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आंदोलन
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भारत
राजनीति
किसान-मज़दूरों का ऐलान- भगत सिंह के सपनों के भारत का संघर्ष रहेगा जारी!
शहीद दिवस पर दिल्ली की सीमाओं पर पहुंची किसान-मज़दूर पदयात्रा। “इस पदयात्रा ने उद्घोष किया कि आंदोलन अपने अगले चरण में प्रवेश कर रहा है। अब आंदोलन में एक व्यापक एकता बन गई है।"
मुकुंद झा
23 Mar 2021
kisan

शहीद दिवस के मौके पर किसान आंदोलन दिल्ली के सीमाओं पर 118वें दिन में प्रवेश कर गया है। किसानों ने सरकार के हठधर्मिता को देखते हुए अपनी रणनीति बदली और आंदोलन को दिल्ली के बॉर्डर से विकेन्द्रित करते हुए देशभर के गाँव-गाँव और शहरों में ले गए हैं। किसान अपने इस आंदोलनों का लगातार विस्तार कर रहे है। इसी क्रम में आज 23 मार्च शहीद दिवस यानी जिस दिन भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को अंग्रेजी हुकूमत ने फाँसी दी थी, को याद करते हुए किसानों ने इस दिन के आंदोलन को युवाओं को समर्पित किया।

यही नहीं हरियाणा, पंजाब और उत्तर प्रदेश के किसानों ने किसान सम्मान दिवस मानते हुए और आंदोलन का विस्तार करने के लिए चार जगहों से किसान-मज़दूर पदयात्रा निकाली और कई सौ किलोमीटर की यात्रा कर बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसानों के साथ आज शमिल हुए।  

इस पदयात्रा का आह्वान अखिल भरतीय किसान सभा और सेन्टर ऑफ़ इंडियन ट्रेड यूनियन ने किया था, जिसका बाद में संयुक्त मोर्चा ने भी समर्थन किया। ये यात्रा पंजाब में भगत सिंह के गांव खटकड़ कलां, हरियाणा के हिसार और जींद जबकि उत्तर प्रदेश के आगरा से चलकर दिल्ली की सीमाओं पर पहुंची। इन यात्राओं को भारी जनसमर्थन मिला। इन पद यात्राओं के जरिए 26 मार्च के पूर्ण भारत बंद का संदेश भी जनता तक पहुंचाया गया।

शहीद दिवस को दिल्ली के बॉर्डर्स पर युवाओं की बड़ी कॉन्फ्रेंस आयोजित की गई। सभी धरनास्थलों पर देशभर से युवा पहुंचे। इन कार्यक्रमों में सांस्कृतिक कार्यक्रम भी हुए, जहां भगत सिंह, राजगुरु व सुखदेव के विचारों पर प्रकाश डाला गया। यह शहीदी दिवस किसानों को समर्पित था, जिसमें किसान-मजदूर के शोषण पर भगत सिंह के विचारों को जनता के सामने रखा गया व आन्दोलन को और तीखा करने का एलान हुआ।

ऐसी ही एक किसान मज़दूर पदयात्रा 18 मार्च को हरियाणा हिसार के हांसी से शुरू होकर आज 23 मार्च को टिकरी बॉर्डर पहुंची। इसमें बड़ी संख्या में नौजवान भी शामिल थे।  
पदयात्रा में शामिल एक युवा ने कहा कि ये पदयात्रा अपने आप में ऐतिहासिक थी क्योंकि हांसी की वो लाल सड़क जहाँ से ये यात्रा शुरू हुई, वो वही जगह थी जहाँ अंग्रेजों ने 1857 में स्वतंत्रता सेनानियों को सैकड़ों की संख्या में रोड रोलर से कुचलवा दिया था। आज भी इस सरकार ने अभी तक आंदोलनों में शामिल सैकड़ों किसनों का जिंदगी लील ली है और अभी उसकी प्यास बुझी नहीं है। लेकिन वो भूल रही है हमारा इतिहास कुर्बानी से भरापूरा है और हम इस बार भी किसी भी कुर्बानी से चूकेंगे नहीं और जबतक इन कानूनों की वापसी नहीं होगी हमारा यह संघर्ष जारी रहेगा। 


युवा किसान नेता और एआईकेएस हरियाणा के सचिव सुमित ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए पदयात्रा को ऐतिहासिक बताया। उन्होंने कहा इस भाजपा सरकार को हराने के लिए भगत सिंह के तरह हमें भी लड़ना होगा। यह संदेश लेकर यह यात्रा गाँवों में गई और लोगों को आंदोलनों के प्रति जागरूक किया। इस पदयात्रा को जो समर्थन मिला वो इसकी सफलता को दिखाता है।

