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स्वास्थ्य
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राजनीति
बुड्ढा नाला: मौसमी जल स्त्रोत से बदबूदार नाले में बदला
कभी स्वच्छ जल की श्रोत रही ये नदी इतनी दूषित हो गई है कि इस इलाक़े में रहने वाले लोगों में आनुवांशिक परिवर्तन होने का संदेह है। इसका खुलासा पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के एक अध्ययन में हुआ है।
विकास भदौरिया
11 Jul 2019
बुड्ढा नाला

देश का लगभग 43% हिस्सा सूखे और विशाल जल-संकट से जूझ रहा है ऐसे में विडंबना यह है कि पांच नदियों वाला प्रदेश पंजाब घातक मानवजनित जल-संकट से जूझ रहा है। पंजाब का पानी धातुओं और अन्य ख़तरनाक कीटनाशकों से इस हद तक दूषित हो गया है कि ये प्रदेश भारत की कैंसर राजधानी के रूप में बदनाम हो गया है। और इस ख़तरे का केंद्र बुड्ढा नाला है जो कभी लुधियाना के लिए मीठे पानी का एक महत्वपूर्ण स्रोत हुआ करता था, लेकिन वह अब शहर के घरेलू और औद्योगिक कचरे का डंपिंग ग्राउंड बन गया है।

बुड्ढा दरिया से बुड्ढा नाला बनी इस नदी की कहानी पंजाब की भयावह स्थिति को व्यक्त करती है। बुड्ढा नाला सतलज की एक सहायक नदी है जो औद्योगिक शहर लुधियाना से होकर बहती है। सबसे ज़्यादा प्रदूषित इसका पानी अपने साथ सतलज नदी में बिना ट्रीटमेंट के औद्योगिक विषैले अपशिष्टों और घरेलू कचरे को ले जाता है। पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (पीपीसीबी) के एक अध्ययन के अनुसार, इसका पानी इतना दूषित है कि इस क्षेत्र की आबादी में आनुवंशिक परिवर्तन होने का संदेह है।

एक्शन प्लान रिपोर्ट फॉर क्लीन रिवर सतलज, 2019 के अनुसार ये नदी पानी की क्लास-बी क्वालिटी के साथ पंजाब में प्रवेश करती है और बुड्ढा नाला के संगम बिंदु से पहले इस नदी का पानी क्लास-सी रहता है और संगम बिंदु से आगे ये पानी क्लास-ई में बदल जाता है।पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा क्वालिटी ऑफ़ वाटर ऑफ़ पॉल्यूटेड रिवर स्ट्रेचेज इन पंजाब फॉर अप्रैल 2019 की परीक्षण रिपोर्ट बताती है कि बायोलॉजिकल ऑक्सीज़न डिमांड ऑफ़ सतलज की सांद्रता बुड्ढा नाला के संगम बिंदु से पहले 1.0 से 3.0मिलीग्राम/लीटर की सीमा तक पाई गई थी लेकिन संगम बिंदु के 100 मीटर आगे सतलज की बीओडी 90एमजी/लीटर तक अचानक बढ़ जाती है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) द्वारा निर्धारित मानदंडों और स्वीकृति योग्य़ सीमाओं के आधार पर स्नान करने के लिए इस नदी का पानी तभी मुनासिब है जब फेकल कोलीफॉर्म की संख्या 500 की वांछनीय सीमा और अधिकतम 2,500 स्वीकृति योग्य़ सीमा के बीच हो। पीपीसीबी द्वारा प्रकाशित आंकड़ों से पता चलता है कि सतलज में संगम बिंदु के बाद कुल कोलीफार्म बैक्टीरिया की संख्या 22,00,000 एमपीएन/ 100एमएल है। इसका मतलब है कि स्वीकृति योग्य़ सीमा से 100 गुना अधिक है जो स्नान करने के लिए भी उपयुक्त नहीं है। फेकल कोलीफॉर्म सीवेज या मनुष्यों और अन्य गर्म रक्त वाले पशुओं के बैक्टीरिया से होने वाले प्रदूषण का एक संकेतक है।

मालवा क्षेत्र में अनुवांशिक परिवर्तन और 'कैंसर ट्रेन'

