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भाकपा माले का 'फ़ासीवाद विरोधी' राष्ट्रीय जन कन्वेन्शन
निस्संदेह, वामपंथ की वर्तमान स्थितियों–चुनौतियों पर काफ़ी बातें हो सकती हैं और होनी भी चाहिए लेकिन एक सवाल तो यह भी बनता है कि क्या सिर्फ़ व्याख्याएँ होंगी या बिगड़े हालात को बदलने में कुछ अपनी भी सक्रिय भूमिका होगी?
अनिल अंशुमन
06 Aug 2019
भाकपा माले

यह कहना कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि 30 जुलाई को पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता में भाकपा माले आहूत ‘फ़ासीवाद विरोधी राष्ट्रीय जन कन्वेन्शन‘ के सफल आयोजन ने पश्चिम बंगाल के साथ-साथ पूरे देश की वामपंथी राजनीति में भी ऊर्जा भरने का काम किया है। देश के प्रायः सभी प्रमुख राज्यों के दसियों हज़ार प्रतिनिधियों की जोशपूर्ण भागीदारी ने दिखला दिया कि चुनावी असफलताओं के बावजूद सड़क के आंदोलनकारी विपक्ष की भूमिका में वामपंथ के तेवर अभी भी बुलंद हैं। हाल के समय से वामपंथ की कमज़ोरियों और कुछेक विवादास्पद कार्यों को लेकर नकारात्मक चर्चा–विश्लेषणों का काफ़ी शोर रहा। जिसकी आड़ में बड़ी ही चालाकी से केंद्र की सत्तारूढ़ फ़ासीवादी राजनीति द्वारा इस प्रदेश को सांप्रदायिक उन्माद और सामाजिक विभाजन की प्रयोगशाला बनाने की चर्चा सिरे से ग़ायब रही। ऐसे में सत्तारूढ़ फ़ासीवादी राजनीति के ख़िलाफ़ लक्षित ‘एकजुट रहो, मुक़ाबला करो‘ के आह्वान के साथ भाकपा माले के हज़ारों लाल कारवां का यह जुटान संपूर्णता में पूरे वामपंथ की शक्ति प्रदर्शन का प्रतीक जैसा बन गया।

‘70 के दशक में देश की वामपंथी राजनीति में एक नयी धारा के सूत्रधार और भाकपा माले संस्थापक कॉमरेड चारु मजूमदार के जन्मशती वर्ष और पार्टी स्थापना के 50 वर्ष पूरे होने पर देश में बढ़ते फ़ासीवाद के ख़िलाफ़ ‘एकजुट रहो, मुक़ाबला करो!’ के आह्वान के साथ इस राष्ट्रीय जन कन्वेन्शन का आयोजन किया गया।

 कोलकाता स्थित नेताजी सुभाषचंद्र इनडोर स्टेडियम में आयोजित इस कन्वेन्शन में देश के विभिन्न राज्यों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। वरिष्ठ मानवाधिकार कार्यकर्त्ता डाक्टर विनायक सेन, तीस्ता सीतलवाड़ और परंजोय गुहा समेत पश्चिम बंगाल के जाने माने नाटककार चन्दन सेन, वरिष्ठ पत्रकार वरुण दास गुप्ता व प्रगतिशील कवि सभ्यसाची देव के आलवे कई अन्य वामपंथी बुद्धिजीवी, सामाजिककर्मी–संस्कृतिकर्मी व अन्य वाम दलों के लोग शामिल हुए।

कन्वेन्शन की शुरुआत पार्टी सांस्कृतिक मोर्चा के कलाकारों द्वारा बंगला–हिन्दी व आसामिया भाषा में प्रस्तुत 'मुक्त होगी प्रिय मातृभूमि' के समवेत गान से हुई।

