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भारत
राजनीति
भाजपा के लिए गले की फांस बनती प्रज्ञा ठाकुर की उम्मीदवारी
भोपाल लोकसभा सीट की भाजपा उम्मीदवार प्रज्ञा ठाकुर के बयानों के बाद भाजपा को डर है कि कट्टर हिन्दुत्व का उसका दांव उल्टा न पड़ जाए।
राजु कुमार
25 Apr 2019
pragya thakur
Image Courtesy : Lokmatnews.in

भारतीय जनता पार्टी के गढ़ के रूप में पहचान बना चुकी भोपाल लोकसभा सीट पर जीत हासिल करना इस बार भाजपा के लिए मुश्किल है। न केवल भोपाल बल्कि कई अन्य सीटों पर भी ध्रुवीकरण के प्रयासों में भाजपा असफल नजर आ रही है। कई दिग्गज नेताओं के नाम पर मंथन के बाद आखिरकार भाजपा ने भोपाल सीट के बहाने देशव्यापी ध्रुवीकरण की मंशा से साध्वी प्रज्ञा ठाकुर को उम्मीदवार बनाया, लेकिन उम्मीदवारी की घोषणा के बाद प्रज्ञा ठाकुर के बयानों ने भाजपा को बैकफुट पर ला दिया। भाजपा और उसके वरिष्ठ नेताओं ने गोल-मटोल तरीके से प्रज्ञा ठाकुर के बयानों को उनके निजी बयान बताकर पल्ला झाड़ने की कोशिश की। वे उनके बयानों का असर भी देखना चाहते थे और विपक्षी धार को कमजोर भी करना चाहते थे। लेकिन प्रज्ञा के बयानों का असर भाजपा के लिए ज्यादा फायदेमंद नहीं दिख रहा है। भाजपा नेताओं का एक समूह भी प्रज्ञा की उम्मीदवारी से नाखुश है। उन्हें डर है कि यदि भाजपा की हार हुई, तो प्रज्ञा के कारण उनका वोट बैंक भी कमजोर हो जाएगा।

प्रज्ञा की उम्मीदवारी के बाद हालात ऐसे बन गए हैं कि भाजपा को डर था कि प्रज्ञा की उम्मीदवारी निरस्त न हो जाए। इसलिए भाजपा ने मौजूदा सांसद आलोक संजर से भी डमी उम्मीदवार के रूप में नामांकन करवाया, ताकि प्रज्ञा का नामांकन निरस्त होने की स्थिति में भाजपा का कोई उम्मीदवार मैदान में जरूर रहे। प्रज्ञा के बयान भाजपा के कट्टर समर्थकों के अलावा अन्य मतदाताओं के गले नहीं उतर रहे हैं। बाबरी मस्जिद गिराने को लेकर प्रज्ञा द्वारा दिए गए आपत्तिजनक बयान के बाद चुनाव आयोग ने उनसे जवाब मांगा था। प्रज्ञा ठाकुर द्वारा दिए गए जवाब से चुनाव आयोग संतुष्ट नहीं हुआ और उसने एफआइआर दर्ज कराने का निर्देश जिला निर्वाचन अधिकारी को दिया। साध्वी प्रज्ञा के खिलाफ एफआइआर दर्ज हो गई। इसके पहले मुंबई के तत्कालीन एटीएस चीफ शहीद हेमंत करकरे को लेकर साध्वी प्रज्ञा ने जो बयान दिया था, उससे भी भाजपा नेताओं का एक समूह नाराज दिखाई दिया। बयानों में संयम बरतने को लेकर भी भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने साध्वी प्रज्ञा को हिदायत दी, लेकिन शुरुआत से ही आत्मरक्षात्मक रूख अपनाने के बाद भाजपा का दिग्विजय सिंह पर हावी हो पाना मुश्किल लग रहा है।

भोपाल की गंगा-जमुनी तहजीब पर विश्वास करने वाले बुद्धिजीवियों का एक धड़ा चिंतित है कि सांप्रदायिक बयानों के बीच भोपाल की फिजां बिगाड़ने की कोशिशें की जा रही हैं। इसे लेकर मध्यप्रदेश सांस्कृतिक मोर्चा द्वारा प्रदर्शन भी किया गया। सांस्कृतिक मोर्चा से जुड़े वरिष्ठ चित्रकार मनोज कुलकर्णी का कहना है, ‘‘भोपाल में भाजपा ने जिस उम्मीदवार को उतारा है, उसके बयानों को लेकर संस्कृतिकर्मी एवं बुद्धिजीवी वर्ग चिंतित है। इस तरह के भड़काऊ बयान से भोपाल की भाईचारे की परंपरा पर चोट पहुंचाने की साजिश की जा रही है। इस तरह की नफ़रत की राजनीति के खिलाफ लेखक, कलाकार और समाजसेवी प्रदर्शन कर रहे हैं, ताकि इन पर अंकुश लगाया जा सके।’’ वरिष्ठ समाजसेवी राजेन्द्र कोठारी का कहना है, ‘‘भोपाल में भाजपा ने जिस उम्मीदवार को उतारा है, वह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की शह पर किया गया है। क्या हम भोपाल से सांप्रदायिकता का संदेश देना चाहते हैं। जनता को इस सवाल से रूबरू होना चाहिए और हमें नफ़रत की राजनीति के खिलाफ संदेश देने की जरूरत है। हमें बताना होगा कि हमें धर्मयुद्ध नहीं चाहिए।’’

