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भारत
राजनीति
भारत बंद के बाद, दलितों पर हो रहे दमन के खिलाफ DSMM ने दिया राष्ट्रपति को ज्ञापन
राष्ट्रपति को दिए इस ज्ञापन में संगठन ने 2 अप्रैल के भारत बंद में मारे गए दलित युवकों की मौत की जाँच किये जाने कि माँग की और उसके बाद से लगातार दलितों पर हो रहे दमन के खिलाफ कार्यवाही करने की भी माँग की।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
28 Jun 2018
dsmm

27 जून को दलित शोषण मुक्ति  मंच (DSMM) का एक प्रतिनिधि मंडल राष्ट्रपति राम नाथ कोविद से मिला और उन्हें 2 अप्रैल को दलित संगठनों द्वारा किये गए 'भारत बंद' के बाद दलितों पर हो रहे दमन के मुद्दे पर एक ज्ञापन दिया। राष्ट्रपति को दिए इस ज्ञापन में संगठन ने 2 अप्रैल के भारत बंद में मारे गए दलित युवकों की मौत की जाँच किये जाने कि माँग की और उसके बाद से लगातार दलितों पर हो रहे दमन के खिलाफ कार्यवाही करने की भी माँग की। मार्क्सवादी कम्यूनिस्ट पार्टी की पोलित ब्यूरो सदस्य और दलित शोषण मुक्ति मंच(DSMM) की राष्ट्रीय अध्यक्ष सुभाषिनी अली के नेतृत्व में गए इस प्रतिनिधि मंडल को राष्ट्रपति ने आश्वासन दिया कि इस मामले में कार्यवाही की जाएगी।

दरअसल इस साल 20 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने दलितों के विरूद्ध अत्याचारों को रोकने वाले कानून SC /ST Act पर एक फैसला सुनाया। दलित संगठनों का कहना है कि इससे ये कानून निष्प्रभावी हो गया है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने निर्णय में SC/ST(PAO) एक्ट की तीन मुख्य बिन्दुओं को बदलने का आदेश दिया था I सुप्रीम कोर्ट ने कहा  SC/ST(PAO) एक्ट के अंतर्गत मामलों में अग्रिम ज़मानत का प्रावधान होना चाहिए, किसी भी सरकारी कर्मचारी को इस एक्ट के अंतर्गत गिरफ्तार करने से लिए पहले उच्च अधिकारियों से अनुमति ज़रूरी होगी और कोर्ट ने कहा कि पहले पुलिस अधिकारी ये तय कर लें कि अपराध हुआ है या नहीं उसके बाद ही FIR फ़ाइल करें I उसका ये भी आरोप है कि सरकार द्वारा इस मामले में कमज़ोर  दलीलें पेश की गयी इसी लिए इस तरह का निर्णय लिया गया।

इसके विरुद्ध  2 अप्रैल को दलित संगठनों ने देश भर में भारत बंद का आवाहन किया था जिसमें देश के विभिन्न राज्यों में हज़ारों  लोगों ने हिस्सा लिया। दलित नेताओं का आरोप है कि इस बंद के दौरान जो हिंसा भड़की उसमें 12 लोगों की मौत हुई जिनमें ज़्यादातर दलित ही थे। उनका ये भी कहना है कि ज़्यादातर लोगों की मौत या तो पुलिस की गोलियों से हुई या दबंग जातियों द्वारा हमले में। ये हिंसा मुख्य  तौर पर राजस्थान , मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में देखने को मिली। DSMM के द्वारा दिए गए ज्ञापन में लिखा गया है कि "पुलिस का कहना है कि उन्होंने गोली नहीं चलाई तो फिर मौतों का ज़िम्मेदार कौन है ? मोरेना और ग्वालियर में गोली चलाने वाले संघ परिवार के परिचित लोगों की तस्वीरें और वीडियो पूरे देश में देखे गए हैं। ग्वालियर के विमल और दीपक जाटव के परिजनों का आरोप है कि दोनों मौते प्रायवेट फायरिंग में हुई हैं। दीपक जाटव की बस्ती के अंदर संघ परिवार के राजा चौहान की गोली चलाते हुए तस्वीर भी मीडिया में दिखाई गयी है। आज तक मध्य प्रदेश सरकार ने जिनकी गोली चलाते हुए तस्वीर हैं उन्हें गिरफ्तार नहीं किया है। " ज्ञापन  में ये भी कहा गया है कि मृतकों के घरवालों को कोई मुआवज़ा नहीं मिला है।

इन घटनाओं में सबसे ज़्यादा मौतें मध्य प्रदेश में हुईं, जहाँ 8 लोगों की मौत हुई जिनमें से 6 दलित थे I न्यूज़क्लिक की जाँच के मुताबिक इनमें से 5 दलितों की मौत उच्च जातियों द्वारा की गयी गोलीबारी से हुई और 1 की पुलिस की गोलियों से I इनके आलावा 2 उच्च जातियों के लोगों में से 1 की मौत पुलिस की गोली से हुई I

