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कृषि संकट के चलते बुरे हाल में एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला
सोनपुर का पशु मेला समाप्त हो रहे मवेशियों की कई नस्लों से अटा पड़ा है।
सौरव कुमार
21 Nov 2019
sonpur animal fair

बिहार के सारण ज़िले के सोनपुर में गंगा और गंडक के संगम पर लगने वाला हरिहर क्षेत्र मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला है। यह भारत के बड़े आयोजनों में से एक है। यहां दूर-दूर से किसान और पुशपालक आते हैं। लगभग हर किस्म के मवेशी की यहां ख़रीद-बिक्री होती।

कार्तिक महीने की 15 तारीख से शुरू होने वाले इस मेले का किसान और पशुपालक बेसब्री से इंतजार करते हैं। 25-30 दिनों तक चलने वाला ये मेला बिहार की राजधानी पटना से लगभग 20 किलोमीटर दूर है। इस साल मेले का उद्घाटन 11 नवंबर को हुआ था और यह 11 दिसंबर तक चलेगा।

इस साल सोनपुर मेले में सबकुछ ठीक नहीं है। मेले में ख़रीदार नहीं हैं। सारण के एक पशु व्यापारी मोहम्मद राजा कहते हैं, वे अपने साथ दस गाय लाए हैं लेकिन शायद ही किसी ख़रीदार ने उनसे इन गायों की बिक्री के बारे में पूछताछ की है।

राजा कहते हैं कि कुछ साल पहले उन्होंने सोनपुर में पहले सात दिनों में कम से कम 50 गाय बेची थी। आज स्थिति बिल्कुल उलट गई है। वे कहते हैं, “अभी तक मैंने एक भी गाय नहीं बेची है। तेजी से आर्थिक गिरावट आई है जिसके कारण कोई भी न तो ख़रीद रहा है और न हीं पूछताछ कर रहा है”।

इस मेले में राजा ने 30,000 रुपये की जगह ली है वहीं तम्बू के लिए 10,000 रुपये अदा किया है। अगर उनकी गायें और बछड़े नहीं बिकते हैं तो उनको 1.5 या 2 लाख रुपये के उपर का नुकसान हो सकता है।
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सोनपुर मेले में मौजूद मवेशी व्यापारी मोहम्मद राजा।

गो-रक्षकों की भीड़ का डर एक अन्य मामला है जिससे गायों की मांग में कमी आ रही है। ऐसे कई मामले सामने आए हैं जिनमें देखा गया है कि बिहार में व्यापारी जब गायों को ले रहे थे या चरा रहे थे तो भीड़ द्वारा कई लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। सभी प्रकार के दुधारू पशुओं का व्यापार हिंसक भीड़ और खरीदारों और विक्रेताओं के बीच पैदा हुए भय से बर्बाद हो गया है। राजा जैसे व्यापारी अगर अपने मवेशियों को बेचने में सक्षम नहीं हैं तो उन्हें अपने भारी बोझ के साथ मुश्किल वापसी का सामना करना पड़ेगा।

एक समय था जब सोनेपुर मेले में लगभग 35,000 बैल और 10,000 या इससे अधिक गाय और भैंस होते थे। आधुनिक उपकरणों ने बैलों को खेती के लिए अप्रासंगिक बना दिया है। इस तरह इसकी संख्या मेले में कम हो रही है। लेकिन अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए प्रसिद्ध पंजाब और हरियाणा की गायें सोनपुर मेले की शान थी।

नब्बे के दशक में कहा जाता था कि जब मेला लगता था तो दूध की दरिया बहती थी। यह दूध को लेकर एक संदर्भ था। जब ख़रीदार गाय ख़रीदने के लिए आते थे तो उन्हें मवेशी की उत्पादकता दिखाने के लिए दूध निकालते थे। आज गायों और गायों को बढ़ावा देने के तरीकों की दीवानगी दोनों ही लगभग गायब हो चुके हैं।

सोनपुर में दो एकड़ के भूखंड पर घोड़े बेचे जाते हैं जो अभी भी मौजूद है। इस साल यहां लगभग 1,500 घोड़े बिक्री के लिए आए हैं। सच कहें तो घोड़े का क्षेत्र लोगों को आकर्षित कर रहा है। पहले के वर्षों में 5,000 से 6,000 घोड़े यहां खरीदे या बेचे जाते थे, लेकिन अब मांग कम हो गई है।

सोनपुर के मेले में सबसे ज़्यादा कीमत वाला घोड़ा चेतक है जिसकी क़ीमत 10 लाख रुपये रखी गई है। वह खगड़िया ज़िले के परबत्ता से आने वाले मालिक परमानंद चौधरी के बगल में खड़ा है। वह पिछले चार सालों से चेतक के साथ मेले में आ रहे हैं जिसने बिहार में 85 से अधिक रेस जीती हैं। पिछले साल चेतक ने सोनपुर में आयोजित वार्षिक दौड़ में बाहुबली विधायक अनंत सिंह के घोड़े को हराया था। क़ीमत के बारे में बात करते हुए चौधरी कहते हैं, “मैंने कुछ साल पहले वडोदरा से चेतक ख़रीदा था। वह मुझे बहुत प्यारा है। उसने हमारे घर को पदकों और ट्राफियों से भर दिया है।'
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चेतक के मालिक परमानंद चौधरी घोड़े के साथ खड़े हुए। यह सोनपुर मेले का सबसे महंगा घोड़ा है।

