NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
आयुष्मान भारत : मरीज़ों से पहले अस्पतालों को इलाज की ज़रूरत है
सरकारी अस्पतालों और प्राइवेट अस्पतालों में एक ही बीमारी के इलाज की अलग-अलग कीमत वसूली जा रही है। सरकारी अस्पतालों में जहां यह कीमत कम है वहीं प्राइवेट अस्पतालों में यह कीमत बहुत अधिक है।
अजय कुमार
14 Jan 2019
सांकेतिक तस्वीर

आयुष्मान भारत योजना को लागू हुए 100 से अधिक दिन होने जा रहे हैं। साल 2018 के बजट में केंद्र सरकार ने इस योजना का बड़े ही दमखम के साथ ऐलान किया था। ऐलान के समय के शब्द थे कि यह योजना देश में स्वास्थ्य क्षेत्र की अभी तक की सबसे बड़ी योजना है। इस योजना की प्रकृति एक तरह के बीमा योजना की तरह है। इस योजना के तहत 10 करोड़ परिवार यानी कि 50 करोड़ लोगों को बीमा दिया जाना है। इन परिवारों को सालाना 5 लाख का हेल्थ कवरेज देने की बात है।  जिससे एक साथ तकरीबन 50 करोड़ लोगों को हेल्थ संबंधी परेशानियों से मुक्ति मिल जाएगी।

अभी तक इस योजना से जुड़ चुके अस्पतालों की संख्या तकरीबन साढ़े पंद्रह हजार है। तकरीबन 4145727 लोगों को इस योजना के तहत गोल्डन कार्ड मिल गया है। यानी अभी तक इस योजना के तहत बीमा कवर से जुड़ चुके लोगों की संख्या 4145727 हो चुकी है, जिसमें से तकरीबन साढ़े सात लाख लोगों ने किसी प्राइवेट या पब्लिक हॉस्पिटल से इस योजना का फायदा उठाना शुरू कर दिया है। अभी भी इस योजना को दिल्ली, तेलंगाना और ओडिशा जैसे राज्यों ने नहीं अपनाया है और अभी हाल में ही बंगाल ने भी इस योजना को स्वीकार करने से मना कर दिया था।

अभी इस योजना को काम करते हुए तकरीबन 100 दिन हुए हैं। इस लिहाज से इस योजना की कामयाबी और नाकामयाबी का खुलकर पता लगा पाना मुश्किल है, लेकिन फिर भी कुछ बातें हैं जिन पर गौर करना ज़रूरी है। बहुत सारे लोगों की यह शिकायत है कि सरकारी अस्पतालों और प्राइवेट अस्पतालों में एक ही बीमारी के इलाज की अलग-अलग कीमत वसूली जा रही है। सरकारी अस्पतालों में जहां यह कीमत कम है वहीं प्राइवेट अस्पतालों में यह कीमत बहुत अधिक है। इस बीमा योजना के तहत दूसरे और तीसरे स्वास्थ्य स्तर की 1350 बीमारियाँ शामिल हैं। यानी अस्पताल में भर्ती होने और भर्ती होने के बाद किसी बीमारी से लेकर किसी जरूरी अंग के प्रत्यारोपण से सम्बंधित 1350 इलाज इस बीमा योजना के तहत कवर होते हैं। यहाँ सबसे बड़ी परेशानी है कि अस्पतालों के बदलने के साथ इलाजों की कीमत भी बदलती जाती है। इस तरह कागज पर यह योजना भले ही ठीक-ठाक दिखे लेकिन जमीन पर इसकी सच्चाई बहुत अलग है।

भारतीय राज्य स्वास्थ्य क्षेत्र में अभी भी जीडीपी का केवल 1.3 फीसदी खर्च करता है। जो पूरे विश्व द्वारा अपने नागरिकों पर खर्च किये जाने वाले औसत तकरीबन छह फीसदी से भी कम है। हमारे यहाँ की जनता प्राइवेट सेक्टर से जुड़े अस्पतालों पर सबसे अधिक खर्च करती है। पूरे स्वास्थ्य खर्चे का तकरीबन 70 फीसदी से अधिक खर्चे से होने वाली कमाई प्राइवेट सेक्टर को होती है। ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारे यहाँ सरकारी अस्पतालों की कमी है और जो काम कर रहे हैं, उनकी हालत बहुत अधिक खराब है। ऐसे में हमारी देश की आम जनता प्राइवेट क्षेत्र के हॉस्पिटल में जाने के लिए मजबूर होती है। भारत की तकरीबन चार करोड़ जनता हर साल अपनी बीमारी की खर्चें की वजह से कर्जें में डूब जाती है। ऐसे में बीमा योजनाओं के सहारे स्वास्थ्य क्षेत्र की कायापलट की उम्मीद बहुत कमजोर लगती है।

