NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
असम और CAA : आज़ादी से पहले की टाइमलाइन
इस सीरीज़ में 19वीं सदी से लेकर आज तक असम के भाषायी, धार्मिक, जातीय-राष्ट्रवाद और नागरिकता इतिहास का ज़िक्र है। यह तीन हिस्सों वाली सीरीज़ का पहला हिस्सा है।
आईसीएफ़
12 Mar 2020
Assam and the CAA

इस सीरीज़ में 19वीं सदी से लेकर आज तक असम के भाषायी, धार्मिक, जातीय-राष्ट्रवाद और नागरिकता इतिहास का ज़िक्र है। यह तीन हिस्सों वाली सीरीज़ का पहला हिस्सा है।

1826-यांदूब की संधि से असम (मणिपुर, राखाइन और सालवीन नदी के दक्षिणी हिस्से में तैनिनथायी तटीय इलाके को मिलाकर) का क्षेत्र बर्मा के राजा से अंग्रेजों के हाथ में आ गया। शुरूआत में अहोम शासक के हाथ में सत्ता सौंपकर अंग्रेजों ने इस क्षेत्र से संरक्षणवादी व्यवहार किया। लेकिन 1838 में असम को कंपनी के क्षेत्र में मिला लिया गया।

1765-में इलाहाबाद की संधि के बाद से असम का गोलपाड़ा जिला कंपनी के अधिकार क्षेत्र में आ रहा था। रॉबर्ट क्लाइव और शाह आलम-II के बीच हुई उस संधि में कंपनी को बंगाल के दीवानी अधिकार मिले थे।

1836- फारसी को हटाकर बंगाली को कानूनी अदालतों की भाषा घोषित कर दिया गया। शैक्षणिक संस्थानों में भी निर्देश बंगाली भाषा में ही दिए जाते।

1837- ऊपरी असम के छाबुआ में पहले चाय के बागान की स्थापना हुई। 1840 में असम टी कंपनी ने व्यापारिक उत्पादन शुरू कर दिया। इसमें चीन के कामगारों का इस्तेमाल किया जा रहा था। लेकिन 1840 में उन्हें हटा दिया गया।  1850 के दशक से काम के लिए बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, ओडिशा और आंधप्रदेश के इलाकों से कामगार लाए जाने लगे। (चाय बागानों में काम करने वाली एक बड़ी आबादी आदिवासियों की थी। उन्हें 'टी ट्राइब' भी कहा जाता था।

आज यह मज़दूर वर्ग 800 टी एस्टेट में फैला हुआ है।) बाद में 19 वीं शताब्दी में क्षेत्र के बाहर से आने वाले लोगों को कोल, रेलवे और पेट्रोलियम सेक्टर में इस्तेमाल किया जाने लगा। (इलाके में पहली रेल लाइन 1882 में डाली गई। डिग्बोई में 1889 में तेल की खोज कर ली गई।) एक दूसरी तरह का कामगार वर्ग, जिसमें मूलत: क्लर्क, जज, राजस्व संग्रकर्ता और फसल लगाने की प्रक्रिया की निगरानी करने वाले कर्मचारी थे, उसके लिए बंगाल से भर्तियां की गईं। 20 वीं सदी की शुरूआत में असम का पूरा प्रशिक्षित और शिक्षित वर्ग बंगाली बोलने वाला था। इसमें डॉक्टर, वकील, शिक्षक, पत्रकार शामिल थे।

1871- पहली जनगणना से पता चला कि असम में आबादी के आंकड़ों में भारी बदलाव हो रहा है। मज़दूर बुलवाने और इलाके में बसने के लिए प्रेरित करने वाली औपनिवेशिक नीतियों के चलते वहां घनी आबादी वाले बंगाल से बड़ी संख्या में लोग आ रहे हैं।

1872- स्थानीय निवासियों के लिए असमिया भाषा को शिक्षा औऱ प्रशासन की भाषा घोषित कर दिया गया। 

