NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
स्वास्थ्य
विज्ञान
भारत
राजनीति
भारत की चिकित्सा व्यवस्था पर ग़ैर- संक्रामक रोगों का बढ़ता बोझ
देश के भीतर बीमारियों के पैटर्न में बदलाव आया है – संक्रामक रोग, जच्चा-बच्चा संबंधित रोग, नवजात विकार रोगों और पोषण संबंधी बीमारियों के कारण मृत्यु दर में काफ़ी गिरावट आई है, जबकि ग़ैर- संक्रामक रोगों और और चोटों से जुड़े मामलों से मृत्यु दर बढ़ने से पूरी चिकित्सा व्यवस्था पर बोझ बढ़ गया है।
दित्सा भट्टाचार्य
27 Jul 2019
Translated by महेश कुमार
भारत की चिकित्सा व्यवस्था
तस्वीर सौजन्य : Livemint

पिछले तीन दशकों में, भारत में सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक सभी क्षेत्रों में बड़े बदलाव आए हैं। इस दौरान, देश प्रमुख महामारी विज्ञान के संक्रमण के दौर से भी गुज़रा है। महामारी विज्ञान संक्रमण जनसंख्या आयु वितरण, मृत्यु दर, प्रजनन क्षमता, जीवन प्रत्याशा (औसत जीवन) और मृत्यु के कारणों के बदलते पैटर्न का वर्णन करता है। 1990 के बाद से, देश के रोग पैटर्न में बदलाव आया है – संक्रामक, मातृत्व, नवजात शिशु से संबंधित बीमारियों और पोषण संबंधी बीमारियों के कारण मृत्यु दर में काफ़ीगिरावट आई है, और ग़ैर-संक्रामक रोग और चोट से जुड़ी बीमारियों में आई तेज़ी से चिकित्सा व्यव्स्था पर बोझ बढ़ गया हैं।

इसलिए, भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली आज दोहरी चुनौती का सामना कर रही है। हालांकि दस्त, सांस की बीमारी, तपेदिक और नवजात शिशुओं की बीमारियों का बोझ कम हो रहा है, फिर भी ये रोग देश के अधिकांश राज्यों में काफ़ी अधिक है। दूसरी ओर, ग़ैर-संक्रामक रोग जैसे कि हृदय रोग, दिमाग की नस में दबाव बढ़ना, मधुमेह जैसे रोगों से स्वास्थ्य हानि में बढ़ोतरी हो रही है।

भले ही पिछले तीन दशकों में ग़ैर-संक्रामक रोगों का बोझ काफ़ी हद तक बढ़ गया हो, लेकिन भारत में अभी भी शौध और नीतिगत उद्देश्यों के लिए बीमारियों पर पर्याप्त विस्तृत आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं। 2017 में, ग्लोबल बर्डन ऑफ़ डिजीज़, रिस्क फ़ैक्टर्स और इंजरीज़ (जीबीडी) स्टडी के एक भाग में, भारत राज्य-स्तरीय रोग बर्डन के मामले में पहल कर सभी सहयोगियों ने महामारी विज्ञान के स्तर पर राज्य की विविधताओं का विश्लेषण किया था।

इस पहल को अक्टूबर 2015 में शुरू किया गया था, और यह इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च (ICMR), पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ़ इंडिया (PHFI), इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (IHME) और वरिष्ठ विशेषज्ञों और हितधारकों के बीच आपसी सहयोग का काम है, भारत से इसमें लगभग 100 संस्थान शामिल हैं। इन सब ने देश के प्रत्येक राज्य में बीमारियों के कारण होने वाली सबसे अधिक मृत्यु का एक व्यापक मूल्यांकन किया है, और इस बढ़ते बोझ के लिए ज़िम्मेदार कारकों का पता लगाने की कोशिश भी की है, और 1990 से 2016 तक यानी 26 साल के उनके रुझान का पता लगाया है। देश भर में बीमारी के बोझ के बारे में, हमारे पास यही एकमात्र उपलब्ध डेटा है।

