NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बंगाल में बढ़ता सांप्रदायिकता का खतरा
आज त्रिणमूल और बीजेपी की ये राजनीति बंगाल के इस धर्म निरपेक्ष इतिहास को उलटने की कोशिश है।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
22 Sep 2017
बंगाल में साम्प्रदाइकता

कोलकता हाई कोर्ट ने ममता बैनर्जी के दुर्गा पूजा पर लिए हुए फैसले को रद्द कर दिया है ।  हाई  कोर्ट ने बंगाल सरकार से सवाल किया है  कि  क्या दोनों  समुदाय एक ही दिन अपने अपने त्योहार नहीं मना सकते हैं  ? बंगाल सरकार ने इससे पहले 30 सितम्बर की रात को होने वाले मूर्ति विसर्जन पर रोक लगाने का फैसला किया था।  सरकार ने अपने फैसले में कहा था कि 30 सितम्बर रात 10  बजे के बाद  मूर्ति विसर्जन को 24 घंटों के लिए रोक  दिया जाएगा क्योंकि 1 अक्टूबर को मोहर्ररम है। सरकार ने कहा कि मूर्ति विसर्जन को 2 से 4  अक्टूबर को किया जा सकता है।  बंगाल  सरकार के इस फैसले को रद्द करते हुए कोर्ट ने कहा "लोगों को अपनी धार्मिक गतिविधियां करने का अधिकार है , चाहे वो किसी  भी समुदायों  से आते हों और राज्य उसपर रोक नहीं लगा सकता , जब तक ये मानने का कोई ठोस कारण न हो कि दोनों समुदाय साथ नहीं रह सकते हैं " इसके आलावा चीफ जस्टिस राकेश तिवारी ने कहा " अगर आपको ये सपना आता है कि कुछ गलत होगा , तो आप प्रतिबंध नहीं लगा सकते ".  इसके साथ ही कि " लोगों को शान्ति से जीने  दीजिये , उनके बीच में ये दीवार ना खड़ी कीजिए ".  कोर्ट ने उपाय देते हुए कहा कि राज्य  सरकार को मोहर्ररम  और दुर्गा पूजा की यात्राओं को रेगुलेट  करना चाहिए , पर प्रशासन के पास उनपर रोक लगाने का अधिकार नहीं है। कोर्ट के फैसले के बाद ममता बनर्जी का कहना था  "कोई मेरा गला काट सकता  है , पर मुझे ये नहीं कह  सकता की  क्या करना है " .
 

23 अगस्त को ममता बैनर्जी के फैसले के बाद आरएसएस और दक्षिण पंथी संगठनों ने इसकी ख़िलाफ़त की थी।  आरएसएस ने कहा था कि वो इस फैसले की अपेक्षा करते हुए  दुर्गा पूजा का जुलूस निकालेंगे।  ममता बैनर्जी का ये फैसला साफ़ तौर पर उनकी साम्प्रदायिक राजनीती से प्रेरित लग रहा है।  
जबसे बंगाल में तृणमूल कांग्रेस की  सरकार बनी है तबसे ही ममता इस तरह की राजनीति को हवा दे रही हैं।  इसके साथ ही बीजेपी और आरएसएस भी इसका फायदा उठाकर लगातार बंगाल के माहौल को साम्प्रदायिक करने के प्रयासों में जुटी है।  ये दोनों पक्ष एक सिक्के के दो पहलुओं की तरह  नज़र आ रहे हैं।  
 
हाल  के समय में  ममता बैनर्जी पर कट्टर पंथी संगठन जमात ऊल मुजाहिद्दीन के नेताओं को शरण देने  के आरोप लगे हैं। जिनपर बांग्लादेश में गंभीर आरोप हैं  और जो  वहां से फरार है।  इसके अलावा बंगाल में इमामों को लगातार अनुदान दिए जा रहे हैं। तृणमूल के सांसदों  के द्वारा लेखिका तस्लीमा नसरीन  खिलाफत और ये कहना कि  पोलियो विरोधी मुहिम वामपंथिओं की मुसलमानों की जनसंख्या कम करने साज़िश बताना इसका हिस्सा है  । इसके अलावा 3 तलाक़  का खुले आम समर्थन  भी इसी ओर इशारा  करते हैं। ये सारी  कोशिशें साफ़ तौर पर बंगाल के 27 % मुस्लिम  जनसंख्या को आकर्षित करने के लिए किये जा रहे हैं।  पर आम मुसलमानों को इससे क्या फायदा हुआ है ये बड़ा सवाल है। ये सवाल इसीलिए उठता है क्योंकि इस सरकार ने  किसानों की आत्म हत्या , और भूमि अधिग्रहण जैसे मुद्दों को नज़रअंदाज़ किया है।  ये मुद्दे सबसे ज्यादा गरीब मुसलमानों और दलितों  को ही प्रभावित करते हैं ।  इससे ये साफ़ होता है की तृणमूल की ये राजनीति तुष्टिकरण की राजनीति है और कुछ नहीं। 

