NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
आख़िर भारतीय क्रिकेट किस चीज़ की परवाह करता है?
BCCI ने PM CARES फ़ंड में 51 करोड़ रुपये का दान दिया है। यह फ़ंड सरकार ने 28 मार्च को शुरू किया था। भले ही बोर्ड को शाबाशी मिल रही हो, पर सवाल उठता है कि BCCI को मदद देने के लिए सरकार के आह्वान का इंतज़ार क्यों करना पड़ा? किस बिंदु पर आकर मानवीय मदद, निजी प्रचार का हिस्सा बन जाती है? जब दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड की बात है, तो उससे बेहतर कौन बता सकता है?
लेसली ज़ेवियर
30 Mar 2020
भारतीय क्रिकेट

यह कठिन दौर काफ़ी दर्द देने वाला है, लेकिन अब हम इसी में जी रहे हैं।

राष्ट्रीय राजधानी के अकेले कोने में रहने वाले मध्यवर्ग के अधेड़ इंसान की ज़िंदगी पिछले एक हफ्ते में धीमी हो गई है। वायरस के चलते लॉकडॉउन में रहने वाला वह इंसान जिंदा रहने की मध्यमार्गी योजनाएं बनाने में मशगूल हैं। जिंदगी की भागदौड़ से फ़ुरसत होकर अब वो अपनी बॉलकनी से पक्षियों की चहचहाहट सुन रहा है। इस दौरान उसके फेंफड़ों को साफ हवा भी नसीब हो रही है। PM 2.5 प्रदूषक के कम होने से काफ़ी राहत है, इस प्रदूषक को लोग गलत तरीके से दूर-दराज के हरियाणा और पंजाब के किसानों के मत्थे जड़ देते थे।

सूनी सड़कें तस्दीक करती हैं कि दिल्ली में प्रदूषण की दिक्कत NCR के बड़े दायरे, ताकत की अपनी चाहत और अपने घमंड में बसती है। 

अब ताजी हवा में अचानक लैवेंडर के फूल की ख़ुशबू आती है। यह ''बर्लिन फिलहार्मोनिक आर्केस्ट्रा'' के ऑनलाइन कॉन्सर्ट हाल से एक प्रस्तुतीकरण है, जिसे सोशल डिस्टेंसिंग के दौर में लोगों के तनाव को कम करने के लिए बनाया गया है।

दूसरी तरफ, जब वो शख़्स असलियत में वापस आता है, तो उसकी शामें उदासी के साये में गुज़रती हैं। दिल्ली को अपना अस्थायी घर बनाने वाले कामगार, जो कोरोना से पहले भूख से डर गए। जो जानते हैं कि इस शहर में शायद ही कोई उनके लिए फिक्रमंद हो। शहर से बाहर जाने के लिए बेताब इन कामग़ारों की भीड़ वाले वीडियो उसे डराते हैं। यह कामगार उन गांवों में वापस जाना चाहते हैं, जहां से उन्होंने चलना शुरू किया था। उनके गांव इस दिल्ली से बहुत दूर नहीं हैं, लेकिन राजधानी की प्राथमिकताएं उनके गांवों के इर्द-गिर्द भी नहीं हैं। वह घर जाकर उन परिंदों की आवाजें सुनना चाहते हैं, जिन्हें सुनते हुए उन्होंने अपना बचपन गुज़ारा है।

भारत की असलियत दो तस्वीरों में बंटती है। एक तरफ दक्षिण दिल्ली के अपने आरामदायक घरों में रहने वाले लोग हैं, तो दूसरी तरफ आनंद विहार में भीड़ बनती महिलाएं, बच्चे और मर्द हैं, जो किसी भी कीमत पर बसों में जगह पाने के लिए बेक़रार हैं। दोनों ही वर्ग उस बीमारी को समझने की कोशिश कर रहे हैं, जिसका नाम भी वे ठीक से नहीं बोल पाते। इससे बचने के तरीकों की समझ के बारे में तो छोड़ ही दीजिए। जिस रास्ते पर कोरोना तबाही लेकर आ रहा है, हम दूसरी तरफ से उसी ओर बढ़ रहे हैं। भारतीय समाज मॉब लिंचिंग जैसी महामारी भी देख चुका है, उसकी तुलना में COVID-19 हल्की ही नज़र आती है। 

अरे मैं तो भूल ही गया, यहां मुझे क्रिकेट के बारे में लिखना था... चलो शुरू करते हैं!

