) यानी असर में सामने आई है। एएसईआर 2019 की रिपोर्ट देश के 24 राज्यों के 26 जिलों में किए गए सर्वेक्षण के आधार पर तैयार की गई है जिसमें 4-8 वर्ष की आयु के 36,000 से अधिक बच्चों को शामिल किया गया है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक 4-8 वर्ष की आयु के कम से कम 25 प्रतिशत बच्चों में अपनी उम्र के मुताबिक ज्ञान और संख्या का कौशल भी नहीं है। साथ ही केवल 41 प्रतिशत बच्चे ही दो अंकों की संख्या को पहचान सके। अर्ली एजुकेशन (शुरुआती शिक्षा) पर केंद्रित असर की रिपोर्ट में यह भी दावा किया गया है कि सरकार द्वारा संचालित प्रीस्कूल प्रणाली नामांकन के मामले में निजी स्कूलों से पिछड़ रही है।

रिपोर्ट के अनुसार, छह वर्ष से कम आयु के केवल 37.4 प्रतिशत बच्चे ही अक्षरों को पहचानने में सक्षम हैं और केवल 25.6 प्रतिशत ही जोड़ घटाव कर सकते हैं। इसी तरह, कक्षा-2 में केवल 34.8% बच्चे नीचे के स्तर यानी निचली कक्षाओं के टेक्स्ट पढ़ सकते हैं। और कक्षा-3 में पढ़ने वाले केवल 50.8 प्रतिशत बच्चे ही दो स्तर नीचे यानी कक्षा एक के लिए निर्धारित टेक्स्ट को पढ़ सकते हैं।

सरकारी स्कूलों में लड़कियों की संख्या ज्यादा

रिपोर्ट के मुताबिक सरकारी और निजी संस्थानों में दाखिला लेने वाले बच्चों के बीच लिंग का भी अंतर दिख रहा है। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘सरकारी संस्थानों में दाखिला लेने वाली लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में अधिक है, जबकि निजी संस्थानों में दाखिला लेने वाली लड़कियों की संख्या लड़कों की तुलना में कम है।’

रिपोर्ट के मुताबिक, 56.8 प्रतिशत लड़कियों और 50.4 प्रतिशत लड़कों ने सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया। जबकि 43.2 प्रतिशत लड़कियों और 49.6 प्रतिशत लड़कों ने प्राइवेट प्री स्कूलों या स्कूलों में प्रवेश लिया। लिंग के आधार पर प्राइवेट और सरकारी स्कूलों में लड़के और लड़कियों के दाखिले का अंतर करीब छह से आठ प्रतिशत है।

अध्ययन से यह भी पता चला है कि माताओं के बीच एक बेहतर शिक्षा स्तर प्रीस्कूल और अर्ली स्कूल में बच्चों के बीच बेहतर परिणाम कैसे ला सकता है। अनपढ़ माताओं की तीसरी कक्षा के बच्चों में संख्यात्मक कौशल उन लोगों की तुलना में बहुत कम है जिनकी माताओं ने ग्यारहवीं कक्षा या उससे ऊपर की पढ़ाई की थी। कक्षा-3 के केवल 29.2 प्रतिशत अनपढ़ माताओं के बच्चे दो अंकों का जोड़ कर सकते हैं। यह उन्हीं छात्रों की माताओं के बच्चों में 64 प्रतिशत तक बढ़ जाता है, जिन्होंने वरिष्ठ माध्यमिक या उससे ऊपर के स्तर पर अध्ययन किया है। तभी कहा जाता है कि एक स्त्री पढ़ती है तो एक पूरा परिवार पढ़ता है।

रिपोर्ट में शिक्षा में सुधार के लिए शुरुआती वर्षों पर ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित किया गया है। इसमें कहा गया है कि शुरुआती वर्षों में औपचारिक विषय अध्ययन के बजाय कौशल विकास और गतिविधियों पर ध्यान केंद्रित करने से संज्ञानात्मक कौशल मजबूत होता है। ये बाद के वर्षों में शैक्षणिक प्रदर्शन पर पर्याप्त असर डालते हैं।

रिपोर्ट के अनुसार, ‘4-8 वर्ष के आयु वर्ग के 90 से अधिक बच्चों का दाखिला किसी न किसी स्कूलों में कराया गया है। यह अनुपात उम्र के साथ बढ़ता है, चार-वर्षीय आयुवर्ग के बच्चों में यह संख्या 91.3 प्रतिशत है जबकि आठ-वर्षीय आयुवर्ग के बच्चों में यह संख्या 99.5 फीसदी है।’

रिपोर्ट के अनुसार, ‘पांच वर्ष की आयु में, 70 प्रतिशत बच्चों का नामांकन आंगनवाड़ी केंद्रों या प्री प्राइमरी कक्षाओं में है, जबकि 21.6 प्रतिशत बच्चों का दाखिला कक्षा एक में हुआ है। छह साल की उम्र में, 32.8 प्रतिशत बच्चे आंगनवाड़ी केंद्रों या प्री-प्राइमरी कक्षाओं में हैं, जबकि 46.4 फीसदी बच्चे कक्षा एक में हैं और 18.7 फीसदी बच्चे कक्षा दो या उससे बड़ी कक्षा में हैं।’

चिंताजनक हालात

रिपोर्ट के अनुसार बच्चों के विकास में उनके शुरुआती वर्ष बहुत महत्वपूर्ण होते हैं। इन्हीं वर्षों में उनकी मजबूत नींव उन्हें भविष्य की चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए तैयार किया जा सकता है। लेकिन उम्र के अनुरूप कौशल की कमी चिंताजनक है। क्योंकि यह पूरे देश की शिक्षा व्यवस्था को प्रभावित करेगा।

फिलहाल दाखिले के आंकड़े हमें इतना ही बताते हैं कि कितने बच्चों का नाम किसी स्कूल के रजिस्टर में लिखा गया। उनकी जानकारी या क्षमता पर इसका क्या असर पड़ा, इस बारे में ये कुछ नहीं बताते। एएसईआर की सर्वे रिपोर्ट शिक्षा की जमीनी हकीकत हमारे सामने पेश करती है। ऐसे में सबसे खतरनाक बात यह है कि सरकारों ने बच्चों को शिक्षित करने की जिम्मेदारी से तकरीबन पूरी तरह पल्ला झाड़ लिया है। अगर राष्ट्र निर्माण की जरा भी चिंता हो तो दाखिले के दावे भूलकर अपना सारा ध्यान उन्हें गुणात्मक शिक्षा के तकाजों पर केंद्रित करना चाहिए।

वैसे 2020 में आरटीई अधिनियम की 10वीं वर्षगांठ है। औपचारिक स्कूली शिक्षा में प्रवेश से पहले और उसके दौरान सबसे कम उम्र के बच्चों पर ध्यान केंद्रित करने का यह सबसे अच्छा मौका है। इससे यह भी संभव होगा जब ये बच्चे 10 साल बाद माध्यमिक स्कूलों से बाहर निकलेंगे तो भारत के बेहतर शिक्षित और समझदार नागरिक होंगे और यूनिवर्सिटी और कॉलेजों के लिए संभावनाओं से भरे युवा साबित होंगे।

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