NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बीफ, दादरी और बिहार चुनाव
महेश कुमार
03 Nov 2015

हर इंसान के जेहन में बार-बार यह सवाल कौंधता है कि अगर नरेन्द्र मोदी के विकास के नारे में इतना दम था और जिसकी वजह से उन्होंने लोकसभा का चुनाव बहुमत से जीत लिया था तो फिर राज्यों में विधान सभा चुनाव जितने के लिए उन्हें बीफ, दादरी और साम्प्रदायिक उन्माद जैसे मुद्दों का सहारा क्यों लेना पड़ा? इस सवाल के जवाब को कुछ लोगो ने तो जान लिया है लेकिन कुछ लोग अभी भटकाव का शिकार हैं जिन्हें उम्मीद है कि नरेन्द्र मोदी अपनी पार्टी के नताओं को फटकार लगायेंगे और संघ से भी दुरी बनायेंगे ताकि तथाकथित विकास के एजेंडे को आगी बढ़ाया जा सके. इसको समझना जरूरी है भाजपा और उसके नेता अचानक विकास कि बात करते-करते साप्रदायिक एजेंडे कि तरफ कैसे बढ़ गए.

                                                                                                                                

‘विकास’ का मुद्दा खोखला मुद्दा

भाजपा को साम्रदायिक राजनीती कि तरफ इसलिए मुड़ना पड़ा क्योंकि उन्हें पता था कि विकास के नाम की चिड़िया जो उन्होंने उडाई है उसका हाथ आना मुश्किल है. एक साल के भीतर-भीतर देश और विदेश के ज्यादातर अर्थशास्त्री, पत्रकार, टी.वी. जर्नलिस्ट्स इस नतीजे पर पहुँच गए हैं कि मोदी सरकार कि नीतियाँ भी यु.पी.ए. जैसी ही हैं. इनकी नीतियों से भी आम आदमी या माध्यम वर्ग के लिए कोई ख़ास राहत नहीं है. बढ़ती महंगाई ने जैसी सभी रिकॉर्ड तौड़ दिए हैं. दाल और सब्जियों के दाम आसमान छू रहे हैं. हर जरुरत कि वस्तु के दाम बढ़ रहे हैं, आम आदमी कि आमदनी में गिरावट आ रही है. औद्योगिक उत्पादन में कमी आ रही है. मोदी और भाजपा को पता था कि इन नीतियों से वे ज्यादा दिन तक विकास का बखान कर लोगो को प्रभावित नहीं कर सकते हैं. इसलिए संघ और भाजपा ने अपने साम्प्रदायिक और जातिवादी एजेंडे को आगे बढ़ाना शुरू किया ताकि आम लोगों में धर्म और जाति के आधार पर विभाजन पैदा किया जा सके.

असली मुद्दा साम्प्रदायिकरण

भाजपा हमेशा से पूंजीवादी हित को साधने वाली आर्थिक नीतियों की पक्षधर रही है. यही वह वजह है जिसकी वजह से बीफ पर प्रतिबन्ध जैसी मुहीम चलाई गयी. संघ-भाजपा कि इस मुहीम का नतीजा यह है दिल्ली के नजदीक दादरी में मोहम्मद अखलाक की इसलिए ह्त्या कर दी गयी क्योंकि कुछ लोगो को शक था कि उसके फ्रिज में गौ मॉस रखा है. इससे पहले नरेन्द्र दाभोलकर, गोविन्द पंसारे और काल्बुर्गी की हुयी ह्त्या और मोहम्मद अखलाक की ह्त्या ने बहुमत आबादी के हिस्से को झकझोर कर रख दिया. ये कुछ ऐसी घटनाएं थी जिन पर लोगो ने उम्मीद की थी कि शायद प्रधानमंत्री नेन्द्र मोदी इन घटनाओं पर सख्त प्रतिक्रया व्यक्त करेंगे और आगे से इस तरह कि घटना न घटे, इसका विश्वास वे पूरे देश को दिलाएंगे. लेकिन हुआ उसका उल्टा . प्रधानमंत्री मोदी ने इन घटनाओं पर पूरी चुप्पी ठान ली. यही नहीं उनकी चुप्पी इस कदर गहरी थी कि उन्होंने भाजपा नेताओं के उन बयानों पर भी कोई प्रतिक्रिया नहीं की जिनकी वजह से देश में साम्प्रदायिक माहौल गड़बड़ा रहा था. भाजपा, बजरंग दल, विहिप और संघ के नेताओं ने इन घटनाओं का समर्थन किया और कहा कि अगर देश में ‘हिन्दू’ धर्म के खिलाफ कोई भी टिपण्णी की जायेगी तो उसका हश्र यही होगा यानी उसे मौत के घाट उतार दिया जाएगा.

