NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बच्चों के साथ बलात्कार के मामलें में: मोदी की मौत की सज़ा का अध्यादेश एक गहरी चाल है
मृत्युदंड बच्चों/महिलाओं के विरुद्ध अपराधों को रोकने में कैसे मदद कर सकता है जब मौजूदा कानून के तहत केवल 3 प्रतिशत सज़ा दर है और अदालतों में 89 प्रतिशत मामले लंबित पड़े हैं?
सुबोध वर्मा
24 Apr 2018
Translated by महेश कुमार
Child Rape

बच्चों के बलात्कार और हत्या की बढती आंधी  विशेष रूप से भयानक कठुआ मामले ने देश के भीतर और बाहर इस घटना ने शर्मशार कर दिया है। चूंकि बीजेपी समर्थक लोग कठुआ मामले में आरोपित हैं, और चूंकि उनके कथित उद्देश्य कुछ और नहीं बल्कि ज्यादा सांप्रदायिक था, सत्तारूढ़ मोदी सरकार इस पर  चुप्पी साधे रही और उसके लिए मोदी सरकार की अक्षमता की विश्व भर में आलोचना की गई।

इसमें जाने से पह्के कि मौत की सज़ा वास्तव में मदद करती है, यौन अपराधों के समबन्ध में (पीओसीएसओ) अधिनियम से बच्चों के संरक्षण के बारे में एक नजर डालना जरूरी है। यह कानून 2012 में पारित किया गया था। यह कानून यौन उत्पीड़न के मामलें में विशेष प्रक्रियाओं, और फास्ट ट्रैक जांच के तहत “भेदक यौन हमले'' के लिए सात साल तक की सज़ा और बढ़ी हुई भेदक यौन उत्पीड़न' के लिए दस वर्षों तक की सज़ा और 'अनगिनत यौन हमले' के लिए पांच वर्ष की सज़ा प्रदान करता है। ' और यह भी प्रावधान है कि इस तरह के मामलों के लिए   विशेष अदालतें स्थापित की जाएंगी, जांच तीन महीने में पूरी की जाएगी, और एक वर्ष में जांच (जहां तक संभव हो) पूरी की जायेगी। यह इसके अलावा, मीडिया परीक्षण, कैमरा परीक्षणों में और पीड़ित बच्चे की रक्षा के लिए कई उनके व्यवहार सम्बन्धी उपायों का भी संचालन करता है।

2016 में, भारत में इस अधिनियम के तहत 36,022 मामले दर्ज किए गए थे। 2015 में पुलिस के पास 12,000 से अधिक लंबित मामले पड़े थे, इसलिए पुलिस 2016 में 48,000 से अधिक पीओसीएसओ के मामलों की जांच कर रही थी। वे जांच पूरी करने और या चार्ज शीट दाखिल करने या फिर अन्य तरीकों से इन मामलों में से लगभग 33,000 का निपटान करने में कामयाब रहे। अगले साल फिर से एक तिहाई लंबित मामले इसमें जुड़ जाते हैं जिन्हें पुलिस हल नहीं कर पाती। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड्स ब्यूरो से यह आंकड़ा केवल 2016 तक उपलब्ध है।

इसके बाद ये मामलें अदालतों के हर स्तर पर कैसे चलते हैं? यह और भी बदतर हैं। 2016 में लगभग 31,000 और मामले जुड़ जाने से अदालतों में बाल यौन शोषण और बलात्कार के 70,000 से अधिक मामले लंबित थे। इसलिए, उन्हें लाखों मामलों का सामना करना पड़ रहा था। उन्होंने 90,000 लंबित मामलों को छोड़कर लगभग केवल 11,000 मामलों का निपटारा किया।

लेकिन सबसे बुरा यह है: कि अदालतें केवल उनके सामने पेश 30 प्रतिशत  मामलों में ही दोषी ठहराने में सक्षम थीं। इसका मतलब है कि बच्चों के साथ बलात्कार करने के आरोप के दस लोगों में से सात लोग इस गंभीर अपराध से विशेष कानून के तहत छूट गए।

इस स्थिति में मौत की सज़ा अपराधों को रोकने और सज़ा देने में केसे मदद करेगी? जांच और अभियोजन प्रक्रिया स्पष्ट रूप से दोषपूर्ण है - यही कारण है कि इस तरह की प्रक्रिया से सज़ा दरें काफी कम है। यदि मृत्युदंड को पेश किया गया है, तो कोई कारण नहीं है कि यह प्रक्रिया को मजबूत या अधिक कुशल बनागा।

वास्तव में, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति (एआईडीडब्ल्यूए) ने एक बयान में कहा है कि सज़ा की निश्चितता इसकी गंभीरता से बेहतर प्रतिरोधी है। जांच और परीक्षण प्रक्रिया में "चमकदार दोष" की आलोचना करते हुए, एआईडीडब्ल्यूए ने बताया कि "महत्वपूर्ण सबूत एकत्र नहीं किए जाते हैं और जांच के दौरान पुलिस द्वारा पीछा किए जाने वाले प्रोटोकॉल को छोड़ दिया जाता है"।