भारत की कम्युनिस्ट पार्टी-मार्क्सवादी (सीपीएम) के राज्य सचिव जसविंदर सिंह का कहना है, ‘‘17 वीं लोकसभा के चुनाव पूरे देश के लिए ही महत्वपूर्ण हैं, क्योंकि इस बार दांव पर लोकतंत्र, देश का संविधान, संघीय ढांचा, संवैधानिक संस्थाएं और न्यायपालिका तक लगी हुई हैं। इन परिस्थितियों में भोपाल लोकसभा से भाजपा का प्रत्याशी एक स्पष्ट संकेत है कि भाजपा और संघ परिवार देश को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं। भोपाल लोकसभा सीट से भाजपा द्वारा घोषित प्रत्याशी भाजपा की राजनीतिक हार है। जो पार्टी 15 साल तक र्निबाध रूप से प्रदेश में सत्ता में रही। पिछले पांच साल से केन्द्र में राज कर रही है। उस पार्टी के पास चुनाव लडऩे के लिए कोई राजनीतिक चेहरा नहीं है। इसलिए भाजपा ने एक ऐसा कट्टर साम्प्रदायिक चेहरा प्रस्तुत किया है, जिसके अभिनव भारत के साथ रिश्ते हैं। जो मालेगांव, समझौता एक्सप्रेस सहित कई बम विस्फोटों के आपराधिक केसों में अभियुक्त है। संघ के स्वंयसेवक सुनील जोशी के हत्या के साथ भी इसका नाम जुड़ा हुआ है।’’

सीपीएम सचिव ने बताया, ‘‘आज भाजपा जिन्हें हिन्दुत्व का प्रतीक बना रही है। कभी संघ ही उन्हें खतरनाक अपराधी मानता था। साध्वी प्रज्ञा का संबंध जिस आतंकवादी संगठन अभिनव भारत से रहा है। उनके बारे में 9 फरवरी 2011 को आरएसएस के सरकार्यवाह सुरेश भैया जी जोशी ने उस समय के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखा था कि कर्नल पुरोहित और दयानंद पांडेय मोहन भागवत पर केमिकल हमला कर उनकी हत्या करना चाहते हैं। इनका संगठन संघ नेता इंद्रेश कुमार की हत्या की भी योजना बना रहा है। भाजपा को बताना चाहिए कि जब वे लोग संघ नेताओं की हत्या की साजिश करते हैं और आतंकवादी गतिविधियों में नाम आता है, तो राष्ट्रवादी कैसे हो जाते हैं?’’ वे कहते हैं, ‘‘हमारी पार्टी भाजपा के सबसे कट्टर, साम्प्रदायिक और देशविरोधी आतंकवादी चेहरे को हराने की अपील करती है। पार्टी इसे लेकर जन अभियान भी संचालित करेगी और 2 मई को पार्टी महासचिव सीताराम येचुरी भोपाल में बुद्विजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और गणमान्य नागरिकों की बैठक को भी संबोधित करेंगे।  हम वामपंथी दलों के साथ मिलकर, भाजपा को हराने का अभियान भी चलाएंगे।’’

वरिष्ठ पत्रकार लज्जाशंकर हरदेनिया कहते हैं, ‘‘भाजपा की जीत-हार से हटकर भी भोपाल के मतदाताओं को नफ़रत की राजनीति को नकाराना चाहिए। भाजपा के कई वरिष्ठ नेता भी केन्द्रीय नेतृत्व के इस फैसले से नाखुश है। यही वजह है कि डैमेज कंट्रोल के लिए भाजपा के नेता लगातार प्रयास कर रहे हैं। लेकिन उनकी एकजुटता दिख नहीं रही है। भाजपा ने भले ही एक बड़ा दांव चला हो, लेकिन यह दांव उसके लिए गले की फांस की तरह दिख रहा है।’’

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