NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भगत सिंह को याद करने का अर्थ
पारिजात
26 Sep 2014

जब हम शहीदे–आजम भगत सिंह और उनके साथियों की कुर्बानी को याद करते हैं तो हमारे मन में यह सवाल उठता है कि उस सपने का क्या हुआ जिन्हें लेकर हमारे क्रान्तिकारी पुरखों ने हँसते–हँसते फाँसी के फन्दे को चूम लिया था। जो लोग इन शहीदों की याद में जलसे करने और उत्सव मनाने पर बेहिसाब पैसा फूँकते हैं, क्या उन लोगों को पता भी है कि हमारे शहीदों के विचार क्या थे, वे किस तरह का समाज बनाना चाहते थे और देश को किस दिशा में ले जाना चाहते थे ? उनके सपनों और विचारों को दरकिनार करके, उनके बलिदान दिवस का उत्सवधर्मी, खोखला और पाखण्डी आयोजन करना उन शहीदों का कैसा सम्मान है ?

आजादी के बाद देशी शासक भी भगत सिंह के विचारों से उतना ही भयभीत थे जितना अंग्रेज । उन्होंने इन विचारों को जनता से दूर रखने की भरपूर कोशिश की । लेकिन देश की जनता अपने गौरवशाली पुरखों को भला कैसे भूल सकती है । आज भी जन–जन के मन–मस्तिष्क में उन बलिदानियों की यादें जिन्दा हैं । दूसरी ओर जाति और धर्म के तंग दायरे से ऊपर उठकर देश और समाज के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने वाले भगत सिंह को आज उन्हीं सीमाओं में बन्द करने की साजिश हो रही है । कोई उन्हें पगड़ी पहनाकर सिख बनाने का प्रयास कर रहा है तो कोई उन्हें जाट जाति का गौरव बनाने पर तुला है । कोई उन्हें आर्य समाजी बता रहा है, तो कोई हिन्दू । उनके क्रान्तिकारी विचारों पर पर्दा डालते हुए उन्हें एक ऐसे बलिदानी के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है जैसे शमा पर जलनेवाला देशभक्त परवाना, जिसे यह बोध न हो कि वह क्यों अपने प्राण दे रहा है और जिसमें बस मरने का जज्बा और साहस-भर हो । ये सभी प्रयास सामाजिक जड़ता को बनाये रखनेवाले, प्रगति और परिवर्तन के विरोधियों की साजिश नहीं, तो भला क्या है ? यह भगत सिंह के विचारों को दूषित करके लोगों को भरमाने का घिनौना प्रयास नहीं, तो भला और क्या है ?

अभी ज्यादा समय नहीं हुआ जब संसद भवन में भगत सिंह की प्रतिमा लगायी गयी । जिसमें उन्हें पगड़ी पहने हुए दिखाया गया है । जिन काले अंग्रेजों ने मेहनतकश जनता के जीवन में न्याय, समता और खुशहाली लाने का भगत सिंह का सपना पूरी तरह त्यागकर मुट्ठी-भर लोगों के लिए विकास का रास्ता अपना लिया है, उनके द्वारा उनकी प्रतिमा लगाने का ढोंग–पाखण्ड भगत सिंह का घोर अपमान है । यह शोषकों–शासकों का आजमाया हुआ नुस्खा है कि जिन महापुरुषों के विचारों को नकारना सम्भव न हो, उन्हें देवता बना दो । कबीर जो मठों, मठाधीषों और आडम्बरों के विरोधी थे, उनके नाम पर पंथ चलाकर उन्हें भी मठों में कैद कर दिया गया । महावीर और गौतम बुद्ध जो मूर्ति पूजा के विरोधी थे, उनकी मूर्ति बनाकर उनकी पूजा होने लगी । भगत सिंह के खिलाफ भी ऐसा ही कुचक्र रचा जा रहा है । यह दु:खद और क्षोभकारी है ।