सभी जानकारों का कहना है कि दूसरे स्तर यानी कि जिला स्तर और मेडिकल कॉलेज की स्वास्थ्य बुनियादी संरचनाओं का बहुत बुरा हाल है। तहसील और जिला स्तर में पर्याप्त मानव क्षमता की कमी है। सार्वजनिक क्षेत्र के अस्पताल अपनी क्षमताओं से ज्यादा काम कर रहे हैं। एक सर्जरी के लिए एक मरीज को ऐसे अस्पतालों में एक से दो सालों तक का इंतजार करना पड़ता है। स्वाथ्य क्षेत्र की हालत तभी सुधरेगी जब स्वास्थ्य क्षेत्र के बुनियादी ढांचे या संरचनाओं पर अधिक खर्च किया जाएगा। यानी अस्पताल बनाने से लेकर डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने और मरीजों के लिए बेड की संख्या बढ़ाने से लेकर दवा की कीमत कम करने तक में काम करना होगा। अभी हाल फिलहाल भारत के 11 हजार जनसंख्या पर तकरीबन एक डॉक्टर मौजूद है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मानक के तहत यह संख्या एक हजार लोगों पर एक होनी चाहिए। साथ में अभी भी WHO मानक के तहत भारत में मरीजों के लिए बेड़ों की संख्या कम है।

इस तरह से यह साफ़ नजर आता है कि इस योजना कि कामयाबी प्राइवेट हॉस्पिटलों के रहमों करम पर निर्भर है। लेकिन क्या प्राइवेट सेक्टर के अस्पताल इस योजना पर निर्भर हैं? बहुत सारे मरीजों का कहना है कि प्राइवेट सेक्टर के अस्पताल में इलाज की बहुत अधिक कीमत, पारदर्शिता की कमी और अनैतिक व्यवहार से हमें निजात मिलना बहुत मुश्किल है। ये अस्पताल हमे आसानी से ठग लेते हैं। आयुष्मान भारत के सौ दिन बीत गए लेकिन किसी भी प्राइवेट हॉस्पिटल में यह देखने को नहीं मिला कि घुटना बदलवाने की कीमत साढ़े तीन लाख से कम होकर सरकारी अस्पतालों के कीमत के बराबर यानी तकरीबन अस्सी हजार हो गई हो या बाईपास सर्जरी की कीमत प्राइवेट अस्पतालों में चार लाख से कम होकर सरकारी अस्पतालों के कीमत यानी डेढ़ लाख के बराबर हो गई हो।

साथ में ऐसा भी है कि बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल इस योजना में शामिल होने के लिए तैयार नहीं हो रहे हैं। उन्हें अपने फायदे से समझौता करना नागवार है। इसके बाद इस योजना के लिए केवल दूसरे और तीसरे स्तर की बीमारियां ही शामिल हैं। यानी हॉस्पिटल में भर्ती होने या अंग प्रत्यारोपण से जुड़े इलाज ही इसमें शामिल है। यानी इसके अलावा जो भी बीमारियां हैं, जिनके लिए हॉस्पिटल में भरती होने की जरूरत नहीं होती है भले ही बीमारी गंभीर हो और दवा सालों साल चले, उसे इस योजना में शामिल नहीं किया गया है। ऐसे में केवल दूसरे और तीसरे स्तर के इलाज से जुड़ी योजनाओ को इस बीमा योजना में कवर करने से भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र की हालत सुधर जाए, यह भी नामुमकिन लगता है।

इस योजना को केंद्र और राज्य सरकार दोनों के साझे कोशिश द्वारा लागू किया जाना है। जो 60:40 में इसका खर्च आपस में बाटेंगे। अब भी दिल्ली, ओडिशा और तेलंगाना जैसे राज्यों ने इस पर अपनी सहमति नहीं जताई है। इनका कहना है कि यहां पर पहले से ही बीमा कवर की योजनाएं मौजूद हैं तो इन्हें किसी दूसरी योजना की जरूरत नहीं है। बंगाल ने तो इस योजना से यह कहते हुए हाथ खींच लिया कि वह इसका चालीस फीसदी खर्चा उठाने के लिए तैयार नहीं है। सरकार  ने इस साल आयुष्मान भारत के लिए केवल 3 हजार करोड़ रुपये की राशि निर्धारित की है। जबकि इस साल इस पर तकरीबन 11 हजार करोड़ खर्च का अनुमान है। ऐसे में आयुष्मान भारत की हालत पहले की राष्ट्रीय स्वास्थ्य  बीमा कवर योजनाओं की तरह हो सकती है। जो फंड की कमी की वजह नाकामयाब रही थीं। इस योजना के आलोचक कहते हैं कि यह योजना इस तरह है जैसे बीमारी से ठीक हो चुके मरीज को दवा दी जाती है। जबकि जरूरत स्वास्थ्य क्षेत्र की बीमारी को दूर करने की है जो स्वास्थ्य क्षेत्र के हर स्तर पर सरकारी अस्पतालों की कमी और आधारभूत संरचनाओं के बुरे हालत से जुड़ी है 

ayushman bharat
Ayushman Bharat Scheme
Ayushman Bharat Health Insurance
health care facilities
health sector in India
Hospitals
corporate hospital
government policies
government hospital
Narendra modi
Modi government

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License