NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भाजपा के ‘राष्ट्रवाद की आग’ में कांग्रेस की गुटबाजी का घी!
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव परिणामों ने दिसंबर 2018 में कांग्रेस को संजीवनी दी थी, लेकिन लोकसभा चुनाव में वे मोदी की राह को रोकने में नाकाम रहे।
राजु कुमार
24 May 2019
Madhya Pradesh

लोकसभा चुनाव 2019 के एग्ज़िट पोल परिणामों पर शक का सबसे बड़ा कारण था कि एग्ज़िट पोल में अधिकांश चैनलों ने मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भाजपा को एकतरफा जीत का अनुमान लगाया गया था। यह विश्वास करना किसी के लिए मुश्किल था कि इन राज्यों के 65 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस दहाई भी नहीं छू पाएगी। इसके पीछे दो ठोस कारण रहे हैं, पहला -इन राज्यों में दिसंबर 2018 में कांग्रेस ने भाजपा को सत्ता से बाहर कर प्रदेश में अपनी सरकार बनाई और दूसरा - किसानों की कर्ज़ माफ़ी एवं पूंजीपतियों से जमीन लेकर आदिवासियों को वापस करने जैसे बड़े फैसले लिए गए। भाजपा के शाह व मोदी जोड़ी द्वारा मूल मुद्दों से हटकर राष्ट्रवाद जैसे भावनात्मक मुद्दों को केन्द्र में लाने और आतंकी गतिविधियों की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को उम्मीदवार बनाए जाने के बाद कांग्रेस चिंतित जरूर थी कि उसे अपेक्षा के अनुरूप सीटें नहीं आएगी, लेकिन इन तीन राज्यों के 65सीटों में से महज 3 सीटों पर कांग्रेस की जीत की कल्पना न तो कांग्रेसियों ने की थी और न ही कांग्रेस को धाराशायी करने वाली भाजपा ने। 

गुजरात एवं महाराष्ट्र के समान ही मध्यप्रदेश भी भाजपा का गढ़ बन चुके राज्यों में शुमार रहा है। पिछले लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को यहां 29 में से 27 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। बाद में रतलाम-झाबुआ सीट पर हुए उप चुनाव में कांग्रेस को जीत मिली। 2014 में मध्य प्रदेश में तीसरी बार लगातार सत्ता में आई भाजपा की सरकार थी, जिसकी वजह से केन्द्र के यूपीए सरकार के खिलाफ लोगों ने जो जनादेश दिया, उसमें मध्य प्रदेश से भाजपा को 27 सीटों पर मिली जीत से ज्यादा आश्चर्य नहीं हुआ था। लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान से उम्मीद थी कि चार महीने पहले जो सत्ता परिवर्तन हुआ है, उसका लाभ उसे जरूर मिलेगा। मोदी के राष्ट्रवादी एजेंडे के आगे कांग्रेस इन तीनों राज्यों में उम्मीद के अनुरूप बेहतर नहीं कर पाई।

पहले चरण के चुनाव से ही भाजपा ने सैन्य कार्रवाई को मुद्दे के रूप में उभारना शुरू कर दिया। दूसरे चरण के चुनाव के ठीक पहले भोपाल लोकसभा सीट से आतंकी कार्रवाई की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को उम्मीदवार बनाकर भाजपा ने नया एजेंडा सेट करने का प्रयास किया। प्रज्ञा के खिलाफ कांग्रेस से ज्यादा भारत की धर्मनिरपेक्षता एवं प्रगतिशील सोच पर विश्वास रखने वाले लोगों ने चिंता जाहिर की। नामांकन से पहले आतंकी कार्रवाई में मारे गए शहीद हेमंत करकरे पर दिए गए बयान से भाजपा की किरकिरी भी हुई। मतदान के बाद भी प्रज्ञा ने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोड़से को देशभक्त बताया, जिसे लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को कहना पड़ा कि वे दिल से प्रज्ञा को कभी माफ नहीं कर पाएंगे। इन सबके बीच प्रज्ञा की बड़ी जीत ने धर्मनिरपेक्ष एवं प्रगतिशील लोगों को हैरान कर दिया। गुना संसदीय क्षेत्र से कांग्रेस के दिग्गज नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया की हार ने भी सबको चौंका दिया। उनको हराने वाले डॉ. के.पी. यादव सिंधिया के पूर्व सांसद प्रतिनिधि रहे थे। इसी तरह से 2015 में उप चुनाव में रतलाम-झाबुआ से जीत हासिल करने वाले कांतिलाल भूरिया भी अपनी सीट गवां बैठे।

मध्य प्रदेश में आए इन परिणामों को लेकर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के राज्य सचिव जसविंदर सिंह का कहना है, ‘‘इस चुनाव में भाजपा ने जनता के बुनियादी मुद्दों से ध्यान हटाकर जनता को बरगलाने का काम किया। मोदी और शाह ने एनडीए सरकार के पिछले 5 साल के कामकाज को मुद्दा नहीं बनने दिया, क्योंकि वह सरकार की नाकामियों का साल रहा है। किसानों की आय दुगनी करना, काला धन वापस लाना एवं भ्रष्टाचार खत्म करना जैसे मुद्दों पर वे फेल रहे हैं। नोटबंदी और जीएसटी की नाकामियों को वे जनता के सामने कैसे ले जाते। ऐसे में उन्होंने एक भावनात्म मुद्दे के रूप में राष्ट्रवाद को समाने किया, जिसका जवाब विपक्षी पार्टियां सही तरीके से नहीं दे पाई। फिर भोपाल से प्रज्ञा को उम्मीदवार बनाकर उन्होंने ध्रुवीकरण का संदेश दिया। यद्यपि यह संभव था कि प्रज्ञा हार जाती, लेकिन भाजपा ने मतदाताओं से उम्मीदवार के बजाय मोदी के नाम पर वोट डालने की अपील की। प्रदेश के कई अन्य सीटों पर भी भाजपा ने उम्मीदवार के बजाय मोदी को नाम पर वोट की अपील की और जहां लोगों ने कांग्रेस के उम्मीदवार को भाजपा के उम्मीदवार से बेहतर बताया, वहां भी उन्होंने मोदी के नाम पर भाजपा को वोट किया।’’