कीटनाशकों, औद्योगिक अपशिष्ट, घरेलू नालों से प्रदूषण, औद्योगिक अपशिष्ट जिसमें घातक रसायन और ख़तरनाक धातुएं होती हैं वे ज़मीन के नीचे चली जाती हैं जिससे भूजल दूषित होता है। इन प्रदूषकों और कैंसरकारी तत्वों के बायोएक्यूम्यूलेशन और बायोमैग्निफिकेशन का मालवा क्षेत्र की आबादी पर घातक प्रभाव पड़ा है। डाउन सिंड्रोम, सेरेब्रल पाल्सी, अन्य शारीरिक और मानसिक असामान्यताओं के बीच समय से पहले बूढ़ा होने के मामलों में लगातार वृद्धि देखी गई है। पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल एजुकेशन एंड रिसर्च (पीजीआईएमईआर) चंडीगढ़ के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक अध्ययन में पाया गया है कि बच्चे प्रदूषण के प्रभाव से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं। लुधियाना, अमृतसर और जालंधर के इलाकों में नालों के किनारे रहने वाले लोगों के लिए गए रक्त के नमूने से पता चला कि 65%मामलों में डीएनए परिवर्तन की अलग-अलग अवस्था थी। मालवा क्षेत्र में भारत में कैंसर की घटनाओं की दर सबसे अधिक है। मुक्तसर प्रति 100,000 लोगों में 136मरीजों के साथ अन्य जिलों में सबसे आगे है। हालांकि कैंसर की औसत दर राष्ट्रीय औसत प्रति 100,000 लोगों पर 106 मरीज हैं।

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बुड्ढा नाला के प्रदूषण के प्रभाव ने पड़ोसी राज्य राजस्थान पर भी असर डाला है। दुनिया की सबसे लंबी नहर इंदिरा गांधी नहर जो हरिके बैराज से निकलती है उसमें सतलज और ब्यास नदी का पानी जाता है। सतलज का दूषित पानी इस नहर के ज़रिये राजस्थान में पहुंचता है जिससे यहां पंजाब की ही तरह का स्वास्थ्य संकट पैदा हो रहा है। देश भर के 25 क्षेत्रीय कैंसर केंद्रों में से एक आचार्य तुलसी रीजनल कैंसर ट्रीटमेंट एंड रिसर्च इंस्टिट्यूट में मालवा क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों से लेकर बीकानेर तक कैंसर रोगियों की संख्या में अचानक वृद्धि हुई है। संकट की भयावहता का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि दक्षिणी पंजाब के स्टेशनों से लेकर बीकानेर स्थित इस अस्पताल तक हर दिन इन मरीजों और इनके परिवार के सदस्यों को ले जाने वाली ट्रेन को 'कैंसर ट्रेन' की संज्ञा दे दी गई है। इस अस्पताल में इलाज के लिए कैंसर से पीड़ित औसतन 100 कैंसर रोगी इस ट्रेन से प्रतिदिन यात्रा करते हैं।

इस संकट को कम करने के लिए अतीत में उठाए गए क़दम

प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए राज्य सरकार और उसकी विभिन्न एजेंसियों द्वारा पिछले 30 वर्षों में कई प्रयास किए गए हैं लेकिन इन सबके बावजूद प्रदूषण का स्तर सिर्फ़ बढ़ा है। प्रदूषण फैलाने वालों के ख़िलाफ़ दंड और दंडात्मक कार्रवाई न होने तथा राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी दोषियों की करतूतों पर लगाम लगाने में विफल रही है। सिटीज़न मैटर्स की एक रिपोर्ट के अनुसार इस नाले की सफ़ाई के लिए राज्य और केंद्र सरकारों ने मिलकर पिछले 30 वर्षों में 550 करोड़ रुपये ख़र्च कर दिये। वर्ष 2009 में लुधियाना ज़िला प्रशासन ने बुड्ढा नाले के आसपास के क्षेत्र में सीआरपीसी की धारा 144 लागू की थी और पुलिस की गश्त के बाद कचरा फेंकने वालों को नियंत्रित कर लिया था लेकिन जल्द ही ये सब कुछ भुला दिया गया। अप्रैल 2011 में बुड्ढा नाले में प्रदूषण पर अंकुश लगाने के लिए पूर्व पर्यावरण एवं वन मंत्री जयराम रमेश द्वारा इन सीटू बायो-रीमिडेशन शुरू किया गया था। इस नाले का पानी इतना ज़हरीला था कि जैविक सफ़ाई प्रक्रिया के लिए उसमें छोड़े गए बैक्टीरिया भी विकसित नहीं हो पाए।

