NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आंदोलन
नज़रिया
भारत
राजनीति
बात बोलेगी: साज़िश के छुपे पत्तों को भी बेनक़ाब किया किसान परेड ने
किसान आंदोलन को ध्वस्त करने और बदनाम करने की सत्ता की साज़िश कोई नई नहीं।
भाषा सिंह
27 Jan 2021
किसान आंदोलन को ध्वस्त करने और बदनाम करने की सत्ता की साज़िश कोई नई नहीं।

दिल्ली पुलिस ने किसान नेताओं पर एफआईआर दर्ज कर दी है। इसकी आशंका 26 जनवरी से ही थी। पहले से हाशिये पर पड़े संदिग्ध किसान नेता, वीएम सिंह और भारतीय किसान यूनियन-भानू ने खुद को इस आंदोलन से अलग कर लिया। उधर, इंडियन नेशनल लोकदल के विधायक अभय चौटाला ने तीन कृषि कानूनों की वापसी और किसान आंदोलन के पक्ष में हरियाणा विधानसभा से इस्तीफा दे दिया। यानी, किसान परेड के बाद से कई छुपे पत्ते खुलने लगे।

सारा मीडिया किसानों पर हमलावर हो गया और इसकी तो पूरी उम्मीद ही थी। टीवी चैनलों से लेकर तमाम अखबार इसे गणतंत्र पर प्रहार सहित न जाने क्या-क्या बताने पर उतारू हो गये। किसानों पर हमला करने का काम सबसे पहले उस नेता ने किया जो तमाम विवादों के बाद दोबारा किसान नेताओं के साथ सरकारी वार्ता में बड़ी मुश्किल से शामिल हुए थे, उन्हें दिल्ली में बैरिकेड तोड़ कर घुसने की घटना पर तो शर्म आ गई और इस पर वह सियापा करने लगे, लेकिन यह नहीं बता पाए कि लाल किले पर धार्मिक झंडा लगाने वाले दीप सिद्धू का भारतीय जनता पार्टी (भाजपा), प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह और भाजपा सांसद हेमा मालिनी, धर्मेंद्र और सनी देओल से क्या रिश्ता है। इन तमाम लोगों के साथ दीप सिद्धू की फोटो 26 की शाम से ही सोशल मीडिया पर वायरल हो चुकी थी।

 इसे पढ़ें :कौन है दीप सिद्धू जिसने लाल क़िले पर निशान साहिब फहराने की ज़िम्मेदारी ली है?

 सिर्फ़ इतना ही नहीं 25 जनवरी की रात को जब दीप सिद्धू और उनके लोग सिंघु बार्डर के मंच को अपने कब्जे में करके वहां से दिल्ली के भीतर घुसने वाली उत्तेजक बातें कर रहे थे, तब भी वहां मौजूद किसानों ने उन्हें भगा दिया था। आरोप है कि दीप सिद्धू ने बहुत साजिशाना ढंग से पिछले दो महीने से आंदोलनरत किसानों और खासतौर से नौजवानों को भड़काने की कोशिश की, जो सरकारी उपेक्षा से बहुत नाराज थे और कुछ बड़ा करना चाहते थे।

मैं उस समय टिकरी बार्डर पर थी, महिला किसानों की किसान परेड की तैयारियों पर उनसे बातचीत कर रही थी। सिंघु बार्डर में मंच पर जो हुआ, उसे लेकर टिकरी में भी तनाव हो गया। खबरें आने लगीं कि ऐसा ही कुछ टिकरी में भी हो सकता है। लेकिन यहां मौजूद यूनियनों (जत्थेबंदियों) ने अपने वॉलेंटियरों की फौज को सक्रिय कर दिया। रात से ही यह मुस्तैदी शुरू हो गई और टिकरी में 26 की सुबह से माइक से इस बात का ऐलान होने लग गया कि कोई रूट को छोड़ेगा नहीं, हिंसा या उकसावे की बात नहीं करेगा। सिंघु में भी जत्थेबंदियों ने स्थिति पर नियंत्रण करने की कवायद शुरू कर दी।