जसविंदर सिंह का कहना है, ‘‘प्रदेश में चार महीने पहले सरकार बनाने के बाद कांग्रेस निश्चिंत हो गई थी कि उसे लोकसभा में भाजपा से ज्यादा सीटें मिलेंगी। लेकिन पूरे चुनाव में वह सांगठनिक स्तर पर एक्टिव नहीं दिखाई दी। बड़े नेताओं के बीच गुटबंदी पहले भी थी और इस बार के महत्वपूर्ण चुनाव में भी उनकी गुटबंदी और नॉन-सीरियसनेस दिखाई देता रहा। कांग्रेस यह बात भी नहीं समझ पाई कि गरम हिन्दुत्व का मुकाबला नरम हिन्दुत्व से नहीं किया जा सकता। भोपाल में दिग्विजय सिंह ने जिस तरीके से हवन करवाया, उससे धर्मनिरपेक्ष ताकतों को निराशा हुई। धर्मान्धता का मुकाबला धर्मनिरपेक्षता से ही किया जा सकता है।’’

वरिष्ठ पत्रकार लज्जा शंकर हरदेनिया का कहना है, ‘‘कांग्रेस की हार की वजह मोदी फैक्टर रहा है, लेकिन प्रदेश में यदि कांग्रेस के बड़े नेताओं के बीच समन्वय रहता और संगठन को एक्टिव किए रहते, तो कई सीटों पर जीत का अंतर कम हो सकता था और कुछ सीटों का परिणाम कांग्रेस के पक्ष में जा सकता था।’’

लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद निर्दलीय और बसपा, सपा विधायकों के समर्थन पर टिकी कांग्रेस सरकार पर आंतरिक एवं बाह्य दोनों ओर से दबाव है। एक ओर समर्थन दे रहे विधायक मंत्री पद की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी ओर प्रदेश सरकार के खिलाफ भाजपा आक्रामक है। इस दबाव को कम करने के लिए कांग्रेस को गुटबंदी खत्म करने एवं बड़े नेताओं के बड़बोलेपन पर अंकुश लगाने के साथ-साथ सरकार स्तर पर किसानों की कर्ज माफी के साथ जनहित में कई बड़े फैसले लेने होंगे।

Madhya Pradesh
Madhya Pradesh government
Madhya Pradesh elections 2018
General elections2019
BJP
Congress
Rahul Gandhi
Narendra modi
kamalnath
Bhopal
sadhvi pragya thakur
Digvijay Singh

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • Nisha Yadav
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    चंदौली: निशा यादव हत्या मामले में सड़क पर उतरे किसान-मज़दूर, आरोपियों की गिरफ़्तारी की माँग उठी
    14 May 2022
    प्रदर्शन के दौरान वक्ताओं ने कहा- निशा यादव का कत्ल करने के आरोपियों के खिलाफ दफ़ा 302 के तहत मुकदमा दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार किया जाए।
  • Delimitation
    रश्मि सहगल
    कैसे जम्मू-कश्मीर का परिसीमन जम्मू क्षेत्र के लिए फ़ायदे का सौदा है
    14 May 2022
    दोबारा तैयार किये गये राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों ने विवाद के लिए नए रास्ते खोल दिए हैं, जो इस बात का संकेत देते हैं कि विधानसभा चुनाव इस पूर्ववर्ती राज्य में अपेक्षित समय से देर में हो सकते हैं।
  • mnrega workers
    सरोजिनी बिष्ट
    मनरेगा मज़दूरों के मेहनताने पर आख़िर कौन डाल रहा है डाका?
    14 May 2022
    "किसी मज़दूर ने 40 दिन, तो किसी ने 35, तो किसी ने 45 दिन काम किया। इसमें से बस सब के खाते में 6 दिन का पैसा आया और बाकी भुगतान का फ़र्ज़ीवाड़ा कर दिया गया। स्थानीय प्रशासन द्वारा जो सूची उन्हें दी गई है…
  • 5 वर्ष से कम उम्र के एनीमिया से ग्रसित बच्चों की संख्या में वृद्धि, 67 फीसदी बच्चे प्रभावित: एनएफएचएस-5
    एम.ओबैद
    5 वर्ष से कम उम्र के एनीमिया से ग्रसित बच्चों की संख्या में वृद्धि, 67 फीसदी बच्चे प्रभावित: एनएफएचएस-5
    14 May 2022
    सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, 2015-16 में किए गए सर्वेक्षण में 5 वर्ष से कम उम्र (6-59 महीने) के 58.6 प्रतिशत बच्चे इससे ग्रसित थे जबकि एनएफएचएस-5 के 2019-21 के सर्वे में इस बीमारी से ग्रसित बच्चों की…
  • masjid
    विजय विनीत
    ज्ञानवापी मस्जिद: कड़ी सुरक्षा के बीच चार तहखानों की वीडियोग्राफी, 50 फीसदी सर्वे पूरा
    14 May 2022
    शनिवार को सर्वे का काम दोपहर 12 बजे तक चला। इस दौरान ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के करीब आधे हिस्से का सर्वे हुआ। सबसे पहले उन तहखानों की वीडियोग्राफी कराई गई, जहां हिन्दू धर्म के देवी-देवताओं की…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License