NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भारतीय राजनीति का हिन्दुतत्व काल
2014 के बाद का कुल जमा हासिल यह है कि भारत में एक अलग तरीके के राष्ट्रवाद को स्वीकृति मिल गयी है जिसका आधार धर्म है
जावेद अनीस
14 Feb 2018
RSS

2014 के बाद से भारत की राजनीति में बड़ा शिफ्ट हुआ है जिसके बाद से यह लगभग तय सा हो गया है कि देश की सभी राजनीतिक पार्टियों को अपनी चुनावी राजनीति हिन्दुतत्व के धरातल पर ही करनी होगी इस दौरान उन्हें अल्पसंख्यकों के जिक्र या उनके हिमायती दिखने से परहेज करना होगा और राष्ट्रीय यानी बहुसंख्य्यक हिन्दू भावनाओं का ख्याल रखना पड़ेगा. 2014 के बाद का कुल जमा हासिल यह है कि भारत में एक अलग तरीके के राष्ट्रवाद को स्वीकृति मिल गयी है जिसका आधार धर्म है लेकिन यह मात्र 2014 का प्रभाव नहीं है बल्कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के उस धैर्यपूर्ण काम का इनाम है जिसे वो 1925 से करता चला आ रहा है. दरअसल, संघ हमेशा से ही भारत के स्वाधीनता आन्दोलन के गर्भ से निकले नये लोकतान्त्रिक, धर्मनिरपेक्ष भारत की अवधारणा से सहमत नहीं रहा जहाँ राजसत्ता का अपना कोई धर्म नहीं है और ना उसने कभी अपने हिन्दू राष्ट्र के कामना को छुपाया. वे आजादी के बाद हिन्दू धर्म को भारत का आधिकारिक राज्य धर्म घोषित नहीं किये जाने को एक अन्याय के रूप में देखते हैं. किसी विचारधारा के लिये इससे अच्छी स्थिति क्या हो सकती है कि उसके पास अपने खेल के लिये एक से ज्यादा टीमें हो जायें. आज हालत ऐसी बन चुके हैं कि स्वाधीनता आन्दोलन के विरासत का दावा करने वाली पार्टी कांग्रेस को धर्मनिरपेक्षता की जगह हिंदुत्व की राग को अलापना पड़ रहा है, उसके शीर्ष नेता खुद को हिन्दू साबित करने के लिये अपना जनेऊ दिखाने और मंदिरों का चक्कर लगाने को मजबूर हैं.

इस बदलाव का असर आने वाले सालों में और ज्यादा स्पष्टता के साथ दिखाई पड़ेगा जब बहुसंख्यकों और खुद अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को लगने लगेगा कि वे इस देश में दूसरे दर्जे के नागरिक हैं. जाहिर है इस बदलाव के दूरगामी परिणाम देश के लिए अच्छे साबित नहीं होने वाले हैं

गुजरात चुनाव के गहमा गहमी के दौरान एक टीवी बहस में कांग्रेस प्रवक्ता राजीव त्यागी खुल कर कहते हुये दिखाई दिए कि “बाबरी मस्जिद का ताला कांग्रेस ने खुलवाया, शिला न्यास कांग्रेस ने कराया, मस्जिद को कांग्रेस ने गिरवाया और मन्दिर भी कांग्रेस ही बनवाएगी”. तो क्या भारत की राजनीति ने अपना धर्म चुन लिया है ? कम से कम नियम तो बदल ही चुके हैं. तथाकथित धर्मनिरपेक्ष दलों को ‘धर्मनिरपेक्ष मूल्यों’ के लिए खड़े होने का दिखावा भी छोड़ना पड़ रहा है और अब प्रतियोगिता हिन्दू दिखने की है. गुजरात चुनाव के दौरान देश की प्रमुख विपक्षी पार्टी ने स्पष्ट कर दिया है कि आने वाले दिनों में उसके राजनीति कि दिशा किस तरफ रहने वाली है, खींची गयी लकीर का सन्देश साफ है अब आप इस मुल्क में हिंदू विरोधी पार्टी टैग के साथ राजनीति करने का खतरा नहीं उठा सकते और ना ही मुस्लिम हितेषी होने का दिखावा कर सकते हैं. यह एक बड़ा बदलाव है जिसे हिंदुत्ववादी खेमा अपनी उपलब्धि मान सकता है.