1873- बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन एक्ट लागू किया गया। इससे एक इनर लाइन परमिट की स्थापना की गई। ताकि ज़मीनी इलाकों से आने वाले ''ग़ैर-जनजातीय'' लोगों को पहाड़ी इलाकों से दूर रखा जा सके। लेकिन नए सिस्टम से पहाड़ी लोगों का मैदानी क्षेत्रों में स्थित लाभकारी औद्योगिक से भी कटाव हो गया। मतलब उनके आर्थिक मौके छिन गए। दूसरी तरफ पहाड़ी इलाकों में सरकार के कर्तव्य और खर्च इनर लाइन परमिट क्षेत्र में बेहद कम हो गए। मैदानी इलाकों में रहने वाले लोग ''अधिशेष उत्पादन'' कर रहे थे और सांस्कृतिक-आर्थिक क्षेत्र में उनका वर्चस्व हो गया।

परमिट सिस्टम के लॉकडॉउन से आगे के कई दशकों तक आवाजाही और मेलजोल प्रभावित होता रहा। इससे मैदानी और पहाड़ी इलाकों के लोगों एक दूसरे पर आक्रामक हुए, जातीय टकराव बढ़ा, अलगाववादी मांग उठने लगीं, प्रशासनिक ईकाईयां बिखरने लगीं और आजतक राज्यों की सीमा में तनाव है। आदिवासियों की सुरक्षा का तर्क देकर इनर लाइन परमिट को सही ठहराया जाता है। जैसे-जैसे पहचान और दुश्मनी दृढ़ होती जाती हैं, तो टूटने के लिए बढ़ावा दिया जाने लगता है।

1874- असम चीफ कमिश्नर की अध्यक्षता वाला प्रांत बन गया। प्राथमिक स्कूलों में केवल असमिया भाषा को निर्देशन की भाषा घोषित किया गया। शताब्दी के अंत तक बंगाली को दूसरा स्थान प्राप्त था। सेकंडरी और हाई स्कलू के स्तर पर उसे जारी रखा गया। बंगाल राज्य के सिल्हट को असम का हिस्सा बनाया गया। असम राज्य में बंगाली भाषा बहुल इलाके भी शामिल थे, इनमें बराक घाटी में स्थित आज के कछार, हैलाकांडी और करीमगंज जिले शामिल हैं।

1905- बंगाल के विभाजन से असम को पूर्वी बंगाल में शामिल कर दिया गया। जब 1912 में इस विभाजन को खत्म किया गया, तो असम को सिल्हट के साथ वापस चीफ कमिश्नर की अध्यक्षता वाला प्रांत बना दिया गया। 

1914- की शुरूआत से ही बड़े स्तर पर ग़रीब बंगाली प्रवासियों का राज्य में आगमन होने लगा, इनमें मछुआरे, मज़दूर शामिल थे। इन लोगों में ज़्यादातर मुस्लिम थे, लेकिन बहुत सारे दलित भी प्रवास का हिस्सा बने (ख़ासकर नामशूद्र समुदाय से)। इस प्रवास की दर अलग-अलग दशकों में कम-ज़्यादा होती रहती। वो मज़दूर की तरह काम करते। उन्होंने ख़ुद को ब्रह्मपुत्र के मैदानी इलाकों में बसा लिया, जिन्हें चापोरीस के नाम से जाना जाता है। वह लोग एक नए तरीके की कृषि किया करते थे।

यह कृषि, ज़मीन के अधिकारों या स्थायी हक़ पर आधारित थी, जबकि पारंपरिक तौर पर अस्थायी और तात्कालिक मालिकाना हक़ वाली किसानी प्रचलन में थी। नई किसानी में साल भर में कई फसलों का उत्पादन किया जाता और शुष्क मौसम में चार (ज़मीन के रेतीले किनारे) पर फसल उगाई जाती। चूंकि बंगाल और असम ब्रिटिश इंडिया का हिस्सा थे, इसलिए सीमा का सवाल नहीं उठा। लेकिन 1916 में  सरकार ने ''लाइन सिस्टम'' लागू कर दिया। इसके तहत पुराने समूहों को चार तक सीमित कर दिया, ताकि स्थानीय लोगों की आय पर नियंत्रण लगाया जा सके।

