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राजनीति
बुलंदशहर कांड : पुलिस जांच की दिशा ही सवालों के घेरे में
सवाल उठता है कि इस घटना में सारी कार्रवाई गौकशी करने वाली शिकायत पर ही क्यों हो रही है। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार और सुमित की हत्या और पुलिस थाने के सामने हुई हिंसा पर क्यों नहीं हो रही है?
अजय कुमार
20 Dec 2018
बुलंदशहर
साभार -द हिन्दू

 

गौकशी और भीड़ हिंसा के मामलें में देश के मौजूदा माहौल का प्रतिनिधित्व करने वाली बुलंदशहर की घटना ने एक मोड़ ले लिया है। देश के इतिहास में यह पहली बार हो रहा है कि 83 पूर्व प्रशासनिक अधिकारियों ने किसी राज्य के नफ़रती माहौल पर चिंता जताई है। इन प्रशासनिक अधिकारियों में भूतपूर्व विदेश सचिव श्याम शरण और सुजाता सिंह, राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकर के पद पर काम कर चुके शिव शंकर मेनन और दिल्ली के पूर्व राज्यपाल रह चुके नजीब जंग जैसे बड़े नाम शामिल हैं। यह सभी मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के  इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। इन सभी का कहना है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खुलकर ‘अपनी कट्टरता का घमंड दिखा रहे हैं।’

भूतपूर्व आईएएस अधिकारियों की इस नाराजगी के पीछे प्रशासनिक विफलता की वजह से उत्तर प्रदेश में पैदा हो रहे नफ़रती माहौल को जिम्मेदार बताया है। इन सभी अधिकारियों का कहना है कि पुलिस हिंसा फैलाने के आरोपियों की बजाय गौकशी के आरोपियों को पकड़ने में जुटी है जबकि हिंसा के नामजद आरोपियों को अभी तक गिरफ्तार नहीं किया गया है।

उनका कहना है कि सरकार और खुद मुख्यमंत्री ने इसे सांप्रदायिक एजेंडे के तहत फैलाई गई हिंसा माना था और इस बारे में काफी विस्तार से चर्चा हुई थी। बावजूद इसके अब सारा फोकस गौकशी और इसके आरोपियों की तरफ शिफ्ट हो गया है। इस वजह से घटना की ठीक तरह से जांच नहीं हो पा रही है। 

तकरीबन दो हफ्ते पहले हुई बुलंदशहर की घटना में पुलिस इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह की हत्या हुई और संबंधित एफआईआर में 27 लोगों के नाम हैं, 50-60 लोग अज्ञात बताए गए हैं मगर गिरफ्तारी चार की हुई है। यानी 87 नाम-अनाम लोगों में से मात्र 4 गिरफ्तार हुए हैं। मुख्य आरोपी भी गिरफ्तार नहीं हुआ है। इस घटना में सुबोध कुमार सिंह के साथ-साथ एक युवक सुमित की भी मौत हुई थी। इस घटना के बाद जारी हुए वीडियो में सुमित पत्थर लेकर पुलिस को मार रहा है। बहुत सारे लड़के पत्थरों से पुलिस को दौड़ाते हुए खेतों की तरफ ले गए हैं। तभी दिखता है कि सुमित को गोली लगी है। यानी पुलिस की गोली से पहले सुमित पुलिस पर पत्थरों से हमला कर रहा था।

इस भीड़ में सिर्फ लड़के हैं। 18-20 साल के लड़के। इस घटना पर कई तरह के वीडियो मिले हैं। एक वीडियो में आवाज़ सुनाई दे रही है कि कथित रूप से मांस कहां से आया, कौन लाया, किसने काटा। पुलिस जांच कर रही है। जिनके खेत में मांस मिलने की खबर आई थी वो झगड़ा नहीं चाहते थे, लेकिन दूसरे गांव से लोग झगड़े के लिए आ गए। आने से पहले उनकी पूरी तैयारी दिखती है। ट्रैक्टर, कट्टे, हथियार, पत्थर, डंडे सब लेकर आए थे। खेत में जीप खड़ी है। वीडियो देखने से लगता है कोई पिस्टल लेकर सुबोध कुमार सिंह के करीब जाता है। गोली की आवाज़ आती है मगर कैमरा जब इस अधिकारी के पास पहुंचता है तो वह आदमी फ्रेम से हट जाता है। पीछे चला जाता है। आवाज़ आती है अरे ये तो एसओ है। इसके बाद सब भागने लगते हैं।

