NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अर्थव्यवस्था
भीक्षा और अपराध
यह वे लोग नहीं है जिन्हें सामाजिक व्यवस्था की आवश्यकताओं को समायोजित करना है बल्कि सामाजिक व्यवस्था को इन लोगों की आवश्यकताओं को समायोजित करना चाहिए।
प्रभात पटनायक
16 Aug 2018
begging is not a crime in delhi

बुधवार 8 अगस्त को दिल्ली उच्च न्यायालय ने राजधानी में भीख माँगने को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया। सुनवाई के दौरान अदालत ने सवाल उठाया था कि देश में भीख माँगना किस तरह अपराध हो सकता है जहाँ सरकार भोजन और नौकरियाँ देने में असमर्थ है; इसका अंतिम फैसला इस विचार के अनुरूप है। बेशक कोई केंद्रीय क़ानून नहीं था, या विशेष रूप से दिल्ली से संबंधित क़ानून जिसने भीख माँगने को पहले अपराध बताया था; लेकिन कई अन्य राज्यों की तरह इस राजधानी क्षेत्र ने आपराधिक गतिविधि के रूप में भीख माँगने को लेकर बॉम्बे प्रिवेंशन ऑफ बेगिंग एक्ट के प्रावधानों का इस्तेमाल किया था।

21 वीं शताब्दी में भी इस संबंध में भारत का रिकॉर्ड 17 वीं शताब्दी में इंग्लैंड की तुलना में बेहद ख़राब है जहाँ पूंजी के आदिम संचय की प्रक्रिया के प्रभाव के कारण भीख माँगने की घटनाओं में काफी वृद्धि हुई थी। यह प्रक्रिया अमेरिका (जिसने वास्तविक मज़दूरी को कम किया और कई लोगों के लिए जीने के पारंपरिक तरीक़े को असंभव बना दिया) से बहुमूल्य धातुओं के प्रवाह के कारण "इनक्लोज़र मूवमेंट" (जहाँ आम भूमि को केवल मकान मालिकों द्वारा अहाता और विनियोजित किया गया था, जिसने अल्प उत्पादन को अविभाज्य बना दिया और अपने पारंपरिक गतिविधियों से बहुत सारे उत्पादकों को बाहर कर दिया) से भारी मुद्रास्फीति तक कई अलग-अलग तरीक़ों से हुई थी। 17 वीं शताब्दी में इंग्लैंड ने भीख माँगने में इस तरह के वृद्धि से निपटने के लिए एक दोहरी प्रणाली विकसित की थी।

उन लोगों के बीच भेदभाव किया गया जो सक्षम थे और काम कर सकते थे लेकिन नौकरियां नहीं थीं, और बुजुर्गों और विकलांगों की तरह जो काम करने में असमर्थ थे। पहले वालों के लिए "कार्य-गृह" थे जहाँ उन्हें कच्चे माल उपलब्ध कराया जाता था और काम करने के लिए कहा जाता था, जबकि जो "भुगतान करने में सक्षम" थे उन कर लगाकर बाद वालों के लिए उनके निवास स्थानों में राहत प्रदान की गई थी। यह अनुमान लगाया जाता है कि साल 1776 तक इंग्लैंड और वेल्स में कार्य-गृहों में 1,00,000 पाउपर्स को गृहों में रखा गया था, और इसके अलावा सदी के अंत तक लाखों लोगों को स्थानीय स्तर पर ग़रीबी राहत मिल रही थी। उस समय दोनों आंकड़े इंग्लैंड और वेल्स की कुल आबादी के 10 प्रतिशत से अधिक हो जाएंगे। यह पूंजीवाद के विकास में पूंजी के आदिम संचय के कारण होने वाली विनाश के रूप में एक उपाय है, इस तथ्य के मुताबिक़ मेट्रोपॉलिटन अर्थव्यवस्थाओं में विकासशील पूंजीवाद के तहत भी इस तरह का विनाश बेसहारों के लिए राहत के एक उपाय के साथ था।

हमारे जैसे समाजों में हालांकि जहाँ आदिम संचय का मुख्य साधन ऐतिहासिक रूप से "धन का रास्ता" और "ग़ैरऔद्योगिकीकरण" की औपनिवेशिक प्रक्रियाओं का था तो लाखों लोग बेसहारा हो गए और उन्हें किसी भी तरह की राहत नहीं मिली। यह न केवल हमारे समाज में आधुनिक व्यापक ग़रीबी की जड़, यानी असुरक्षा से जुड़ी ग़रीबी और प्राकृतिक आपदाओं से संबंधित या समाज में श्रम उत्पादकता के मौजूदा स्तर तक, बल्कि सक्षम व्यक्ति होने पर भी बड़े पैमाने पर भीख माँगने का प्रजनक भी था।