चौधरी के भतीजे छोटू अब चेतक की सवारी करते हैं। चेतक हर रोज़ चार किलो दूध, 1.5 किलो शुद्ध घी, 2.5 किलो चना, 100 बादाम और 100 ग्राम शहद पीता है। इस तरह हर महीने इस पर 50,000 रुपये खर्च होते हैं। वे कहते हैं कि अब चेतक जैसे घोड़े को रखना मालिक के स्टेटस का केवल एक छाप हो सकता है।

बकरी का बाजार तो किसी तरह बचा हुआ है। मध्य उत्तर प्रदेश के रायबरेली के एक बकरा व्यापारी सत्तार वारसी एक महीने से मेले में डेरा डाले हुए है। वे कहते हैं, "पिछले वर्षों की तुलना में बाज़ार धीमा है, लेकिन गायों या भैंसों की तुलना में बकरियों की मांग अभी भी ज़्यादा है।" सोनपुर मेले में ज़्यादा दिनों तक रुकने के चलते वे चाहते हैं कि जितना ज़्यादा से ज़्यादा हो सके कमाई हो जाए। इस तरह, वे जान पाएंगे कि अगले साल के मेले में आना सार्थक होगा या नहीं।
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उत्तर प्रदेश रायबरेली के बकरा व्यापारी सत्तार वारसी।

प्रसिद्ध रहा सोनपुर मेला का हाथी बाज़ार इस साल शुरू होने के छह दिन बाद ही ख़त्म हो गया। हाथी बाज़ार के लिए अपनी ज़मीन देने वाले गोपाल शंकर सिंह कहते हैं ये व्यापार अपनी चमक-दमक खो रहा है। इसका कारण हाथियों की ख़रीद-बिक्री पर रोक लगाने वाला वन विभाग और स्थानीय प्रशासन है।

कहा जाता है कि 1,000 साल पुराना हाथियों का व्यापार मेले का एक पवित्र प्रतीक माना जाता है। 2003 तक सोनपुर मेला तभी शुरू होता था जब हाथियों को कार्तिक की शुरुआत के पहले पूर्णिमा के दिन औपचारिक स्नान कराया जाता था।

अब ये परंपराएं लगभग ख़त्म हो चुकी है। वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 को सख्ती से लागू किया जा रहा है। हाथियों के लिए स्वामित्व प्रमाणपत्र हस्तांतरित करने में रुकावट है।

गोपालगंज ज़िले के निवासी भूपेंद्र सिंह के स्वामित्व वाला हाथी राजा बाबू 17 नवंबर को मेला से जाने वाला आख़िरी हाथी था। सिंह ने न्यूज़़क्लिक से कहा, "यह स्वीकार करना दुखद है कि सोनपुर का सबसे प्रसिद्ध आकर्षण का केंद्र रहे हाथी को महज़ एक हफ्ते में ही जाना पड़ा है।"
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सोनपुर मेले का प्रवेश द्वार

मेले के दौरान सोनपुर आने वाले विदेशी पर्यटकों के लिए हाथी के दांत मुख्य आकर्षण होते थे। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि इस वर्ष विदेशी पर्यटकों की संख्या भी काफी कम है। 2001 में 92 विदेशी पर्यटक आए थें, 2015 में केवल 14 और इस साल हाथी देखने के लिए केवल सात पर्यटक आए थे। 12 से 16 नवंबर के बीच सोनपुर मेले में फ्रांस से आए 11 पर्यटक सहित 22 विदेशी पर्यटकों ने मेले का दर्शन किया।

सोनपुर मेले में बड़े समारोहों का प्रबंधन करना हमेशा कठिन था: मेले को सफल बनाने के लिए, सरकार से लेकर पंचायती राज संस्थाओं और सामुदायिक संगठनों के सभी हितधारकों को एक साथ आना होगा। इस मेले को आम तौर पर एक पारंपरिक मेला माना जाता है, लेकिन यह तीन वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में दो से तीन मिलियन लोगों को आकर्षित करता है। अब सोनपुर के मेले का मूल चरित्र काफी बदल गया है। इसके पहले के ग्रामीण परिवेश खो गए हैं और यह अब सरकारी योजनाओं के प्रचार का एक मंच बन गया है। इसने अपनी ग्रामीण आकर्षण को भी खो दिया है और इसे सरकार को बढ़ावा देने के लिए आधुनिक तकनीक और विरोधाभास से बदल दिया गया है।

लेखक बिहार के एक स्वतंत्र पत्रकार और शोधकर्ता हैं। लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

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