NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
युवा
समाज
भारत
राजनीति
भगत सिंह: देशप्रेमी या राष्ट्रवादी
राष्ट्रवाद और देशप्रेम दो अलग विचार हैं, एक दूसरे के पर्यायवाची नहीं हैं। वर्तमान दौर में भगत सिंह के नाम का उपयोग शासक वर्ग व आरएसएस, भाजपा, आम आदमी पार्टी जैसे अन्य राजनीतिक दल अपनी सुविधा अनुसार कर रहे हैं और समाज में भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। इसलिए भगत सिंह के विचारों को पढ़ना और ज़रूरी हो जाता है।
दिनीत डेंटा
23 Mar 2022
bhagat singh
सोशल मीडिया से साभार

प्रोफेसर चमन लाल (लेखक व पूर्व प्रोफेसर) ‘स्टूडेंट स्ट्रगल’ (एस.एफ.आई. का मुखपत्र) को दिए गए अपने इंटरव्यू में भगत सिंह को याद करते हुए कहा था कि बेशक, वे (भगत सिंह) एक बहादुर और निडर स्वतंत्रता सेनानी थे, जो दुनिया भर में नायाब थे, जिनकी तुलना चे ग्वेरा की निडरता से की जा सकती है। फिर भी, वह केवल इस विशेषता तक ही सीमित नहीं थे। वह अपने व्यक्तित्व में इससे कहीं अधिक थे। वह एक समाजवादी विचारक थे, जो क्रांति की मुख्य ताकतों के रूप में श्रमिकों और किसानों को संगठित करके भारत में समाजवादी क्रांति लाने के बारे में एक स्पष्ट मार्क्सवादी दृष्टिकोण रखते थे। अब तक मिले उनके लेखन और उनकी जेल नोटबुक से मिले कुल 130 लेख यह बिल्कुल स्पष्ट करते हैं। चूंकि उनके लेखन पर कुछ साल पहले तक ज्यादा ध्यान नहीं दिया गया, उनका व्यक्तित्व अकेले एक बहादुर स्वतंत्रता सेनानी तक सीमित रखा गया, जो निश्चित रूप से देश में राजनीतिक व्यवस्था के अनुकूल था। क्योंकि भगत सिंह एक क्रांतिकारी विचारक के रूप में शासक वर्ग के लिए खतरा है। 

प्रोफेसर चमन लाल के इस कथन से हम यह तो समझ ही सकते हैं कि शासक वर्ग द्वारा भगत सिंह का जो चित्रण हमारे बीच किया गया है वो केवल आधा-अधूरा सच है। शासक वर्ग द्वारा भगत सिंह को केवल आजादी के आंदोलन का एक जोशीला नौजवान की तरह ही प्रस्तुत किया गया जो बंदूक उठाकर आजादी चाहता था। इसके विपरित भगत सिंह केवल जोशीले नौजवान ही नहीं अपितु वैचारिक तौर से परिपक्व थे। भगत सिंह जानते थे की जिस क्रांति के लिए वो लड़ रहे हैं उसे हथियारों के दम पर हासिल नहीं किया जा सकता है। इसके लिए जरूरी है वैचारिक और सामाजिक बदलाव। भगवती चरण वोहरा व भगत सिंह द्वारा लिखित ‘बम का दर्शन’ (इस लेख को "हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन HSRA का घोषणापत्र” शीर्षक दिया गया था) लेख के माध्यम से हम भगत सिंह की वैचारिक परिपक्वता समझ सकते हैं, यह लेख 1930 में महात्मा गांधी द्वारा क्रांतिकारियों की आलोचना में लिखे गए ‘ बम की पूजा’ के जवाब में लिखा गया था।