भारत का महामारी विज्ञान संक्रमण

भारत का महामारी विज्ञान संक्रमण इस तथ्य से प्रेरित है कि संक्रामक, मातृत्व, नवजात शिशु से जुड़ी बीमारी और पोषण संबंधी बीमारियों (CMNNDs) से जीवन की कम हानि हो रही है, और इसलिए अधिक लोग ग़ैर-संक्रामक रोगों (एनसीडी) की वजह से मर रहे हैं या उन रोगों से ज़्यादा पीड़ित होते हैं। हालांकि, किसी व्यक्ति के मरने की संभावना इस बात पर निर्भर करती है कि उनकी उम्र कितनी है, वे कहां रहते हैं, साथ ही साथ उनके जीवन के सामाजिक और आर्थिक कारक क्या है।

chart (3)_0.jpeg

chart (4).jpeg

वर्ष 1990 में सी.एम.एन.एन.डी. रोगों के कारण भारत में सभी मौतों का अनुपात 1990 में 53.6 प्रतिशत से घटकर 2016 में 27.5 प्रतिशत हो गया था, जबकि एनसीडी का अनुपात 1990 में 37.9 प्रतिशत से बढ़कर 2016 में 61.8 प्रतिशत हो गया था। चोटों के कारण मौतों का अनुपात भी बढ़ गया जो 8.5 प्रतिशत से बढ़कर 10.7 प्रतिशत हो गया था।

शौध की इस पहल के ज़रिये भारतीय राज्यों को तीन समूहों में विभाजित किया गया था और इन समूहों के तहत प्रत्येक राज्य के भीतर महामारी विज्ञान संक्रमण का विश्लेषण किया गया और प्रत्येक समूह द्वारा पाए गए रुझानों का विश्लेषण किया। उनके निष्कर्षों ने इसका खुलासा किया कि भारत के राज्यों को उनके द्वारा सामना की जा रही स्थिति से निबटने के लिए रोग के बोझ की प्रकृति के अनुसार अलग नीति संबंधित दृष्टिकोण बनाने की ज़रूरत है। इस खोज़ ने यह भी पाया कि, भारत में प्रत्येक राज्य और केंद्र शासित प्रदेश में स्वास्थ्य योजना आदर्श रूप से उन क्षेत्रों की विशिष्ट बीमारियों और ज़ोखिम के कारक के प्रोफ़ाइल पर आधारित होनी चाहिए।

table9.jpg

chart (5).jpeg

यह रिपोर्ट राज्य के समूहों में विभिन्न आयु समूहों द्वारा खोए जीवन (वाईएलएल) के वर्षों का विश्लेषण भी करती है। वाईएलएल (YLLs) एक ऐसा उपाय है जो दुनिया में कहीं भी किसी भी व्यक्ति की आयु वर्ग में उसके सबसे ज़्यादा जीने की उम्र के आधार पर उसकी मृत्यु की उम्र के वक्त खोए जीवन के वर्षों की संख्या को निर्धारित करता है। यह कहता है कि, “जबकि जनसंख्या के स्वास्थ्य के कुछ पहलुओं को समझने के लिए मृत्यु एक उपयोगी माप है, लेकिन वे किसी व्यक्ति की मृत्यु के वक्त उसके खोए हुए जीवन की मात्रा का पता नहीं लगा सकते हैं। उदाहरण के लिए, 80 वर्ष की आयु में हुई एक मृत्यु को और 10 वर्ष की आयु में मृत्यु के समान वज़न दिया जाता है। मौतों के अलावा, निर्णय लेने वालों को यह भी जानना होगा कि किसी विशेष बीमारी या चोट के कारण समय से पहले मृत्यु दर कितनी है।"

राज्य का सशक्त कार्रवाई समूह (ईएजी)