भगत सिंह और उनके साथियों का हमारे लिए सबसे बड़ा महत्त्व यह है कि वे महान क्रान्तिकारी और महान विचारक थे । हमारे देश, समाज और मेहनती गरीब जनता के लिए उन क्रान्तिकारियों के विचार आज पहले से कहीं ज्यादा प्रासांगिक हैं । लेकिन अफसोस की बात यह है कि उनके विचारों के बारे में आज भी देश के अधिकांश लोगों को कुछ खास पता नहीं है । भगत सिंह को याद करने का सबसे सही तरीका यही हो सकता है कि उनके विचारों को जन–जन तक पहुँचाया जाए । साथ ही उनके विचारों को व्यवहार में उतारने के लिए एकजुट होना भी आज समय की माँग है । शहीदों के सपने को देश की बहुसंख्य जनता का सपना बनाना और उसे साकार करना ही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि हो सकती है ।

भगत सिंह और उनके साथियों के लेखों, पत्रों और दस्तावेजों का अध्ययन करने पर यह साफ जाहिर होता है कि उनकी विचारधारा उस समय के भारतीय क्रान्तिकारी आन्दोलन की सबसे विकसित ओर सुसंगत विचारधारा थी ।

वैसे तो जिंदगी के हर पहलु पर हमारे क्रांतिकारियों के विचार हमारे लिये प्रेरणास्पद हैं, यहाँ हम भारतीय समाज में व्याप्त साम्प्रदायिकता के बारे में भगत सिंह के दौर की स्थिति और उसको लेकर उनकी राय पर गौर करेंगे । जलियाँवाला बाग काण्ड के बाद अंग्रेजों ने फूट डालो –राज करो की नीति पर तेजी से अमल शुरू किया और साम्प्रदायिक हिन्दू–मुस्लिम नेता भी उनके हाथों का खिलौना बन गये । तब ‘साम्प्रदायिक दंगे और उनका इलाज’ नामक लेख में क्रान्तिकारियों ने स्पष्ट रूप से इस समस्या पर अपनी राय रखी––

भारतवर्ष की दशा इस समय बड़ी दयनीय है । एक धर्म के अनुयायी दूसरे धर्म के अनुयायियों के जानी दुश्मन हैं । अब तो एक धर्म के होना ही दूसरे धर्म के कट्टर शत्रु होना है ।

...ऐसी स्थिति में हिन्दुस्तान का भविष्य बहुत अन्धकारमय नजर आता है । इन ‘धर्मों’ ने हिन्दुस्तान का बेड़ा गर्क कर दिया है । और अभी पता नहीं कि यह धार्मिक दंगे भारतवर्ष का पीछा कब छोड़ेंगे । इन दंगों ने संसार की नजरों में भारत को बदनाम कर दिया है । और हमने देखा है कि इस अन्धविश्वास के बहाव में सभी बह जाते हैं।

नौजवान भारत सभा के घोषणा पत्र में भी धार्मिक कट्टरता और अंधविश्वास पर चिन्ता व्यक्त करते हुए कहा गया था–

हम भारतवासी, हम क्या कर रहे हैं ? पीपल की एक डाल टूटते ही हिन्दुओं की धर्मिक भावनाएँ चोटिल हो उठती हैं! बुतों को तोड़ने वाले मुसलमानों के ताजिये नामक कागज के बुत का कोना फटते ही अल्लाह का प्रकोप जाग उठता है और फिर वह ‘नापाक’ हिन्दुओं के खून से कम किसी वस्तु से सन्तुष्ट नहीं होता! मनुष्य को पशुओं से अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए, लेकिन यहाँ भारत में वे लोग पवित्र पशु के नाम पर एक–दूसरे का सर फोड़ते हैं ।