ज्ञापन में 3 अप्रैल को राजस्थान  में हुई हिंसा के बारे में भी बताया गया है और ये आरोप लगाया गया है कि इस हिंसा के ज़िम्मेदार किसी भी शक़्स के खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं हुई है। दरअसल राजस्थान के करौली ज़िले के हिंडोन में दो दलितों के घरों पर हमले किये गए, इनमें से एक बीजेपी सरकार में विधायक हैं और दूसरे कांग्रेस के पूर्व विधायक हैं I 3 अप्रैल को 3000 से 4000 लोगों की इस भीड़ ने दलितों की बस्ती में दाखिल होने की कोशिश की पर वो कामयाब नहीं हो पाए I इसके बाद उन्होंने दोनों दलित राजनेताओं राजकुमारी जाटव जो अभी बीजेपी की विधायक हैं और कांग्रेस सरकार में मंत्री रहे और पूर्व वधायक भरोसीलाल जाटव के घरों पर हमला किया I

ये भी पढ़ें  भारत बंद के बाद राजस्थान में दलितों पर हुए हमले

इसके आलावा राजस्थान के सामाजिक कार्यकताओं ने ये भी आरोप लगाया था कि दलितों की कई शांतिप्रिय सभाओं पर विश्व  हिन्दू परिषद् , करणी सेना जैसे संगठनों ने हमला किया था। इसके साथ फलौदी में आंबेडकर की मूर्ति भी तोड़ी गयी थी। ज्ञापन  में भी इन घटनाओं का ज़िक्र है और ये भी बताया गया है कि कई जगहों पर पुलिस या भीड़ के द्वारा लूट पाट और आगज़नी भी की गयी , थी लेकिन इनमें से किसी भी मामले में कोई कार्यवाही नहीं हुई है।

ज्ञापन आगे बताया गया है कि हरियाणा , उत्तर प्रदेश , मध्य प्रदेश  और राजस्थान में 2 अप्रैल के बाद हज़ारों की संख्या में निर्दोष दलितों पर फ़र्ज़ी मामले दर्ज़ कर दिए गए हैं। इनमें से सैकड़ों को गिरफ्तार किया गया है ,अब बहुतों को अब तक बेल नहीं मिली है। इस मामले में 10 अप्रैल को न्यूज़क्लिक से बात करते हुए सामाजिक कार्यकर्ता भंवर मेघवंशी ने कहा था  “पूरे राजस्थान में 250 मुकदमें दर्ज़ किये गए हैं और पुलिस के ही आंकड़ों के हिसाब से करीब 1500 हज़ार लोग गिरफ्तार किये गए हैं I इनमें से ज़्यादातर लोग छात्र हैं, सरकारी कर्मचारी हैं और अम्बेडकरवादी विचार धारा से जुड़े लोग हैं जिनपर फ़र्ज़ी मकद्दमें दर्ज़ किये जा रहे हैं और कस्टडी में पीटा जा रहा है I ये पूरी कार्यवाही सुनियोजित ढंग से की जा रहा है जिससे दलितों में एक आतंक का माहौल बनाया जा सके I दूसरी तरफ 2 अप्रैल को जालौर, नीमकाथाना, हिंडोन और बाकि जगहों पर जातिगत सेनाओं जैसे करणी सेना और बजरंग दल ने शांतिपूर्वक बंद कर रहे दलितों पर हमले किये और उनके छात्रावासों और वाहनों में आग लगायी गयी I"

ये भी पढ़ें  2अप्रैल के भारत बंद के बाद विभिन्न राज्यों में दलितों पर फर्जी मुकदमे और दमन

इसके आलावा मई 2017 में उत्तर प्रदेश के  सहारनपुर में हुई घटना के बाद 4 दलित युवकों को रासूका में बंद  किये जाने का भी विरोध किया है। साथ ही ये बताया गया है कि किस तरह 2 अप्रैल की घटना  के बाद दर्जनों निर्दोष दलितों को फ़र्ज़ मुतादामों में जेल में बंद कर दिया गया है। इसमें से 3 बाचे को नाबालिग  है। इस मुद्दे पर बीजेपी के नेता उदित राज ने खुद उठाया था , उन्होंने कहा था कि "रिपोर्टें आ रही है कि 2 अप्रैल को जिन दलितों ने भारत बंद में शिरकत की थी उन्हें यातनाएं दी जा रही हैं और इसे रोका जाना चाहिए I"

ज्ञापन के अंत में ये आरोप लगाया गया है कि जहां एक तरह सरकार दंबंगों  द्वारा की गयी हिंसा में मामलों को वापस ले लिया गया है। वहीं दूसरी तरफ जिन दलितों में फ़र्ज़ी  मुकद्दमें ख़तम नहीं किये गए और न ही उन्हें ज़मानत मिल रही है। अंत में ये माँग की गयी है कि इन मुक्कदमों को ख़तम  कराये जाएँ और बाकी मामलों में ज़मानत दिए जाने की मांग भी की गयी है। साथ ही राष्ट्रपति से सभी हिंसा की घटनों और हत्याओं की जाँच कराने की माँग भी की गयी है।  इसके आलावा 1 जनवरी को महाराष्ट्र के भीमा कोरेगाँव में हुई घटना के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करके उनपर देशद्रोह के मामले दर्ज़ करने की कार्यवाही की भी निंदा  की गयी है।

 

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