NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भारत बंद के आंदोलन का असर
देश के दलित संगठनों के आह्वान पर 2 अप्रैल को भारत बंद के कार्यक्रम को अभूतपूर्व सफल माना जा रहा है। इस आरंदोलन का व्यापक राजनीतिक असर देखने को मिल रहा है।
अनिल चमड़िया
10 Apr 2018
Bharat Bandh
Image Courtesy: Fark India

 देश के दलित संगठनों के आह्वान पर 2 अप्रैल को भारत बंद के कार्यक्रम को अभूतपूर्व सफल माना जा रहा है। इस आरंदोलन का व्यापक राजनीतिक असर देखने को मिल रहा है। पहला असर राजनीतिक पार्टियों के दलित नेताओं पर दिखाई दे रहा है । दूसरा दलितों की इस तरह की एकता से मुख्यधारा की पार्टियां यह रणनीति बनाने में लगी है कि दलितों की इस तरह की अप्रत्याशित एकता को कैसे अपने पक्ष में किया जाए। दूसरा यह भी कि दलितों की इस एकता में कैसे सेंध लगाई जाए। तीसरा सत्ता मशीनरी द्वारा कैसे दलितों की इस सामाजिक और राजनीतिक चेतना की धार को कमजोर करने की पूरजोर कोशिश की जा रही है। और चौथा दलितों और आदिवासियों के बीच 14 अप्रैल को देश भर में डा. भीमराव अम्बेडकर की जयंती को अभूतपूर्व तरीके से मनाने का उत्साह दिखाई दे रहा है।

देश के सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन के इतिहास में 2 अप्रैल का महत्व और इसके दूरगामी असर के स्पष्ट संकेत मिलने लगे हैं। इस आंदोलन का ही असर हैं कि सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी के भीतर अनुसूचित जाति के लिए सुरक्षित क्षेत्र से जीत कर आने वाले सांसद साहस कर चार वर्षों से पार्टी के अंदर अपनी उपेक्षा का खुलेआम बयना कर रहे हैं। भाजपा सांसद उदित राज ने एक टेलीविजन चैलन पर बातचीत में कहा कि वे इस मंच से भाजपा के बजाय का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होने कहा कि 2 अप्रैल के बाद दस हजार दलितों को पुलिस ने गितफ्तार किया है। उदित राज से पहले उत्तर प्रदेश के रॉबर्टगंज से भाजपा सासंद छौटे लाल खरवार ने पत्र लिखकर बताया कि उन्हें मुख्यमंत्री योगीराज आदित्य ने बाहर फेंकवा दिया। उन्होने अपने विरुद्ध हुए अपमानजनक व्यवहार की जानकारी सार्वजनिक की। इटावा से सांसद अशोक कुमार दोहरे ने प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर यह बताया कि चार वर्षों के दौरान देश के 30 करोड़ दलितो के हित में कोई ठोस काम नहीं किए गए।भाजपा के दलित सांसदों में इस आंदोलन के असर की आहट को पहचानकर सावित्री बाई फूले पहले से ही मोदी सरकार में दलितों के हितों पर होने वाले कुठाराधात पर खुलेआम बोलने लगी थी।

बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती 2 अप्रैल के बंद की सफलता के बाद मीडिया के जरिये दलितों और दलित कार्यकर्ताओं के खिलाफ होने वाले दमन की घटनाओं पर लगातार बोल रही है। भारत बंद के कार्यक्रम को किसी राजनीतिक पार्टी ने समर्थन नहीं किया था। लेकिन जमीनी स्तर पर लोगों ने राजनीतिक पार्टियों की परवाह किए बिना ही बंद के कार्यक्रम की कमान खुद संभाल ली थी। सामाजिक स्तर पर बहुजनों की इस पहल का दलित नेताओं पर व्यापक असर हुआ है।मायावती के बारे में ये माना जाता हैं कि वे आमतौर पर लोगों से दूर रहती है। उनसे मिलना मुश्किल होता है। लेकिन इस कार्यक्रम के बाद मायावती ने लोगों के लिए अपने दरवाजे खोल दिए हैं। उनसे मिलने वालों ने बिना किसी डर व झिझक के अपनी भावनाओं को प्रगट किया और मायावती ने उस पर अपनी प्रतिक्रिया भी जाहिर की। मायावती के बारे में यह अनुभव किया गया है कि वे मीडिया में भी किसी खास एजेंसी को हो अपनी बाईट देती है। इस सिलसिले में बातचीत को इस रुप में एक मुकाम दिया गया कि मायावती अपने संदेशों व प्रतिक्रियाओं के लिए फेसबुक लाइव पर करेंगी। फेसबुक लाइव से किसी चेनल व किसी एजेंसी पर निर्भरता खत्म हो जाती है।