आजादी के बाद साम्प्रदायिक राजनीति का उभार अंग्रजों के शासनकाल से भी तेज हुआ है । धर्मनिरपेक्षता केवल संविधान में ही सीमित है । वास्तविक राजनीति में धार्मिक उन्माद भड़काकर वोट बटोरने की नीति ही चल रही है और सबसे खतरनाक सच्चाई यह है कि बहुसंख्यक हिन्दू साम्प्रदायिकता आज बेरोकटोक अपने विषैले तने फैलाती जा रही है । असली समस्याओं– महँगाई, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार और लूट–खसोट से हिन्दुओं और मुसलमानों का ध्यान भटकाकर उनके बीच आतंक और असुरक्षा का माहौल बनाकर, उनके हितैषी होने का भ्रम फैलाकर वोट बटोरना ही इन पार्टियों का काम रह गया है ।

भगत सिंह के साथियों ने उपरोक्त लेख में इसके लिए साम्प्रदायिक नेताओं और अखबारों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा था––

जहाँ तक देखा गया है, इन दंगों के पीछे साम्प्रदायिक नेताओं और अखबारों का हाथ है । इस समय हिन्दुस्तान के नेताओं ने ऐसी लीद की है कि चुप ही भली । वही नेता जिन्होंने भारत को स्वतन्त्र कराने का बीड़ा अपने सिरों पर उठाया हुआ था और जो ‘समान राष्ट्रीयता’ और ‘स्वराज–स्वराज’ के दमगजे मारते नहीं थकते थे, वही या तो अपने सिर छिपाये चुपचाप बैठे हैं या इसी धर्मान्धता के बहाव में बह चले हैं । सिर छिपाकर बैठने वालों की संख्या भी क्या कम है ? लेकिन ऐसे नेता जो साम्प्रदायिक आन्दोलन में जा मिले हैं, वैसे तो जमीन खोदने से सैकड़ों निकल आते हैं । जो नेता हृदय से सबका भला चाहते हैं, ऐसे बहुत ही कम हैं, और साम्प्रदायिकता की ऐसी प्रबल बाढ़ आयी हुई है कि वे भी इसे रोक नहीं पा रहे । ऐसा लग रहा है कि भारत में नेतृत्व का दिवाला पिट गया है ।

दूसरे सज्जन जो साम्प्रदायिक दंगों को भड़काने में विशेष हिस्सा लेते रहे हैं, वे अखबारवाले हैं ।

पत्रकारिता का व्यवसाय, जो किसी समय बहुत ऊँचा समझा जाता था, आज बहुत ही गन्दा हो गया है । यह लोग एक–दूसरे के विरुद्ध बड़े मोटे–मोटे शीर्षक देकर लोगों की भावनाएँ भड़काते हैं और परस्पर सिर–फुटौव्वल करवाते हैं । एक–दो जगह ही नहीं, कितनी ही जगहों पर इसलिए दंगे हुए हैं कि स्थानीय अखबारों ने बड़े उत्तेजनापूर्ण लेख लिखे हैं । ऐसे लेखक, जिनका दिल व दिमाग ऐसे दिनों में भी शान्त रहा हो, बहुत कम हैं ।

अखबारों का असली कर्त्तव्य शिक्षा देना, लोगों से संकीर्णता निकालना, साम्प्रदायिक भावनाएँ हटाना, परस्पर मेल–मिलाप बढ़ाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता बनाना था, लेकिन इन्होंने अपना मुख्य कर्त्तव्य अज्ञान फैलाना, संकीर्णता का प्रचार करना, साम्प्रदायिक बनाना, लड़ाई–झगड़े करवाना और भारत की साझी राष्ट्रीयता को नष्ट करना बना लिया है । यही कारण है कि भारतवर्ष की वर्तमान दशा पर विचार कर आँखों से रक्त के आँसू बहने लगते हैं और दिल में सवाल उठता है कि ‘भारत का बनेगा क्या ?’