वर्तमान दौर में भगत सिंह के नाम का उपयोग शासक वर्ग व आरएसएस, भाजपा, आम आदमी पार्टी जैसे अन्य राजनैतिक दल अपनी सुविधा अनुसार करते हैं और समाज में भ्रम पैदा करने की कोशिश कर रहे हैं। भगत सिंह के नाम पर राजनीति व उनका चित्रण आरएसएस, भाजपा व अन्य राजनीतिक दल एक संकीर्ण राष्ट्रवादी के रूप में जिस प्रकार अपनी सहुलियत के हिसाब करने की कोशिश कर रहे हैं, उसी से भगत सिंह राष्ट्रवादी थे या देशप्रेमी इस गंभीर बहस का जन्म होता है। आजकल पीली पगड़ी पहने, सच्चा राष्ट्रवादी व बंदूक धरे हुए एक नौजवान आदि के माध्यम से भगत सिंह का जो झूठा चित्रण शासक वर्ग प्रस्तुत करता है वह इस बहस को और भी गंभीरता प्रदान करता है।

राष्ट्रवाद और देशप्रेम बिल्कुल अलग बातें हैं

देशप्रेम और राष्ट्रवादी ये दोनों शब्द हमारे देश के शासक वर्ग द्वारा अमूमन एक दूसरे के पर्यायवाची ही बताए जाते हैं व इस समय चलन व प्रचलन में हैं। हिंदुस्तान की वर्तमान राजसत्ता इन्हीं शब्दों के आस-पास जीवित रहने का प्रयास कर रही है व इन्हीं शब्दों में जनता को उलझाए रखना चाहती है।

देशप्रेम एक प्राकृतिक एहसास है। आप जिस जगह पैदा हुए, वहाँ के लोगों से और वहाँ की मिट्टी से लगाव होता है। यह ऐसा ही है जैसे किसी के मन में अपने गाँव और गाँव वालों के लिए प्यार हो। बस इसी तरह जैसे अपनी माँ से, पिता से, भाई-बहन या दोस्त से होता है। बचपन से उनको देखा है, उनके साथ रहे हैं, उन्होंने हमारा ख्याल रखा है, उनके साथ हँसे और रोए हैं। ऐसा प्यार जो किसी अन्य गाँव के खिलाफ नहीं है। ऐसा प्यार जो आपको किसी अन्य गाँव वाले के प्रति अन्यायी और अधर्मी होने को नहीं कहेगा। देशप्रेम किसी की खिलाफत नहीं करता। यह देशवासियों के लिए प्रेम है। इससे व्यक्ति कुछ सकारात्मक करता है। जबकि राष्ट्रवाद एक प्राकृतिक एहसास नहीं हैं, अपितु हमें इसकी ट्रेनिंग दी जाती है। शासक कहता है कि मैं राष्ट्र का भला चाहता हूँ, इसलिए मेरे प्रति वफ़ादारी ही राष्ट्रवाद है। अक्सर लोग इस बात को मान लेते हैं। वे मानवता को विचलित कर देने वाली घटनाओं को राष्ट्रवाद के नाम पर चुपचाप सहन कर जाते हैं। राष्ट्रवाद शासक के प्रति वफ़ादारी का पर्याय बन जाता है। राष्ट्रवाद केवल गाली देने पर टिका है। कब तक गाली देनी है और किसको गाली देनी है? यह सरकार या सत्ता ते करती है। 

देशप्रेम 'वसुधैव कुटुंबकम' के खिलाफ नहीं है, यानि पूरी दुनिया के प्रति प्रेम की पहली सीढ़ी है। जबकि राष्ट्रवाद अपने देश पर अंधाधुंध गर्व करने और दूसरे देशों से नफरत करने पर टिका है। देशप्रेमी देश के लोगों के लिए कुछ करने की सोचता है, जबकि राष्ट्रवादी दूसरे देश को गालियाँ देते हैं और युद्ध में मनोरंजन पाते हैं।

