NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
भीमा कोरेगांव मामले में 'दलित कार्यकर्ताओं और वकीलों' के घर पुणे पुलिस की छापेमारी
इन कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार दलितों से डरी हुई है इसलिए उन्हें निशाना बना रही है।

रवि कौशल
19 Apr 2018
bheema koregaon

पुणे, मुंबई और दिल्ली में कबीर कला मंच के कलाकारों, वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ता कर घर पर छापेमारी कर पुणे पुलिस ने तलाशी ली। छापेमारी के दौरान कार्यकर्ता रोना विल्सन (दिल्ली) और वकील सुरेंद्र गडलिंग (नागपुर) के घर की तलाशी ली गई। पुणे में सुधीर धवाले और हर्षली पोतदार, ज्योति जगताप, रमेश गैचर और धावाला डेंगले के घर की पुलिस ने तलाशी ली। ये छापेमारी म्हार सेना और ब्राह्मणवादी पेशवा शासन के बीच हुई ऐतिहासिक लड़ाई की 200 वीं वर्षगांठ के मौके पर हुई हिंसा के सिलसिले में की गई।

ये कार्रवाई एफआईआर दर्ज करने के तीन महीने बाद हुई है। पेशे से बिल्डर तुषार रमेश दमगुडे ने 8 जनवरी को अपनी शिकायत में दावा किया था कि कार्यक्रम में मौजूद कार्यकर्ताओं ने गीत बजाया था जो कथित तौर पर हिंसा को उकसाया था।

इस शिकायत में विचित्र तरीक़े से दावा किया है कि इन कार्यकर्ताओं का संबंध माओवादी समूह से था। यहां तक कि शिकायतकर्ता ने बिना किसी ठोस सबूत के दावा किया कि इन युवा दलितों को माओवादियों द्वारा गुमराह किया गया था। शिकायत में लिखा गया है, "मैं कह रहा हूं कि प्रतिबंधित माओवादी संगठन सीपीआई(माओवादी) की नीति दलित समुदाय को गुमराह करना और चरमपंथी माओवादी विचारों को उनके दिमाग में भरना है।"

मुख्य आरोपी खुलेआम घूम रहा

छापेमारी पर प्रतिक्रिया देते हुए गडलिंग ने कहा कि पुलिस निर्दोष को निशाना बना रही है और मुख्य आरोपी को खुला घूमने की इजाज़त दे रही है। अतिदक्षिणपंथी समूह शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के संस्थापक मनोहर भिड़े और तीन बार रह चुके बीजेपी के कॉर्पोरेटर और समस्त हिंदू अघादी प्रमुख मिलिंद एकबोटे पर दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा को उकसाने का आरोप है। ये दलित पिछले साल 31 दिसंबर को भीमा कोरेगांव की लड़ाई में मारे गए 22 म्हार सैनिकों को श्रद्धांजलि देने आए थें। यद्यपि एकबोटे न्यायिक हिरासत में है लेकिन इस मामले में भिड़े से पुणे पुलिस ने कोई पूछताछ नहीं किया है।

भिड़े और एकबोटे पर अपने इलाके में हिंसा को भड़काने का आरोप है। भिड़े ने शिवाजी के पुत्र के नाम पर संभाजी नाम रखा। भिड़े उस समय चर्चा में आया जब गणेश पंडल ने शिवाजी महाराज द्वारा आदिल शाह के सेना कमांडर अफ़जल ख़ान की हत्या के कलाकार की छवि लगाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था। उन्होंने साल 2008 में जोधा अकबर के प्रदर्शन का भी विरोध किया था। इस तरह एकबोटे दंगों, अपराध, आपराधिक धमकी और दो समुदायों के बीच वैमनस्यता फैलाने की कोशिश जैसे 12 मामलों में आरोपी है जबकि पांच मामलों में दोषी पाया गया है।

छापेमारी पर टिप्पणी करते हुए महेश भारती ने न्यूज़़क्लिक को बताया कि मनोहर भिड़े के एक समर्थक ने एक फेसबुक पोस्ट में मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नविस की हत्या की अपील की थी। एक फेसबुक पोस्ट में भिड़े के समर्थक राव साहिब पाटिल ने कहा था कि सुरक्षा के कारण भीमा कोरेगांव में हमला करने का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सका और फड़नविस को इसके लिए मारा जाना चाहिए। भारती ने कहा "हम सरकार को सबूत भेज चुके हैं कि वह भिड़े और उसके समर्थकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करें लेकिन पुलिस हमें अब निशाना बना रही है।"