1917- असम साहित्य सभा की स्थापना हुई। आगे आने वाले दशकों में इसने असमिया भाषायी राजनीति (खासकर 1979-85 के असम प्रदर्शनों में) में काफ़ी सक्रिय भूमिका निभाई। (पार्ट II में ''1947 से असम समझौते'' को देखें)

1932- एक अंग्रेज जनगणना अधीक्षक सी एस मुल्लन ने अपनी रिपोर्ट में लिखा: ''शायद राज्य के इतिहास में पिछले 25 सालों की सबसे बड़ी घटना ज़मीन के भूखे बंगाली प्रवासियों की भीड़ का हमला है। इनमें ज़्यादातर मुस्लिम हैं और वे पूर्वी बंगाल के जिलों से आए है। इससे असमिया संस्कृति और सभ्यता का पूरा ढांचा ही बदल जाएगा।'' 

1931- की जनगणना से पता चला कि असमिया बोलने वाले लोग कुल जनसंख्या का 31।42 फ़ीसदी हैं। इस आबादी का हिस्सा बाद में 1951 की जनसंख्या में बढ़कर 56।69 फ़ीसदी पहुंच गया। (इस बड़े फेरबदल की वज़ह समुदायों में राजनीतिक गठजोड़ और बिखराव था। कई बार जातीय और भाषायी आधार पर अल्पसंख्यक असमिया भाषा या किसी दूसरी भाषा को अपनी मातृभाषा बता देते थे। बंगाली भाषायी लोग धर्म, जाति, बोली और अपने मूल स्थान के आधार पर बंटे हुए हैं।)

1937- मोहम्मद सादुल्लाह के नेतृत्व में असम में मुस्लिम लीग की सरकार बनी। यह सरकार अप्रैल, अप्रैल 1937-सितंबर 1938, नवंबर

1939-दिसंबर 1941 और अगस्त 1942 से फरवरी 1946 तक, तीन बार सत्ता में आई। सरकार ने ''ज़्यादा अनाज उत्पादन'' की नीति अपनाई और चारगाहों के लिए आरक्षित क्षेत्रों पर पूर्वी बंगाल से बसने के लिए लोगों को बढ़ावा दिया। वायसरॉय लॉर्ड वेवैल ने इस कार्यक्रम को ''मुस्लिमों को बढ़ाने'' की नीति करार देते हुए इलाके  में जनसांख्यकीय बदलाव के लिए उठाया जाने वाला कदम बताया। 1946 में असम ने चावल का अधिशेष उत्पादन किया।

1939- रजिस्ट्रेशन ऑफ फॉरेनर्स एक्ट को लागू किया गया। यह एक युद्धकालीन नियम था। इसके तहत भारत में आने वाले विदेशियों को हर नई जगह जाने के बाद वहां संबंधित अधिकारियों को सूचना देनी होती थी। इसके तहत उन्हें यह बताना होता था कि वे कितने दिन भारत में रुकेंगे। अगर किसी मामले में अधिकारी किसी व्यक्ति की जांच करते, तो खुद को देश का नागिरक साबित करने का भार संबंधित व्यक्ति पर होता था।

1946- दिल्ली में साम्राज्यवादी विधानसभा ने फॉरेनर्स एक्ट पारित कर  दिया। इसके तहत विदेशी नागरिक को कुछ इस तरह परिभाषित किया गया, ''एक व्यक्ति जो भारत का नागरिक नहीं है''। जिस व्यक्ति पर विदेशी होने का आरोप लगाया गया है, इस एक्ट के चलते नागरिकता साबित करने का भार संबंधित व्यक्ति पर हो जाता था। इस कानून ने सरकार को शक्ति दी कि वो संबंधित व्यक्ति को हिरासत में ले सके और उसे उसके मूल देश जाने तक जेल में रख सके।