सशक्त कार्रवाई समूह राज्यों में सी.एम.एन.एन.डी. रोगों की वजह से 34.6 प्रतिशत मौते हुई हैं जो सी.एम.एन.एन.डी. के कारण होने वाली मौतों का प्रतिशत देश भर के अन्य राज्यों की तुलना में अधिक है। जबकि 55.1 प्रतिशत मौतें एनसीडी के कारण हुईं हैं, और 10.2 प्रतिशत मौतें चोटों के कारण हुईं हैं। सी.एम.एन.एन.डी. में, मृत्यु के उच्चतम अनुपात के कारण होने वाले रोग श्रेणियों में दस्त, पुरानी सांस की बीमारी और अन्य सामान्य संक्रामक रोग (19.9 प्रतिशत), एचआईवी/एड्स और तपेदिक (6.4 प्रतिशत), और नवजात विकार (4.9 प्रतिशत ) हैं।

एनसीडी में, हृदय रोगों की श्रेणी (21.9 प्रतिशत) मृत्यु का प्रमुख कारण थी, इसके बाद पुरानी सांस संबंधी बीमारियां (12.4 प्रतिशत), कैंसर (7.8 प्रतिशत), और मधुमेह और जननांगों संबंधी, रक्त और अंतःस्रावी (एंडॊकराईन) रोगों वाली श्रेणी (5.2 प्रतिशत) है। अन्य दो समूहों की तुलना में, ईएजी राज्यों के समूह में पुरानी सांस की बीमारियों के कारण होने वाली मौतों का अनुपात सबसे अधिक था।

ईएजी राज्यों में, इस्केमिक हृदय रोग, जो एक एनसीडी है, पुरुषों में वाईएलएल का सबसे बड़ा कारण था यानि जीवन के दिन की हानी, जबकि महिलाओं में, डायरिया (दस्त) संबंधी बीमारियों और सांस की बीमारी का संक्रमण, सीएमएनएनडी के दोनों भाग, वाईएलएल में सबसे बड़े बड़ा योगदानकर्ता रहे हैं।

पुर्वोत्तर के राज्य

पुर्वोत्तर के राज्यों में 32.1 प्रतिशत पर रहकर, सी.एम.एन.एन.डी. की वजह से होने वाली मौतों का प्रतिशत केवल ईएजी राज्यों की तुलना में थोड़ा कम था, और अन्य राज्यों के समूह की तुलना में बहुत अधिक था। एनसीडी ने कुल मौतों में 58.8 प्रतिशत का योगदान दिया है, जबकि 9.1 प्रतिशत को चोटों के लिए ज़िम्मेदार ठहराया गया है। सी.एम.एन.एन.डी. में, मृत्यु के उच्चतम अनुपात वाले रोगों की श्रेणियों में दस्त, सांस की बीमारी का संक्रमण और अन्य सामान्य संक्रामक रोग (17 प्रतिशत) है, एचआईवी / एड्स और तपेदिक (6.1 प्रतिशत) है, और नवजात विकार (4.6 प्रतिशत) है।

ईएजी राज्यों के समान, एनसीडी जिसमें सबसे अधिक मौतें हुईं उनमें हृदय संबंधी बीमारियां (23प्रतिशत), सांस की बीमारियाँ (9.6प्रतिशत), कैंसर (9.5 प्रतिशत ) और मधुमेह और जननांगों संबंधी, रक्त और अंतःस्रावी (एंडॊकराईन) रोगों की श्रेणी ( 6.2 प्रतिशत ) है। अन्य दो समूहों की तुलना में कैंसर के कारण होने वाली मौतें इस समूह में सबसे अधिक थीं।

पूर्वोत्तर राज्यों में, पुरुषों में वाईएलएल का प्रमुख कारण स्ट्रोक था, इसके बाद इस्केमिक हृदय रोग, जो एक एनसीडी रोग है, और महिलाओं के बीच प्रमुख कारण दस्त और सांस संबंधी बीमारी का संक्रमण था।

