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बिहार : 14 दिन में 86 बच्चों की मौत और ‘सुशासन’ की कहानियां
किसी भी जीवंत लोकतंत्र में 14 दिनों के अंदर 86 बच्चों की मौत हो जाने जैसा हादसा, किसी भी सरकार को उलट-पलट कर सकता था, किसी राजनेता का करिअर खत्म कर सकता था, लेकिन बिहार में ऐसा नहीं हो रहा है।
अमित सिंह
15 Jun 2019
Bihar Deaths
फोटो साभार: India Times

'भीषण गर्मी के बीच मुजफ्फरपुर और इसके आसपास के जिलों में फैला चमकी बुखार का प्रकोप अभी थमने का नाम नहीं ले रहा है। 14वें दिन शुक्रवार को फिर 14 बच्चों की मौत हो गई। इनमें से तीन मौत समस्तीपुर में हुई। अब मौत का आंकड़ा 86 हो गया है।' बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के हिंदुस्तान अखबार के पहले पन्ने पर यह खबर छपी है। 

किसी भी जीवंत लोकतंत्र में 14 दिनों के अंदर 86 बच्चों की मौत हो जाने जैसा हादसा किसी भी सरकार को उलट-पलट सकता था, किसी भी राजनेता का करिअर खत्म कर सकता था, लेकिन बिहार में ऐसा नहीं हो रहा है। इसलिए इस पूरे मामले में सिस्टम से लेकर आमजन की संवेदनहीनता पर अधिक चिंता व्यक्त करने की आवश्यकता है। 

मुखर समाज के तौर पर पहचाने जाने वाले बिहार में इस घटना को लेकर अजीब सी चुप्पी छाई है। अस्पतालों से निकल रही खबरें सिर्फ नंबर तक सीमित रह गई हैं। बहुत कुछ ऐसा घटित हो रहा है जिसपर कोई बात नहीं कर रहा है। आमतौर पर खिलखिलाने वाले बच्चे लंबी चुप्पी ओढ़ ले रहे हैं। शांत रहने वाले परिजन चीत्कार कर रहे हैं। अस्पतालों में हर चेहरे पर खौफ है। अपने बच्चों को खोने का डर हर ओर है। बच्चों की हर हिचकी कलेजा धड़का रही है। किस हिचकी के साथ सांसें साथ छोड़ जाएं, कहना मुश्किल। 

स्थितियां बद से बदतर होती जा रही हैं। बच्चे अगर बच भी जा रहे हैं तो लंबे समय की अपंगता साथ लेकर जा रहे हैं। क्योंकि चिकित्सक से लेकर सरकार के विज्ञापन में हर जगह यह दावा किया जा रहा है कि जितना जल्दी इलाज शुरू होगा, उतना ही बचाव हो पाएगा। लेकिन इलाज होगा कहां?

हर पीड़ित बच्चा मुजफ्फरपुर में नहीं रहता है। स्थानीय स्तर पर प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में इस बुखार से निपटने की कोई स्पेशल व्यवस्था नहीं है। चमकी बुखार के लक्षण वाले मरीजों को बाहर से रेफर कर दिया जा रहा है। हालत यह है कि आप जितनी जल्दी शहर पहुंच पाएंगे उतना ही ज्यादा आपके बच्चे की जान बचने के चांस हैं। अपने ही बच्चे की जान बचाने के लिए आप एक गेम खेल रहे हैं। और हां, शहर के भी अस्पतालों में भारी भीड़ लगी है। पीड़ित बच्चों की संख्या बढ़ती जा रही है। ऐसे में आपका नंबर आ पाएगा ये भी कन्फर्म नहीं है। 

चमकी बुखार से लगातार हो रही बच्चों की मौत के बीच राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने शुक्रवार को हालात का जायजा लिया। उन्होंने कहा कि एक-एक बच्चे की जिंदगी महत्वपूर्ण है। सरकार लगातार इसकी मॉनीटरिंग कर रही है। बच्चों को बचाने के हरसंभव प्रयास किए जा रहे हैं।

फिलहाल उनका ये प्रयास तब शुरू हुआ है जब पानी सिर से ऊपर निकल गया है। सवाल यह है कि आखिर कब तक जांच एजेंसी इस बीमारी का अध्ययन करेगी? कब पुख्ता इलाज बच्चों को मिलेगा? कब थमेगा बच्चों के मौत का सिलसिला?