यूरोप में भी कुछ ऐसा ही हुआ। सामाजिक व राजनैतिक बदलाव के लिए यूरोप के देशों में समय-समय पर अलग-अलग क्रांति चल रही थी, जिसका मकसद था नवाबों, पादरियों, और राजाओं के हाथों से सत्ता लेकर लोगों में उसे स्थापित करना। लेकिन नैपोलियन, हिटलर, मसोलिनी जैसे तानाशाहों ने उस पूरी बहस को गुमराह करते हुए राष्ट्रवाद को जन्म दिया। कहा कि आपस में लड़ाई, यानि क्रांति छोड़ो। हमें तो दूसरे देश से लड़ना है। राष्ट्रवाद ज़्यादातर सभी तानाशाहों का मज़बूत हथियार रहा है। राष्ट्रवाद में आम नागरिकों के लिए कुछ करने को नहीं है। इसलिए लोग क्या करते हैं? अब जब हम युद्ध को एक क्रिकेट मैच की तरह देखने लगते हैं, और क्रिकेट मैच को युद्ध की तरह, तब एक समस्या बन जाती है। हम भूल जाते हैं कि युद्ध मानवता के विनाश का कारण बनता है। लोग फटाक से फेसबुक पर लिखते हैं कि हमारे शहीदों को श्रद्धांजलि। फिर इस चीज़ की ख़ुशी में खो जाते हैं कि हमारी सेना ने दूसरी सेना के कितने सैनिक मारे। टीवी से लेकर ट्विटर पर अपनी इस हुंकार, ललकार, हाहाकार के आधार पर हम खुद को देशभक्त कह देते हैं। इसमें हमने किया क्या? कुछ नहीं। बोल बोलकर ही आज आप सबसे बड़े देशभक्त बन सकते हैं। कुछ करने की जरुरत ही नहीं। 

अब आप बस खुद को भाजपा समर्थक कह दीजिए और राष्ट्रवादी की उपाधि ले लीजिए। राष्ट्रवादी की उपाधि ज़्यादा अच्छी ना लगे, तो देशभक्त वाला मैडल ले सकते हैं। आप में देशप्रेम होगा तो आप देश की मेहनतकश, जरूरतमंद जनता के लिए खड़े होंगे।

क्या भगत सिंह राष्ट्रवादी थे? 

भगत सिंह को राष्ट्रवादी नहीं कहा जाता है। भारत स्वतंत्रता आंदोलन में सुभाष चन्द्र बोस जैसे अन्य कई आंदोलनकारी भी भगत सिंह की तरह समाजवादी थे, लेकिन बोस का मानना था कि, राष्ट्र की आज़ादी पहले, बाकी सब बाद में देख लेंगे। वहीं भगत सिंह के हरेक भाषण और लेख में 'किसानों, मजदूरों, बुनकरों, मज़लूमों' की बात दिखती है। 

उनके 'इंकिलाब ज़िंदाबाद' में केवल अंग्रेज़ों के लिए रोष नहीं था वे खासतौर पर अंग्रेज़ों के नहीं, बल्कि साम्राज्यवाद के खिलाफ थे। वे मार्क्स से प्रभावित थे। उन्होंने असेंब्ली में बम फेंक कर 'दुनियाभर के मज़दूरों, इकट्ठे हो जाओ' के नारे भी लगाए। अपना एक मकसद उन्होंने यह भी बताया था कि "दुनिया" को साम्राज्यवाद से मुक्ति दिलाना है। भगत सिंह जब तक रहे तब तक उन्होंने हर तरह के साम्राज्यवाद का जोरदार विरोध किया। आज के समय में भगत सिंह की विरासत को आगे ले जाते हुए हमें भी खुलकर साम्राज्यवाद की खिलाफत करनी होगी। हमें अमरीकी साम्राज्यवाद जिसकी गुलाम भारत सरकार भी होने को आई है, इसका खुलकर व जबर्दस्त  विरोध करना होगा। यही भगत सिंह के प्रति हमारी श्रदांजली होगी।

कुल मिलकर बात यह है कि भगत सिंह के मानवतावादी विचार श्रेष्ठ हैं। जहाँ वे लोगों को राष्ट्र का पुर्जा मानने से इंकार करते हैं। सामाजिक-आर्थिक ज़ंजीरों से मज़लूमों की आज़ादी को उतनी ही अहमियत देते हैं, जितनी राष्ट्र की राजनैतिक आज़ादी को।

