NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भारत के किसानों को पिछले साल 3.5 लाख करोड़ का नुक्सान हुआ
ये इसीलिए हुआ क्योंकि मोदी सरकार ने उत्पादन लगात के ऊपर 50 % न्यूनतम वेतन के तौर पर न देकर वादा खिलाफी की I
सुबोध वर्मा
03 May 2018
peasants

2017-18 की रबी (सर्दी) की फसल, जो इस वक़्त बाज़ार में है, की छ: मुख्य फ़सलों से किसानों को लगभग 60,861 करोड़ रूपये के नुक्सान की आशंका हैI इसमें अगर खरीफ़ के मौसम में हुए 2 लाख करोड़ रूपये का नुक्सान भी जोड़ दें तो कुल नुक्सान होगा कुछ 2.6 लाख करोड़ काI

यह इसलिए हो रहा है क्योंकि मोदी सरकार खेती की लागत (C2) जमा 50% अधिक के फ़ॉर्मूले पर आधारित न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करने से लगातार मना कर रही हैI यह फ़ॉर्मूला एम.एस. स्वामीनाथन के नेतृत्त्व वाली नेशनल फार्मर्स कमीशन की एक सिफ़ारिश है और साथ ही 2014 लोक सभा चुनावों के प्रचार में किया गया नरेंद्र मोदी का वादा भीI

इस नुक्सान का हिसाब कैसे लगाया गया? उदाहरण के लिए गेहूँ को ले लीजियेI कमीशन ऑन एग्रीकल्चरल कास्ट्स एंड प्रीसेस (CACP) की रबी फसलों की कीमत नीति से जुड़ी सबसे हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, गेहूँ की खेती की कुल लागत 1,256 रूपये प्रति क्विंटल (100 किलो) हैI इस हिसाब से किसानों को जिस दाम का वादा किया गया था, वो होगा 1,884 रूपयेI लेकिन सरकार ने जो न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किया वह था 1,735 रूपयेI इसका मतलब प्रत्येक क्विंटल पर 149 रूपये का फ़र्कI    

कृषि मंत्रालय के साल 2017-18 के लिए दूसरे दौर के पूर्व आंकलन के आँकड़ों से पता चलता है कि देश भर में गेहूँ का उत्पादन अंदाज़तन 97.11 मिलियन टन हुआI सारा पैदा किया गया गेहूँ बाज़ार में बिकने के लिए नहीं आताI कुछ बर्बाद हो जाता है और कुछ को किसान अपने उपयोग के लिए रख लेते हैंI यह अंदाज़ा लगाया जाता है कि लगभग 70% सरप्लस गेहूँ बाज़ार में आता हैI मतलब, उगाये गये प्रत्येक 100 किलो में से लगभग 70 किलो मंडियों आदि के ज़रिये बाज़ार में आता हैI इससे हिसाब लगायें तो देश में कुल पैदा हुए गेहूँ में से 70 मिलियन टन गेहूँ ही बाज़ार में आयाI

तो, यदि एक किसान प्रत्येक क्विंटल पर 149 रूपये खो रहा है तो इस मौसम में देशभर के सारे किसान जो 70 मिलियन टन गेहूँ बाज़ार में लेकर आये, उस पर उनको कुल नुकसान हुआ लगभग 10,000 करोड़ रूपयेI ऐसा ही दूसरी फसलों के साथ भी हुआI

यह ध्यान रखना चाहिए कि यह सिर्फ अंदाज़ों से लगाये गये आँकड़ें हैं और यह अमूमन नुकसान को कम आँककर लगाये जाते हैंI एक चीज़ जो अब तक ठोस रूप से परिभाषित नहीं है, वह है कि: किसान को अपनी फ़सल का असल मूल्य क्या मिलता हैI अगर गये सालों से कुछ अंदेशा लगाया जा सकता है तो पता चलेगा कि हज़ारों किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य से भी कम दाम मिलते हैंI जिस CACP रिपोर्ट का ऊपर ज़िक्र किया गया, उसमें कई बाज़ार केन्द्रों का विवरण दिया जहाँ असल में फसलों के औसतन दाम न्यूनतम समर्थन मूल्य से कम थेI तो, सही मायने में किसानों का नुक्सान और भी अधिक था यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य+50%I