ऐसे दौर में जब महाभारत और रामायण सरकारी चैनल पर दोबारा चलाए जा रहे हैं, तब हम इतिहास के कुछ शानदार क्रिकेट मैचों पर भी नज़र डाल सकते हैं। इस बीच बहुत सारी 'ऑल-टॉइम बेस्ट इलेवन' नज़र आ रही हैं। इनमें सचिन तेंदुलकर और डॉन ब्रेडमैन भी हैं। क्रिकेट को सोचने वाला खेल होना चाहिए था। विडंबना है कि इस कठिन दौर में क्रिकेट पसंद करने वाले लोग इसकी विरासत की ओर लौट रहे हैं, जिसे इस खेल पर क़ाबिज़ सत्ता ने मरने के लिए छोड़ दिया है।

यह खेल तीन देशों तक ही सीमित है। आज जब दुनिया को मैदानी खेल से आगे की जरूरत है, तब ऐसा महसूस हो रहा है कि इस खेल ने सामाजिक जिम्मेदारियों से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया है। इंटरनेशनल क्रिकेट काउंसिल (ICC) हमेशा अनिश्चिय की स्थिति में होती है। इसने खुद की अहमियत को एक दायरे में ''क्वारंटाइन'' कर दिया है। मौजूदा दौर में भी यह अनवरत् जारी है। FIFA ने WHO के साथ मिलकर कैंपेन शुरू किया है, लेकिन ICC ने अब तक अंगड़ाई भी नहीं ली। यही बात हमें एक वैश्विक आंदोलन बन चुके फुटबाल और ऐसी ही चाहत रखने वाले क्रिकेट के अंतर को दिखा देती है।

हांलाकि कोई भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (BCCI) के बारे में ऐसा नहीं कह सकता। पूरे देश में यही एक अहम खेल संस्था है।

लेकिन करोड़ों लोगों के पसंदीदा सौरव गांगुली की संस्था इस हालात में और भी बहुत कुछ कर सकती थी। एक तरफ BCCI कोरोना के ख़तरों को नजरंदाज करते हुए इस साल IPL करवाने की कोशिश करती रही, तो दूसरी तरफ संस्था ने कोरोना वायरस के खिलाफ़ मुहिम में योगदान दिया है। प्रधानमंत्री द्वारा हाल में शुरू किए गए प्रोजेक्ट PM CARES में गांगुली और अमित शाह के बेटे जय शाह के नेतृत्व वाली BCCI ने तुरंत दान दिया। मानना होगा कि ''PM CARES'' का एक्रोनिम एक विज्ञापन का तरीका भी है। इसका पूरा नाम है- प्राइम मिनिस्टर्स सिटीजन असिस्टेंस एंड रिलीफ इन इमरजेंसी सिचुएशन फंड (PM CARES- Prime Minister Citizen Assistance Relief In Emergency Situation Fund)।

हांलाकि इसे सुनकर ''ओबामा केयर'' का ख़्याल आता है। सरकार अपनी मौलिकता बरकरार रख सकती थी। लेकिन पिछले रविवार को शाम पांच बजे पूरे देश में हुए ''आभार व्यक्ति कार्यक्रम' के बाद किसी को बहुत ज़्यादा आशा नहीं रखना चाहिए।

एक लेख के लिए इतना विषयांतर काफ़ी है। अब मैं क्रिकेट पर वापस लौटता हूं।

BCCI और इसकी स्टेट यूनिट ने शनिवार को PM CARES में 51 करोड़ रुपये दान करने की घोषणा की।  बंटवारे के तरीके और भुगतान के वक़्त के बारे में अब तक कुछ साफ नहीं किया गया है। पैसे की बड़ी मात्रा को देखते हुए यह समझा जा सकता है। पैसे के बंटवारे में पर्याप्त सहयोग में कुछ दूसरी दिक्क़तें भी हैं। कुछ लोग आरोप लगा रहे हैं कि अलग-अलग राज्यों में क्रिकेट बोर्ड के प्रतिनिधियों की राजनीतिक प्रतिबद्धताएं इस दिशा में बड़ी बाधा होंगी। फिर दोहरा दूं कि यह एक आरोप है!