बहरहाल, जो हुआ वह सबके सामने था। सात जगह किसान परेड में से सिर्फ दो जगह बैरिकेड तोड़े गए, एक किसान की मौत हुई, बाकी कोई बड़ा जान-माल का नुकसान नहीं हुआ। कोई दुकान नहीं जली, कोई आम नागरिक निशाने पर नहीं आया। निश्चित तौर पर हिंसा हुई, कुछ जगहों पर उग्र टकराव हुआ, अफरा-तफरी मची, लेकिन पहले आंदोलनों जैसा कोई खौफनाक मंजर सामने नहीं आया। किसान ट्रैक्टर लेकर दिल्ली की सड़कों पर आए और अधिकतर अपने-अपने मोर्चों पर वापस चले गए।

 साथ ही एक और वीडियो सामने आया, जिसे ट्रिब्यून ने अपनी वेबसाइट पर लगाया, जिसमें दिखाया गया है कि झंडा फरहाने के बाद किस तरह से किसानों ने दीप सिद्धू को भगाया। 

कुछ बातों को बहुत साफ-साफ कहने की जरूरत है, जिसे मैं न्यूज़क्लिक पर अपनी ग्राउंड रिपोर्ट में लगातार कह रही हूं और दिखा भी रही हूं— पहली यह कि किसी भी आंदोलन में बैरिकेड तोड़ना जघन्य अपराध नहीं होता और न ही वह गणतंत्र पर प्रहार होता है। ये तमाम लोग एक फिल्म के विरोध में उतरी कर्णी सेना की हिंसा, उपद्रव और आगजनी को तो पचा ले जाते हैं, जिसमें करोड़ों रुपये की संपत्ति स्वाहा होती है, यहां फिर इस तरह की दक्षिणपंथी, जातिवादी संगठनों की हत्यारी आपराधिक मानसिकता पर ऐसे छाती पीटते नहीं नजर आते और न ही तब इनके लिए भारतीय लोकतंत्र पर हमला होता है। किसानों द्वारा बैरिकेड तोड़े जाने पर जिस तरह से हंगामा मचा और जिस तरह से तमाम पत्रकारों ने एक ही ट्वीट किया, उससे साफ हो गया कि स्क्रिप्ट कहां से आई है। इसीलिए यह तैयारी कहां से चल रही थी, यह अब कोई छुपी हुई बात नहीं है।  

pk

किसानों ने 26 नवंबर से जो धैर्य का परिचय दिया, वह अभूतपूर्व है। करीब 150 किसानों की इस दौरान जानें गईं, जिसके लिए 100 फीसदी सरकार की हठधर्मिता जिम्मेवार है। 26 जनवरी को किसान परेड, ट्रैक्टर परेड की किसानों ने जिस बड़े पैमाने पर तैयारी की थी। ट्रैक्टर सजाए थे। झांकियां बनाई थीं, परेड के दौरान अपने खाने पीने का इंतजाम किया था, उससे साफ था कि वह देश और दुनिया के सामने अपना गुस्सा जाहिर करना चाहते थे। वे अपने जख्म दिखाना चाहते थे। और उन्हें जो रूट मिला था, उससे वह खुश नहीं थे, क्योंकि इसमें दिल्ली के लोग उन्हें नहीं देख सकते थे। लिहाजा, वे अपने नेताओं पर इस बात का भी दबाव बना रहे थे कि वे कुछ और रूट के लिए वार्ता करें। इसी का फायदा दीप सिद्धू जैसे भाजपा के मोहरों ने उठाया। निश्चित तौर पर उन्हें हवा उन नेताओं ने भी दी होगी, जो हाशिये पर डाल दिये गये थे— बुराड़ी प्रकरण के बाद से (26 नवंबर 2020 को जब किसान दिल्ली सरहद पर आये थे, तो केंद्र ने उन्हें बुराड़ी में रहने की जगह दी थी, जिसे बहुमत से नकार दिया गया था। सिर्फ दो लोगों को छोड़ कर बाकी तमाम किसान नेताओं ने कहा था कि बुराड़ी जेल है)। ये सारे कयास हैं, जिन पर अब ज्यादा माथा-पच्ची करने से बहुत हासिल नहीं होगा।