38 वर्षीय कमलेश लाहली जो एक मज़दूर नेता है, जो सीटू से जुड़ी हैं। उन्होंने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि यह आंदोलन अब किसानों के मुद्दे से आगे बढ़कर मज़दूर और नौजवानों का हो चला है। वो खुद एक निर्माण मज़दूर थीं लेकिन अभी वो पूर्ण तरीके से मज़दूर आंदोलन से जुड़ी हैं और हाल ही में हुए हरियाणा विधानसभा चुनाव में उन्होंने सीपीएम के टिकट पर चुनाव भी लड़ा था हालांकि उनको चुनावी सफलता नहीं मिली, लेकिन आज जब हमने उनसे बात की तो वो इससे बिल्कुल निराश नहीं थीं। उन्होंने कहा कि उस समय जो मुद्दे उठाए थे उनको लेकर वे सड़कों पर संघर्ष कर रही हैं और करती रहेंगी।  

कमलेश ने बताया कि पहले वो भी काम करती थीं। अब सिर्फ उनके पति एक निजी फैक्ट्री में काम करते हैं। उनपर (कमलेश के पति) भी बाकी मज़दूरों की तरह सरकार के मज़दूर विरोधी श्रम कोड का असर पड़ रहा है। अब उन्हें भी आठ की जगह 12 घंटे की शिफ्ट करनी पड़ती है।  

कमलेश ने साफ कहा कि यह आंदोलन अब तभी खत्म होगा जब सरकार मज़दूर और किसान विरोधी कानूनों को वापस लेगी।  
इस यात्रा में बड़ी संख्या में नौजवान शामिल थे। नौजवान किसानों के साथ ही बेरोजगारी के सवाल को लेकर भी अपनी आवाज़ बुलंद कर रहे थे।

भारत की जनवादी नौजवान सभा हरियणा के नेता शाहनवाज़ ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि इस आंदोलन में नौजवानों की भूमिका है और ये आंदोलन हर कमा के खाने वाली जनता का है। शहीदी दिवस पर भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को याद कर करते हुए उन्होंने कहा कि उन्होंने भी ऐसे भारत का सपना नहीं देखा था। आज भारत में भवन निर्माण करने वाले मज़दूर के सिर पर छत नहीं और अनाज उगाने वाले भूखे हैं।

आगे उन्होंने कहा कि ये सरकार एक तरफ़ किसानों और खेती को बर्बाद करने वाले कानूनों को ले आई है जबकि दूसरी तरफ़ नौजवानों को नौकरी देने वाले सरकारी विभागों को बेच रही है।

शाहनवाज ने केंद्र द्वारा हाल ही में पेश किए गए बजट को ओलेक्स की सेल कहा और कहा ये सरकार ने साफ किया कि पूँजीपति देश में कुछ भी खरीद सकता है। इनका अगला निशाना छात्र और नौजवान हैं। इसलिए नौजवान इस आंदोलन का हिस्सा हैं और आने वाले दिनों में अपना आंदोलन और तेज़ करेंगे।

महिला आंदोलन की जानी-मानी नेता जगमति संगवान ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि इस आंदोलन में आज यह यात्रा अंग्रेजों के कंपनी राज के खिलाफ हुए आंदोलन में शामिल शहीदों की ऊर्जा को लेकर शामिल हुई है। उन्होंने कहा कि सरकार सोच रही है कि आंदोलन कमज़ोर हो रहा है लेकिन इस यात्रा के दौरान हम गांवों में गए और लोगों के घरो में रुके और जिस तरह से उन्होंने हमारा स्वागत किया वो शानदार था। हमें भी अंदाज़ नहीं था कि लोगों में इतना गुस्सा है। यह सरकार के लिए चेतावनी है कि वो समय रहते इन काले कानूनों को वापस ले ले।

अखिल भारतीय खेत मज़दूर यूनियन के राष्ट्रीय संयुक्त सचिव डॉ. विक्रम ने न्यूज़क्लिक बात करते हुए कहा कि “इस पदयात्रा ने उद्घोष किया कि आंदोलन अपने अगले चरण में प्रवेश कर रहा है। अब आंदोलन में एक व्यापक एकता बन गई है। शायद सरकार को लगता होगा कि देश कि जनता पांच राज्यों के चुनाव में मशगूल हो गई और किसानों का मुद्दा पीछे चला गया होगा लेकिन ऐसा बिल्कुल भी नहीं है, बल्कि मुद्दा है, ऐसे ही है लोग आंदोलित हैं और सरकार तैयार रहे अगले दौर का आंदोलन और मज़बूत और उग्र होगा।” 

 

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