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भारत
राजनीति
आयातित सौर ऊर्जा उपकरण पर सेफगार्ड ड्यूटी लगाना एक फ्लॉप शो?
घरेलू कंपनियों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सौर उपकरण के आयात पर, कथित तौर पर अडानी समूह की एक कंपनी के इशारे पर, वित्त मंत्रालय द्वारा सेफगार्ड ड्यूटी लगाने के एक साल बाद आई एक रिपोर्ट इस बात की ओर इशारा करती है कि यह निर्णय पूरी तरह ग़लत था।
परंजॉय गुहा ठाकुरता, सौरोदिप्तो सान्याल
12 Sep 2019
solar energy

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि भारत 2022 तक 100 गीगावाट (जीडब्ल्यू) सौर ऊर्जा का उत्पादन करना चाहता है। वे चाहते हैं कि देश सौर ऊर्जा बैटरी के निर्माण का "हब" बन जाए। सरकार की कर नीतियों में हालिया फेर बदल को देखते हुए इस लक्ष्य को आसानी से हासिल करने की संभावना नहीं है।

नई दिल्ली स्थित थिंक-टैंक काउंसिल ऑन एनर्जी, एनवायरमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) ने पाया कि चीन और मलेशिया से सोलर सेल तथा मोड्यूल्स के आयात पर सेफगार्ड ड्यूटी लगाने का वित्त मंत्रालय का 30 जुलाई 2018 का निर्णय सौर ऊर्जा पैदा करने के लिए घरेलू निर्माण उपकरण बनाने वाली कंपनियों को बल देने के अपने उद्देश्य को प्राप्त करने में विफल रहा है। 29 अगस्त को प्रकाशित  सीईईडब्ल्यू का एक विश्लेषण बताता है कि हालांकि सेफगार्ड ड्यूटी लगाने से अगस्त 2018 और जुलाई 2019 के बीच सोलर सेल और मॉड्यूल के आयात को 23% तक कम करने में सफलता मिली लेकिन साथ ही सौर ऊर्जा परियोजनाओं की स्थापना में भी इसी तरह की कमी देखी गई है। नतीजतन घरेलू कंपनियों का बाज़ार शेयरों पर सेफगार्ड ड्यूटी की अवधि का "कोई ज़्यादा प्रभाव नहीं" पड़ा। सीईईडब्ल्यू द्वारा जून में प्रकाशित एक पूर्ववर्ती रिपोर्ट जो अर्जुन दत्त, मनु अग्रवाल और कनिका चावला द्वारा लिखी गई और जिसका शीर्षक "व्हाट इज द सेफगार्ड ड्यूटी सेफगार्डिंग?" था, इसमें कहा गया कि सौर ऊर्जा उपकरणों - मॉड्यूल और बैटरी कोशिकाओं सहित - के सभी घरेलू निर्माता और फैब्रिकेटर जो मॉड्यूल के उत्पादन में लगे रहे उन्हें उद्योग के नुकसान का खामियाजा भुगतना पड़ेगा। भारत में सोलर सेल के निर्माण की कुल क्षमता वर्तमान में 3.1 गीगावाट है जबकि मॉड्यूल की 8.9 गीगावाट है।

हाल में घरेलू टैरिफ क्षेत्र (डीटीए) के साथ-साथ विशेष आर्थिक क्षेत्रों (एसईजेड) - जहां उन्हें सीमा शुल्क के भुगतान से छूट दी गई है क्योंकि उत्पादन का थोक निर्यात होने की उम्मीद की जाती है - में स्थित मॉड्यूल निर्माताओं को नुकसान उठाना पड़ रहा है।

एसईजेड में निर्माताओं की प्रतिस्पर्धी क्षमता को समाप्त कर दिया गया है क्योंकि वे सेफगार्ड ड्यूटी के अधीन आते हैं जो 2005 के एसईजेड अधिनियम की धारा 30 के तहत विदेशी निर्माताओं पर लगाए गए शुल्क के समान हैं। चूंकि सोलर मॉड्यूल के कई निर्माता आयात किए गए बैट्री पर काफी भरोसा करते हैं इसलिए डीटीए में ऐसी कंपनियों की इनपुट लागत काफी बढ़ गई है।

सीईईडब्ल्यू की रिपोर्ट बताती है: “सभी भारतीय पीवी (फोटो-वोल्टाइक) निर्माता सेफगार्ड ड्यूटी को लागू करने (सोलर-सेल और मॉड्यूल दोनों) से लाभ नहीं उठाते हैं। जबकि डीटीए और एसईजेड के भीतर स्थित सेल निर्माता प्रतिस्पर्धी आयातित सेल पर लगाए गए ड्यूटी के परिणामस्वरूप बेहतर प्रतिस्पर्धा से लाभान्वित होंगे, हालांकि यही मॉड्यूल निर्माताओं के लिए सही नहीं है।"

वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय के पास उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर सीईईडब्ल्यू यह भी बताता है कि यद्यपि सेफगार्ड ड्यूटी के परिणामस्वरूप चीन और मलेशिया से सौर उपकरण के आयात में हिस्सेदारी घट गई है जबकि सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम (सेफगार्ड ड्यूटी से मिली छूट) जैसे देशों से आयात का हिस्सा काफी हद तक बढ़ा है।

अगस्त 2018 और जुलाई 2019 के बीच सोलर सेल के कुल आयात में सिंगापुर की हिस्सेदारी 1.1% से बढ़कर 5.6% हो गई जबकि थाईलैंड की हिस्सेदारी 0.1% से 5.0% और वियतनाम की हिस्सेदारी 0.4% से 6.3% तक बढ़ गई है। नीचे दी गई तालिका 1 देखें।

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जैसा कि उल्लेख किया गया है वित्त मंत्रालय ने जुलाई 2018 में सोलर बाजार में घरेलू कंपनियों की रक्षा के लिए चीन और मलेशिया से सोलर सेल और मॉड्यूल के आयात पर दो साल तक सेफगार्ड ड्यूटी की व्यवस्था को अधिसूचित किया था। आयात पर सेफगार्ड ड्यूटी पहले वर्ष के लिए 25% और बाद के छह महीनों के लिए क्रमशः 20% और 15% निर्धारित किया गया था। सीईईडब्ल्यू रिपोर्ट में आगे लिखा गया है कि परियोजना के कार्यान्वयन की गति धीमी होने के कारण रोज़गार के अवसरों में कमी आई है।

वर्ष 2018 में विशेषज्ञों ने न्यूज़क्लिक को बताया था कि इस क्षेत्र में केवल 10% नौकरियां सेल और मॉड्यूल के निर्माण की प्रक्रिया के दौरान सृजित की गई हैं। रोज़गार सृजन का बड़ा हिस्सा तब होता है जब परियोजनाएं शुरु किए जाते हैं और तब ये परियोजनाएं बिजली उत्पन्न करती हैं। सेफगार्ड ड्यूटी से उपकरणों की क़ीमत में वृद्धि हुई थी जिसके परिणामस्वरूप परियोजना लागत के साथ-साथ बिजली दरों में भी बढ़ोतरी हुई है। मई 2017 में टैरिफ दरें गिरकर 2.44 रुपये प्रति यूनिट (या किलोवाट घंटा) के रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई थीं लेकिन सेफगार्ड ड्यूटी लगाए जाने के बाद बढ़ गईं।

एक अन्य सीईईडब्ल्यू की रिपोर्ट के अनुसार, "... टैरिफ में वृद्धि के चलते 2018 में विभिन्न निविदा एजेंसियों द्वारा प्रदान किए गए परियोजना क्षमता के लगभग 5 गीगावाट (जीडब्ल्यू) को रद्द कर दिया गया।" यह स्पष्ट रूप से 2022 तक सौर ऊर्जा क्षमता का 100 गीगावाट हासिल करने के सरकार के लक्ष्य के लिए एक झटका था।

नवीन तथा नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार 31 अक्टूबर 2018 तक केवल 24.33 गीगावट सौर ऊर्जा क्षमता स्थापित की गई थी। वित्त वर्ष 2012 से वित्त वर्ष 2018 तक की पांच साल की अवधि के दौरान देश में 20 गीगावट सौर ऊर्जा क्षमता को ही बढ़ाया जा सका है।

अगस्त 2018 में रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें दावा किया गया था कि 2022 तक भारत की अधिकतम सौर ऊर्जा क्षमता 78-80 गीगावट तक पहुंचने की उम्मीद की जा सकती है या सरकार के लक्ष्य से लगभग पांचवां हिस्सा कम होगा।

स्वच्छ ऊर्जा अनुसंधान संगठन मेरकॉम के अनुसार कैलेंडर वर्ष 2018 में पीवी क्षमता स्थापित करने में 15.5% की कमी हुई इस तरह सौर ऊर्जा की केवल 8.2 गीगावाट बढ़ाई गई थी। कैलेंडर वर्ष 2017 की क्षमता में वृद्धि 9.7 गीगावाट थी।

मेरकॉम ने उल्लेख किया कि वस्तु व सेवा कर (जीएसटी), भूमि के अधिग्रहण और बिजली के संचारण से संबंधित कठिनाइयों के साथ सेफगार्ड ड्यूटी के लागू करने के चलते क्षमता वृद्धि में कमी आई है। 7 मई 2019 की मेरकॉम रिपोर्ट के अनुसार मार्च 2019 तक भारत की सौर ऊर्जा क्षमता 30 गीगावाट तक पहुंच गई थी। यह आंकड़ा 2022 तक के लिए सरकार के लक्ष्य के एक तिहाई से भी कम है।