दूसरी अहम बात यह है कि किसान ट्रैक्टर परेड, तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए केंद्र की मोदी सरकार पर दबाव डालने और किसानों की शक्ति प्रदर्शन के लिए थी। और यह मांग अभी भी जस की तस बनी हुई है। इसके पक्ष में भारत के नागरिकों का एक बड़ा तबका सामने आया है। इसका एक उदाहरण कल, मंगलवार को उस समय भी मैंने देखा जब हिंसक झडप से झुलसे नांगलोई से देर शाम को मैं लौटी। उस समय एक तरफ जहां पुलिस की टूटी हुई बसें पड़ी हुईं थी, वहीं से थोड़ी दूर पर किसान ट्रैक्टर मार्च कर रहे थे और सड़क के दोनों तरफ नागरिकों की बड़ी संख्या उनके समर्थन में ताली बजा रही थी। उन्हें पानी और बिस्कुट दे रही थी। ऐसा वह बड़ी संख्या में मौजूद पुलिस फोर्स के बावजूद कर रही थी।

ऐसा ही दृश्य सुबह दूसरी सड़कों पर देखने को मिला था। एक हद तक जनता ने और खास तौर से गरीब-मेहनतकश तबके ने इसे अपनी परेड माना और किसानों की हौसला आफजाई की। फूल बरसाए। मैं जब शाम को टिकरी से लौट रही थी, तो रास्ते में सड़कों पर फूल गिरे हुए मिले और सड़क किनारे लोगों का किसानों को चाय पिलाना जारी था।

लिहाजा यह कहना कि पूरी किसान परेड उग्र हो गई थी, गणतंत्र पर प्रहार कर रही थी, दरअसल जनतंत्र पर प्रहार है, उसकी भावनाओं पर प्रहार है। और हिंसा किसी भी रूप में निंदनीय है—इसे कहने की बार-बार जरूरत नहीं पड़नी चाहिए और न ही किसान नेतृत्व को रक्षात्मक या बैक-फुट पर बात करने की जरूरत है। क्योंकि इस देश ने यह छोटे-मोटे बैरिकेड तोड़ना नहीं, बाबरी मस्जिद का ध्वंस देखा है!

 (भाषा सिंह वरिष्ठ पत्रकार हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

 

Tractor Parade
republic day
minimum support price
Gujarat Farmers Protest
farmers in Delhi
Deep Sidhu
Red Fort

Related Stories

एमएसपी भविष्य की अराजकता के ख़िलाफ़ बीमा है : अर्थशास्त्री सुखपाल सिंह

मुश्किलों से जूझ रहे किसानों का भारत बंद आज

भारत बंद: ‘उड़ीसा में न्यूनतम समर्थन मूल्य ही अब अधिकतम मूल्य है, जो हमें मंज़ूर नहीं’

एमएसपी की बढ़ोतरी को किसानों ने बताया जुमलेबाज़ी, कृषि मंत्री के बयान पर भी ज़ाहिर की नाराज़गी

पड़ताल: एमएसपी पर सरकार बनाम किसान, कौन किस सीमा तक सही?

नारीवादी नवशरन सिंह के विचार: किसान आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी से क्यों घबराती है सरकार

तिरछी नज़र: 26 जनवरी बिल्कुल ही सरकार जी की प्लानिंग के मुताबिक रही

टिकरी बॉर्डर से ग्राउंड रिपोर्ट:  स्थानीय लोगों ने कहा- हमें किसान आंदोलन से कोई समस्या नहीं

किसानों के खिलाफ़ टीवी चैनलों के बेईमान कवरेज़ का सच!

ट्रैक्टर परेड: हिंसा के लिए किसान दोषी नहीं


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License