वर्तमान समय में यदि नौजवान पीढ़ी भगत सिंह का अध्ययन किए बिना व उनकी राजनीतिक समझ को बिना समझे उन्हें अपना हीरो मान रही है, तो हम भी वही कर रहे हैं जो कांग्रेस ने भगत सिंह को केवल एक स्वतंत्रता सेनानी तक सीमित कर के किया और आरएसएस ने उन्हें एक संकीर्ण सांप्रदायिक राष्ट्रवादी के रूप में रंग देने की कोशिश के जरिए किया, तो कुछ वामपंथियों ने उन्हें प्रगतिशील क्रांतिकारी के रूप में स्वीकार किया, लेकिन स्वतंत्रता संग्राम में वामपंथ की अपनी विरासत का हिस्सा नहीं माना। यदि भगत सिंह के विचारों को समझे व आत्मसाध किए बिना हम भी उन्हें केवल आज़ादी के आंदोलन के नायक के तौर पर ही देखते हैं और वर्तमान समय में भगत सिंह के विचारों की म्हत्वता और क्रांतिकारी दर्शन को दरकिनार करते हैं, तो निश्चित तौर पर हम ही शासक वर्ग का काम आसान कर रहे हैं। भगत सिंह का युवा पीढ़ी के लिए क्या संदेश था इसे बेहतरी से जानने के लिए हम सभी को भगत सिंह द्वारा  ‘कौम के नाम सन्देश’ के रूप में प्रसिद्द और ‘नवयुवक राजनीतिक कार्यकर्ताओं के नाम पत्र’ शीर्षक से 2 फरवरी 1931 को लिखा गया लेख अवश्य पढ़ना चाहिए।

भगत सिंह की लड़ाई न केवल राजनीतिक सत्ता बदलने के लिए थी, बल्कि आर्थिक और सामाजिक मुक्ति के लिए भी थी। भगत सिंह मजदूर वर्ग के हित के महान समर्थक थे। भगत सिंह मजदूरों, किसानों, बुनकरों, मज़लूमों' की सता के पक्षधर थे। उनका लक्ष्य एक लोकतांत्रिक दृष्टिकोण के साथ समाजवाद का निर्माण करना भी था। जहां राय और विचार स्वतंत्र रूप से व्यक्त किए जा सकते थे। आज के छात्रों, युवा समूहों और अन्य जन संगठनों के पास भगत सिंह से सीखने के लिए कई महत्वपूर्ण सबक हैं। केवल भगत सिंह को पसंद करने से या उन्हें अपना हीरो मात्र मानने से या जोर-ज़ोर से ‘इंकलाब’ चिलाने से उनके प्रति हमारा फर्ज पूरा नहीं हो जाता है। उनके विचारों के बारे में विचार-विमर्श कर उसे आत्मसाध करना होगा। उनके विचारों को जीना होगा। समाज में हो रहे हर अन्याय और शोषण का संगठित होकर विरोध करना व शोषणमुक्त, अन्यायमुक्त, सांप्रदायिकता के जहर और जातिवाद का डटकर मुकबाला करना होगा। बराबरी के समाज के गठन के लिए हरदम प्रयासरत रहते हुए इंकलाब की लड़ाई को लड़ना हमारे जीवन का ध्येय होना चाहिए। हमें भगत सिंह के विचारों का वो समाज बनाना है, जहां हर मानव की पहचान जाति, धर्म व लिंग आधारित न होकर हर मानव की पहली व आखिरी पहचान केवल मानव व इंसानियत हो।

23 मार्च, 1931 को संसार भर के नियमों के विरूद्ध सवेरे के बजाय शाम को कॉमरेड भगत सिंह को फांसीघर में बुलवाया गया। उन्होंने फंदे को चूमा और फिर फांसी पर झूल गए। ब्रिटिश शासन ने उनका शव चोरी-छिपे फिरोजपुर के निकट सतलज नदी के किनारे पेट्रोल डालकर जला दिया और अधजली दशा में ही नदी में बहा दिया। कई बार सोचा करता हूं कि क्या वे उनके विचारों को भी जला या बहा पाए? नहीं। उनके विचार आज भी दिल और दिमागों में मज़लूमों के हक की लड़ाई मजबूती से लड़ने का जुनून व वैचारिक परिपक्वता पैदा करते हैं।

'अच्छा रूखसत। 'खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं।' हौंसले से रहना।'

व्यक्त विचार निजी हैं। लेखक स्टूडेंट्स फेडरैशन ऑफ इंडिया के अखिल भारतीय सह सचिव हैं


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License