असंतुष्टों को चुप करने की कोशिश

गडलिंग ने आगे कहा कि ये सरकार उन लोगों को चुप करने की कोशिश कर रही है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ख़िलाफ़ बोलते हैं। गडलिंग ने कहा "मैं भीमा कोरेगांव आयोजन में मौजूद नहीं था। हालांकि हमने इसके लिए फंड इकट्ठा किया था जैसे हम किसी अन्य कार्यक्रम के लिए करते हैं। पुलिस हमें परेशान कर रही है और हिंसा में शामिल लोगों को खुला घूमने की इजाज़त दे रही है। ये छापेमारी उन लोगों को चुप करने के लिए है जो आरएसएस के ख़िलाफ़ बोलते होते हैं।"

बहुजन भारिप परिषद के पुणे के अध्यक्ष एमएन कांबले ने कहा कि ये छापेमारी भी हिंसा के असली अपराधियों से ध्यान हटाने का प्रयास है जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे। पूणे मिरर ने कांबले के बयान को इस तरह लिखा है,"ये छापेमारी स्पष्ट रूप से कोरेगांव-भीमा हिंसा के असली अपराधियों से ध्यान हटाने के उद्देश्य से की गई है। पुलिस इस मामले में पहले ही जांच कर चुकी थी और हमारे ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं मिला था। लेकिन इसके बावजूद ये शक्तियां हमें और केकेएम को एक बार फिर निशाना बना रही है। यह हिंदुत्वादी नेता संभाजी भिड़े को गिरफ्तारी से बचाने और एक फूट डालने का प्रयास है और मज़बूत पकड़ को तोड़ने का प्रयास है जो दलित आंदोलन अपने सरकार विरोधी अभियान में उभर कर सामने आ रहा है।”

दलितों से सरकार भयभीत

इस छापेमारी के बाद इन कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार दलितों से डरती है। यही कारण है कि वे उन्हें निशाना बना रहे हैं। भारती ने कहा कि "हमने सरकार के ख़िलाफ़ तीन प्रमुख कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक आयोजन किया है। सबसे पहला कि भीमा कोरेगांव हिंसा के ख़िलाफ़ बंद सफल रहा। फिर, इस हिंसा के दोषियों के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी को लेकर हज़ारों की संख्या में मार्च किया गया। तीसरा, एससी/एसटी अधिनियम को कमज़ोर करने को लेकर भी भारत बंद सफल रहा। इसलिए उन्होंने दलितों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। पुलिस ने अम्बेडकर की पुस्तकों को ज़ब्त कर लिया है। क्या अम्बेडकर की पुस्तकों को रखना अपराध है?"

भीमा कोरेगाँव
दलितों पर हमला
BJP
महाराष्ट्र सरकार
RSS

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • आज का कार्टून
    आम आदमी जाए तो कहाँ जाए!
    05 May 2022
    महंगाई की मार भी गज़ब होती है। अगर महंगाई को नियंत्रित न किया जाए तो मार आम आदमी पर पड़ती है और अगर महंगाई को नियंत्रित करने की कोशिश की जाए तब भी मार आम आदमी पर पड़ती है।
  • एस एन साहू 
    श्रम मुद्दों पर भारतीय इतिहास और संविधान सभा के परिप्रेक्ष्य
    05 May 2022
    प्रगतिशील तरीके से श्रम मुद्दों को उठाने का भारत का रिकॉर्ड मई दिवस 1 मई,1891 को अंतरराष्ट्रीय श्रम दिवस के रूप में मनाए जाने की शुरूआत से पहले का है।
  • विजय विनीत
    मिड-डे मील में व्यवस्था के बाद कैंसर से जंग लड़ने वाले पूर्वांचल के जांबाज़ पत्रकार पवन जायसवाल के साथ 'उम्मीदों की मौत'
    05 May 2022
    जांबाज़ पत्रकार पवन जायसवाल की प्राण रक्षा के लिए न मोदी-योगी सरकार आगे आई और न ही नौकरशाही। नतीजा, पत्रकार पवन जायसवाल के मौत की चीख़ बनारस के एक निजी अस्पताल में गूंजी और आंसू बहकर सामने आई।
  • सुकुमार मुरलीधरन
    भारतीय मीडिया : बेड़ियों में जकड़ा और जासूसी का शिकार
    05 May 2022
    विश्व प्रेस स्वतंत्रता दिवस पर भारतीय मीडिया पर लागू किए जा रहे नागवार नये नियमों और ख़ासकर डिजिटल डोमेन में उत्पन्न होने वाली चुनौतियों और अवसरों की एक जांच-पड़ताल।
  • ज़ाहिद ख़ान
    नौशाद : जिनके संगीत में मिट्टी की सुगंध और ज़िंदगी की शक्ल थी
    05 May 2022
    नौशाद, हिंदी सिनेमा के ऐसे जगमगाते सितारे हैं, जो अपने संगीत से आज भी दिलों को मुनव्वर करते हैं। नौशाद की पुण्यतिथि पर पेश है उनके जीवन और काम से जुड़ी बातें।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License