दूसरी तरफ बीजेपी  और आरएसएस भी बंगाल में लगातार साम्प्रदायिक ज़हर घोलने में लगीं  हैं ।  हाल में विश्व हिन्दू परिषद् ने वहां भव्य  शस्त्र पूजन और जुलूस निकालने का एलान किया था ।  बंगाली इतिहास को देखा  जाये तो वहां  विजयदशमी पर शस्त्र  पूजन  की परंपरा नहीं है , ये मुख्य रूप से उत्तर भारतीय हिन्दुओं की परम्परा है। इसी तरह 5 अप्रैल राम नवमीं  को आरएसएस के द्वारा निकला गया शस्त्र जुलूस भी बंगाल के लिए नया है। हाल ही में बीजेपी आईटी सेल के मुखिया को सोशल मीडिया  के ज़रिये साम्प्रदायिक भावनाएं भड़काने के लिए गिरफ्तार किया था।  उन्होंने एक फ़र्ज़ी वीडियो जारी किया था जिसमें दिखाया गया था की एक मुस्लिम पुलिस अफसर एक हिन्दू व्यक्ति को पीट  रहा है। इसके अलावा   पश्चिम बंगाल में जब दंगे हुए तो आर एस एस के लोगों ने दो पोस्टर जारी किए। एक पोस्टर का कैप्शन था, बंगाल जल रहा है, उसमें सम्पत्ति  के जलने की तस्वीर थी। दूसरे फोटो में एक महिला की साड़ी खींची जा रही है और कैप्शन था कि  बंगाल में हिन्दू महिलाओं पर अत्याचार हो रहा है। बहुत जल्दी ही इस फोटो का सच सामने आ गया। पहली तस्वीर 2002 के गुजरात दंगों की थी जब मुख्यमंत्री मोदी ही सरकार में थे। दूसरी तस्वीर में भोजपुरी सिनेमा के एक सीन की थी।  इन घटनाओं के अलावा सोशल मीडिया  द्वारा रबिन्द्र टैगोर और मछली खाने की बंगाली परंपरा पर भी दक्षिणपंथी हमले किये गए हैं।  

इस प्रकार की राजनीति बंगाल के लिए बहुत घातक साबित हो रही है।  ये बंगाल के उदारवादी चित्रित के ठीक उलट है जो हमेशा से ही धर्म निरपेक्ष रहा है।  ये बताना ज़रूरी है  कि बंगाल का  साम्प्रदायिक इतिहास रहा है पर वामपंथी राजनीति के उभार के बाद से वो काफी हद तक नियंत्रण में रहा है। 
इतिहास के पन्ने बताते हैं कि बंगाल में 1947 के विभाजन के समय बड़े स्तर पर साम्प्रदायिक दंगे हुए थे।  पर इसके बाद वामपंथ के प्रभाव और जनवादी आंदोलनों के चलते इसे ख़त्म कर दिया गया।  वामपंथ सरकार के द्वारा किसानो के हक़ के लिए चलाये गए आंदोलनों ने मूलभूत सवालों को आगे रखा और इसीलिए  साम्प्रदायिक ताक़तें सर नहीं उठा पायीं।  माकपा की भूमि सुधर नीतियां और साम्प्रदायिकता के खिलाफ उनकी मुहिम भी इसके लिए ज़िम्मेदार है।  चाहे 1984  के सिख विरोधी दंगे हों या 1992 का बाबरी मस्जिद का ढ़हाया जाना हो ,दोनों ही  समय मार्क्सवादी  सरकारों ने साम्प्रदायिकता को बंगाल में फैलने नहीं दिया था ।  इसका सबूत ये है की दोनों ही समय जब देश जल रहा था तो बंगाल में एक भी दंगा नहीं हुआ ।

आज त्रिणमूल और बीजेपी की ये राजनीति बंगाल के इस धर्म निरपेक्ष इतिहास को उलटने की कोशिश है।  बीजेपी का बंगाल में बढ़ता प्रभाव एक खतरनाक संकेत है।  यहाँ  2014  के लोक  सभा चुनावो में बीजेपी का वोट प्रतिशत 17 %  था और उनके 2 सांसद बने थे।  इसके बाद से ही ये उभार जारी है। इसका  सबूत उसके बाद हुए विधान सभा और नगरपालिका के चुनाव नतीजों से देखा जा सकता है।  बंगाल में हिंदूवादी ताक़तों का उभार और तृणमूल की साम्प्रदायिक राजनीति एक भयानक कल की ओर इशारा कर रही है।  अब  देखना ये  है कि बंगाल के आम लोगों जो हमेशा से उदारवादी रहे हैं इस चुनौती का कैसे सामना  करते हैं। ये भी देखना दिलचस्प होगा की  आने  वाले दिनों में माकपा किस तरह  इस राजनीति को चुनौती दे पाती  है।

साम्प्रदाइकता
ममता बैनर्जी
बंगाल
भाजपा

Related Stories

#श्रमिकहड़ताल : शौक नहीं मज़बूरी है..

आपकी चुप्पी बता रहा है कि आपके लिए राष्ट्र का मतलब जमीन का टुकड़ा है

अबकी बार, मॉबलिंचिग की सरकार; कितनी जाँच की दरकार!

आरक्षण खात्मे का षड्यंत्र: दलित-ओबीसी पर बड़ा प्रहार

झारखंड बंद: भूमि अधिग्रहण बिल में संशोधन के खिलाफ विपक्ष का संयुक्त विरोध

झारखण्ड भूमि अधिग्रहण संशोधन बिल, 2017: आदिवासी विरोधी भाजपा सरकार

यूपी: योगी सरकार में कई बीजेपी नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप

मोदी के एक आदर्श गाँव की कहानी

क्या भाजपा शासित असम में भारतीय नागरिकों से छीनी जा रही है उनकी नागरिकता?

बिहार: सामूहिक बलत्कार के मामले में पुलिस के रैवये पर गंभीर सवाल उठे!


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License