डिरिजिस्ट शासन में आज़ादी के बाद पूंजीवादी विकास ने इस तरह के विनाश के स्तर पर थोड़ा प्रभाव डाला। नव-उदार काल में परंपरागत छोटे उत्पादन पर पूंजीवादी क्षेत्र द्वारा अतिक्रमण के माध्यम से पूंजी के आदिम संचय में काफी प्रोत्साहन मिला है; और इसने अभाव के पैमाने को आगे बढ़ाया है।

हालांकि उल्लेखनीय है कि अभाव के लिए राहत की किसी भी प्रणाली की लगभग पूर्ण अनुपस्थिति है। इंग्लैंड में हमने देखा है कि राहत की कुछ व्यवस्था थी; वास्तव में यह राहत किसी भी तरह से महत्वहीन नहीं था, जिसके कारण 19वीं शताब्दी में यह सुनिश्चित करने के लिए एक सचेत प्रयास था कि जिन लोगों को राहत दी जा रही है उनके जीवन की स्थिति (जो मज़दूरों की आरक्षित लोगों से संबंधित हैं) को तुच्छ रखा गया था, ताकि वास्तव में पूंजी द्वारा नियोजित श्रमिकों की मजदूरी कम रह सके। लेकिन भारत में बेसहारों के लिए भविष्य में ऐसी कोई राहत नहीं होने जा रही है।

उपनिवेशवाद के अधीन यह समझा जा सकता है, क्योंकि औपनिवेशिक स्वामी "मूल" आबादी के जीवन की स्थिति का शायद ही ख्याल रख सकते थे; लेकिन भारत की आज़ादी के बाद भी किसी भी राहत की अनुपस्थिति की सच्चाई एक दिलचस्प घटना है, इसमें कोई संदेह नहीं कि हमारे समाज के समृद्ध लोगों को ग़रीबों के बारे में बहुत कुछ करना है, शायद एक असुविधाजनक जाति-उत्पीड़न की अमानवीय प्रणाली जो सदियों से अस्तित्व में है।

यह उदासीनता की इस पृष्ठभूमि के ख़िलाफ़ है कि यूपीए-1 सरकार द्वारा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोज़गार गारंटी योजना की शुरुआत वाम के दबाव के चलते हुई थी, जो उल्लेखनीय विकास था। इसने ग़रीबों और ग्रामीण भारत में बेसहारा श्रमिकों के लिए राहत प्रणाली शुरू करने का पहला प्रयास किया। लेकिन यूपीए-2 में इस योजना में धीरे धीरे कमी की जाती रही थी, जो अब इतना गंभीर हो गया है कि सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए यह योजना अपरिहार्य हो गई है। मज़दूरी बकाया इतना हो गया है कि मज़दूरों को इस योजना के तहत अब नामांकन कराने में कोई रूचि नहीं है।

यह शोषण की निर्दयी प्रणाली का एक लक्षण है जो इस देश में विकसित हो रहा है कि यहां तक कि आय और संपत्ति असमानता अभूतपूर्व स्तर तक पहुंच चुकी है, यहां तक कि पेश किए गए बेसहारों के लिए सीमित राहत वापस ले ली जाती है, और यहां तक कि वृद्धों से भी हैं मासिक पेंशन को लेकर मज़ाक ही किया गया है, जिसकी ग़रीबी अविश्वसनीय है, भीख माँगने को अपराध में शामिल कर बेसहारा की समस्या को समाप्त करने का प्रयास है, इस सच्चाई के बावजूद कि बेसहारों के लिए कोई वैकल्पिक सहायता प्रणाली नहीं है, जिस तरह से बुर्जुआ इंग्लैंड भी तीन सौ साल पहले था।

ये विचार बेसहारा को राहत प्रदान करके भीख माँगने रोकना नहीं है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे मौजूद रह कर हमारे शहरों को "प्रदूषित" न करें। उन्हें न केवल जीवित रहने का कोई साधन नहीं दिया जाता है, बल्कि उनके लिए उपलब्ध जीवित रहने का सबसे अपमानजनक तरीक़ा भी है जो भीख माँगना है, जिसके लिए भी मना कर दिया जाता है,क्योंकि यह हमारे शहरी इलाके को प्रदूषित करता है। और चूंकि भीख माँगने के लिए राजधानी शहर के आपराधिकरण की नकल करने से रोकने के लिए देश में हर दूसरे राज्य और शहर के लिए कुछ भी नहीं है ऐसे में बेसहारों के पास सचमुच रहने का कोई स्थान नहीं है। यहां तक कि ट्यूडर इंग्लैंड ने कुछ क्षेत्रों को निर्धारित किया था जहाँ भीख माँगने की अनुमति थी; 21 वीं शताब्दी का भारत ऐसा करने को तैयार नहीं है, भले ही हमारी सरकार शोर मचाती है कि दुनिया की सबसे तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्था के रूप में चीन को हमने कैसे पीछे कर दिया है।