गौकशी के मामले में शिकायतकर्ता योगेश राज है। जबकि खेत राजकुमार प्रधान का था। पत्रकारों ने राजकुमार प्रधान की पत्नी से बात की थी, जिनके खेतों में मांस फेंका गया था। उन्होंने यही कहा कि हम मामले को आगे नहीं बढ़ाना चाहते थे, लेकिन भीड़ आ गई और ज़बरदस्ती ट्राली में डालकर आगे ले गई। यह भीड़ किस इरादे से आई थी, बताने की ज़रूरत नहीं है। राजकुमार प्रधान के खेत के बगल में प्रेमजीत का भी खेत है। वहां भी मांस के टुकड़े पड़े थे। प्रेम जीत सिंह ने ट्रॉली लाने वालों में बजरंग दल का नाम लिया। एफआईआर में जिनके नाम हैं उनमें से एक योगेश राज के बारे में मीडिया में अब काफी डिटेल है। यह  बजरंग दल का ज़िला संयोजक है।पुलिस थाने के सामने भीड़ फ़ैलाने से जुड़े एफआईआर में योगेश राज के अलावा 26 और नाम हैं।

इस घटना के बाद से हुआ यह है कि योगेश राज द्वारा दायर शिकायत के तहत गिरफ्तार किये गये चार मुस्लिम लोगों को पुलिस ने पहली नजर में निर्दोष पाया है और उन्हें बरी कर दिया है। योगेश राज द्वारा दायर शिकायत में सात मुस्लिम लोग शामिल थे। योगेश राज का कहना था कि इसने इन लोगों को गाय काटते हुए देखा है। बाद में पता चला कि इन सात लोगों में से दो नाबालिग थे और चार को अभी पुलिस द्वारा ही निर्दोष बता दिया गया है। अभी हालिया स्थिति यह है कि गौकशी के मामलें में एसआईटी की टीम ने तीन ऐसे मुस्लिम लोग की गिरफ्तारी की है, जिनका नाम योगेश राज द्वारा दायर शिकायत में नहीं था। इसका साफ़ मतलब यह है कि पुलिस भी ऐसी स्थिति में पहुँच चुकी है,जहाँ वह यह भरोसा कर पाए कि योगेश राज की शिकायत फर्जी है, लेकिन योगेश राज अभी फरार है और पुलिस उसके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं कर रही है।

इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए बुलंदशहर के पुलिस अधीक्षक प्रभाकर चौधरी ने कहा मंगलवार को गिरफ्तार किये गये तीन लोग रईस, काला और नदीम हैं। सभी की उम्र तकरीबन 30 साल है और पुलिस ने वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर इसकी गिरफ्तारी की है। चौधरी ने वैज्ञानिक तथ्यों को बताते हुए कहा कि इनसे एक ऐसी गाड़ी जब्त की गयी है, जिसका इस्तेमाल यह गौमांस के व्यापार के लिए करते  थे और साथ में ऐसे चाकुओं की बरामदगी की है, जिसका इस्तेमाल गाय काटने में किया जाता है। काला को दो साल पहले गौकशी के मामलें में गिरफ्तार किया गया था और इस समय इसे बेल पर रिहाई मिली हुई थी। यानी वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर ऐसे सबूत जिससे आरोपी होने के सिवाय भी कई तरह के अंदेशे निकल सकते हैं, जैसे कि गिरफ्तार किये गये लोगों के सगे सम्बन्धी इन सबूतों का पूरी तरह से खंडन करते हैं।

अब सवाल उठता है कि इस घटना में सारी कार्रवाई गौकशी करने वाली शिकायत पर ही क्यों हो रही है। इंस्पेक्टर सुबोध कुमार और सुमित की हत्या और पुलिस थाने के सामने हुई हिंसा पर क्यों नहीं हो रही है। इन सवालों का जवाब क्यों नहीं ढूंढा जा रहा है?

