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भारत
राजनीति
भीमा कोरेगांव मामले में 'दलित कार्यकर्ताओं और वकीलों' के घर पुणे पुलिस की छापेमारी
इन कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार दलितों से डरी हुई है इसलिए उन्हें निशाना बना रही है।

रवि कौशल
19 Apr 2018
bheema koregaon

पुणे, मुंबई और दिल्ली में कबीर कला मंच के कलाकारों, वकीलों और सामाजिक कार्यकर्ता कर घर पर छापेमारी कर पुणे पुलिस ने तलाशी ली। छापेमारी के दौरान कार्यकर्ता रोना विल्सन (दिल्ली) और वकील सुरेंद्र गडलिंग (नागपुर) के घर की तलाशी ली गई। पुणे में सुधीर धवाले और हर्षली पोतदार, ज्योति जगताप, रमेश गैचर और धावाला डेंगले के घर की पुलिस ने तलाशी ली। ये छापेमारी म्हार सेना और ब्राह्मणवादी पेशवा शासन के बीच हुई ऐतिहासिक लड़ाई की 200 वीं वर्षगांठ के मौके पर हुई हिंसा के सिलसिले में की गई।

ये कार्रवाई एफआईआर दर्ज करने के तीन महीने बाद हुई है। पेशे से बिल्डर तुषार रमेश दमगुडे ने 8 जनवरी को अपनी शिकायत में दावा किया था कि कार्यक्रम में मौजूद कार्यकर्ताओं ने गीत बजाया था जो कथित तौर पर हिंसा को उकसाया था।

इस शिकायत में विचित्र तरीक़े से दावा किया है कि इन कार्यकर्ताओं का संबंध माओवादी समूह से था। यहां तक कि शिकायतकर्ता ने बिना किसी ठोस सबूत के दावा किया कि इन युवा दलितों को माओवादियों द्वारा गुमराह किया गया था। शिकायत में लिखा गया है, "मैं कह रहा हूं कि प्रतिबंधित माओवादी संगठन सीपीआई(माओवादी) की नीति दलित समुदाय को गुमराह करना और चरमपंथी माओवादी विचारों को उनके दिमाग में भरना है।"

मुख्य आरोपी खुलेआम घूम रहा

छापेमारी पर प्रतिक्रिया देते हुए गडलिंग ने कहा कि पुलिस निर्दोष को निशाना बना रही है और मुख्य आरोपी को खुला घूमने की इजाज़त दे रही है। अतिदक्षिणपंथी समूह शिव प्रतिष्ठान हिंदुस्तान के संस्थापक मनोहर भिड़े और तीन बार रह चुके बीजेपी के कॉर्पोरेटर और समस्त हिंदू अघादी प्रमुख मिलिंद एकबोटे पर दलितों के ख़िलाफ़ हिंसा को उकसाने का आरोप है। ये दलित पिछले साल 31 दिसंबर को भीमा कोरेगांव की लड़ाई में मारे गए 22 म्हार सैनिकों को श्रद्धांजलि देने आए थें। यद्यपि एकबोटे न्यायिक हिरासत में है लेकिन इस मामले में भिड़े से पुणे पुलिस ने कोई पूछताछ नहीं किया है।

भिड़े और एकबोटे पर अपने इलाके में हिंसा को भड़काने का आरोप है। भिड़े ने शिवाजी के पुत्र के नाम पर संभाजी नाम रखा। भिड़े उस समय चर्चा में आया जब गणेश पंडल ने शिवाजी महाराज द्वारा आदिल शाह के सेना कमांडर अफ़जल ख़ान की हत्या के कलाकार की छवि लगाने की अनुमति देने से इंकार कर दिया था। उन्होंने साल 2008 में जोधा अकबर के प्रदर्शन का भी विरोध किया था। इस तरह एकबोटे दंगों, अपराध, आपराधिक धमकी और दो समुदायों के बीच वैमनस्यता फैलाने की कोशिश जैसे 12 मामलों में आरोपी है जबकि पांच मामलों में दोषी पाया गया है।