इन बातों की रोशनी में अगर हम मुजफ्फरनगर और देश के विभिन्न इलाकों में पिछले दिनों करवाये गये दंगों पर निगाह डालें तो ये बातें आज पहले से कहीं ज्यादा सही लगती हैं । हिन्दू–मुस्लिम जनता को भड़काने और खून–खराबा करवाने के लिए जिन नेताओं और अखबारों की भूमिका को भगत सिंह और उनके साथियों ने रेखांकित किया था, वे आज पहले से कहीं अधिक खुलकर खेल रहे हैं ।

इन दंगों का कारण और समाधान प्रस्तुत करते हुए उसी लेख में उन्होंने कहा था –

बस, सभी दंगों का इलाज यदि कोई हो सकता है तो वह भारत की आर्थिक दशा में सुधार से ही हो सकता है, क्योंकि भारत के आम लोगों की आर्थिक दशा इतनी खराब है कि एक व्यक्ति दूसरे को चवन्नी देकर किसी और को अपमानित करवा सकता है । भूख और दु:ख से आतुर होकर मनुष्य सभी सिद्धान्त ताक पर रख देता है । सच है, मरता क्या न करता ।

लेकिन वर्तमान स्थिति में आर्थिक सुधार होना अत्यन्त कठिन हैक्योंकि सरकार विदेशी है और यही लोगों की स्थिति को सुधरने नहीं देती। इसीलिए लोगों को हाथ धोकर इसके पीछे पड़ जाना चाहिए और जब तक सरकार बदल न जाये, चैन की साँस न लेनी चाहिए ।

लोगों को परस्पर लड़ने से रोकने के लिए वर्ग–चेतना की जरूरत है । गरीब मेहनतकशों व किसानों को स्पष्ट समझा देना चाहिए कि तुम्हारे असली दुश्मन पूँजीपति हैं, इसलिए तुम्हें इनके हथकंडों से बचकर रहना चाहिए और इनके हत्थे चढ़ कुछ न करना चाहिए । संसार के सभी गरीबों के, चाहे वे किसी भी जाति, रंग, धर्म या राष्ट्र के हों, अधिकार एक ही हैं । तुम्हारी भलाई इसी में है कि तुम धर्म, रंग, नस्ल और राष्ट्रीयता व देश के भेदभाव मिटाकर एकजुट हो जाओ और सरकार की ताकत अपने हाथ में लेने का यत्न करो । इन यत्नों में तुम्हारा नुकसान कुछ नहीं होगा, इससे किसी दिन तुम्हारी जंजीरें कट जायेंगी और तुम्हें आर्थिक स्वतन्त्रता मिलेगी ।
प्रस्तुति : पारिजात

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।  - See more at: http://hindi.newsclick.in/%E0%A4%B2%E0%A5%87%E0%A4%96/%E0%A4%AA%E0%A5%8…
भगत सिंह
क्रान्तिकारी
साम्प्रदायिक दंगे
धार्मिक कट्टरता
हिन्दू साम्प्रदायिकता
मुजफ्फरनगर दंगे

Related Stories

“हवा में रहेगी मेरे ख़्याल की बिजली...”

“हवा में रहेगी मेरे ख़्याल की बिजली...”

हिंसा के बाद बिहारः घटना को भूलकर साथ रहने लगे दोनों धर्म के लोग

क्या इस अंधेरे दौर में भगत सिंह के विचार राह दिखायेंगे ?

लेनिन की सिर्फ मूर्ति टूटी है, उनके विचार नहीं

गौरी लंकेश की लड़ाई जारी है

देशभक्ति के लिए भगत सिंह को फिर सज़ा देगी भाजपा सरकार !

पगड़ी का रंग मत गिनवाओ, उठो ज्ञानी खेत संभालो!

साम्प्रदायिकता की चपेट में साझा गर्व

मुज़फ्फरनगर-शामली में भगत सिंह ने जलाई क़ौमी एकता की मशाल


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License