2 अप्रैल को भारत बंद के दौरान हिंसा में दलित विरोधी शक्तियों की भूमिका के तथ्य सामने आए हैं। इसके बाद भी राजस्थान, मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश में दलित विरोधी शक्तियां 2 अप्रेल को भारत बंद के दौरान उभरी दलित चेतना को अपने लिए चुनौती मान रही है और दलितों के खिलाफ जगह जगह हमले के घटनाएं हो रही हैं। जिन डा. भीमराव अम्बेडकर को दलित अपनी चेतना का स्रोत मानते हैं, इन राज्यों में उनकी प्रतिमाओं पर जगह जगह हमले की घटनाएं भी सामने आई हैं। सामाजिक ढांचे में जिस तरह दलित विरोधी शक्तियों सक्रिय दिखती है उसी तरह प्रशासनिक और पुलिस ढांचे में सक्रिय जातिवादी समूह द्वारा दलितों के खिलाफ दमनात्मक कार्रवाईयों को अंजाम दिया जा रहा है। इतिहास में यह देखने को नहीं मिलता है कि किसी आंदोलनात्मक कार्यक्रम में भाग लेने के कारण हजारों की तादाद में शांतप्रिय कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार गया हो।

उत्तर प्रदेश में पुलिस बल रात में गांवों पर हमले रहे हैं। एक एक व्यक्ति के खिलाफ दो दो एफआईआर दर्ज की गई है। राजस्थान में सीसीटीवी के फुटेज का सहारा लेकर आंदोलनकारियों की शिनाख्त की जा रही है और सोये हुए युवकों को रात में पुलिस उठाकर ले जा रही है। दलित कार्यकर्ता ये मान रहे हैं कि पुलिस बल बड़े पैमाने पर युवाओं को इसीलिए गिरप्तार कर रही है ताकि 14 अप्रैल को बाबासाहेब के जन्मदिन को लेकर जो उत्साह है वह ठंडा पड़ जाए। क्योंकि 2 अप्रैल के सफल कार्यक्रम से उत्साहित होकर बहुत सारे युवक पहली बार डा. अंम्बेडकर की जयंती के कार्यक्रमों की तैयारी में जुटने लगे थे। दूसरा पक्ष यह भी है कि उन दिनों भारतीय जनता पार्टी भी दलितों के बीच जाने के कार्यक्रमों का ऐलान किया है ताकि दलित भारतीय जनता पार्टी के बारे में ख्यालों को बदल सकें। भारत बंद में भाग लेने वाले युवकों की उपस्थिति ऐसे कार्यक्रमों में बाधा खड़ी कर सकती है। उत्तर प्रदेश में खासतौर से बहुजन समाज पार्टी के कार्यकर्ताओं व नेताओं के खिलाफ पुलिस का अभियान चल रहा है। लेकिन दलित कार्यकर्ताओं का कहना है कि इस बार डा. अम्बेडकर की जयंती भारत बंद की कामयाबी के कारण अभूतपूर्व होगी। इन कार्यक्रमों की संख्या रामनवमी के मौके पर संघ परिवार के सदस्यों व समर्थकों द्वारा आयोजित धार्मिक कार्यक्रमों व उग्र जुलूस प्रदर्शन से कहीं ज्यादा होगी।

Bharat Bandh
Dalits Protest
BJP
Narendra modi

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष

कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति


बाकी खबरें

  • मनोलो डी लॉस सैंटॉस
    क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति
    03 Jun 2022
    क्यूबा में ‘गुट-निरपेक्षता’ का अर्थ कभी भी तटस्थता का नहीं रहा है और हमेशा से इसका आशय मानवता को विभाजित करने की कुचेष्टाओं के विरोध में खड़े होने को माना गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
    03 Jun 2022
    जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्यसमाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं है।
  • सोनिया यादव
    भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल
    03 Jun 2022
    दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट भारत के संदर्भ में चिंताजनक है। इसमें देश में हाल के दिनों में त्रिपुरा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों के साथ हुई…
  • बी. सिवरामन
    भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति
    03 Jun 2022
    गेहूं और चीनी के निर्यात पर रोक ने अटकलों को जन्म दिया है कि चावल के निर्यात पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
  • अनीस ज़रगर
    कश्मीर: एक और लक्षित हत्या से बढ़ा पलायन, बदतर हुई स्थिति
    03 Jun 2022
    मई के बाद से कश्मीरी पंडितों को राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास के लिए  प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के तहत घाटी में काम करने वाले कम से कम 165 कर्मचारी अपने परिवारों के साथ जा चुके हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License