किसानों की कमाई की यही लूट है जो किसानों की आत्महत्याओं, उनपर बढ़ते कर्ज़, बेजा गरीबी और उसके तमाम परिणामों आदि जैसी भयानक परिस्थियों की वजह हैI इस वजह से पिछले साल 13 राज्यों में किसान सड़कों पर आकर संघर्ष करते नज़र आये और दिल्ली में नवम्बर 2017 को उन्होंने ऐतिहासिक किसान संसद भी लगायी जिसमें हज़ारों किसानों ने शिरकत कीI

किसानों की दुर्दशा के प्रति मोदी सरकार की उदासीनता और लगातार किसानों की लूट को अनुमति देने के बावजूद साल 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने का वायदा करना, साफ़ ज़ाहिर है कि मोदी सरकार ग्रामीण भारत में अपनी ज़मीन और समर्थन खो रही हैI इस साल कई राज्यों में विधानसभा चुनाव हैं और अगले साल लोक सभा के चुनाव, बीजेपी ने जिस तरह किसानों (देश की जनसँख्या का एक तिहाई) को धोखा दिया है, वो उससे काफी महँगा पड़ सकता हैI  


बाकी खबरें

  • अनिल अंशुमन
    झारखंड : नफ़रत और कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध लेखक-कलाकारों का सम्मलेन! 
    12 May 2022
    दो दिवसीय सम्मलेन के विभिन्न सत्रों में आयोजित हुए विमर्शों के माध्यम से कॉर्पोरेट संस्कृति के विरुद्ध जन संस्कृति के हस्तक्षेप को कारगर व धारदार बनाने के साथ-साथ झारखंड की भाषा-संस्कृति व “अखड़ा-…
  • विजय विनीत
    अयोध्या के बाबरी मस्जिद विवाद की शक्ल अख़्तियार करेगा बनारस का ज्ञानवापी मस्जिद का मुद्दा?
    12 May 2022
    वाराणसी के ज्ञानवापी प्रकरण में सिविल जज (सीनियर डिविजन) ने लगातार दो दिनों की बहस के बाद कड़ी सुरक्षा के बीच गुरुवार को फैसला सुनाते हुए कहा कि अधिवक्ता कमिश्नर नहीं बदले जाएंगे। उत्तर प्रदेश के…
  • राज वाल्मीकि
    #Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान
    12 May 2022
    सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन पिछले 35 सालों से मैला प्रथा उन्मूलन और सफ़ाई कर्मचारियों की सीवर-सेप्टिक टैंको में हो रही मौतों को रोकने और सफ़ाई कर्मचारियों की मुक्ति तथा पुनर्वास के मुहिम में लगा है। एक्शन-…
  • पीपल्स डिस्पैच
    अल-जज़ीरा की वरिष्ठ पत्रकार शिरीन अबु अकलेह की क़ब्ज़े वाले फ़िलिस्तीन में इज़रायली सुरक्षाबलों ने हत्या की
    12 May 2022
    अल जज़ीरा की वरिष्ठ पत्रकार शिरीन अबु अकलेह (51) की इज़रायली सुरक्षाबलों ने उस वक़्त हत्या कर दी, जब वे क़ब्ज़े वाले वेस्ट बैंक स्थित जेनिन शरणार्थी कैंप में इज़रायली सेना द्वारा की जा रही छापेमारी की…
  • बी. सिवरामन
    श्रीलंकाई संकट के समय, क्या कूटनीतिक भूल कर रहा है भारत?
    12 May 2022
    श्रीलंका में सेना की तैनाती के बावजूद 10 मई को कोलंबो में विरोध प्रदर्शन जारी रहा। 11 मई की सुबह भी संसद के सामने विरोध प्रदर्शन हुआ है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License