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पार्टी केंद्रीय कमेटी सदस्य अभिजीत मजूमदार (पुत्र चारु मजूमदार) ने कन्वेन्शन के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा, "पश्चिम बंगाल ही वो धरती है जहां से देश की आज़ादी की लड़ाई के साथ साथ सामाजिक- सांस्कृतिक जागरण का संदेश सबसे पहले उठा था। जिसे वामपंथ ने ही परवान चढ़ाकर समूचे राष्ट्र को एक नयी दिशा देते हुए मज़दूर–किसानों को सियासत के केंद्र में लाया। जहां नक्सलबाड़ी ने वर्षों के सामाजिक शोषण–उत्पीड़न के ख़िलाफ़ मेहनतकशों का राज–समाज गढ़ने का रास्ता दिखाया। आज दक्षिणपंथी राजनीतिक धारा और फ़ासीवादी-सांप्रदायिक सत्ता सुनियोजित दुष्प्रचार फैला रही है कि बंगाल से वामपंथ समाप्त हो रहा है। इसका कारगर जवाब देने और देश के लोकतंत्र–संविधान व सामाजिक एकता को ख़त्म करने के फ़ासीवादी राज की चुनौती कुबूलने के लिए ही लाल झंडे का यह जन कन्वेन्शन हो रहा है।"

मुख्य वक्ता माले के राष्ट्रीय महासचिव कॉमरेड दीपांकर भट्टाचार्य ने कन्वेन्शन में शामिल लोगों का अभिनंदन करते हुए कहा, "आज एक ऐसे मोड़ पर जब देश में क़ाबिज़ फ़ासीवादी सत्ता द्वारा लोकतन्त्र पर बुलडोज़र चलाया जा रहा है। देश के संविधान और रेलवे जैसे सभी सार्वजनिक उपक्रमों को निजी–कॉर्पोरेट कंपनियों के हवाले कर आरटीआई जैसे नागरिक अधिकारों के साथ साथ जंगल–ज़मीन पर हमले बेलगाम कर दिये गए हैं। जिसके ख़िलाफ़ विरोध को कुचलने के लिए ही सत्ता नियोजित सांप्रदायिक उन्माद और सामाजिक विभाजन का षड्यंत्र रचा जा रहा है। इस षड़यंत्र और सत्तादमन के ख़िलाफ़ व्यापक जनप्रतिरोध संगठित करने की जवाबदेही वामपंथ को उठानी है, यह जन कन्वेन्शन उसी की एक शुरुआत है। संघ परिवार और केंद्र की फ़ासीवादी सत्ता ने पश्चिम बंगाल को सांप्रदायिक उन्माद व सामाजिक विभाजन का नया मंच बनाकर यहाँ की वामपंथी विरासत पर हमला बोला है। जिसके ख़िलाफ़ व्यापक सामाजिक एकता और प्रतिरोध बुलंद करने के संकल्प के लिए भी है यह कन्वेन्शन। पश्चिम बंगाल की वाम विरासत–परंपरा को तोड़ने की संघी साज़िश और प्रदेश सरकार के कुशासन के ख़िलाफ़ पूरी मज़बूती के साथ एकतबद्ध संघर्ष में आगे बढ़ने की चुनौती हमें लेनी होगी। यूएपीए जैसे काले क़ानून में संशोधन व आरटीआई को सीमित कर विरोध की सभी आवाज़ों को ख़ामोश करने की साज़िशों और लोकतंत्र पर सत्ता के बुलडोज़र के ख़िलाफ़ ये वक़्त की आवाज़ है कि आज यदि संसद में विपक्ष के कमज़ोर होने की बात कही जा रही है तो सड़कों पर जनता के आंदोलनों का विपक्ष खड़ा करने की जवाबदेही वामपंथ को ही लेनी होगी।"

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कन्वेन्शन को संबोधित करते हुए तीस्ता सीतलवाड़ ने कन्वेन्शन में लाल झंडे की इतनी बड़ी संख्या में भागीदारी को उम्मीद की किरण बताते हुए कहा, "आज सबसे बड़ी ज़रूरत है कि सत्ता संरक्षित उन्मादी सांप्रदायिक को हर हाल में रोकना।" वरिष्ठ नाटककार चंदन सेन ने कन्वेन्शन के जोशो-जज़्बे से प्रभावित होकर कहा, "यहाँ आ कर मुझे लगा कि मैं सचमुच अभी भी जीवित हूँ।"