सीईईडब्ल्यू रिपोर्ट यह भी कहती है कि भारतीय सौर सेल और मॉड्यूल निर्माता के पास अभी भारत सरकार के महत्वाकांक्षी लक्ष्यों को प्राप्त करने की क्षमता नहीं है। वर्ष 2022 तक 100 गीगावाट की स्थापना के लक्ष्य को पूरा करने के लिए देश को हर साल 20 गीगावाट से अधिक सौर क्षमता विकसित करने की आवश्यकता होगी। हालांकि, जैसा कि कहा गया है सेल और मॉड्यूल के निर्माण के लिए भारत की वार्षिक स्थापित क्षमता क्रमशः 3.1 गीगावाट और 8.9 गीगावाट है।

ऑस्ट्रेलिया स्थित इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस के एनर्जी फाइनांस स्टडीज के डायरेक्टर टिम बकले ने कारवां पत्रिका को कहा, “सोलर-मॉड्यूल आयात शुल्क ऐसे समय में भारत का स्वयं का लक्ष्य है जब वर्ल्ड लीडर के तौर पर भारत के सौर मिशन ने इसे विश्व मंच के केंद्र में रख दिया।” सीईईडब्ल्यू के अनुसार, भारत में पीवी उपकरणों के निर्माण में कुछ दोष हैं जिन्हें सेफगार्ड ड्यूटी लगाने का फैसला करते समय सरकार ने ध्यान नहीं दिया था। इनमें उच्च बिजली की कीमतें, ऋण प्राप्त करने के लिए कमजोर शर्तें, संचालन का निम्न स्तर, मांग की कमी और पुरानी तकनीक शामिल हैं।

केवल सेफगार्ड ड्यूटी पहले से भी सहायक नहीं था और हुआ भी नहीं।

इस तथ्य के बावजूद कि घरेलू निर्माताओं के बाजार शेयरों में सेफगार्ड ड्यूटी ने बेहतर परिणाम नहीं दिया। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने अगस्त 2018 और जुलाई 2019 के बीच 3,500 करोड़ रुपये एकत्र किए। यह पैसा अभी तक सौर ऊर्जा क्षेत्र के किसी विशेष उपयोग के लिए निश्चित नहीं की गई है।

सीईईडब्ल्यू रिपोर्ट ने सिफारिश की है कि इस फंड का इस्तेमाल सोलर पीवी नीलामियों में कम टैरिफ, उपयुक्त परियोजनाओं के लिए सेफगार्ड ड्यूटी लगाना और घरेलू विनिर्माण का समर्थन करने के लिए सुनिश्चित किया जाए।

अडानी का हाथ: सेफगार्ड ड्यूटी सभी पर क्यों लगाया गया?

5 दिसंबर 2017 को वित्त मंत्रालय में अब निष्क्रिय हुए डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ सेफगार्ड्स के सामने इंडियन सोलर मैन्यूफैक्चर एसोसिएशन (23 सोलर उपकरण निर्माता के प्रतिनिधि) द्वारा दिए गए आवेदन के लिए सेफगार्ड ड्यूटी लागू की जाने वाली ये अधिसूचना एक साधन बन गई।

इसे मुंद्रा सोलर, वेबसोल एनर्जी सिस्टम्स, हेलियोस फोटोवोल्टिक, इंडोसोलर लिमिटेड और ज्यूपिटर सोलर पावर की ओर से दायर किया गया था। मुंद्रा सोलर गौतम अडानी की अगुवाई वाली अडानी समूह की कंपनियों का हिस्सा है। अडानी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क़रीबी माना जाता है।

दिलचस्प बात यह है कि इनमें से तीन कंपनियां, मुंद्रा सोलर, हेलिओस और वेबसोल सभी एसईजेड में स्थित हैं और सेफगार्ड ड्यूटी का भुगतान करना पड़ता होगा।

2005 के एसईजेड अधिनियम की धारा 30 के तहत डीटीए में अपने उत्पादों को बेचने वाली इकाइयों को सेफगार्ड ड्यूटी देना पड़ता है।

फिर भी एसईजेड में काम करने वाली इन तीन कंपनियों ने यह तर्क देते हुए बातचीत किया कि उन्हें इस शुल्क को देने से छूट दिया जाना चाहिए क्योंकि उनका "घरेलू" औद्योगिक इकाइयों के रूप में चयन हो चुका है। कुछ समय के लिए, ऐसा लगा कि उनके प्रयास सफल होंगे।

क्या उन्हें लगा कि उनके लिए नियम बदले जाएंगे? या यह ग़लत हिसाब था?