-योगेश राज की शिकायत में दर्ज जब चार लोग बेगुनाह साबित हो गये हैं और धीरे धीरे यह साफ़ हो रहा है कि बजरंग दल के जिलाध्यक्ष योगेश राज की शिकायत झूठी है तो अभी तक योगेश राज की गिरफ्तारी क्यों नहीं हुई? जबकि भीड़ उकसाने से जुड़ी पुलिस के खुद की प्राथमिकी में योगेश राज का नाम शामिल है।

 -जब यह बात साबित हो चुकी है कि सुमित और इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या सामान आकार के बोर वाले पिस्तौल से हुई थी। जारी हुए वीडियो में पिस्तौल का इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति जीतू फौजी की गिरफ्तारी हो चुकी है तो बिना पुलिस पूछ-ताछ के सीधे उन्हें न्यायिक हिरासत में क्यों भेजा गया?

 -पुलिस के सामने मौजूद भीड़ के पास पत्थर, कट्टे, गोलियां, हथियार कहां से आए? क्या ये सब अचानक मौके से जुटा लिया गया या किसी तैयारी का हिस्सा था।

 - इंस्पेक्टर सुबोध कुमार सिंह पहले अखलाक से जुड़े मामले में भी छानबीन कर रहे थे। क्या सुबोध कुमार सिंह की छवि खास तरीके से गढ़ी गई थी जिसके चलते उन्हें निशाना बनाया गया। जिले भर के भाजपा नेताओं का एक पत्र मिला था जो उन्होंने इसी एक सितंबर को अपने सासंद भोला सिंह को लिखा था। पत्र के एक हिस्से में लिखा है- आपको अवगत कराना चाहते हैं कि प्रभारी निरीक्षक स्याना सुबोध कुमार सिंह का व्यवहार आम जनता के प्रति अभद्र है। क्षेत्र में चोरी, पशुचोरी, अवैध वाहन बढ़ते जा रहे हैं, क्षेत्र में वाहन चेकिंग के नाम पर नगर वासियों को अनावश्यक रूप से परेशान किया जा रहा है एवं अवैध वसूली की जा रही है। हिन्दुओं के धार्मिक कार्यों के आयोजन में अड़चन पैदा कर हिन्दू समाज में आक्रोश पनप रहा है। ऐसे पुलिस अधिकारी का तत्काल स्थानांतरण कराकर इनके विरुद्ध विभागीय कार्यवाही कराने की कृपा करें।तो क्या यह सारी घटना इंस्पेक्टर सुबोध की हत्या करवाने से तो नहीं जुड़ी है?

 - दिल्ली के करीब के इलाके में गौकशी रोकने से जुड़ी घटनाएँ इतना भयावह रूप कैसे ले लेती है कि कभी भीड़ मिलकर एक इन्सान को मार देती है और कभी भीड़ पूरे पुलिस स्टेशन पर धावा बोल देती है। इसमें स्थानीय नेताओं सहित स्थानीय नागरिकों की कितनी सहमति होती है।

-क्या यह मामला केवल गौकशी और भीड़ हिंसा से जुड़े दोषियों को सजा देने भर से खत्म हो जाएगा या इसके लिए कुछ और भी करना पड़ेगा।

 इसलिए पूर्व प्रशासनिक अधिकारी ने अपने पत्र में भी लिखा है कि बुलंदशहर घटना से जुड़े कई विडियो उपलब्ध हैं. सारे विडियो से यह साफ़ तौर पर जाहिर होता है कि पुलिस थाने के सामने हिंसा फ़ैलाने में कौन से लोग जिम्मेदार थे. इन सारे लोगों को गिरफ्तार करने की बजाए उत्तर प्रदेश पुलिस पूरी तरह से गौकशी से जुड़े मामलें की छानबीन कर रही है और केवल मुस्लिम होने के आधार पर लोगों को गिरफ्तार कर रही है.

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

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