अक्टूबर, 1946- RSS के तीन प्रचारक, दादाराव पर्मार्थ, वसंतराव ओक और कृष्णा परांजपे असम पहुंचे। यहां उन्होंने गुवाहाटी, डिब्रूगढ़ और शिलांग में पहली RSS शाखाओं की स्थापना की। यहां से वो धंधा चालू हुआ, जिससे 70 साल बाद पूरे पूर्वोत्तर में बीजेपी का प्रभुत्व स्थापित किया।

साभार : आईसीएफ

Assam
NRC Assam
Nationalism
History of Assam
History of India
British India

Related Stories

असम में बाढ़ का कहर जारी, नियति बनती आपदा की क्या है वजह?

असम : विरोध के बीच हवाई अड्डे के निर्माण के लिए 3 मिलियन चाय के पौधे उखाड़ने का काम शुरू

ज़मानत मिलने के बाद विधायक जिग्नेश मेवानी एक अन्य मामले में फिर गिरफ़्तार

असम की अदालत ने जिग्नेश मेवाणी को तीन दिन की पुलिस हिरासत में भेजा

भारत की राष्ट्रीय संपत्तियों का अधिग्रहण कौन कर रहा है?

श्रीलंका का संकट सभी दक्षिण एशियाई देशों के लिए चेतावनी

प्रलेस : फ़ासिज़्म के ख़िलाफ़ फिर बनाना होगा जनमोर्चा

भारत को अपने पहले मुस्लिम न्यायविद को क्यों याद करना चाहिए 

सद्भाव बनाए रखना मुसलमानों की जिम्मेदारी: असम CM

सामाजिक कार्यकर्ताओं की देशभक्ति को लगातार दंडित किया जा रहा है: सुधा भारद्वाज


बाकी खबरें

  • corona
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के मामलों में क़रीब 25 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई
    04 May 2022
    देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 3,205 नए मामले सामने आए हैं। जबकि कल 3 मई को कुल 2,568 मामले सामने आए थे।
  • mp
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    सिवनी : 2 आदिवासियों के हत्या में 9 गिरफ़्तार, विपक्ष ने कहा—राजनीतिक दबाव में मुख्य आरोपी अभी तक हैं बाहर
    04 May 2022
    माकपा और कांग्रेस ने इस घटना पर शोक और रोष जाहिर किया है। माकपा ने कहा है कि बजरंग दल के इस आतंक और हत्यारी मुहिम के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट होकर विरोध कर रहा है, मगर इसके बाद भी पुलिस मुख्य…
  • hasdev arnay
    सत्यम श्रीवास्तव
    कोर्पोरेट्स द्वारा अपहृत लोकतन्त्र में उम्मीद की किरण बनीं हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं
    04 May 2022
    हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं, लोहिया के शब्दों में ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य’ निभा रही हैं। इन्हें ज़रूरत है देशव्यापी समर्थन की और उन तमाम नागरिकों के साथ की जिनका भरोसा अभी भी संविधान और उसमें लिखी…
  • CPI(M) expresses concern over Jodhpur incident, demands strict action from Gehlot government
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जोधपुर की घटना पर माकपा ने जताई चिंता, गहलोत सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग
    04 May 2022
    माकपा के राज्य सचिव अमराराम ने इसे भाजपा-आरएसएस द्वारा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करार देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं अनायास नहीं होती बल्कि इनके पीछे धार्मिक कट्टरपंथी क्षुद्र शरारती तत्वों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल
    04 May 2022
    भारत का विवेक उतना ही स्पष्ट है जितना कि रूस की निंदा करने के प्रति जर्मनी का उत्साह।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License