आपको बता दें कि मुजफ्फरपुर में एक्यूट इंसेफेलाइटिस सिंड्रोम की शिनाख्त संभवतः 1995 में पहली बार हुई थी। इसके बाद से हर साल गर्मियों में इसकी चपेट में बच्चे आते थे लेकिन इस बीमारी के असल कारणों की पड़ताल अब तक नहीं हो सकी है।

इस बीमारी के असल कारण अज्ञात हैं, इसलिए परहेज व सतर्कता ही इससे बचने की सबसे प्रभावी तरकीब है। जानकार बताते हैं कि बिहार सरकार ने भी इसे ही कारगर माना था और यूनीसेफ के साथ मिल कर स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स (एसओपी) तैयार किया था। 

इसके तहत कई अहम कदम उठाए गए थे जैसे कि आशा वर्कर अपने गांवों का दौरा कर ऐसे मरीजों की शिनाख्त करेंगी। पीड़ित परिवारों को ओआरएस देंगी। गांवों में घूमकर वे सुनिश्चित करेंगी कि कोई बच्चा खाली पेट न सोए। इसके अलावा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में कई बुनियादी सहूलियतें देने की भी बात थी।

पिछले तीन-चार सालों तक एसओपी का पालन किया गया जिससे बच्चों की मौत की घटनाओं में काफी गिरावट आई थी। अब बीमारी के वायरस का भले ही पता नहीं चल रहा, कुव्यवस्था के ‘वायरस’ जगह-जगह पसरे हैं। वही ‘वायरस’ इस मामले में भी नजर आ गया। 

वर्ष 2012 में बीमारी ने भयावह रूप लिया। तीन सौ से अधिक बच्चे बीमार पड़े। इनमें 120 की मौत हो गई। तो थोड़ी सतर्कता बरती गई। अगले वर्षो में मौत का सिलसिला कुछ थमा। स्वास्थ्य विभाग से मिले आंकड़े बताते हैं कि वर्ष 2015 में इस बीमारी से 11, वर्ष 2016 में चार, वर्ष 2017 में 11और 2018 सात बच्चों की जान गई थी लेकिन, इस साल इसमें ढिलाई आ गई, नतीजतन ज्यादा बच्चों की मौत हुई।

अब मासूमों की लीलने वाली इस बीमारी का दायरा बढ़ता ही जा रहा। उत्तर बिहार के जिलों के अलावा यह नेपाल की तराई वाले क्षेत्र में भी फैल गया है। जो जिले प्रभावित हैं, उनमें मुजफ्फरपुर, पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, शिवहर, सीतामढ़ी व वैशाली शामिल हैं।

पिछले दो दशकों में चमकी बुखार ने बिहार के हजारों मासूमों को लील लिया है। लेकिन मौत दर मौत के बाद भी कभी हाय-तौबा नहीं मची। इसलिए बचाव की पुख्ता व्यवस्था भी नहीं हो सकी। 

हर साल मीडिया में कुछ दिन ये खबरें छपती हैं, इस साल भी छपेंगी लेकिन फिर धीरे से इन सबके बीच सुशासन की कहानियां छपना शुरू हो जाएंगी। सबका ध्यान उस ओर चला जाएगा। इस साल बच्चों की मौत हुई है, अगले साल भी कुछ मौतें होगी, लेकिन किसी को फर्क नहीं पड़ने वाला है। जनता, मीडिया और सरकार सबके सब बिहार में सुशासन की कहानियां पढ़ने, सुनने और गढ़ने में बिजी जो हैं।

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