अन्य राज्य

20.2 प्रतिशत पर, सी.एम.एन.एन.डी. के कारण होने वाली मौतों का प्रतिशत अन्य राज्यों के समूह में सबसे कम था, जबकि एन.सी.डी. के कारण होने वाली मौतों का प्रतिशत सबसे अधिक 68.5 प्रतिशत था। लगभग 11.3 प्रतिशत मौतों के लिए चोटों को ज़िम्मेदार ठहराया गया था। इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि अन्य राज्यों में, एनसीडी से मरने वाले अधिक लोग वृद्धावस्था तक जी रहे थे।

एनसीडी में, हृदय रोगों से (34.5 प्रतिशत) और मधुमेह श्रेणी से (7.9प्रतिशत) मौतों का अनुपात इस समूह में सबसे अधिक था।

पुरुषों और महिलाओं दोनों के बीच जीने के वर्षों की हानि (वाईएलएल) का प्रमुख कारण इस्केमिक हृदय रोग और स्ट्रोक था। इस श्रेणी में भी, महिलाएं पुरुषों की तुलना में सी.एम.एन.एन.डी. के लिए अधिक संवेदनशील थीं। महिलाओं के बीच आत्महत्या भी जीने के वर्षों की हानि (वाईएलएल) का एक प्रमुख कारण था।

बड़ी तस्वीर

रिपोर्ट के अनुसार, जैसे-जैसे अधिक भारतीय वयस्कता और वृद्धावस्था में जीते हैं, उनके ख़राब हालात के चलते बीमार स्वास्थ्य होने की संभावना बढ़ जाती है। देश की स्वास्थ्य प्रणाली के लिए यह एक महत्वपूर्ण चुनौती है कि वह रोगियों की बढ़ती संख्या की देखभाल करे, क्योंकि उनमें से कई तो पुरानी बीमारियों से पीड़ित हैं।

वर्ष 2016 में भारत में मृत्यु का प्रमुख और व्यक्तिगत कारण इस्केमिक हृदय रोग था, जिसमें मृत्यु दर किसी भी दूसरी बीमारी से दोगुनी थी। मृत्यु के शीर्ष व्यक्तिगत कारणों में अन्य एनसीडी के 10 मुख्य बीमारी हैं जिसमें क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी), स्ट्रोक, डायबिटीज और क्रॉनिक किडनी डीज़ीज़ शामिल हैं और डायरिया रोग, सांस की बीमारी, और तपेदिक से मौत प्रमुख सी.एम.एन.एन.डी. बीमारी के व्यक्तिगत कारण थे, और सड़क की चोटें और आत्महत्याएं भारत में शीर्ष 10 में मृत्यु का प्रमुख कारण थीं। राज्यों के बीच प्रमुख कारणों से मृत्यु दर में व्यापक भिन्नताएं थीं। राज्यों के बीच इस्केमिक हृदय रोग से उच्चतम मृत्यु दर सबसे कम 12 गुना थी, और ये मृत्यु दर आम तौर पर उच्च महामारी विज्ञान संक्रमण स्तर समूहों से संबंधित राज्यों के बीच अधिक थी।

इससे पता चलता है कि भले ही भारत संक्रामक, मातृत्व, नवजात विकार और पोषण संबंधी बीमारियों से होने वाली मौतों की मात्रा को काफ़ी कम करने में कामयाब रहा हो, लेकिन ग़ैर-संक्रामक रोग बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित कर रहे हैं और भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली इससे निपटने में असमर्थ है। सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा प्रणाली ख़राब बुनियादी ढांचे और कार्यबल की कमी से जूझ रही है, जबकि निजी स्वास्थ्य सेवा अभी भी देश की अधिकांश आबादी की पहुंच से बाहर है।

Public Healthcare in India
Epidemiological Transition in India
Non Communicable Diseases
Communicable Diseases
Mortality Rate
Infant Mortality
Neonatal Mortality in India
Disease Burden in India

Related Stories

NDHM: स्वास्थ्य सेवाओं के पूर्ण निजीकरण के लिए एक मुहिम


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License