मोदी की चुप्पी का राज

नरेन्द्र मोदी की चुप्पी इसलिए नहीं है कि वे इस पर कुछ बोलना चाहते हैं लेकिन किन्ही दबावों की वजह से बोल नही पा रहे हैं बल्कि इन मुद्दों पर उनकी चुप्पी इसलिए है कि वे खुद संघ के प्रचारक रहे हैं और आज भी संघ कि विचारधारा सबसे पक्के समर्थकों में से एक हैं. आप उनसे चुप्पी तोड़ने की उम्मीद तभी कर सकते थे जब वे सत्ता में आने के बाद संघ के एजंडे को छोड़ देते और देश के विकास को आम जनता के जीवन से जोड़ कर चलते न कि कॉर्पोरेट के सामने पूरी तरह आत्म समर्पण कर देते. जितने भी मंत्रालय हैं, मानव संसाधन से लेकर कानून मंत्रालय, सभी को संघ के एजेंडे को लागू करने के लिए किया जा रहा है. केन्द्रीय सरकार से जुड़े सभी संस्थान में जैसे आई.सी.एच.आर., यु.जी.सी. आई.सी.एस.एस.आर. में संघ के प्यादों को भर्ती किया जा रहा है. मंत्रालयों की विभिन्न समितियों में संघ के नामी नेताओं को भरा जा रहा है. विज्ञान के खिलाफ अंधविश्वास को बढ़ावा दिया जा रहा है. यह  भाजपा को भी पता है कि फिर से बहुमत में सता में आना शायद उसके लिए मुश्किल होगा इसलिए वे सरकार के सभी संस्थानों में उन्होंने अपने समर्थकों को भर्ती कर रहे हैं ताकि शिक्षा से लेकर शोध और कानून से लेकर न्यायपालिका तक में संघ एजेंडा बदस्तूर जारी रहे.

समाज का साम्प्रदायिकरण करना, संघ कि बड़ी योजना का हिस्सा

वामपंथी संघ की विचारधारा को अच्छी तरह जानते हैं और इसलिए वे हमेशा संघ का विरोध करते रहे हैं. यही वजह है कि जब भी कोई भाजपा-संघ की साम्रदायिक हिंसक मुहीम का विरोध करता है तो उसे भाजपा के नेता वामपंथियों कि साज़िश का हिस्सा मानते हैं. संघ कि विचारधारा स्पष्ट है. वह हिन्दू कट्टरपन का इस्तेमाल कर देश में ब्राह्मणवादी वयवस्था को स्थापित कर देना चाहती है. वे हमेशा हिन्दू आबादी को मौह्पास में बाँधने के लिए उनके हित को साधने का दुष्प्रचार करते हैं. उनका असली मकसद ब्राह्मणवादी व्यवस्था को स्थापित करना है. इसे लिए हिन्दू धर्म का साम्प्रदायिकरण करना जरूरी है. इसी मकसद को ध्यान में रखते हुए उन्होंने मुजफ्फरनगर और दादरी जैसी घटनों को हवा दी है.

मोदी से उम्मीद करना नासमझी

इसलिए मोदी से किसी भी तरह की उम्मीद करना नासमझी माना जाएगा. बिहार के चुनावों में यह बात और भी ज्यादा स्पष्ट हो गयी कि प्रधानमंत्री होने के बावजूद मोदी ने संघी राजनीती को नहीं छोड़ा. आप कैसे उस प्रधानमंत्री से उम्मीद कर सकते हैं जो खुद चुनावी सभाओं में बीफ, गौ ह्त्या और हिन्दू-मुसलमान कि बात करते हैं. आप कैसे उस प्रधानमंत्री से कार्यवाही की उम्मीद कर सकते हैं जिनके वित्त मंत्री इन घटनाओं पर विरोध कर रहे लोगों पर ही आरोप लगा रहे हैं. इनका घटनाओं का विरोध केवल विपक्षी पार्टियां ने ही नहीं किया बल्कि पूरे देश के ताने-बाने से जुड़े लोग जो साहित्यकार हैं, फ़िल्मकार हैं, अर्थशास्त्री है, समाज वैज्ञानिक हैं, कलाकार हैं, विद्यार्थी हैं, इसका विरोध कर हैं. अन्य मंत्रियों को छोडिये यहाँ तक कि प्रधानमंत्री और वित्त मंत्री भी हिंसा और साम्प्रदायिकता का विरोध करने वालों को वामपंथी साजिश का हिसा बता कर अनदेखा कर रहे हैं और इन घटनाओं को दुर्घटना कह कर टाल रहे हैं. इसलिए यह बात सब क समझ लेनी चाहिए संघ अपना एजेंडा लागू करती रहेगी और मोदी हमेशा इन घटनाओं पर चुप रहेंगे लेकिन विरोध जारी रहना चाहिए तभी स्थिति में बदलाव की उम्मीद कि जा सकती है.  

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख में वक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारों को नहीं दर्शाते ।

 

 

 

 

 

 

 

 

दाभोलकर
पानसरे
कलबुर्गी
दादरी
अख़लाक़
भाजपा
आरएसएस
नरेन्द्र मोदी
गौमांस
बिहार चुनाव

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

बढ़ते हुए वैश्विक संप्रदायवाद का मुकाबला ज़रुरी

पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों 10 सितम्बर को भारत बंद

यूनिफॉर्म सिविल कोड का मुद्दा भी बोगस निकला, आप फिर उल्लू बने

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध

एमरजेंसी काल: लामबंदी की जगह हथियार डाल दिये आरएसएस ने

झारखण्ड भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल, 2017: आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License