असल में, एआईडीडब्ल्यूए ने कहा है कि "मौत की सज़ा अपराध के लिए अपराधियों के प्रति प्रतिरोधी होने के बजाय, मृत्युदंड वास्तव में न्यायाधीशों पर प्रतिबंधक के रूप में कार्य कर सकता है, जो मौत की सज़ा देने के फैसले देने में संकोच करेंगे"। यह भी कहा गया है कि चूंकि बाल यौन दुर्व्यवहार के मामलों के अपराध में अधिकांश लोगों परिवार से या फिर रिश्तेदार होते हैं इसलिए परिवारों को रिपोर्ट करने में संकोच हो सकता है अगर उन्हें मृत्युदंड दिया जाता है। 2015 के एनसीआरबी डेटा से पता चलता है कि लगभग 95 प्रतिशत बाल यौन अपराध परिवार के सदस्यों, पड़ोसियों या बच्चे को जानने वाले व्यक्तियों द्वारा किए गए थे।

तो, मोदी सरकार वास्तव में बाल बलात्कार और हत्या के मुद्दे से निपट नहीं रही है। यह केवल लोगों के सामने एक झूठी उम्मीद दिखाने की कोशिश है, जैसा कि उसने कई अन्य नीतिगत मुद्दों पर किया है।

इस मुद्दे को वास्तविक गंभीरता से हल करने के लिए, उन लोगों के लिए प्रभावी जांच और अभियोजन पक्ष के साथ संयुक्त सामाजिक नीति की आवश्यक है। सामाजिक नीति में लोगों को शिक्षित करना शामिल है, विशेष रूप से पुरुष, महिलाओं (बच्चों सहित) को सम्मान के साथ  और बराबरी के रूप में देखना, यौन उत्पीड़न और अकेले प्रजनन की बातचीत के रूप में नहीं। आरएसएस/बीजेपी इस कार्य में मोटे तौर पर समझ के माले में काफी विकलांग हैं क्योंकि इसका महिलाओं के प्रति प्रतिवादी दृष्टिकोण महिलाओं को इस स्थिति में जीने के लिए मजबूर करता हैं।

Child Rape
death penalty
Narendra modi
POCSO

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति

गैर-लोकतांत्रिक शिक्षानीति का बढ़ता विरोध: कर्नाटक के बुद्धिजीवियों ने रास्ता दिखाया

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

PM की इतनी बेअदबी क्यों कर रहे हैं CM? आख़िर कौन है ज़िम्मेदार?

छात्र संसद: "नई शिक्षा नीति आधुनिक युग में एकलव्य बनाने वाला दस्तावेज़"

भाजपा के लिए सिर्फ़ वोट बैंक है मुसलमान?... संसद भेजने से करती है परहेज़

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 


बाकी खबरें

  • राज वाल्मीकि
    दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!
    27 May 2022
    दलित परिप्रेक्ष्य से देखें तो इन आठ सालों में दलितों पर लगातार अत्याचार बढ़े हैं। दलित हत्याओं के मामले बढ़े हैं। दलित महिलाओं पर बलात्कार बढ़े हैं। जातिगत भेदभाव बढ़े हैं।
  • रवि शंकर दुबे
    उपचुनाव:  6 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में 23 जून को मतदान
    27 May 2022
    उत्तर प्रदेश की आज़मगढ़ और रामपुर लोकसभा सीट समेत 6 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश में 23 जून को मतदान होंगे।
  • एजाज़ अशरफ़
    ज्ञानवापी कांड एडीएम जबलपुर की याद क्यों दिलाता है
    27 May 2022
    आपातकाल के ज़माने में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले ने ग़लत तरीक़े से हिरासत में लिये जाने पर भी नागरिकों को राहत देने से इनकार कर दिया था। और अब शीर्ष अदालत के आदेश से पूजा स्थलों को लेकर विवादों की झड़ी…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में पिछले 24 घंटों में कोरोना के 2,710 नए मामले, 14 लोगों की मौत
    27 May 2022
    महाराष्ट्र में 83 दिनों के बाद कोरोना के 500 से ज़्यादा 511 मामले दर्ज किए गए है | महराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे ने कहा है की प्रत्येक व्यक्ति को सावधान और सचेत रहने की जरूरत है, क्योंकि कोरोना…
  • एम. के. भद्रकुमार
    90 दिनों के युद्ध के बाद का क्या हैं यूक्रेन के हालात
    27 May 2022
    रूस की सर्वोच्च प्राथमिकता क्रीमिया के लिए एक कॉरिडोर स्थापित करना और उस क्षेत्र के विकास के लिए आर्थिक आधार तैयार करना था। वह लक्ष्य अब पूरा हो गया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License