आज कोरोना के खिलाफ़ स्थानीय राज्य सरकारों ने प्रभावी ढंग से जंग छेड़ रखी है, न कि बेबस केंद्र सरकार के पास इसमें नेतृत्व है। इन स्थितियों में क्या यह बेहतर नहीं होता कि बोर्ड अपनी स्टेट यूनिट को संबंधित राज्यों में जरूरत के मुताबिक़ दान देने का प्रावधान करता?

लेकिन रुकिए! शायद इससे BCCI को कोई फायदा नहीं होता। 51 करोड़ रुपये की बात अख़बारों में छपने लायक है। इसका बड़ा प्रभाव भी होगा। बदकिस्मती से यह अख़बार आजकल व्हॉट्सएप इनबॉक्स में दूसरी फर्जी खबरों के साथ पहुंचते हैं। अगर इस पैसे को अलग-अलग राज्यों में बांट दिया जाता, तो सोशल मीडिया पर कम चर्चा होती और BCCI की वाहवाही में कमी आती। आखिर राहत कार्य जितने मानवीय होते हैं, उतने ही प्रचारित भी तो किए जाते हैं।

हां, अगर आप महेंद्र सिंह धोनी हों, तो बात कुछ अलग भी हो सकती है। कोरोना राहत में धोनी के एक लाख रुपये की दान की ख़बर से उनकी ट्विटर पर काफ़ी छीछालेदर हुई। लेकिन इस बात का उनकी पत्नी साक्षी ने खंडन किया और इसे झूठ करार दिया। लेकिन उन्होंने यह साफ नहीं किया कि आखिर यह झूठ था क्या! 

अगर यह सही है, तो सेना की भक्ति दिखाने वाले बल्लेबाज को खुद पर शर्मिंदा होना चाहिए। आखिर वो दुनिया के सबसे अमीर खिलाड़ियों की लिस्ट में लगातार आते रहे हैं। इनसे बेहतर तो विराट कोहली नज़र आ रहे हैं, जिन्होंने अपनी तमाम ऊंची ब्रांड वैल्यू के बावजूद अब तक कोई पैसा नहीं दिया।

अगर धोनी के बारे में एक लाख रुपये दान करने की बात सही नहीं है, तो कहना होगा कि -धोनी सर आपके जीते हुए वर्ल्डकपों का अब कोई मतलब नहीं है, क्योंकि सितारा बनाने वाले समाज के प्रति आपने कोई दायित्व नहीं निभाया। जबकि इसी समाज ने आपको अमीर बनाया और आपके गैरेज में रखी उन सुपरबाइक्स की कीमत चुकाई।

फिर धोनी कोई रोजर फेडरर, क्रिश्टियानो रोनाल्डो या लियोनल मेसी नहीं हैं। न ही वे हिमा दास और बजरंग पूनिया हैं, जो कम अमीर हैं, फिर भी इस कठिन दौर में जो कर सकते हैं, वो कर रहे हैं। मेसी और रोनाल्डो ने लाखों डॉलर दान किए हैं। वहीं फुटबाल क्लबों ने ना केवल पैसे से मदद की, बल्कि अपनी संपत्तियां कोरोना से निपटने वाली सुविधाओं के लिए खोल दीं। हमारी IPL फ्रेंचाइज़ी के मालिकान कहां हैं, जो इसे जारी रखने के लिए फड़फड़ा रहे थे। यह लोग दूरदर्शन पर जारी पौराणिक कथाओं के बीच के हिस्से में अपनी IPL ब्रॉडकॉस्टिंग को हासिल करना चाहते थे।

खैर, IPL क्लब कोई लीड्स यूनाइटेड या उसके मालिक मार्सेलो बिएल्सा नहीं हैं। फिर बिएल्सा के तो आसपास भी कोई फुटबाल शख़्सियत तक नहीं है।