पर्यावरण के प्रति वर्षों की निष्क्रियता और संवेदनशीलता की कमी के बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने शोभा सिंह बनाम पंजाब स्टेट के मामले में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को आदेश दिया था कि एक निगरानी समिति गठित करे जिसमें पर्यावरणविद बलबीर सिंह सीचेवाल भी शामिल हों। सीचेवाल ने अपने सहयोगियों की मदद से 164 किलोमीटर लंबी प्रदूषित काली बेइन नदी की सफ़ाई की थी। वर्ष 2018 में नामधारी संप्रदाय के प्रमुख ठाकुर उदय सिंह के नेतृत्व मेंसफाई प्रक्रिया शुरू करने के लिए एक विशेष कार्य बल (एसटीएफ) भी बनाया गया था।

जल संकट और आगे का रास्ता

जमशेदपुर ज़ीरो सीवरेज डिस्चार्ज सिटी बनने वाला भारत का पहला शहर बन गया है। ज़ीरो सीवरेज वाटर डिस्चार्ज ज़ीरो लिक्विड डिस्चार्ज (ज़ेडएलडी) नामक एक तकनीक द्वारा हासिल किया जाता है। जेडएलडी एक वाटर ट्रीटमेंट प्रक्रिया है जिसमें अपशिष्ट जल को शुद्ध और रीसाइकिल किया जाता है जिससे ट्रीटमेंट साइकिल के आख़िर में कुछ भी अपशिष्ट नहीं बचता है और साफ़ जल पास के नदी में प्रवाहित किया जाता है। इसके सफ़ल कार्यान्वयन के बावजूद इस तकनीक को किसी अन्य स्थान पर इस्तेमाल नहीं किया गया है। जमशेदपुर का यह अपशिष्ट उपचार संयंत्र प्रति दिन 40 मिलियन लीटर (एमएलडी) का ट्रीटमेंट करता है। एक अनुमान के मुताबिक सतलज नदी में लुधियाना का लगभग 700 एमएलडी दूषित जल जाता है जिसमें औद्योगिक अपशिष्ट भी शामिल हैं। बेहतर स्थिति प्राप्त करने के लिए ये कोई बड़ी उपलब्धि नहीं है। सरकार की कार्यवाही से स्पष्ट होता है कि ये लोगों के स्वास्थ्य और अपनी अर्थव्यवस्था के प्रति संवेदनशील नहीं है।

अगर सरकार पानी के दूषित होने के ख़तरे को दूर करने को लेकर वाकई गंभीर है तो इसे कड़े नियम के साथ प्रयास शुरू करना चाहिए जो कि कस्टमरी इंटरनेशनल लॉ का स्वीकृत नियम है जिसे इंडियन काउंसिल फॉर एनवारो-लीगल बनाम भारत संघ मामले में अपने फैसले में भारत की सर्वोच्च न्यायालय द्वारा नगरपालिका क़ानून में शामिल किया गया है।

जल अधिनियम के प्रावधानों को सख्ती से लागू करने की आवश्यकता है जो कचरा तथा अपशिष्टों को फेंकने के लिए जल श्रोतों तथा कुओं के इस्तेमाल पर रोक लगाता है। यह प्रदूषण फैलाने वालों पर सख़्त होता है जो पर्यावरण को अपरिवर्तनीय नुकसान पहुंचाते हैं। अब तक की इतिहास में भारत पहले से ही सबसे ज़्यादा जल संकट का सामना कर रहा है ऐसे में हम इन उपायों को अपनाने में और देरी नहीं कर सकते हैं। निरंतर जल प्रदूषण से खाद्य उत्पादन, जैव विविधता और लोगों के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

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