दूसरी तरफ दक्षिणपंथी खेमा जिसके लोग इस देश के शीर्ष पदों पर बैठ चुके है अब पूरी तरह से खुल कर सामने आ गया है. गुजरात चुनाव के दौरान प्रधानमंत्री के पद पर विराजमान शख्स द्वारा जिस तरह की बातें कही गयीं है वैसा इस मुल्क में पहले कभी नहीं सुना गया था. मुख्यमंत्री मोदी अपने चुनावी भाषणों में मियां मुशर्रफ, अहमद मियां  पटेल, और जेम्स माइकल लिंगदोह का जिक्र करते थे और इस तरह से वे इशारों-इशारों में अपना सन्देश दे दिया करते थे. इस बार प्रधानमंत्री के तौर पर वे और ज्यादा खुल कर अपना सन्देश देते हुये नजर आये. उन्होंने कांग्रेस से सीधे तौर पर सवाल पूछा कि वो मंदिर के साथ है या मस्जिद के, उन्होंने मुख्यमंत्री पद के लिए एक मुसलमान का नाम को आगे बढ़ाने की पाकिस्तानी साजिश की थ्योरी को भी पेश किया और इस तरह से वे मुसलमानों को पाकिस्तान समर्थक बताने वाली धारणा को बतौर प्रधानमंत्री आगे बढ़ाते हुये नजर आये.

भारत में राजसत्ता ने धर्मनिरपेक्षता को अपनाया जरूर लेकिन एक तरह की कशमश हमेशा ही बनी रही. पंडित नेहरू के समय ही बाबरी मस्जिद में मूर्तियां रख दी गयी थीं और फिर उन्हें वहीँ रहने दिया गया, इंदिरा गाँधी अपने दूसरे फेज में नरम हिन्दुतत्व के राह पर चल पड़ी थीं और राजीव गांधी के दौर में तो अयोध्या में मंदिर का ताला खुलवाने और शाहबानो मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले को पलटने जैसे काम किये गये जिसके बाद से हाशिये पर पड़े हिंदुत्ववादी खेमे के लिये रास्ता खुल गया और फिर इस देश में आजादी के बाद का सबसे बड़ा आन्दोलन “राम मंदिर आन्दोलन” हुआ जिसके बाद कांग्रेस के नरसिंहराव सरकार के समय में बाबरी मस्जिद गिरा दी गयी.

इसी तरह से राजनीतिक पार्टियों द्वारा अल्पसंख्यकों को वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया जाता रहा लेकिन उनकी तरफ से इस समुदाय के उत्थान और विकास के वास्तविक प्रयास नहीं किये गये. दरअसल मुस्लिम समुदाय के वास्तविक मुद्दे कभी उनके एजेंडे में शामिल ही नहीं रहे बल्कि उनकी सारी कवायद दक्षिणपंथी ताकतों का डर दिखाकर कर मुस्लिम वोट हासिल करने तक ही सीमित रहती है. इस दौरान साम्प्रदायिकता को लेकर तथाकथित सेक्युलर पार्टियों की लड़ाई भी ना केवल नकली दिखाई पड़ी बल्कि कभी–कभी उनका “दक्षिणपंथी ताकतों” के साथ अघोषित रिश्ता भी नज़र आता है जहाँ गौर से देखने पर वे एक दूसरे की मदद करते हुये नज़र आते हैं जिससे देश के दोनों प्रमुख समुदायों को एक दूसरे का भय दिखा कर अपनी रोटी सेंकी जाती रहे. कालांतर में इस स्थिति का फायदा दक्षिणपंथी खेमे द्वारा बखूबी उठाया गया और उन्होंने धर्मनिरपेक्षता के विचार को मुस्लिम तुष्टिकरण और हिन्दू विरोधी विचार के तौर सफलतापूर्वक प्रचारित किता गया.