खेल अगर महज़ रिकॉर्ड और पैसे के लिए ही खेले जाने लगें और उन लोगों को भूल जाएं, जिनसे उनकी अहमियत बनती है, तो फिर इनका कोई मतलब नहीं रह जाता। यह वही लोग हैं, जो नई दिल्ली के आनंद विहार पर फंस जाते हैं, ताकि कोई बस उन्हें उनके घर तक पहुंचा सके। जबकि वह जानते हैं कि सरकारी वाहन उन्हें स्वास्थ्य और आर्थिक अनिश्चित्ता की ओर ले जाएंगे।

अगर सरकार लॉकडॉउन के पहले बुनियादी फ्रेमवर्क बनाती, तो इस तस्वीर को बनने से रोका जा सकता था। ऐसे मज़दूर, जो एक दिन काम न करें, तो उनके लिए खाने के लाले पड़ जाएं, उन्हें थोड़ा पैसा और उनके लिए सप्लाई चेन बनाकर सरकार मज़दूरों को घरों में सुरक्षित रहने के लिए तैयार कर सकती थी। लेकिन फ़ैसले में देरी की गई। जैसा पहले होता आया है, यह फ़ैसला भी तुरत-फुरत की स्थिति से निपटने वाला और प्रतिक्रियावादी था।

अगर BCCI के पैसे को अफसरशाही के खज़ाने के बजाए सीधे मोर्चे पर ले जाया जाता, तो क्या कोई फर्क पड़ता? आने वाले दिन हमें इसका जवाब देंगे। अब जब किसी तरह की क्रिकेट नहीं खेली जा रही है, तो बीसीसीआई के अधिकारियों के पास ख़तरनाक मोड़ से पहले संभलने के लिए वक़्त है।

आनंद विहार टर्मिनल पर जो भीड़ जमा हुई, उसका भारत में कोरोना के वक्र (Curve) पर क्या असर पड़ेगा? दरअसल कोरोना के वक्र को ''बड़े स्तर की टेस्टिंग की अक्षमता'' ने किसी भी दूसरे तरीके से ज़्यादा काबू में रखा है। क्रिकेट की भाषा में बोलें तो पिच से घास को हटा दिया गया है, ताकि विराट कोहली की टीम अपनी जीत का सिलसिला बरकरार रख सके। चलो कुछ तो क्रिकेट की बात हुई! 

कोरोना वायरस ने हमें अच्छे से जता दिया है कि हमारा अस्तित्व अनश्वरता से फिलहाल कितना दूर है...

अंग्रेजी में लिखे गए मूल आलेख को आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं

Outside Edge | BCCI’s Covid-19 Plunge With PM CARES: Who does Indian Cricket Really Care For?

bcci
Board of Control for Cricket in India
BCCI Covid-19 relief
Covid-19 India
Covid-19 funding
BCCI Covid-19 fund
Anand Vihar Bus terminal
Delhi Migrant worker exodus
UP migrant worker exodus
PM CARES
PM CARES fund
Narendra modi
MS Dhoni
MS Dhoni Covid-19 fund
virat kohli
Indian cricket
icc
ICC Covid-19
Sourav Ganguly
Leeds United
Marcelo Bielsa
Indian Premier League
IPL clubs
cricket
Outside Edge

Related Stories

दवाई की क़ीमतों में 5 से लेकर 5 हज़ार रुपये से ज़्यादा का इज़ाफ़ा

कोविड पर नियंत्रण के हालिया कदम कितने वैज्ञानिक हैं?

हर नागरिक को स्वच्छ हवा का अधिकार सुनिश्चित करे सरकार

बिहारः तीन लोगों को मौत के बाद कोविड की दूसरी ख़ुराक

अबकी बार, मोदी जी के लिए ताली-थाली बजा मेरे यार!

जन्मोत्सव, अन्नोत्सव और टीकोत्सव की आड़ में जनता से खिलवाड़!

डेंगू की चपेट में बनारस, इलाज के लिए नहीं मिल रहे बिस्तर

कई प्रणाली से किए गए अध्ययनों का निष्कर्ष :  कोविड-19 मौतों की गणना अधूरी; सरकार का इनकार 

कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 41,806 नए मामले, 581 मरीज़ों की मौत

कोरोना अपडेट: देश में क़रीब चार महीने बाद 32 हज़ार नए मामले, 2,020 मरीज़ों की मौत


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License