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बिहार की मिड डे मील कर्मचारी भी 8-9 के देशव्यापी प्रतिरोध में शामिल, 7 से बेमियादी हड़ताल
मिड डे मील कर्मचारी जो महिलाएं होती हैं, उनका कहना है कि उनके शोषण की इन्तिहां हो गई है। उन्हें एक दिन में कम से कम 8 से 9 घंटे काम करना पड़ता है लेकिन सरकार उन्हें मज़दूर नहीं मानती है, न ही उन्हें वेतन मिलता है।

मुकुंद झा
05 Jan 2019
बिहार के मजदूर
लाखों मिड डे मील वर्कर्स इन दिनों अपनी मांगों के लिए बिहार के विभिन्न हिस्सों में प्रोटेस्ट मीटिंग कर रही हैं

बिहार की लाखों मिड डे मील वर्कर्स इन दिनों अपनी मांगों के लिए बिहार के विभिन्न हिस्सों में प्रोटेस्ट मीटिंग कर रही हैं। इनकी मुख्य मांगों में न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये/महीना और काम के लिए सम्मानजनक वातावरण तैयार करना शामिल है। केन्द्रीय ट्रेड यूनियन की दो दिवसीय हड़ताल में बिहार के मिड डे मिल कर्मचारी भी शामिल हो रहे हैं। इसके साथ ही उन्होंने 7 जनवरी से अनिश्चितकालीन हड़ताल की भी घोषणा की है।

मिड डे मील कर्मचारी जो महिलाएं होती हैं, उनका कहना है कि उनके शोषण की इन्तिहां हो गई है। उन्हें एक दिन में कम से कम 8 से 9 घंटे काम करना पड़ता है लेकिन सरकार उन्हें मज़दूर नहीं मानती है, न ही उन्हें वेतन मिलता है। वे कहती हैं“आप सोच सकते हैं कि हम 33 रुपये प्रतिदिन पर काम करते हैं।” वे भी उन्हें पूरे समय के लिए नहीं मिलता है। वो कहती हैं कि जैसे स्कूल के टीचर को पूरे वर्ष का वेतन मिलता है, वैसे उनको भी मिलाना चाहिए। अभी उन्हें वर्ष में केवल 10 माह का ही मानदेय मिलाता है।

उनका शोषण  यहीं नहीं रुकता है। मिड डे मील वर्कर का काम स्कूल में बच्चों के लिए खाना बनाना है, लेकिन बिहार में इनसे स्कूलों में साफ सफाई जैसे काम भी कराए जाते हैं। इसके अलावा कई जगह ऐसा भी देखा गया है कि स्कूल के प्रिंसिपल उनसे अपने घर में भी काम कराते हैं।

खासतौर पर अगर आप बिहार के मिड डे मील वर्कर कि बात करें तो शुरुआत में इसमें अनुसूचित जाति और जनजाति के अलावा विधवा महिलाओं की नियुक्ति की गई थी, जिससे उन्हें आर्थिक मदद मिल सके परन्तु बाद में इसमें सामान्य वर्ग की महिलाओं की नियुक्ति की गई लेकिन अभी भी इसमें अधिकांशतया पिछड़े वर्ग कि महिलाएं ही है। मिड डे मील में काम करने वाली महिलाओं का कहना है कि उनका शोषण महिला होने के नाते तो होता ही है लेकिन कई बार पिछड़े वर्ग से आने के कारण भी उनका शोषण और बढ़ जाता है। अधिकतर शिक्षक और प्रधानाचार्य उच्च जाति के होते हैं, कई बार उनके द्वारा हमपर फब्तियां कसी जाती हैं।

 बिहार मिड डे मील वर्कर की मुख्य मांगें इस प्रकार हैं-

 1.     मज़दूर का दर्जा दें :-  मिड डे मील वर्कर कि सबसे बड़ी समस्या यह है कि सरकारें इन्हें एक दिन में 6 से 8 घंटे काम करने के बावजूद कर्मचारी या मजदूर ही नहीं समझती हैं। इस कारण उन्हें किसी भी प्रकार कोई भी लाभ नहीं मिलता है। इसलिए सबसे प्रमुख है कि सरकार इन्हें पहले मज़दूर का दर्जा दे।

2.     खाना पकाने के लिए गैस उपलब्ध कराई जाए :- मिड डे मील कर्मचारियों का कहना है कि उन्हें आज भी लकड़ी पर खाना पकाना पड़ता है जिससे उनकी सेहत पर बुरा असर पड़ता है। आंखें तक ख़राब हो जाती हैं। इसलिए उन्हें गैस मिले जिससे जल्दी खाना पक सके और उनका स्वस्थ्य भी बेहतर रहे।

3.    उनको सम्मान के साथ काम करने दिया जाए :- मिड डे मील वर्कर के साथ स्कूल के टीचर गुलामों से भी बुरा व्यवहार करते हैं। इसलिए उन्हें काम के लिए सम्मानजनक वातावरण दिया जाए।

4.     न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये दिया जाए :- मिड डे मील में काम करने वाली अधिकतर ऐसी महिलाएं हैं जिनके पास आय का कोई स्रोत नहीं है और न ही स्कूल में काम करने के बाद उनके पास समय होता है कि वो कोई और काम कर सकें, इसलिए उन्हें भी न्यूनतम वेतन 18,000 रुपये मिलना चाहिए।