पिछले दिनों ‘जय श्री राम' नहीं बोलने पर मोब्लिंचिंग का शिकार बनाये गए मुसलिम युवा शाहरुख हालदार के सम्बोधन लोगों ने विशेष महत्व देकर सुना।

‘ हासा–भासा व अस्तित्व‘ के अपने अधिकारों को बुलंद करते हुए ऑल बंगाल आदिवासी अधिकार विकास मंच के तत्वाधान में आदिवासी गीत–नृत्य की भव्य प्रस्तुति की गयी। प्रख्यात जन गायिका पूरबी मुखर्जी ने जब 'उठा है तूफ़ान ज़माना बादल रहा' का गायन किया तो खचाखच भरे पूरे स्टेडियम में लाल झंडे लहराकर लोगों ने अपना उत्साह प्रकट किया। 'हम होंगे कामयाब' के समवेत गान और जोशपूर्ण नारों के साथ कन्वेन्शन सम्पन्न हुआ।

कन्वेन्शन से पारित किए गए 16 सूत्री राजनीतिक प्रस्तावों में एनआईए और यूएपीए क़ानून में प्रस्तावित संशोधन व इसे समाप्त कर एनआईए को संसद के प्रति जवाबदेह बनाने और इसके तहत गिरफ़्तार सभी कार्यकर्त्ताओं को रिहा करने , आरटीआई में किए गए संशोधन की वापसी व सूचना अधिकार क़ानून की रक्षा का संघर्ष तेज़ करने, आदिवासियों और जंगलों में रहने वाले सभी समुदायों के अधिकारों कि गारंटी के लिए वन अधिकार क़ानून की तर्ज़ पर नया क़ानून बनाने, एनआरसी योजना को ख़ारिज करने, ‘जय श्री राम‘ नारा से मुसलमानों को आतंकित-अपमानित व लिंचिंग-हमलों पर रोक लगाने तथा सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बावजूद ऐसे कांडों को रोकने व दोषियों को सज़ा देने में सरकार की विफलता का विरोध और अल्पसंख्यकों के साथ पूरी एकजुटता व्यक्त की गयी। प्रस्तावित लेबर कोड बिल एवं रेलवे सहित सभी सार्वजनिक क्षेत्र के निजीकरण के फ़ैसले को वापस लेने, किसानों के लिए विशेष सत्र बुलाकर क़ानून बनाने, प्रस्तावित राष्ट्रीय शिक्षा नीति रद्द कर देश के शिक्षकों व छात्रों से बातचीत कर नया मसौदा बनाने, सभी कल्याणकारी योजनाओं के लिए आधार कार्ड व्यवस्था रद्द करने व इससे निजता के मानवाधिकारों के उल्लंघन पर रोक लगाने तथा चुनावों में ईवीएम की जगह बैलेट पेपर से चुनाव कराने की मांगों के साथ-साथ महिलाओं की सुरक्षा व स्वायतत्ता पर हो रहे हमलों को रोकने और बालिका गृह कांडों के दोषियों को सज़ा दिलाने में विफल और बलात्कार कांडों के अभियुक्त नेताओं–कार्यकर्त्ताओं को बचाने की सत्ता साज़िशों की तीखी भर्त्सना की गयी।

कन्वेन्शन से पूरे अगस्त महीने को ‘लोकतन्त्र बचाओ अभियान‘ चलाने और फ़ासीवादी भाजपा शासन द्वारा लोकतान्त्रिक भारत को हिन्दू राष्ट्र तब्दील करने की हर साज़िश के ख़िलाफ़ व्यापक सामाजिक एकता आधारित ‘एकजुट प्रतिवाद‘ विकसित करने का आह्वान किया गया।

निस्संदेह, वामपंथ की वर्तमान स्थितियों–चुनौतियों पर काफ़ी बातें हो सकती हैं और होनी भी चाहिए लेकिन एक सवाल तो यह भी बनता है कि क्या सिर्फ़ व्याख्याएँ होंगी या बिगड़े हालात को बदलने में कुछ अपनी भी सक्रिय भूमिका होगी?

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