छापेमारी पर टिप्पणी करते हुए महेश भारती ने न्यूज़़क्लिक को बताया कि मनोहर भिड़े के एक समर्थक ने एक फेसबुक पोस्ट में मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नविस की हत्या की अपील की थी। एक फेसबुक पोस्ट में भिड़े के समर्थक राव साहिब पाटिल ने कहा था कि सुरक्षा के कारण भीमा कोरेगांव में हमला करने का लक्ष्य पूरा नहीं किया जा सका और फड़नविस को इसके लिए मारा जाना चाहिए। भारती ने कहा "हम सरकार को सबूत भेज चुके हैं कि वह भिड़े और उसके समर्थकों के ख़िलाफ़ कार्रवाई करें लेकिन पुलिस हमें अब निशाना बना रही है।"

असंतुष्टों को चुप करने की कोशिश

गडलिंग ने आगे कहा कि ये सरकार उन लोगों को चुप करने की कोशिश कर रही है जो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के ख़िलाफ़ बोलते हैं। गडलिंग ने कहा "मैं भीमा कोरेगांव आयोजन में मौजूद नहीं था। हालांकि हमने इसके लिए फंड इकट्ठा किया था जैसे हम किसी अन्य कार्यक्रम के लिए करते हैं। पुलिस हमें परेशान कर रही है और हिंसा में शामिल लोगों को खुला घूमने की इजाज़त दे रही है। ये छापेमारी उन लोगों को चुप करने के लिए है जो आरएसएस के ख़िलाफ़ बोलते होते हैं।"

बहुजन भारिप परिषद के पुणे के अध्यक्ष एमएन कांबले ने कहा कि ये छापेमारी भी हिंसा के असली अपराधियों से ध्यान हटाने का प्रयास है जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई थी और कई लोग घायल हो गए थे। पूणे मिरर ने कांबले के बयान को इस तरह लिखा है,"ये छापेमारी स्पष्ट रूप से कोरेगांव-भीमा हिंसा के असली अपराधियों से ध्यान हटाने के उद्देश्य से की गई है। पुलिस इस मामले में पहले ही जांच कर चुकी थी और हमारे ख़िलाफ़ कुछ भी नहीं मिला था। लेकिन इसके बावजूद ये शक्तियां हमें और केकेएम को एक बार फिर निशाना बना रही है। यह हिंदुत्वादी नेता संभाजी भिड़े को गिरफ्तारी से बचाने और एक फूट डालने का प्रयास है और मज़बूत पकड़ को तोड़ने का प्रयास है जो दलित आंदोलन अपने सरकार विरोधी अभियान में उभर कर सामने आ रहा है।”

दलितों से सरकार भयभीत

इस छापेमारी के बाद इन कार्यकर्ताओं का आरोप है कि सरकार दलितों से डरती है। यही कारण है कि वे उन्हें निशाना बना रहे हैं। भारती ने कहा कि "हमने सरकार के ख़िलाफ़ तीन प्रमुख कार्यक्रमों का सफलतापूर्वक आयोजन किया है। सबसे पहला कि भीमा कोरेगांव हिंसा के ख़िलाफ़ बंद सफल रहा। फिर, इस हिंसा के दोषियों के ख़िलाफ़ गिरफ़्तारी को लेकर हज़ारों की संख्या में मार्च किया गया। तीसरा, एससी/एसटी अधिनियम को कमज़ोर करने को लेकर भी भारत बंद सफल रहा। इसलिए उन्होंने दलितों को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। पुलिस ने अम्बेडकर की पुस्तकों को ज़ब्त कर लिया है। क्या अम्बेडकर की पुस्तकों को रखना अपराध है?"

भीमा कोरेगाँव
दलितों पर हमला
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