5.  सामाजिक सुरक्षा मिले :- मिड डे मील कर्मचारियों का कहना है कि उनको किसी प्रकार कि सामाजिक सुरक्षा नहीं है। यहाँ आपको बता दें कि बिहार जैसे क्षेत्र में मिड-डे मील कर्मचारी ज्यादातर विधवा, गरीब पिछड़े तबके की महिलाएं हैं।

मिड डे मील वर्कर्स की रसोइया यूनियन की नेता और अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष राम परी ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि बिहार में 2.5  लाख से अधिक मिड डे मील कर्मचारी हैं जिन्हें केवल 1000 रुपये मानदेय दिया जाता है। ये खुद में किसी भी व्यक्ति के शोषण की अति है कि आपको 8 घंटे काम करने के ऐवज में हजार रुपये महीना मिले जबकि केंद्र सरकार ने खुद 7वें वेतन आयोग में सिफारिश की है कि न्यूनतम वेतन 18 हज़ार होना चाहिए। हम भी केवल यही मांग रहे हैं कि न्यूनतम वेतन दिया जाए।

आगे वो कहती है कि मोदी जी पूरी दुनिया में ढोल पीट रहे हैं कि उन्होंने हर रसोई में गैस पहुंचा दी है लेकिन बिहार में आज भी लाखों मिड डे मील के रसोइयाँ लकड़ी पर खाना पकाते हैं जिससे उन्हें कई प्रकार कि बीमारियां हो रही हैं। कई स्कूलों में तो ऐसी भी शिकायत मिलती थी कि इन कर्मचारियों से शौचालय तक साफ कराया जाता था लेकिन हमारे संगठन के संघर्ष के बाद अब महिलाएं इसका प्रतिरोध कर रही हैं, लेकिन अभी उनका कई अन्य तरह से शोषण जारी है। इस शोषण से मुक्ति के लिए हम 7 जनवरी से हड़ताल पर जा रहे हैं।

 

सभी स्कीम वर्कर का हाल बुरा है। बिहार के लाखों की संख्या में स्कीम वर्कर अपना मांगों को लेकर सड़कों पर हैं।

ये सिर्फ मिड डे मील वर्कर कि समस्या नहीं है, बल्कि देश के तमाम स्कीम वर्कर के हालत कुछ इसी प्रकार है। इसका सबसे बड़ा कारण है कि सरकारें इन्हें मजदूर ही नहीं मानती है। तो अब यह सवाल उठता है कि स्कीम वर्कर कौन हैं?सरकार के मुताबिक यह केंद्र की योजनाओं में मदद करती हैं। ये कोई पूर्णकालिक कार्य नहीं है, इसलिए इन्हें कर्मचारी की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। प्रधानमंत्री भी इन्हें सेविका कहते हैं परन्तु क्या यह सच में पूर्णकालिक कार्य नहीं है। इसका जवाब रामपरी जी देती हैं। वे कहती हैं कि सरकार को बताना चाहिए कि पूर्ण कालिक काम क्या होता क्योंकि मिड डे मील कर्मचारी आठ घंटे काम करती हैं। आशा, ममता और कुरियर में काम करने वालो के लिए तो कोई समय सीमा ही नहीं होती है। न ही इन्हें कोई छुट्टी मिलती है, तो आप बताइए ये पूर्णकालिक काम है या नहीं? आगे वे कहती हैं हम स्कीम वर्कर को सेविका का दर्जा नहीं मजदूर का दर्जा चाहिए।

मिड डे मिल कर्मचारयो से मिलते जुलते मांगों को लेकर पिछले 1 दिसंबर से “आशा संयुक्त संघर्ष समिति” के बैनर तले अपनी 15 सूत्री मांगों के लिए अनिश्चितकालीन राज्यव्यापी हड़ताल पर हैं। केंद्र सरकार से निर्धारित प्रोत्साहन राशि प्रदेश की सरकार द्वारा अविलंब दिये जाने व उसका नियमित भुगतान करने तथा नौकरी के स्थायीकरण समेत अपने सम्मानजनक भरण पोषण की मांगों को वे सरकार के सामने लगातार उठातीं रहीं हैं। 
 

केंद्र से दिये जानेवाली 3000 रुपये की प्रोत्साहन राशि को दुगुनी करने की घोषणा तो हुई लेकिन उसके बाबजूद बहुत कम है । साथ ही केंद्र सरकार की ओर से मुफ्त बीमा सुविधा देने की भी बात कही जबकि केरल, तेलंगाना व  कुछ अन्य राज्यों मेँ पहले से ही केंद्र की देय राशि के अलावा राज्य सरकार की ओर से भी प्रोत्साहन राशि दी जा रही है।जबकि हरियाण और आन्ध्रप्रदेश में भी सीटू के संघर्ष के बाद वहन कि राज्य सरकार भी प्रोत्सहन राशी दे रही है

 लेकिन बिहार एनडीए कि नितीश सरकार इन कर्मचारियों को कोई अतिरिक्त लाभ नही देना चाहती है | जबकि मुख्यमंत्री अपने हर भाषण में महिला सशक्तिरन कि बात करते है |

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#WorkersStrikeBack
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