आइएसएमए द्वारा शिकायतें किए जाने के बाद डीजीएस के तत्कालीन डायरेक्टर संदीप एम. भटनागर ने सौर उपकरणों के "डंपिंग" (विदेशी बाज़ारों में कम मूल्य पर बिक्री) के आरोपों की जांच की। उनकी प्रारंभिक जांच 5 जनवरी 2018 को जारी किए गए थे। उन्होंने दो देशों मलेशिया और चीन से आयातित सौर सेल पर 70% के भारी आयात शुल्क लगाने की सिफारिश की थी।

उन्होंने अडानी समूह की कंपनी की अगुवाई वाले समूह से सहमति जताई और तर्क दिया कि एसईजेड के भीतर काम करने वाली इकाइयों को "घरेलू उद्योग" के रूप में माना जा सकता है क्योंकि वे "भारत में संरचनात्मक रुप से काफी अधिक थे।" उनके पड़ताल में ये भी शामिल था कि एसईजेड में मौजूद इकाइयां घरेलू कानूनों (हालांकि कुछ छूट के साथ), रोजगार पैदा करने, घरेलू बिक्री करने, और इसी तरह के अन्य कार्यों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।

हालांकि, भटनागर ने कहा था कि भूमि के क़ानून की यह व्याख्या उनके अधिकार क्षेत्र में नहीं है क्योंकि यह एसईजेड अधिनियम के अधीन आता है। इस विवादास्पद मुद्दे पर सरकार द्वारा अंतिम निर्णय लिया जाएगा। हालांकि भटनागर द्वारा प्रारंभिक जांच में की गई सिफारिशों के बावजूद भारत सरकार ने कोई नीतिगत बदलाव नहीं किया।

मई 2018 में डीजीएस को पूर्ववर्ती डायरेक्टर जनरल ऑफ एंटी-डंपिंग एंड अलाइट ड्यूटी में विलय कर दिया गया और डायरेक्टोरेट जनरल ऑफ ट्रेड रीमेडिज (डीजीटीआर) नाम रखा गया और वाणिज्य तथा उद्योग मंत्रालय के प्रशासनिक दायरे में लाया गया।

आइएसएमए की याचिका के आधार पर नवगठित डीजीटीआर द्वारा एक नई जांच की गई। इसने जुलाई 2018 में अपनी रिपोर्ट जारी की।

इस रिपोर्ट के निष्कर्ष दो महत्वपूर्ण आधारों पर डीजीएस द्वारा पहले की रिपोर्ट से अलग थे। यह चाहता था कि सेफगार्ड ड्यूटी 70% से बहुत कम हो और कई चरणों में कम करने की सिफारिश की। पहले साल में 25% की ड्यूटी लगनी थी, उसके बाद अगले छह महीने में 20% और बाकी छह महीने की अवधि में 15% लगानी थी।

विशेषतः डीजीटीआर एसईजेड से बाहर काम करने वाली कंपनियों को "घरेलू उद्योग" का दर्जा देने पर सहमत नहीं था। उन्होंने तर्क दिया कि डीटीए में एसईजेड में स्थित एक इकाई द्वारा उत्पादों को बेचना एक "अपवाद" था और एसईजेड में किसी कंपनी के लिए एक "घरेलू" इकाई के रूप में वर्णित करने का उचित कारण नहीं हो सकता है।

भले ही मुंद्रा सोलर की अगुवाई वाली एसईजेड फर्मों को सुरक्षा शुल्क से छूट देने की पैरवी की गई हो लेकिन वित्त मंत्रालय ने 30 जुलाई को डीजीटीआर की सिफारिशों को मंज़ूर करते हुए उनकी मांगों को नज़रअंदाज़ कर दिया था।

20 अगस्त, 2018 तक ओडिशा उच्च न्यायालय द्वारा सेफगार्ड ड्यूटी के कार्यान्वयन पर स्थगन आदेश दिए जाने के बावजूद मंत्रालय ने अधिसूचना जारी की। ओडिशा उच्च न्यायालय की एक पीठ ने तब वित्त मंत्रालय को निर्देश दिया कि वह अधिसूचना को वापस ले जो डीजीटीआर की सिफारिशों को मंजूरी देता है। फिर वित्त मंत्रालय ने सोलर आयात पर लगाए गए सेफगार्ड ड्यूटी पर रोक लगा दिया। सुप्रीम कोर्ट ने सितंबर 2018 में ओडिशा उच्च न्यायालय के रोक को रद्द कर दिया। इस तरह प्रधानमंत्री के साथ निकटता के बावजूद अडानी की कंपनी वित्त मंत्रालय को प्रभावित करने में असफल रही।

लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं।

Solar Power
Safeguard Duty SEZ Act
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Mundra Solar
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Finance Ministry
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