कुछ विचारक कांग्रेस पार्टी के नरम हिन्दुतत्व की रणनीति को भाजपा और संघ के सांप्रदायिक राजनीति के कांट के तौर पर देखते हैं लेकिन यह नर्म बनाम गर्म हिन्दुतत्व की एक कोरी बहस है, पते की बात तो अरुण जेटली ने कही है कि “जब ओरिजनल मौजूद है तो लोग क्लोन को भला क्यों तरजीह देंगे”. और अगर क्लोन को कुछ सफलता मिल भी जाये तो भी इसका असली मूलधन तो ओरिजनल के खाते में ही तो जाएगा.

कभी हाशिये पर रही हिन्दुतत्व की राजनीति आज मुख्यधारा की राजनीति बन चुकी है. संघ राजनीति और समाज का एजेंडा तय करने की स्थिति में आ गया है. अब संघ धारा ही मुख्यधारा है. संघ के लिए इससे बड़ी सफलता भला और क्या हो सकती है कि बहुलतावादी भारतीय समाज पर एक ही रंग हावी हो जाए और देश की प्रमुख राजनीतिक पार्टियाँ नरम/ गरम हिन्दुतत्व के नाम पर प्रतिस्पर्धा करने लगें. भले ही इसका रूप अलग हो लेकिन आज भारत की दोनों मुख्य पार्टिया बहुसंख्यक हिन्दू पहचान के साथ ही आगे बढ़ रही हैं यह भारतीय राजनीति का हिन्दुतत्व काल है.

डिस्क्लेमर: यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं और अनिवार्य नहीं कि न्यूज़क्लिक के विचारों का प्रतिनिधित्व करते होंI

Hindutva
babri masjid
BJP
Ram Mandir
RSS

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !


बाकी खबरें

  • बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी
    18 May 2022
    ज़िला अस्पतालों में डॉक्टरों के लिए स्वीकृत पद 1872 हैं, जिनमें 1204 डॉक्टर ही पदस्थापित हैं, जबकि 668 पद खाली हैं। अनुमंडल अस्पतालों में 1595 पद स्वीकृत हैं, जिनमें 547 ही पदस्थापित हैं, जबकि 1048…
  • heat
    मोहम्मद इमरान खान
    लू का कहर: विशेषज्ञों ने कहा झुलसाती गर्मी से निबटने की योजनाओं पर अमल करे सरकार
    18 May 2022
    उत्तर भारत के कई-कई शहरों में 45 डिग्री सेल्सियस से ऊपर पारा चढ़ने के दो दिन बाद, विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन के चलते पड़ रही प्रचंड गर्मी की मार से आम लोगों के बचाव के लिए सरकार पर जोर दे रहे हैं।
  • hardik
    रवि शंकर दुबे
    हार्दिक पटेल का अगला राजनीतिक ठिकाना... भाजपा या AAP?
    18 May 2022
    गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले हार्दिक पटेल ने कांग्रेस को बड़ा झटका दिया है। हार्दिक पटेल ने पार्टी पर तमाम आरोप मढ़ते हुए इस्तीफा दे दिया है।
  • masjid
    अजय कुमार
    समझिये पूजा स्थल अधिनियम 1991 से जुड़ी सारी बारीकियां
    18 May 2022
    पूजा स्थल अधिनयम 1991 से जुड़ी सारी बारीकियां तब खुलकर सामने आती हैं जब इसके ख़िलाफ़ दायर की गयी याचिका से जुड़े सवालों का भी इस क़ानून के आधार पर जवाब दिया जाता है।  
  • PROTEST
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पंजाब: आप सरकार के ख़िलाफ़ किसानों ने खोला बड़ा मोर्चा, चंडीगढ़-मोहाली बॉर्डर पर डाला डेरा
    18 May 2022
    पंजाब के किसान अपनी विभिन्न मांगों को लेकर राजधानी में प्रदर्शन करना चाहते हैं, लेकिन राज्य की राजधानी जाने से रोके जाने के बाद वे मंगलवार से ही चंडीगढ़-मोहाली सीमा के पास धरने पर बैठ गए हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License