यह विडंबना है कि कोई दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले का "स्वागत" करे जो राजधानी में भीख माँगने को अपराध की श्रेणी से बाहर रखता है। लेकिन एक लोकतंत्र के लिए न्यूनतम आवश्यक स्थिति "समान नागरिकों के भाईचारे" के नियम को शामिल करना यह है कि इस तरह के बेसहारों का अस्तित्व ही नहीं होना चाहिए। इसके लिए एक आवश्यक शर्त सभी के लिए "रोज़गार के अधिकार" को लागू करना है; और यदि सरकार किसी को रोज़गार प्रदान करने में विफल रहती है तो उस व्यक्ति को जीने के लिए वेतन देना चाहिए।

बेरोज़गार और बेसहारा होना व्यक्ति-विशेष का दोष नहीं है। चूंकि व्यक्ति एक संपूर्ण सामाजिक प्रणाली का हिस्सा है, जहाँ से वह बाहर नहीं निकल सकता है, उसकी बेसहारा होने की ज़िम्मेदारी समाज से जुड़ी हुई है। सरकार जो इस सामाजिक प्रणाली का नेतृत्व करता है उसे हर व्यक्ति को रोज़गार देना चाहिए या रोज़गार न रहने पर वेतन देना चाहिए। इस प्राथमिक तर्क को हमारे सामूहिक विचार मेंशामिल किया जाना चाहिए।

यह कहने के लिए कि हमारी वर्तमान सामाजिक व्यवस्था इसकी अनुमति नहीं देती है और इसलिए इसे इस आशय के विचलन के लिए लागू नहीं किया जा सकता है। यह वे लोग नहीं है जिन्हें सामाजिक व्यवस्था की आवश्यकताओं को समायोजित करना है लेकिन सामाजिक व्यवस्था जिसे इन लोगों की आवश्यकताओं को समायोजित करना है। वर्तमान समय में देश मेंलोकतंत्र को एक गंभीर ख़तरा है, जब तन्मयता हिंदुत्व शक्ति के हमले के विरूद्ध उसके बचाव और नवशक्ति संचार के साथ है, तो ऐसे में नवशक्ति संचार के एक अभिन्न अंग के रूप में राजनीतिक एजेंडा में रोज़गार का अधिकार शामिल करने का यह उचित समय है।

भीक्षा
अपराध
भीख माँगना अपराध?

Related Stories


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा
    04 Jun 2022
    ऑल्ट न्यूज के सह-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर पर एक ट्वीट के लिए मामला दर्ज किया गया है जिसमें उन्होंने तीन हिंदुत्व नेताओं को नफ़रत फैलाने वाले के रूप में बताया था।
  • india ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट
    03 Jun 2022
    India की बात के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश, अभिसार शर्मा और भाषा सिंह बात कर रहे हैं मोहन भागवत के बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को मिली क्लीनचिट के बारे में।
  • GDP
    न्यूज़क्लिक टीम
    GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफ़ा-नुक़सान?
    03 Jun 2022
    हर साल GDP के आंकड़े आते हैं लेकिन GDP से आम आदमी के जीवन में क्या नफा-नुकसान हुआ, इसका पता नहीं चलता.
  • Aadhaar Fraud
    न्यूज़क्लिक टीम
    आधार की धोखाधड़ी से नागरिकों को कैसे बचाया जाए?
    03 Jun 2022
    भुगतान धोखाधड़ी में वृद्धि और हाल के सरकारी के पल पल बदलते बयान भारत में आधार प्रणाली के काम करने या न करने की खामियों को उजागर कर रहे हैं। न्यूज़क्लिक केके इस विशेष कार्यक्रम के दूसरे भाग में,…
  • कैथरिन डेविसन
    गर्म लहर से भारत में जच्चा-बच्चा की सेहत पर खतरा
    03 Jun 2022
    बढ़ते तापमान के चलते समय से पहले किसी बेबी का जन्म हो सकता है या वह मरा हुआ पैदा हो सकता है। विशेषज्ञों का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान कड़ी गर्मी से होने वाले जोखिम के बारे में लोगों की जागरूकता…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License